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उदारवाद (स्त्रोत - द हिन्दू)

By - Admin

At - 2024-01-25 09:32:34

  • उदारवाद एक राजनीतिक और नैतिक दर्शन है जो स्वतंत्रता, शासित की सहमति और कानून के समक्ष समानता पर आधारित है।
  • उदारवाद आमतौर पर सीमित सरकार, व्यक्तिगत अधिकारों (नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों सहित), पूंजीवाद (मुक्त बाज़ार ), लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, लिंग समानता, नस्लीय समानता और अंतर्राष्ट्रीयता का समर्थन करता है।
  • ‘उदारवाद’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Liberalism’ का हिन्दी अनुवाद है। इसकी उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘Liberty’ से हुई है। इस दृष्टि से यह स्वतन्त्रता से सम्बन्धित है। इस अर्थ में उदारवाद का अर्थ है ‘व्यक्ति की स्वतन्त्रता का सिद्धान्त।’ ‘Liberalism’ शब्द लेटिन भाषा के ‘Liberalis’ शब्द से भी सम्बन्धित माना जाता है। इस शब्द का अर्थ भी स्वतन्त्रता से है।
  • प्रबोधन काल (Age of Enlightenment) के बाद से पश्चिम में दार्शनिकों और अर्थशास्त्रियों के बीच उदारवाद लोकप्रिय हुआ था।
  • उदारवाद ने वंशानुगत विशेषाधिकार, राज्य धर्म, पूर्ण राजतंत्र, राजाओं के दिव्य अधिकारों जैसे पारंपरिक रूढ़िवादी मानदंडों को प्रतिनिधि लोकतंत्र और कानून के शासन के माध्यम से रूपांतरित करने की मांग की थी।
  • उदारवादियों ने व्यापारिक नीतियों को आसान बनाने, शाही एकाधिकार और व्यापार हेतु अन्य बाधाओं को समाप्त करने की मांग की थी।

उदारवाद के मुख्यतः तीन पक्ष हैं:

1. आर्थिक उदारवाद:- इसमें मुक्त प्रतिस्पर्द्धा, स्व-विनियमित बाज़ार, न्यूनतम राज्य हस्तक्षेप और वैश्वीकरण इत्यादि विशेषताएँ शामिल हैं।

2. राजनीतिक उदारवाद :- इसमें प्रगति में विश्वास, मानव की अनिवार्य अच्छाई, व्यक्ति की स्वायत्तता और राजनीतिक तथा नागरिक स्वतंत्रता शामिल है।

3. सामाजिक उदारवाद :-  इसके अंतर्गत अल्पसंख्यक समूहों के संरक्षण से जुड़े मुद्दे, समलैंगिक विवाह और LGBTQ से संबंधित मुद्दे आते हैं।

  • उदारवाद अनुदारवाद का उल्टा नहीं है, क्योंकि यह अनुदारवादी किसी भी प्रकार के परिवर्तन का तीव्र विरोध करते हैं, जबकि उदारवादी उन परिवर्तनों के समर्थक हैं जिनसे मानवीय स्वतन्त्रता का पोषण होता है।
  • उदारवाद के बारे में यह कहना भी गलत है कि यह व्यक्तिवाद है। 19वीं सदी के अन्त तक तो उदारवाद और व्यक्तिवाद में कोई विशेष अन्तर नहीं था तथा व्यक्ति के जीवन में हस्तक्षेप न करने के सिद्धान्त को ही उदारवाद कहा जाता था, लेकिन आज व्यक्ति की बजाय समस्त समाज के कल्याण पर ही जोर देने की बात उदारवाद का प्रमुख सिद्धान्त है।
  • इस तरह उदारवाद और लोकतन्त्र भी समानार्थी नहीं है क्योंकि उदारवाद का मूल लक्ष्य स्वतन्त्रता है जबकि लोकतन्त्र का समानता है। सत्य तो यह है कि उदारवाद का सम्बन्ध स्वतन्त्रता से है जो बहुआयामी होता है अर्थात् जिसका सम्बन्ध जीवन के सभी क्षेत्रों से होता है। उदारवाद को परिभाषित करते हुए मैकगवर्न ने कहा है-’’राजनीतिक सिद्धान्त के रूप में उदारवाद को पृथक-पृथक तत्वों का मिश्रण है। उनमें से एक लोकतन्त्र है और दूसरा व्यक्तिवाद है।’’

