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ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध असंवैधानिक : कर्नाटक उच्च न्यायालय

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-01-10 21:58:57

ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध असंवैधानिक : कर्नाटक उच्च न्यायालय

(स्रोत: द हिंदू, अमर उजाला)

कर्नाटक सरकार ने ऑनलाइन जुए और सट्टे पर पाबंदी लगाने के लिए पुलिस एक्ट में संशोधन किया था। संशोधन विधेयक के प्रारूप में ऑनलाइन गेम को परिभाषित किया गया था। इसमें सभी प्रकार के जुए या सट्टेबाजी शामिल की गईं। इसके लिए भुगतान किए गए रुपयों या वर्चुअल करेंसी के इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण को भी प्रतिबंधित किया गया था।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने  ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने सरकार की तरफ से लाए गए उन प्रावधानों पर रोक लगा दी है, जिनके तहत ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के इस कदम को असंवैधानिक भी करार दिया। 


कर्नाटक विधानसभा के मानसून सत्र में पुलिस कानून 1963 में परिवर्तन के लिए पुलिस (संशोधन) विधेयक 2021 पेश किया गया था। हालांकि, ऑनलाइन खेलों से जुड़ी कंपनियों का कहना था कि कर्नाटक का बंगलुरु जैसा शहर, जो कि गेमिंग कंपनियों के हब के तौर पर उभर रहा है, ऐसी जगहों पर भी प्रतिबंध लगाने से शहर के गेमिंग हब बनने की कोशिशों के लिए चुनौतियां पेश होंगी। 


ध्यातव्य दे कि वर्तमान में ऑनलाइन गेमिंग एक नियामक ग्रे क्षेत्र में आता है और इसकी वैधता के संबंध में कोई व्यापक कानून नहीं है।


कर्नाटक उच्च न्यायालय ने तीन प्रमुख आधारों पर कर्नाटक पुलिस अधिनियम में संशोधन को रद्द कर दिया:

◆◆ व्यापार और वाणिज्य के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन (अनुच्छेद 19), प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21), भाषण और अभिव्यक्ति (अनुच्छेद 19)।

स्पष्ट रूप से मनमाना और तर्कहीन होने के कारण यह दो अलग-अलग श्रेणियों के खेल, यानी कौशल और अवसर से संबंधित खेल के बीच अंतर नहीं करता है।
एक "कौशल आधारित खेल (Game of Skill)" मुख्य रूप से एक अवसर के बजाय किसी खिलाड़ी की विशेषज्ञता के मानसिक या शारीरिक स्तर पर आधारित होता है।
एक "अवसर आधारित खेल (Game of Chance)" हालाँकि मुख्य रूप से किसी भी प्रकार के यादृच्छिक कारक द्वारा निर्धारित किया जाता है। अवसर आधारित खेल में कौशल का उपयोग होता है लेकिन उच्च स्तर का अवसर सफलता का निर्धारण करता है।
देश के अधिकांश हिस्सों में कौशल पर आधारित खेलों की अनुमति है, जबकि अवसर आधारित खेलों को जुए के तहत वर्गीकृत किया गया है जो देश के अधिकांश हिस्सों में निषिद्ध हैं। चूँकि सट्टेबाज़ी एवं जुआ राज्य का विषय है, इसलिये विभिन्न राज्यों के अपने-अपने कानून हैं।


ऑनलाइन कौशल-आधारित खेलों पर कानून बनाने के लिये राज्य विधानसभाओं की विधायी क्षमता का अभाव होना 


अदालत ने यह भी माना कि राज्य सरकार ने इस बारे में कोई सबूत या डेटा नहीं दिया कि क्या व्यापक प्रतिबंध उचित था और न ही इस मुद्दे का अध्ययन करने के लिये विशेषज्ञों की समिति का गठन किया।
अदालत ने यह भी माना कि ऑनलाइन गेम खेलने से व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करने में मदद मिल सकती है तथा ऑनलाइन गेमिंग का आनंद लेना भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा संविधान के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता और गोपनीयता के अधिकार के दायरे में आ सकता है।
अदालत ने यह भी कहा कि ऑनलाइन गेम का विनियमन एक पूर्ण प्रतिबंध के बजाय एक बेहतर और आनुपातिक समाधान हो सकता है तथा राज्य सरकार के लिये संविधान के प्रावधानों के अनुसार सट्टेबाज़ी एवं जुए से निपटने हेतु एक नया कानून लाने के उद्देश्य से इसे खुला छोड़ दिया गया है। 


