By - Gurumantra Civil Class
At - 2024-01-20 00:07:55
चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू
विधेयक को कानून मंत्री किरण रिजिजू (Union Law Minister Kiren Rijiju) ने लोकसभा (Lok Sabha) में पेश किया, जिसमें वोटर कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव है।सरकार ने बिल को पेश करते समय जोर देते हुए कहा कि आधार और वोटर कार्ड (Voter ID Card) को लिंक करने से फर्जी वोटर्स पर लगाम लगेगी। रिजिजू ने कहा कि सदस्यों ने इसका विरोध करने को लेकर जो तर्क दिए हैं, वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत तरीके से पेश करने का प्रयास है। यह शीर्ष अदालत के फैसले के अनुरूप ही है। निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक 2021 में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किए जाने का प्रस्ताव किया गया है। इस बिल में मतदाता सूची में दोहराव और फर्जी मतदान रोकने के लिए मतदाता कार्ड और सूची को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव शामिल है।
विधेयक की विशेषताएं
निर्वाचक नामावली का ‘डी-डुप्लीकेशन’:-यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23 में संशोधन का प्रावधान करता है, जिससे मतदाता सूची डेटा को आधार पारिस्थितिकी तंत्र से जोड़ा जा सके।
1950 के एक्ट में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति किसी निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में अपने नाम को शामिल करने के लिए चुनाव पंजीकरण अधिकारी को आवेदन कर सकता है। वैरिफिकेशन के बाद अगर अधिकारी इस बात से संतुष्ट है कि आवेदक पंजीकरण का हकदार है तो वह निर्देश देगा कि आवेदक के नाम को मतदाता सूची मे शमिल किया जाए। बिल कहता है कि चुनाव पंजीकरण अधिकारी किसी व्यक्ति से कह सकता है कि अपनी पहचान साबित करने के लिए वह अपना आधार नंबर उपलब्ध कराए। अगर उनका नाम पहले से मतदाता सूची में है तो उस सूची में प्रविष्टियों के प्रमाणीकरण के लिए आधार नंबर की जरूरत हो सकती है। अगर कोई व्यक्ति उपयुक्त कारणों से, जिन्हें निर्दिष्ट किया जाएगा, अपना आधार नंबर नहीं देता, तो उसे मतदाता सूची में शामिल करने से इनकार नहीं किया जा सकता, या उनका नाम मतदाता सूची से हटाया नहीं जा सकता। ऐसे लोगों को वैकल्पिक दस्तावेज देने की अनुमति दी जा सकती है जिन्हें केंद्र सरकार निर्दिष्ट करेगी।
1950 के एक्ट के अंतर्गत जिस वर्ष मतदाता सूची तैयार या संशोधित की जा रही है, उस वर्ष की 1 जनवरी को नामांकन की पात्रता तिथि माना जाता है। इसका मतलब यह है कि 1 जनवरी के बाद 18 वर्ष का (यानी वोट देने के लिए पात्र) होने वाला व्यक्ति मतदाता सूची में तभी नामांकन कर सकता है, जब अगले वर्ष के लिए मतदाता सूची तैयार/संशोधित की जाए।
बिल इसमें संशोधन करता है और एक कैलेंडर वर्ष में चार पात्रता तिथियों का प्रावधान करता है :- 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर।
यह लिंकिंग विभाग से संबंधित व्यक्तिगत, लोक शिकायत और कानून तथा न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की 105वीं रिपोर्ट के अनुरूप है।
1951 के एक्ट में राज्य सरकार को यह अनुमति दी गई है कि वे ऐसे परिसरों की मांग कर सकती हैं, जहां मतदान केंद्र बनाना है या बनाने की संभावना है, या जहां चुनाव होने के बाद मत पेटी रखनी है या रखने की संभावना है। बिल उन उद्देश्यों का विस्तार करता है जिनके लिए परिसरों की मांग की जा सकती है। इनमें मतगणना, वोटिंग मशीन और चुनाव संबंधी सामग्री रखने और सुरक्षा बलों एवं मतदान कर्मियों के रहने के लिए परिसर का उपयोग शामिल है।
1950 के एक्ट में उन लोगों को मतदाता सूची में पंजीकृत करने की अनुमति दी गई है, जो निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य रूप से रहते हैं। इनमें सर्विस क्वालिफिकेशन वाले लोग, जैसे सशस्त्र बलों के सदस्य या भारत के बाहर तैनात केंद्र सरकार के कर्मचारी शामिल हैं। ऐसे व्यक्तियों की पत्नियों को भी सामान्यतया उसी निर्वाचन क्षेत्र में निवास करने वाला माना जाता है, अगर वे उनके साथ रहती हैं। 1951 के एक्ट के अंतर्गत सर्विस क्वालिफिकेशन वाले व्यक्ति को पत्नी व्यक्तिगत रूप से या पोस्टल बैलट के जरिए मतदान कर सकती है। बिल दोनों एक्ट्स में ‘पत्नी’ की जगह ‘स्पाउस’ शब्द को रिप्लेस करता है।
◆◆◆ समस्या :-
●●● आधार अपने आप में अनिवार्य नहीं है:-
वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने के कदम को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।
उस समय यह माना गया कि "आधार कार्ड योजना विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक है"।
इसके अलावा आधार का मतलब केवल यही था कि यह निवास का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं।
●●● बड़े पैमाने पर मताधिकार से वंचित होने का भय:- विधेयक मतदाता पंजीकरण अधिकारियों को आवेदक की पहचान स्थापित करने हेतु मतदाता के रूप में पंजीकरण करने के इच्छुक आवेदकों के आधार नंबर मांगने की अनुमति देता है।