 

 

उदारवाद की प्रमुख विशेषताएं, मान्यताएं व सिद्धान्त :-

  1. मानवीय स्वतन्त्रता का समर्थक –
  • उदारवाद मनव की स्वतन्त्रता को बढ़ाना चाहता है। उदारवाद की प्रमुख मान्यता यह है कि स्वतन्त्रता व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है।
  • यह व्यक्ति की स्वतन्त्रता का निरपेक्ष समर्थन करता है। इसका मानना है कि मनुष्य अपने विवेक के अनुसार कार्य करने व आचरण करने के लिए स्वतन्त्र है।
  • इसी कारण उदारवाद जीवन के सभी क्षेत्रों में पूर्ण वैयक्तिक स्वतन्त्रता का समर्थक है।
  1. मानवीय विवेक में आस्था –
  • उदारवादी विचारक मानवीय विवेक में विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि मनुष्य ने अपने विवेक से ही आरम्भ से लेकर आज तक जटिल सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं तकनीकी परिस्थितियों के बीच विकास एवं मानवता का मार्ग निर्धारित एवं विकसित किया है।
  • मनुष्य ने अपने विवेक के बल पर ही स्थापित परम्पराओं का अन्धानुकरण करने की बजाय पुनर्जागरण का सूत्रपात किया है। उसने अप्रासांगिक मान्यताओं की जड़ता से मुक्त होने की मानवीय चेतना के चलते ही स्वतन्त्र चिन्तन का विकास किया है।
  • मनुष्य ने सदैव ऐसे विचार को ही महत्व दिया है। जिसकी उपयोगिता बुद्धि की कसौटी पर खरी उतरती हो। मनुष्य ने ऐसे विचार को छोड़ने में कोई संकोच नहीं किया है जिसकी उपयोगिता बुद्धि से परे हो।

 

  1. प्राकृतिक अधिकारों की धारणा में विश्वास –
  • उदारवादियों का मानना है कि जीवन, सम्पत्ति एवं स्वतन्त्रता के अधिकार प्राकृतिक अधिकार हैं। स्वतन्त्रता के अन्तर्गत वैयक्तिक, नागरिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक राजनीतिक आदि समस्त प्रकार की स्वतन्त्रताएं शामिल हैं।
  • हॉब्स हाऊस ने अपनी पुस्तक ‘Liberalism’ में नौ प्रकार की स्वतन्त्रताओं का वर्णन किया है। हॉब्स हाऊस का कथन है कि ये सभी स्वतन्त्रताएं व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए अक्षुण्ण महत्व की है।
  • उदारवादियों का कहना है कि नागरिक के रूप में व्यक्ति के साथ किसी अन्य व्यक्ति या सत्ता को मनमाना आचरण करने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
  • हॉब्स हाऊस तो अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में भी स्वतन्त्रता की बात करता है।
  • उदारवादियों के प्राकृतिक अधिकारों के तर्क को इस बात से समर्थन मिल जाता है कि आज सभी प्रजातन्त्रीय देशों में मौलिक अधिकारों को विधि के अधीन संरक्षण प्रदान किया गया है।

 