यहां ध्यान दे कि कर्नाटक सरकार द्वारा ऑनलाइन जुआ (Online Gambling) और कौशल-आधारित गेमिंग प्लेटफॉर्म (Skill-Based Gaming Platforms) पर प्रतिबंध लगाने के लिये कानून पेश किया गया था। प्रतिबंधि में ऑनलाइन रमी, पोकर और कल्पनाओं पर आधारित खेल शामिल थे जिनमें किसी अनिश्चित घटना पर दाँव लगाना या पैसे का जोखिम शामिल था। 

हालांकि कर्नाटक के अलावा तमिलनाडु सरकार द्वारा पेश किये गए इसी तरह के एक कानून को मद्रास उच्च न्यायालय ने अगस्त 2021 में रद्द कर दिया गया था।
सितंबर 2021 में केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से दाँव के लिये खेले जाने पर आधारित ऑनलाइन रमी के खेल पर प्रतिबंध लगाने वाली एक अधिसूचना को भी रद्द कर दिया था।


●●● राज्यों द्वारा ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध का कारण: - 

कई सामाजिक कार्यकर्त्ताओं, सरकारी अधिकारी और कानून लागू करने वालों का मानना है कि रम्मी एवं पोकर जैसे ऑनलाइन गेम व्यसनकारी (Addictive) प्रकृति के हैं। जब इन्हें मौद्रिक दाँव के साथ खेला जाता है तो बढ़ते अवसाद तथा कर्ज के बोझ के कारण आत्महत्याएंँ होती हैं। 
कथित तौर पर ऐसे कुछ उदाहरण हैं जहांँ युवाओं को ऑनलाइन गेम में नुकसान के कारण बढ़ते कर्ज का सामना करना पड़ा है जिसके कारण उन्होंने चोरी और हत्या जैसे अन्य अपराध किये हैं।

इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मानसिक विकार के रूप में "गेमिंग डिसऑर्डर" को शामिल करने की योजना की घोषणा की गई थी।

ऑनलाइन गेम, इनका संचालन करने वाली वेबसाइटों द्वारा हेरफेर किये जाने के प्रति अति संवेदनशील होते हैं और यह संभावना रहती है कि उपयोगकर्त्ता अन्य खिलाड़ियों के विरुद्ध नहीं बल्कि ऐसे स्वचालित मशीनों या 'बॉट्स' के साथ गेम खेल रहे हैं, जिसमें एक सामान्य उपयोगकर्त्ता के जीतने की कोई संभावना  नहीं होती ।

ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने के नकारात्मक परिणाम:


एक साथ प्रतिबंध ऐसे ऑनलाइन गेम- दाँव के साथ या बिना दाँव के खेल को पूरी तरह से रोकने में कारगर नहीं है।

तेलंगाना, जो वर्ष 2017 में दाँव के लिये ऑनलाइन गेम पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला राज्य था, में अवैध या अंडरग्राउंड ऑनलाइन जुआ एप्स के प्रयोग में तेज़ी देखी गई है।

जिनमें से अधिकांश चीन या अन्य विदेशी देशों से संबंधित हैं और नकली कंपनियों या हवाला चैनलों के माध्यम से खिलाड़ियों से भुगतान को स्वीकार करते हैं।
प्रवर्तन निदेशालय (ED) और स्थानीय साइबर अपराध अधिकारियों दोनों ने ऐसे एप्स के प्रयोग को रोकने की कोशिश की लेकिन उन्हें सीमित सफलता ही मिली।

