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बांध सुरक्षा विधेयक

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-01-10 21:52:42

बांध सुरक्षा विधेयक

स्त्रोत - द हिन्दू, पीआईबी रिपोर्ट, द इंडियन एक्सप्रेस

विधेयक में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को समान बांध सुरक्षा प्रक्रियाओं को अपनाने में मदद करने का प्रस्ताव है। एक नियामक संस्था के जरिए बांधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव का प्रावधान इसमें शामिल है। इसमें 15 मीटर से अधिक ऊंचाई या 10-15 मीटर की ऊंचाई वाले बांध, विशिष्ट डिजाइन और स्ट्रक्चर वाले बांध भी शामिल हैं।


चुंकि चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बांध रखने वाला देश है। देश में लगभग 5,700 बड़े बांध हैं, जिनमें से लगभग 80% पहले से ही 25 वर्ष से अधिक पुराने हैं। लगभग 227 बांध जो 100 साल से अधिक पुराने हैं, अभी भी काम कर रहे हैं। यद्यपि भारत का बांध सुरक्षा का ट्रैक रिकॉर्ड विकसित देशों के समान है, लेकिन अनुचित बांध विफलताओं और खराब रखरखाव के मुद्दों के उदाहरण हैं।
बांध सुरक्षा विधेयक देश के सभी बड़े बांधों की पर्याप्त निगरानी, ​​निरीक्षण, संचालन और रखरखाव का प्रावधान करता है ताकि बांध की विफलता से संबंधित आपदाओं को रोका जा सके। बांधों के सुरक्षित कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपायों को संबोधित करने के लिए विधेयक केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर एक संस्थागत तंत्र प्रदान करता है।

●●●● विधेयक की विशेषता :- 

विधेयक के प्रावधान के अनुसार, एक समान बांध सुरक्षा नीतियों, प्रोटोकॉल और प्रक्रियाओं को विकसित करने में मदद के लिए बांध सुरक्षा पर एक राष्ट्रीय समिति (एनसीडीएस) का गठन किया जाएगा। विधेयक में बांध सुरक्षा नीतियों और मानकों के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक नियामक निकाय के रूप में राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (एनडीएसए) की स्थापना का भी प्रावधान है। राज्य स्तर पर, विधेयक बांध सुरक्षा (एससीडीएस) पर राज्य समितियों के गठन और राज्य बांध सुरक्षा संगठनों (एसडीएसओ) की स्थापना के लिए निर्धारित करता है।

बांध सुरक्षा विधेयक उभरती जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों के कारण बांध सुरक्षा से संबंधित गंभीर चिंताओं को व्यापक तरीके से संबोधित करता है। यह विधेयक बांधों के नियमित निरीक्षण और जोखिम वर्गीकरण का प्रावधान करता है। यह विशेषज्ञों के एक स्वतंत्र पैनल द्वारा आपातकालीन कार्य योजनाओं और व्यापक बांध सुरक्षा समीक्षा तैयार करने का भी प्रावधान करता है। डाउनस्ट्रीम निवासियों की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए एक आपातकालीन बाढ़ चेतावनी प्रणाली का प्रावधान है।

  इस विधेयक के माध्यम से बांध मालिकों को संबंधित मशीनरी के साथ बांध संरचना की समय पर मरम्मत और रखरखाव के लिए संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।

यह विधेयक बांध सुरक्षा को समग्र रूप से देखता है और न केवल संरचनात्मक पहलुओं को प्रदान करता है, बल्कि सख्त ओ एंड एम प्रोटोकॉल के नुस्खे के माध्यम से परिचालन और रखरखाव प्रभावकारिता भी प्रदान करता है।

इस विधेयक में प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए दंडात्मक प्रावधान हैं, जिनमें अपराध और दंड शामिल हैं।

केंद्र और राज्यों दोनों के समर्थन से एक मजबूत संस्थागत ढांचे की स्थापना के लिए विधेयक में निश्चित समयसीमा प्रदान की गई है। विधेयक एक निश्चित समय सीमा के भीतर बांध मालिकों द्वारा अनिवार्य बांध सुरक्षा कार्यों को लागू करने पर भी ध्यान केंद्रित करता है। इस विधेयक के पारित होने से भारत में बांध सुरक्षा और जल संसाधन प्रबंधन के एक नए युग की शुरुआत हुई।