  1. इतिहास तथा परम्परा का विरोध –
  • उदारवाद ऐसी परम्पराओं और ऐतिहासिक तथ्यों का विरोध करता है जो विवेकपूर्ण नहीं है। मध्ययुग में उदारवादियों ने उन सभी धार्मिक परम्पराओं का विरोध किया था जो सभी के विशेषाधिकारों की पोषक थी।
  • उदारवाद का उदय भी मध्ययुगीन सामाजिक व्यवस्था तथा राज्य व चर्च की निरंकुश सत्ता के विरूद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुआ है। उदारवादियों का मानना है कि प्राचीन व्यवस्था और परम्पराओं ने व्यक्ति को पंगु बना दिया है, इसलिए उदारवादी विचारक पुरातन व्यवस्था के स्थान पर परम्परायुक्त नवीन समाज का निर्माण करने की वकालत करते हैं। इंग्लैण्ड, फ्रांस और अमेरिका की क्रान्तियां इसी का उदाहरण हैं।

 

  1. धर्म-निरपेक्षता में विश्वास –
  • उदारवाद धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण का समर्थक है। उदारवाद का जन्म ही मध्ययुग में रोमन कैथोलिक चर्च के निरंकुश धार्मिक आधिपत्य के विरूद्ध प्रतिक्रिया के कारण हुआ था। उस समय चर्च और राजा दोनों व्यक्ति धार्मिक अन्धविश्वासों की आड़ लेकर अत्याचार करते थे।
  • चर्च और राजसत्ता के गठबन्धन ने व्यक्ति को महत्वहीन बना दिया था। इसलिए उदारवाद की वकालत करने वाले सभी समाज सुधारकों व विचारकों ने धार्मिक अन्धविश्वासों के पाश से व्यक्ति को मुक्त कराने के लिए धर्म-निरपेक्ष के सिद्धान्त का प्रचार किया, मैकियावेली, बोंदा और हॉब्स जैसे विचारकों ने धर्म और राजनीति में अन्तर का समर्थन किया।
  • इसी सिद्धान्त पर चलते हुए आज उदारवादी विचारक इस बात के प्रबल समर्थक हैं कि राज्य को धर्म-निरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और व्यक्ति को धार्मिक मामलों में पूरी छूट मिलनी चाहिए।

 

  1. आर्थिक क्षेत्र में यद्भाव्यम् अथवा अहस्तक्षेप की नीति का समर्थन –
  • उदारवादियों का मानना है कि आर्थिक क्षेत्र में व्यक्ति को स्वतन्त्रतापूर्वक अपना कार्य करने की छूट दी जानी चाहिए। उनका मानना है कि आर्थिक क्षेत्र में समाज और राज्य की ओर से व्यक्तियों के उद्योगों और व्यापार में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
  • व्यक्ति को इस बात की पूरी छूट मिलनी चाहिए कि अपनी इच्छानुसार कोई भी व्यवसाय करें और उसमें पूंजी लगाए। व्यवसाय के सम्बन्ध में राज्य को चिन्ता नहीं करनी चाहिए। राज्य को संरक्षण की प्रवृत्ति से दूर ही रहना चाहिए। राज्य का दृष्टिकोण भी सम्पत्ति के अधिकार के बारे में निरपेक्ष ही होना चाहिए। समाज की सत्ता को आर्थिक उत्पादन, वितरण, विनिमय आदि का नियमन नहीं करना चाहिए और न ही वस्तुओं के मूल्य-निर्धारण या बाजार-नियन्त्रण आदि में कोई हस्तक्षेप करना चाहिए। लेकिन आधुनिक समय में समाजवाद की बढ़ती लोकप्रियता ने उदारवाद की इस मान्यता को गहरा आघात पहुंचाया है।
  • समसामयिक उदारवादी विचारक ‘राज्य के कल्याणकारी’ विचार को सार्थक बनाने के लिए अब राज्य के आर्थिक क्षेत्र में हस्तक्षेप की बात स्वीकार करने लगे हैं। अत: आधुनिक उदारवाद में आर्थिक क्षेत्र में यद्भाव्यम् नीति का सिद्धान्त ढीला पड़ता जा रहा है।

 

 

