78वां स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर तैयारी करने वाले UPSC, BPSC, JPSC, UPPSC ,BPSC TRE & SI के अभ्यर्थीयों को 15 अगस्त 2024 तक 75% का Scholarship एवं 25 अगस्त 2024 तक 70% का Scholarship. UPSC 2025 और BPSC 71st की New Batch 5 September & 20 September 2024 से शुरु होगी ।

इतिहास - वैकल्पिक (History -Optional): BPSC

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-01-18 22:37:15

   बिहार लोक सेवा आयोग  - वैकल्पिक विषय "इतिहास" (Syllabus)

• बिहार लोक सेवा आयोग के मुख्य परीक्षा में वैकल्पिक विषय इतिहास में प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत, आधुनिक भारत और विश्व इतिहास के विषय शामिल होते हैं।

           खंड - 1, भाग (क)

(भारत का इतिहास , 750-760 ईसवी सन् तक)

1. सिन्धु सभ्यता - उद्गम, विस्तार, प्रमुख विशेषताएँ, महानगर, व्यापार और संबंध; हरास के कारण, उतरा जीविता और सांतत्व।

2. वैदिक युग - वैदिक साहित्य, वैदिक युग का भौगोलिक क्षेत्र, सिन्धु सभ्यता और जैविक संस्कृत के बीच असमानताएँ और समानताएँ। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रतिरूप, महान धार्मिक विचार और रीति-रिवाज।

 

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3. मौर्य काल से पूर्व -धार्मिक आंदोलन (जैन, बौद्ध और अन्य धर्म) सामाजिक और आर्थिक स्थिति। मगध साम्राज्य का गणतंत्र और वृद्धि।

 

4. मौर्य साम्राज्य –साधन, साम्राज्य प्रशासन का उद्भव, वृद्धि और पतन, सामाजिक और आर्थिक स्थिति, अशोक की नीति और सुधार काल।

 

5. मौर्य काल के बाद (200 ई॰पू॰-300 ई॰) –

उत्तरी और दक्षिणी भारत में प्रमुख राजवंश, आर्थिक और सामाजिक, संस्कृत, प्राकृत और तमिल धर्म (महायान का उदय और ईश्वरवादी उपासना)। कला (गांधार, मथुरा तथा अन्य स्कूल) केन्द्रीय एशिया से संबंध।

6. गुप्त काल -गुप्त साम्राज्य का उदय और पतन, बकाटकास, प्रशासन समाज अर्थव्यस्था, साहित्य कला और धर्म दक्षिण पूर्व एशिया से संबंध।

7. गुप्त काल के पश्चात् (500 ई॰-700 ई॰) -

पुश्यभूतिस, मोखादिस, उनके पश्चात् गुप्त राजा। हर्षवर्धन और उसका काल, बदामी के चालुक्य। पल्लव, समाज, प्रशासन और कला। अरब विजय।

 

8. विज्ञान और प्रौद्योगिकी, शिक्षा और ज्ञान का सामान्य पुनरीक्षण।

       

              खंड - 1, भाग (ख) 

(मध्ययुगीन भारत - भारत 750 ई॰ से 1200 ई॰ तक)

 

1. राजनीतिक और सामाजिक दशा, राजपूत, उनकी नीतियाँ और सामाजिक संरचना (भू-संरचना और इसका समाज पर प्रभाव)।

2. व्यापार और वाणिज्य

3. कला, धर्म और दर्शन, शंकराचार्य।

4. तटवर्ती क्रियाकलाप, अरबी से संबंध, आपसी सांस्कृतिक प्रभाव।

5. राष्ट्रकुल, इतिहास में उनकी भूमिका, कला और संस्कृति में योगदान (चोल साम्राज्य, स्थानीय स्वायत सरकार, भारतीय ग्राम पद्धति के लक्षण, दक्षिण में समाज अर्थव्यवस्था, कला और विद्या)।

6. मुहम्मद गजनवी के आक्रमण से पूर्व भारतीय समाज अलवरूनी के दृष्टान्त।

 

                  (भारत 1200-1765)

7. उत्तर भारत में दिल्ली सुल्तानों की नींव, कारण और परिस्थितियाँ, भारतीय समाज पर उसका प्रभाव।

8. खिलजी साम्राज्य, सार्थकता और आशय, प्रशासनिक और आर्थिक विनियमन और राज्य एवम् जनता पर उनका प्रभाव।

9. मुहम्मद बिन तुगलक के अधीन राज्य नीतियों और प्रशासनिक सिद्धांतों की नवीन स्थिति, फिरोजशाह की धार्मिक नीति और लोक-निर्माण।