विधेयक राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा समिति की स्थापना का प्रावधान करता है। समिति की अध्यक्षता केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष द्वारा की जाएगी। समिति के कार्यों में बाँध सुरक्षा मानदंडों से संबंधित नीतियाँ एवं विनियम बनाना तथा बाँधों को क्षतिग्रस्त होने से रोकना एवं बड़े बाँधों के टूटने के कारणों का विश्लेषण करना एवं बाँध सुरक्षा प्रणालियों में बदलाव का सुझाव देना शामिल होगा। 


●●●● दंड :-

 विधेयक में दो प्रकार के अपराधों का उल्लेख है-

किसी व्यक्ति को उसके कार्यों के निर्वहन में बाधा डालना और प्रस्तावित कानून के अंतर्गत जारी निर्देशों के अनुपालन से इनकार करना।
अपराधियों को एक वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा। अगर अपराध के कारण किसी की मृत्यु हो जाती है तो कारावास की अवधि दो वर्ष हो सकती है।
अपराध संज्ञेय तभी होंगे जब शिकायत सरकार द्वारा या विधेयक के अंतर्गत गठित किसी प्राधिकरण द्वारा की जाए।


●●●● इसका महत्त्व:- 

◆◆◆ एकरूपता लाना:-

सरकार चाहती है कि एक विशेष प्रकार के बड़े बाँधों के लिये सभी बाँध मालिकों द्वारा पालन की जाने वाली प्रक्रियाओं में एकरूपता हो।

◆◆◆सख्त दिशा-निर्देश प्रदान करता है:- 

पानी, राज्य का विषय है और यह विधेयक किसी भी तरह से राज्य के अधिकार को नहीं छीनता है। विधेयक दिशा-निर्देशों को सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र प्रदान करता है।
इसमें बाँध सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्री व पोस्ट-मानसून निरीक्षण सहित कई प्रोटोकॉल हैं। हालाँकि अब तक ये प्रोटोकॉल कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं हैं और संबंधित एजेंसियों (केंद्रीय एवं राज्य बाँध सुरक्षा संगठनों सहित) के पास इन्हें लागू करने की कोई शक्ति नहीं है।

◆◆◆गुणवत्ता सुनिश्चित करना:- 

अब तक विभिन्न ठेकेदारों, डिज़ाइनरों और योजनाकारों की व्यावसायिक दक्षता का मूल्यांकन कभी नहीं किया गया है और यही कारण है कि आज भारत के बाँधों में डिज़ाइन की समस्या है। विधेयक एक ऐसा तंत्र प्रदान करता है जहाँ निर्माण और रखरखाव में भाग लेने वाले लोगों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।

◆◆◆ सुरक्षा:-

बाँधों के क्षतिग्रस्त होने का खतरा हमेशा बना रहता है और इसलिए उनकी सुरक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है। विधेयक में बाँध सुरक्षा मानकों के निर्माण का प्रावधान है।

अतः विधेयक में निकायों के कार्य :- 

राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति के कार्य इस प्रकार हैं;

1. राज्य बांध सुरक्षा संगठनों के बीच मुद्दों को हल करना
2. बांध की विफलता के संभावित प्रभाव का आकलन करना
3. बांध पुनर्वास कार्यक्रमों की निगरानी करना

 

◆◆◆ आवश्यकता का कारण :-

●●● बाँधों का कालिक क्षय:
बाँधों की संख्या के मामलें में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। देश में 5,745 जलाशय हैं जिनमें से 293 जलाशय 100 साल से अधिक पुराने हैं। बाँध सुरक्षा के लिये कई चुनौतियाँ  हैं और कुछ मुख्य रूप से बाँधों की लंबी उम्र के कारण हैं।
जैसे-जैसे बाँध पुराने होते जाते हैं, उनका डिजाइन, जल विज्ञान और बाकी सब कुछ नवीनतम समझ और प्रथाओं के अनुरूप नहीं रहता है।
बाँधों में भारी गाद जमा होती जाती है जिससे इनकी जल धारण क्षमता कम होती जा रही है।

●●●बाँध प्रबंधकों पर निर्भरता:- बाँधों का विनियमन पूरी तरह से व्यक्तिगत बाँध प्रबंधकों पर निर्भर है। डाउनस्ट्रीम जल की आवश्यकता या पहले से मौजूद प्रवाह के प्रकार के संदर्भ में कोई व्यवस्थितकरण और कोई वास्तविक समझ नहीं है।