  1. लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली का समर्थन –
  • उदारवादी लोकतन्त्र के प्रबल समर्थक हैं। उदारवाद की विचारधारा अपने जन्म से ही उस विचार का प्रतिपादन करती आई है कि स्वतन्त्रता व उसके अधिकारों की रक्षा का सर्वोत्तम उपाय यही है कि शासन की शक्ति जनता के हाथों में हो तथा कोई व्यक्ति या वर्ग जनता पर मनमाने ढंग से शासन न करें। लोक प्रभुसत्ता के सिद्धान्त के मूल में भी व्यक्ति की स्वतन्त्रता का ही विचार निहित है।
  • उदारवाद की मूल मान्यता ही इस बात का समर्थन करती है कि व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए लोकप्रभुसत्ता पर आधारित लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली ही उचित शासन प्रणाली है। इंग्लैण्ड, फ्रांस व अमेरिका की क्रान्तियों का उद्देश्य भी राजसत्ता का लोकतन्त्रीकरण करवा रहा है ताकि मानव की स्वतन्त्रता में वृद्धि हो सके।
  • आज भी उदारवाद के समर्थक साम्यवादी या अधिनायकवादी शासन प्रणालियों का विरोध करते हैं यदि उनसे व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कोई आंच आती हो तथा लोक प्रभुसत्ता पर आधारित प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली को कोई हानि होती हो। अधिकार उदारवादी आज लोकतन्त्र के आधार स्तम्भों-निर्वाचित संसद, व्यस्क मताधिकार प्रैस की स्वतन्त्रता एवं स्वतन्त्र व निष्पक्ष न्यायपालिका की वकालत करते हैं।

 

 

  1. लोक कल्याणकारी राज्य व्यवस्था का समर्थन –
  • उदारवाद के आरिम्भक काल में उदारवादी विचारक व समर्थक मानव जीवन के राज्य के हस्तक्षेप का विरोध करते थे। उनका मत था कि व्यक्ति के जीवन में राज्य का हस्तक्षेप अनुचित है व मानवीय स्वतन्त्रता पर कुठाराघात करने वाला है।
  • राज्य के कार्यों और उद्देश्यों के प्रति उदारवादियों का दृष्टिकोण लम्बे समय तक नकारात्मक ही रहा है। लेकिन वर्तमान समय में उदारवादियों का पुराना दृष्टिकोण बदल चुका है। अब सभी उदारवादी यह बात स्वीकार करने लगे हैं कि राज्य का उद्देश्य सामान्य कल्याण की साधना करना है। राज्य का उद्देश्य या कार्य किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष तक ही सीमित न होकर सम्पूर्ण मानव समाज के हितों के पोषक हैं।
  • राज्य ही वह संस्था है जो परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य स्थापित करके सामान्य कल्याण में वृद्धि करता है। आधुनिक उदारवादी आज के समय में लोक कल्याणकारी राज्य के विचार के प्रबल समर्थक हैं। समाजवाद के विकास से इस विचार को प्रबल समर्थन मिला है। इसी कारण आज की सरकारें लोककल्याण के लिए ही कार्य करती देखी जा सकती है।

 

  1. राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के सिद्धान्त का समर्थन –
  • उदारवाद निरंकुशतावाद के किसी भी सिद्धान्त का प्रबल विरोधी है। उदारवादियों को प्रारम्भ से ही साम्राज्यवाद का भी प्रबल विरोध किया है।
  • उदारवाद की प्रमुख मान्यता यह है कि प्रत्येक देश का शासन उस देश के निवासियों की इच्छा से ही संचालित होना चाहिए। इससे ही व्यक्ति की स्वतन्त्रता बनी रह सकती है। अत: उदारवाद राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार का प्रबल समर्थक है। यह स्वशासन के सिद्धान्त का ही समर्थन करता है।

 