आधार के अभाव में सरकार कुछ लोगों को मताधिकार से वंचित करने और नागरिकों की प्रोफाइल बनाने के लिये मतदाता पहचान विवरण का उपयोग करने में सक्षम होगी।
●●● डेटा संरक्षण कानून का अभाव:- विशेषज्ञों का मानना है कि एक मज़बूत व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून (इस संबंध में एक विधेयक को संसद द्वारा अभी तक मंज़ूरी नहीं दी गई है) के अभाव में डेटा साझा करने की अनुमति देने का कोई भी कदम समस्या उत्पन्न कर सकता है।
●●● निजता संबंधी चिंताएँ:- वर्तमान में चुनावी डेटा को भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा अपने डेटाबेस में रखा जाता है, जिसकी अपनी सत्यापन प्रक्रिया होती है और यह अन्य सरकारी डेटाबेस से अलग होती है।
आधार और चुनाव संबंधी डेटाबेस के बीच प्रस्तावित लिंकेज ECI और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) को डेटा उपलब्ध कराएगा।इससे नागरिकों की निजता का हनन हो सकता है।
◆◆◆ सरकार का रुख:-
●●● स्वैच्छिक लिंकिंग:- आधार और चुनाव डेटाबेस के बीच प्रस्तावित लिंकेज स्वैच्छिक है।
●●● मताधिकार से वंचित होने का कोई जोखिम नहीं:-मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिये किये किसी भी आवेदन को अस्वीकार नहीं किया जाएगा और किसी व्यक्ति द्वारा आधार संख्या प्रस्तुत करने या सूचित करने में असमर्थता की स्थिति में मतदाता सूची से कोई भी प्रविष्टि नहीं हटाई जाएगी।
संवैधानिक प्रावधान -
◆◆◆ संविधान के तहत भारत में स्वतंत्र निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है जिसके अनुच्छेद 324 में मतदाता सूची तैयार करने और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति , संसद और हर राज्य के लिये राज्य विधायिकाओं हेतु चुनाव कराने के पर्यवेक्षण, निर्देश और नियंत्रण निहित हैं। संसद और राज्य विधायिकाओं के चुनाव दो कानूनों के प्रावधानों के तहत संपन्न होते हैं- जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951।
◆◆◆ जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950:-
यह मुख्य रूप से निर्वाचक सूचियों की तैयारी और संशोधन संबंधी मामलों से संबंधित है। इस कानून के प्रावधानों के पूरक के रूप में इस कानून की धारा 28 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1960 बनाए हैं तथा ये नियम निर्वाचक सूचियों की तैयारी, उनके आवधिक संशोधन और अद्यतन, पात्र नाम शामिल करने, गलत नाम हटाने, विवरण इत्यादि ठीक करने संबंधी सभी पहलुओं को देखते हैं। ये नियम राज्य के खर्चे पर फोटो सहित पंजीकृत मतदाताओं के पहचान कार्ड के मुद्दे भी देखते हैं। ये नियम अन्य विवरण के अलावा निर्वाचक के फोटो सहित फोटो निर्वाचक सूचियाँ तैयार करने के लिये निर्वाचन आयोग को अधिकार देते हैं।
◆◆◆ जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951:-
चुनावों का वास्तविक आयोजन कराने संबंधी सभी मामले जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के प्रावधानों के तहत आते हैं। इस कानून की धारा 169 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1961 बनाए हैं। इस कानून और नियमों में सभी चरणों में चुनाव आयोजित कराने, चुनाव कराने की अधिसूचना के मुद्दे, नामांकन पत्र दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जाँच, उम्मीदवार द्वारा नाम वापस लेना, चुनाव कराना, मतगणना और घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन के लिये विस्तृत प्रावधान किए गए हैं।
भारतीय संविधान का भाग 15 चुनावों से संबंधित है, जिसमें चुनावों के संचालन के लिये एक आयोग की स्थापना करने की बात कही गई है। चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी। संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित हैं।
◆◆ 324 :- चुनाव आयोग में चुनावों के लिये निहित दायित्व: अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण।
◆◆ 325:- धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष को मतदाता सूची में शामिल न करने और इनके आधार पर मतदान के लिये अयोग्य नहीं ठहराने का प्रावधान।
◆◆ 326:- लोकसभा एवं प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिये निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा।
◆◆ 327:- विधायिका द्वारा चुनाव के संबंध में संसद में कानून बनाने की शक्ति।
◆◆ 328:- किसी राज्य के विधानमंडल को इसके चुनाव के लिये कानून बनाने की शक्ति।
◆◆ 329:- चुनावी मामलों में अदालतों द्वारा हस्तक्षेप करने के लिये बार (BAR)
अत: एक त्रुटि मुक्त मतदाता सूची स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिये अनिवार्य है। यद्यपि सरकार को चाहिये कि वह इसके लिये व्यापक विधेयक प्रस्तुत करे ताकि संसद में इस मुद्दे पर उचित चर्चा हो सके। विधेयक में दो डेटाबेस के बीच डेटा साझाकरण की सीमा, ऐसे तरीके जिनके माध्यम से सहमति प्राप्त की जाएगी और क्या डेटाबेस को जोड़ने के लिये सहमति रद्द की जा सकती है, जैसी बातों को निर्दिष्ट किया जाना चाहिये। अतः यहां और अधिक स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू
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