10. दिल्ली सल्तनत का विघटन- कारण और भारतीय राजतंत्र और समाज पर इसका प्रभाव।

11. राज्य का स्वरूप और विशेषता- राजनीतिक विचार और संस्थाएँ, कृषक संरचना और संबंध, शहरी केन्द्रों की वृद्धि, व्यापार और लघु वाणिज्य, शिल्पकारों और कृषकों, नवीन शिल्प, उद्योग और प्राधोगिकी भारतीय औषधियों की स्थिति।

12. भारतीय संस्कृति पर इस्लाम का प्रभाव- मुस्लिम रहस्यवादी आंदोलन, भक्ति संतों की प्रकृति और सार्थकता, महाराष्ट्र धर्म। वैष्व पुनरूद्धारकों के आंदोलनों की भूमिका, चैतन्य आंदोलन की सामाजिक और धार्मिक सार्थकता, मुस्लिम सामाजिक जीवन पर हिन्दु समाज का प्रभाव।

13. विजय नगर साम्राज्य, इसकी उत्पत्ति और वृद्धि कला, साहित्य और संस्कृति में योगदान, सामाजिक और आर्थिक स्थितियाँ, प्रशासन की पद्धति, विजय नगर साम्राज्य का विघटन।

14. इतिहास के स्रोत, प्रमुख इतिहासकारों, शिलालेखों और मंत्रियों का विवरण।

15. उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना- बाबर की चढ़ाई के समय हिन्दुस्तान में राजनैतिक और सामाजिक स्थिति, बाबर और हुमायंु, भारतीय समुद्र में पुर्तगाली नियंत्रण की स्थापना, इसके राजनीतिक एवं आर्थिक परिणाम।

16. सूर, राजनीतिक, राजस्व और असैनिक प्रशासन।

17. अकबर के अधीन मुगल साम्राज्य का विस्तारः- राजनैतिक एकता, अकबर के अधीन राजतंत्र का नवीन स्वरूप, अकबर का धार्मिक राजनीतिक विचार, गैर मुस्लिमों के साथ संबंध।

18. मध्य कालीन युग में क्षेत्रीय भाषाओं और साहित्य की वृद्धि, कला और वस्तुकला का विकास।

19. राजनीतिक विचार और संस्थाएँ, मुगल साम्राज्य की प्रकृति, भू-राजस्व प्रशासन, मनसबदारी और जागीरदारी पद्धतियां, भूमि संरचना और जमींदारों की भूमिका, खेतीहर संबंध, सैनिक संगठन।

20. औरंगजेब की धार्मिक नीति- दक्षिण में मुगल साम्राज्य का विस्तार, औरंगजेब के विरूद्ध विद्रोह, स्वरूप और परिणाम।

21. शहरी केन्द्रों का विस्तार- औद्योगिक अर्थव्यवस्था- शहरी और ग्रामीण विदेशी व्यापार और वाणिज्य, मुगल और यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियाँ।

 

22. हिन्दू-मुस्लिम संबंध, एकीकरण की प्रवृत्ति-संयुक्त संस्कृति (16वीं से 18वीं शताब्दी)।

 

23. शिवाजी का उदय- मुगलों के साथ उनका संघर्ष, शिवाजी का प्रशासन, पेशवा (1707-1761) के अधीन मराठी शक्ति का विस्तार, प्रथम तीन पेशवाओं के अधीन मराठा राजनीतिक संरचना, चैथ और सरदेशमुखी, पानीपत की तीसरी लड़ाई, कारण और प्रभाव, मराठा राज्य व संघ का आविर्भाव, इसकी संरचना और भूमिका।

24. मुगल साम्राज्य का विघटन, नवीन क्षेत्रीय राज्य का आविर्भाव।

 

              खण्ड- 2, भाग (क)

आधुनिक भारत (1757 से 1947)

1. ऐतिहासिक शक्तियाँ और कारक, जिनकी वजह से अंग्रेजों का भारत पर अधिपत्य हुआ, विशेषतया बंगाल, महाराष्ट्र और सिंध के सन्दर्भ में भारतीय ताकतों द्वारा प्रतिरोध और उनकी असफलताओं के कारण।

2. राजवाड़ों पर अंग्रेजों का प्रमुख का विकार।

3. उपनिवेशवाद की अवस्थाएँ और प्रशासनिक ढांचे और नीतियों में परिवर्तन (राजस्व, न्याय समाज और शिक्षा सम्बन्धी परिवर्तन और ब्रिटिश औपनिवेशिक हितों में उनका संबंध)।