  1. व्यक्ति साध्य तथा राज्य साधन –
  • उदारवादी विचारक व समर्थक इस बात पर जोर देते हैं कि व्यक्ति अपने हितों का निर्णायक है। मनुष्य अपने जीवन के हर कार्य में प्राकृतिक रूप से स्वतन्त्र है। इसी आधार पर यह एक साध्य है। राज्य तथा अन्य संस्थाएं उसके विकास का साधन है।
  • आधुनिक उदारवादी विचारकों ने व्यक्ति और राज्य के बीच की खाई को कम करना शुरू कर दिया है। आधुनिक उदारवाद व्यक्ति और राज्य के बीच सामंजस्यपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने की वकालत करते हैं।

 

  1. राज्य एक कृत्रिम संस्था है और उसका उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करना है –
  • उदारवादियों का मत है कि राज्य कोई ईश्वरीय व प्राकृतिक संस्था नहीं हैं यह एक कृत्रिम संस्था है जिसका निर्माण व्यक्तियों ने अपने हितों के लिए एक संविदा (Contract) के तहत किया है। हॉब्स, लॉक व रुसो का चिन्तन इसी मत का समर्थन करता है।
  • बर्क, ग्रीन, कॉण्ट जैसे विचारक भी इसी मत की पुष्टि करते हैं। बेंथम का मत है कि राज्य एक उपयोगितावादी संस्था है जिसका कार्य ‘अधिकतम व्यक्तियों को अधिकतम सुख’ प्रदान करना है। इस तरह उपयोगितावादी विचारक राज्य का आधार समझौते की बजाय इसकी उपयोगिता को मानते हैं।
  • इस वर्णन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि चाहे राज्य का जन्म कैसे भी हुआ हो, वह एक कृत्रिम संस्था ही है जिसका उद्देश्य व्यक्ति को अधिकतम स्वतन्त्रता प्रदान करके उसके व्यक्तिगत का विकास करना ही है लेकिन आधुनिक उदारवादी व्यक्ति की बजाय सारे समाज के कल्याण को ही प्राथमिकता देते हैं। इस अर्थ में राज्य का उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास की बजाय सम्पूर्ण समाज के विकास से है।

 

 

  1. संवैधानिक शासन का समर्थन –
  • उदारवाद विधि के शासन को उचित महत्व देता है। उदारवादियों का मानना है कि विधि के शासन के अभाव में व्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन होता है और समाज में अराजकता फैल जाती है जिससे बलवान व्यक्तियों के हितों का ही पोषण होने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। इसलिए उदारवादी सीमित सरकार तथा कानून के शासन को उचित महत्व देते हैं। उदारवाद के समर्थक चाहे वे 19वीं सदी के हों या वर्तमान सदी के, सभी संवैधानिक शासन को ही मान्यता देते हैं।

 

  1. विश्व शान्ति में विश्वास –
  • सभी उदारवादी विचारक विश्व बन्धुत्व की भावना का प्रबल समर्थन करते हैं। उनका मानना है कि विश्व समाज के विकास से ही प्रत्येक देश का भला हो सकता है। इसलिए वे एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र की अखण्डता व सीमाओं का आदर करने की बात पर जोर देते हैं। उदारवादी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शक्ति प्रयोग के किसी भी रूप का विरोध करते हैं। इसी आधार पर उदारवादी विश्व शांति के विचार को व्यवहारिक बनाने पर जोर देते हैं।

 

अतः ऐसा माना जा सकता है कि उदारवाद मानवीय स्वतन्त्रता का पोषक है। वह मानवीय विवेक में आस्था व्यक्त करते हुए व्यक्ति के कार्यों में राज्य के अनुचित हस्तक्षेप पर रोक लगाने की वकालत करता है। आधुनिक समय में उदारवादी धर्म- निरपेक्षता के विचार का समर्थन करते हुए विश्व-शांति के विचार का पोषण करते हैं। आधुनिक उदारवाद राज्य के प्रति उदारवादियों द्वारा अपनाए गए नकारात्मक दृष्टिकोण को बदल रहा है। आधुनिक उदारवादी व्यक्ति की बजाय सम्पूर्ण समाज के हितों पर ही बल देते हैं। आधुनिक उदारवादी राज्य के लोक कल्याण के आदर्श को प्राप्त करने के लिए आर्थिक क्षेत्र में भी राज्य के हस्तक्षेप को उचित ठहराते हैं।