उपयोगकर्त्ताओं को ग्रे या अवैध ऑफशोर ऑनलाइन गेमिंग एप में स्थानांतरित करने से न केवल राज्य के कर राजस्व और स्थानीय लोगों की नौकरी के अवसरों का नुकसान होता है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप उपयोगकर्त्ता द्वारा भी अनुचित व्यवहार या जीत की राशि का भुगतान करने से इनकार किया जा सकता है।


◆◆◆ लॉटरी, जुआ और सट्टेबाज़ी से संबंधित केंद्रीय कानून:- 

●●● लॉटरी (विनियमन) अधिनियम, 1998:- 

इस अधिनियम के तहत भारत में लॉटरी को कानूनी रूप से मान्यता प्रदान की गई है। लॉटरी का आयोजन राज्य सरकार द्वारा किया जाना चाहिये और लॉटरी के ड्रॉ का स्थान भी उस राज्य विशेष में ही होना चाहिये।

●●● भारतीय दंड संहिता, 1860:- 

यदि सट्टेबाज़ी और जुए की गतिविधियों के विज्ञापन के लिये कोई अश्लील सामग्री का उपयोग करता है तो आईपीसी के प्रावधान लागू हो सकते हैं।

●●● पुरस्‍कार प्रतियोगिता अधिनियम, 1955:- 

यह अधिनियम किसी भी प्रतियोगिता में पुरस्कार को परिभाषित करता है।

●●●विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999:- 

इस अधिनियम के तहत लॉटरी के माध्यम से अर्जित आय के प्रेषण को प्रतिबंधित किया जाता है।

●●● सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2011:- 


इन नियमों के तहत कोई भी इंटरनेट सेवा प्रदाता, नेटवर्क सेवा प्रदाता या कोई भी सर्च इंजन ऐसा कोई भी कंटेंट प्रदान नहीं करेगा, जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुए (Gambling) का समर्थन करता है।

●●● आयकर अधिनियम, 1961:- 

इस अधिनियम के तहत भारत में वर्तमान कराधान नीति प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी प्रकार के जुआ उद्योग को कवर करती है।


हालांकि यहां न्यायालय द्वारा कानून रद्द कर दिए जाने के बावजूद भी अन्य तरीके से इस समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है। जैसे कि –


■ ■  पूर्ण प्रतिबंध के बजाय किसी भी उद्योग को विभिन्न जाँच और संतुलन के साथ लाइसेंस देने व विनियमित करने पर विचार किया जा सकता है,
■■ केवाईसी और एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग प्रक्रियाएँ,
■■ नाबालिगों को खेल तक पहुँचने से रोकना।

■■ उस धन पर साप्ताहिक या मासिक सीमा निर्धारित करना जिसे दाँव पर लगाया जा सकता है या जिसे खर्च किया जा सकता है।

■■ नशे की लत वाले खिलाड़ियों के लिये परामर्श की सुविधा और ऐसे खिलाड़ियों के आत्म-बहिष्करण की अनुमति देना आदि।

केंद्रीय स्तर पर एक गेमिंग अथॉरिटी बनाई जाए। इसे ऑनलाइन गेमिंग उद्योग के लिये ज़िम्मेदार बनाया जा सकता है एवं इसके संचालन की निगरानी, ​​​​सामाजिक मुद्दों को रोकने, इस खेल को उपयुक्त रूप से वर्गीकृत करने, उपभोक्ता संरक्षण की देख-रेख एवं अवैधता और अपराध का मुकाबला करने की भी ज़िम्मेदारी दी जा सकती है।
अधिक-से-अधिक युवा ऑनलाइन गेम से जुड़ रहे हैं। 

अतः भारत में ऑनलाइन गेमिंग उद्योग को विनियमित करने की आवश्यकता है। इसके अलावा ऑनलाइन गेमिंग के नियमन से न केवल आर्थिक अवसर खुलेंगे बल्कि इसकी सामाजिक लागत भी कम होगी।


स्रोत: द हिंदू, अमर उजाला

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