4. ब्रिटिश आर्थिक नीति और उनका प्रभाव, कृषि का वाणिज्यीकरण, ग्रामीण ऋणग्रस्तता, कृषि श्रमिकों की वृद्धि, दस्तकारी उद्योगों का विनाश, सम्पत्ति का पलायन, आधुनिक उद्योगों की वृद्धि तथा पूंजीवादी वर्ग का उदय, ईसाई मिशनों की गतिविधियाँ।

5. भारतीय समाज के पुनर्जीवन के प्रभाव, सामाजिक धार्मिक आंदोलन, सुधारकों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक विचार और उनकी भविष्य दृष्टि, उन्नीसवीं शताब्दी के पुनर्जागरण का स्वरूप और

उसकी सीमाएँ, जातिगत आंदोलन विशेषकर दक्षिण और महाराष्ट्र के सन्दर्भ में, आदिवासी विद्रोह विशेषकर मध्य तथा पूर्वी भारत में।

6. नागरिक विद्रोह- 1857 का विद्रोह, नागरिक विद्रोह और कृषक विद्रोह विशेषकर नील बगावत के संबंध में, दक्षिण के दंगे और भोपला बगावत।

7. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का उदय और विकास- भारतीय राष्ट्रवाद के सामाजिक आधार, प्रारम्भिक राष्ट्रवादियों और उग्र राष्ट्रवादियों की नीतियाँ और कार्यक्रम, उग्र क्रांतिकारी दल, आतंकवादी साम्प्रदायिकता का उदय और विकास। भारत की राजनीति में गांधीजी का उदय और उनके जन-आंदोलन के तरीके, असहयोग सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलन, ट्रेड यूनियन और किसान आंदोलन। रजवाड़ों की जनता के आंदोलन, कांग्रेस समाजवादी और साम्यवादी। राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति ब्रिटेन की सरकारी प्रतिक्रिया, 1909-1935 के संवैधानिक पतिवर्तनों के बारे में कांग्रेस का रूख, आजाद हिन्द फौज 1946 का नौसेना विद्रोह, भारत का विभाजन और स्वतंत्रता की प्राप्ति।

 

               खंड – 2, भाग (ख)

विश्व इतिहास (1500-1950)

(क) भौगोलिक खोजों-  सामन्तवाद का पतन, पूंजीवाद का प्रारम्भ (यूरोप में पुनर्जीवन और धर्म सुधार) नवीन निरंकुश राजतंत्र- राष्ट्र राज्योदय।पश्चिमी यूरोप में वाणिज्यिक क्रांति वाणिज्यवाद। इंगलैंड में संसदीय संघों का विकास। तीस वर्षीय युद्ध। यूरोप के इतिहास में इसका महत्व।

(ख) फ्रांस का प्रभुत्व- विश्व के वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उदय। प्रवोधन का युग, अमेरिका की क्रांति एवम् इसका महत्व। फ्रांस की क्रांति तथा नैपोलियन का युग (1789-1815), विश्व इतिहास में इसका महत्व। पश्चिमी यूरोप में सुधारवाद तथा प्रजातंत्र का विकास (1815-1914), औद्योगिक क्रांति का वैज्ञानिक तथा तकनीकी पृष्ठभूमि, यूरोप के औद्योगिक क्रांति की अवस्थाएँ, यूरोप में सामाजिक तथा श्रम आंदोलन।

(ग) रूस की क्रांति 1917- रूस में आर्थिक तथा सामाजिक पुनः निर्माण, इन्डोनेशिया, चीन तथा हिन्द चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन। चीन में साम्यवाद का उदय और स्थापना। अरब संसार में जागृति, मिश्र में स्वाधीनता तथा सुधार हेतु संघर्ष, कमाल अंतातुर्क के अधीन आधुनिक तुर्की का आचिर्धान। अरब राष्ट्रवाद का उदय। 1929-32 का विश्व वलन। फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट का नया व्यवहार। यूरोप में सर्वसत्तावाद, इटली में मोहवाद, जर्मन में नाजीवाद। जापान में सैन्यवाद, द्वितीय विश्वयुद्ध के उद्गम तथा परिणाम।

विशाल राष्ट्र राज्यों का सुदृढ़ीकरण, इटली का एकीकरण, जर्मन साम्राज्य का आबादीकरण। अमेरिका का सिविल युद्ध। 19वीं और 20वीं शताब्दी में एशिया तथा अफ्रीका में उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद।

• चीन तथा पश्चिमी शक्तियाँ। जापान और इसके उदय का बड़ी शक्ति के रूप में आधुनिकीकरण।

• यूरोपीय शक्तियाँ तथा ओट्टामन एम्पायर (1815-1914).

• प्रथम विश्वयुद्ध- युद्ध का आर्थिक तथा सामाजिक प्रभाव- पेरिस संधि 1919.

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