 

उदारवाद का मूल्यांकन

  • कुछ आलोचकों ने समकालीन उदारवाद पर प्रथम आरोप यह लगाया कि रॉल्स जैसे विचारकों द्वारा वितरणात्मक न्याय पर नये सिरे से बल देने के कारण यह बुर्जुआ व्यवस्था का समर्थक है जिसका निहितार्थ यह है कि व्यक्ति को अधिक आर्थिक स्वतन्त्रता दी जाए। प्रो0 मिल्टन फ्राइडमैन का कहना है कि ‘‘मुक्त मानव समाज में आर्थिक स्वतन्त्रता पर अधिक जोर दिए जाने के कारण समसामयिक उदारवाद समाजवाद से काफी दूर हो गया है।’’
  • एडमण्ड बर्क का उदारवाद पर प्रमुख आरोप यह है कि यह इतिहास और परम्परा का विरोधी है। किसी भी समाज और विचारक के लिए परम्परा व इतिहास से अचानक नाता तोड़ना न तो सम्भव है और न ही उचित।

 

  • अनुदारवादियों का प्रमुख आरोप यह है कि उदारवाद समाज व राज्य को कृत्रिम मानता है। उदारवादियों की दृष्टि में संविदा द्वारा राज्य के निर्माण की बात स्वीकार करना और प्राकृतिक अधिकारों की धारणा में विश्वास करना गलत है। अनुदारवादियों का कहना है कि राज्य व्यक्ति की सामाजिक प्रवृत्तियों का विकसित रूप है, कृत्रिम नहीं।
  • आदर्शवादियों का उदारवाद पर प्रमुख आरोप यह है कि व्यक्ति की निरपेक्ष स्वतन्त्रता का विचार गलत है। लेकिन आधुनिक उदारवादी राज्य द्वारा नियमित स्वतन्त्रता को ही वास्तविक स्वतन्त्रता मानते हैं। इसी कारण आदर्शवादियों की यह आलोचना अधिक प्रासांगिक नहीं है।
  • मार्क्सवादियों का उदारवाद पर प्रमुख आरोप यह है कि यह ऐतिहासिक परम्पराओं की उपेक्षा करता है, राज्य को कृत्रिम मानता है, व्यक्ति की निरपेक्ष स्वतन्त्रता का समर्थन करता है तथा अहस्तक्षेप या यद्भाव्यम् की नीति का समर्थन करता है। आर्थिक क्षेत्र में खुली प्रतिस्पर्धा समाज को दो वर्गों में बांट देती है और इससे पूंजीवाद का ही पोषण होता है। लेकिन समसामयिक उदारवाद मुक्त आर्थिक व्यवस्था पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रबल समर्थक है। इसलिए मार्क्सवादियों की इस आलोचना में भी कोई दम नहीं है।
  • लेनिन तो सभी उदारवादियों को आरामकुर्सी पर बैठे रहने वाले मूर्ख कहता थे। कुछ विचारक इसे विरोधाभासी दर्शन भी कहते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उदारवाद महत्वहीन विचारधारा है।

अतः उदारवाद के व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, मानव अधिकार, विधि का शासन धर्म-निरपेक्ष दृष्टिकोण आदि सिद्धान्त उसके महत्व को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं। मानवतावाद का समर्थन होने के कारण आज भी उदारवाद शाश्वत् महत्व की विचारधारा है। स्वतन्त्रता व समानता के आदर्श पर जोर देने के कारण यह सभी प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली वाले देशों में समर्थन को प्राप्त है। अन्तर्राष्ट्रीयता और विश्व-शांति के विचार पर जोर देने के कारण यह अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में भी अपना स्थान बनाए हुए है।

उदारवाद का वर्तमान स्वरूप:-

  • रूस के अतिरिक्त भारत, चीन, तुर्की, ब्राज़ील, फिलीपींस और यहांँ तक ​​कि यूरोप में भी अब अत्यधिक केंद्रीकृत राजनीतिक प्रणालियांँ प्रचलित हो रही हैं जो उदारवाद की सामान्य विशेषताओं का विरोध कर रही हैं।
  • वर्तमान में इस प्रकार की प्रणालियों के समर्थक मानते हैं कि राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक प्रगति के लिये उदारवादी लोकतंत्र की तुलना में ये प्रणालियांँ बेहतर तरीके से काम कर रही हैं।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उदारवाद पश्चिम में प्रमुख सामाजिक-राजनीतिक विचारधारा रहा है लेकिन हाल ही में पश्चिम में भी उदारवाद की स्थिति में गिरावट देखी जा रही है।
  • ब्रिटेन में ब्रेक्ज़िट का जनता द्वारा समर्थन, अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों का समर्थन, हंगरी के राष्ट्रपति विक्टर ऑर्बन और पूर्व इतालवी उपप्रधानमंत्री माटेओ साल्विनी की लोकप्रियता यह प्रदर्शित करती है कि पश्चिम के समाज में भी प्रचलित मूल उदारवाद के स्वरूप में अब परिवर्तन आ रहा है।
  • अमेरिका की नई प्रवासी नीतियों के माध्यम से प्रवासियों को अमेरिका में प्रवेश से रोका जा रहा है साथ ही जर्मनी द्वारा शरणार्थियों को स्वीकार करने की नीतियों से गलत परिणाम निकलने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
  • पोलैंड और हंगरी हिंसा एवं युद्ध से भागे शरणार्थियों के प्रवेश के पक्ष में नहीं हैं तथा लगभग सभी यूरोपीय संघ के सदस्यों का मानना है कि यूरोपीय संघ में शरणार्थियों के प्रवेश से यूरोप के पूर्ण एकीकरण की योजना बुरी तरह प्रभावित होगी।
  • समलैंगिक विवाह को केवल कुछ देशों द्वारा ही मान्यता दी जा रही है, दूसरी ओर समलैंगिकता हेतु कई देशों में मौत की सज़ा का प्रावधान है। LGBTQ (Lesbian, Gay, Bisexual, Transgender, QUEER) के अधिकारों में बहुत धीमी प्रगति देखी जा रही है, जबकि अब यह सिद्ध हो चुका है कि इस प्रकार के लोगों की शारीरिक संरचना प्रकृति द्वारा निर्धारित होती है।
  • कई देशों द्वारा पर्यावरण हित के विरुद्ध नीतियाँ बनाई जा रही हैं इसमें स्वयं के संकीर्ण हितों को वैश्विक जलवायु परिवर्तन से ज़्यादा प्राथमिकता दी जा रही है। हाल ही में ब्राज़ील के वनों में लगी आग हेतु सरकार की नीतियों को ज़िम्मेदार बताया जा रहा है।
  • पर्यावरण संबंधी अभिसमयों की प्रकृति गैर-बाध्यकारी होने के कारण कई देश इस प्रकार के अभिसमयों से अलग होते जा रहे हैं। पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका का अलग होना संरक्षणवादी नीतियों को प्रदर्शित करता है।

 

 

वर्तमान समय में उदारवाद में गिरावट के कारण:

  • वर्ष 1991 में साम्यवाद के पतन के समय उदारवाद का प्रभाव अपने चरम पर पहुंँच गया था। इस समय तक उदारवाद की सफलता निर्विवाद रही थी और भविष्य में भी उदारवाद का कोई ठोस विकल्प नहीं दिखाई दे रहा था।
  • वर्ष 2008-2009 के वित्तीय संकट ने उदारवादी आर्थिक व्यवस्था को चुनौती दी, उस समय अर्थशास्त्रियों और राजनेताओं के पास इस संकट का कोई भी समाधान नहीं था। उस समय की आर्थिक विकास दर मात्र 1% से 2% तक रह गई थी। इस आर्थिक संकट से उबरने में विश्व को काफी समय लग गया।
  • उदारवादी व्यवस्था दो स्तंभों पर टिकी हुई है- एक स्तंभ व्यक्ति की स्वतंत्रता है (उदारवादी इस सिद्धांत को अपना सर्वोच्च मूल्य मानते हैं) और दूसरा स्तंभ आर्थिक विकास तथा सामाजिक प्रगति हेतु प्रतिबद्धता है।
  • उदारवाद में इन दोनों स्तंभों को एक-दूसरे से संबंधित माना जाता है। वर्तमान विश्व की सबसे बड़ी समस्या यही है कि इस व्यवस्था के मूल सिद्धांत वैध नहीं रह गए हैं, वैश्विक आर्थिक विकास की प्रकृति प्रगतिशील तो है लेकिन समाज में समावेशी विकास का अभाव दिख रहा है। उदाहरणस्वरूप प्रति व्यक्ति आय तो बढ़ रही है लेकिन गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों की प्रभावशीलता पर्याप्त नहीं है।
  • इस प्रकार की स्थितियों के मद्देनज़र विश्व द्विपक्षीय और गुटबाज़ी में फँसता जा रहा है। यूरोपीय संघ, अफ्रीका समूह, आसियान जैसे समूह कहीं-न-कहीं उदारवाद के मूल को क्षति पहुँचा रहे हैं।
  • शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ की शक्ति को संतुलित करने के लिये बनाए गए नाटो जैसे संगठन की वर्तमान प्रासंगिकता समझ से परे है। शायद इस प्रकार के संगठन केवल क्षेत्रीयता को बढ़ावा दे रहे हैं क्योंकि इस प्रकार के संगठनों का कोई निश्चित ध्येय तक नहीं निर्धारित किया गया है।

अतः ऐसा कहा जा सकता है कि आज उदारवाद अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहा है क्योंकि पुनर्जीवित राष्ट्रवाद इसके सम्मुख एक स्थायी खतरा उत्पन्न कर रहा है। इसी राष्ट्रवाद के स्वरूप में विभिन्न देशों में कट्टरपंथ का उदय हो रहा है। इस प्रकार के विचारों से घिरी सरकारें अपने देश को संधारणीय और वैश्विक हितों को नज़रअंदाज़ करते हुए प्राथमिकता देने वाली नीतियों का निर्माण कर रहे हैं। उदारीकरण के बाद बहु-राष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कंप्यूटर, रोबोट और सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग स्थानीय रोज़गार को प्रभावित कर रहा है, इस कारण से स्थानीय उद्योगों और संस्थाओं द्वारा उदारीकरण का विरोध किया जा रहा है।

 

हालांकि कई उदार अर्थशास्त्रियों और पर्यावरणविदों के अनुसार, पृथ्वी के संसाधनों की सीमित क्षमता है और यह लगातार बढ़ती मानव आबादी तथा उनकी बढ़ती ज़रूरतों को समायोजित नहीं कर सकती है।प्रकृति हमारी सभ्यता के वर्तमान विकास को बनाए नहीं रख सकती है और इसलिये सरकार की नीतियों में परिवर्तन आवश्यक है। अतः भौतिक चीज़ो का पीछा करने के बजाय एक खुशहाल और संतुष्ट जीवन जीने का लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिये। समावेशी नीतियों के निर्माण के साथ ही इनके क्रियान्वयन हेतु मानक स्थापित किये जाएँ साथ ही उदारवाद के मुख्य सिद्धांत सामाजिक कल्याण का गंभीरता से पालन किया जाए।उदारवाद के अभिजात्यकरण को सीमित किया जाए क्योंकि इस प्रकार की स्थिति में सैधांतिक रूप से उदारवाद प्रगतिशील प्रतीत हो रहा है लेकिन व्यावहारिक रूप से वह काफी पिछड़ा हुआ है। इसलिए उदारीकरण को बढ़ाया जाना चाहिये जिससे सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों का समावेशी विकास किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू

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