●●● विभिन्न कारकों पर विचार नहीं किया जाना:- बाँध सुरक्षा कई कारकों पर निर्भर है जैसे कि भूदृश्य, भूमि उपयोग परिवर्तन, वर्षा के पैटर्न, संरचनात्मक विशेषताएँ आदि। बाँध की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सरकार द्वारा सभी कारकों को ध्यान में नहीं रखा गया है।

●●● बाँधों की विफलताएँ:- उचित बाँध सुरक्षा संस्थागत ढाँचे के अभाव में बाँधों की जाँच, डिजाइन, निर्माण, संचालन और रखरखाव में विभिन्न प्रकार की कमियाँ शामिल हो सकती हैं। इस तरह की कमियों से गंभीर घटनाएँ होती हैं और कभी-कभी बाँध टूट जाता है।
वर्ष 1917 में तिगरा बाँध (मध्य प्रदेश) की विफलता के साथ बाँधों की विफलताओं की  शुरुआत हुई और अब तक लगभग 40 बड़े बाँधों के विफल होने की सूचना है। नवंबर 2021 में अन्नामय्या बाँध (आंध्र प्रदेश) की विफलता का सबसे हालिया मामला 20 लोगों की मौत का कारण बना है।
सामूहिक रूप से इन विफलताओं के चलते हज़ारों मौतें और विशाल आर्थिक नुकसान देखने को मिला है।


◆◆◆ चिंता का विषय 

●●● विसंगत होना : 
केंद्रीय जल आयोग सभी बाँध परियोजनाओं के तकनीकी-आर्थिक मूल्यांकन के लिये ज़िम्मेदार होगा। इसे उसी परियोजना (यदि परियोजना विफल हो जाती है) का ऑडिट करने का भी अधिकार है।
यह अपने मामले में स्वयं न्यायाधीश के रूप में कार्य करने जैसा है।

●●● क्षतिपूर्ति पर निरुत्तर - :
बाँध परियोजनाओं से प्रभावित लोगों को क्षतिपूर्ति के लिये भुगतान पर विधेयक निरुत्तर है।

●●● संघीय ढाँचे में हस्तक्षेप का खतरा :-
राज्यों ने आरोप लगाया कि यह असंवैधानिक है इसलिये इसकी जाँच की जानी चाहिये क्योंकि और राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है। विधेयक के कुछ प्रावधान संघीय ढाँचे में हस्तक्षेप करते हैं।


●●●● संवैधानिक प्रावधान:- 

जल को राज्य सूची की प्रविष्टि-17 में रखा गया है, किन्तु केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत संघ सूची की प्रविष्टि 56 और प्रविष्टि 97 के साथ कानून प्रस्तुत किया है।

◆◆◆ राज्य सूची, प्रविष्टि 17: जल, अर्थात् जल आपूर्ति, सिंचाई और नहरें, जल निकासी एवं तटबंध, जल भंडारण व जल शक्ति सूची I की प्रविष्टि 56 के प्रावधानों के अधीन है।
सूची I की प्रविष्टि, 56 संसद को अंतर-राज्यीय नदियों व नदी घाटियों के नियमन पर कानून बनाने की अनुमति देती है जो इस तरह के विनियमन को सार्वजनिक हित में समीचीन घोषित करती है। 

◆◆◆ अनुच्छेद 246 संसद को संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ सूची की सूची I में सूचीबद्ध किसी भी मामले पर कानून बनाने का अधिकार देता है।

◆◆◆ प्रविष्टि 97 संसद को सूची II या सूची III में सूचीबद्ध किसी भी अन्य मामले पर कानून बनाने की अनुमति देता है, जिसमें कर सहित उन सूचियों में से किसी में भी उल्लेख नहीं किया गया है।

◆◆◆ अनुच्छेद 252 संसद को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की अनुमति देता है यदि दो या दो से अधिक राज्य कानून की आवश्यकता वाले प्रस्ताव पारित करते हैं। इस मामले में पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश ने प्रस्ताव पारित कर बांध सुरक्षा पर कानून बनाने की मांग की है।

ध्यातव्य दे कि राज्य सूची की प्रविष्टि 17 के अनुसार, राज्य सिंचाई, जलापूर्ति, नहरों, तटबंधों, जल निकासी, जल शक्ति और जल भंडारण पर कानून बनाने के पात्र हैं। संघ सूची की प्रविष्टि 56 के अनुसार, संसद को नदी घाटियों और अंतर्राज्यीय नदियों के नियमन पर कानून बनाने की अनुमति है।

 

स्त्रोत - द हिन्दू, पीआईबी रिपोर्ट, द इंडियन एक्सप्रेस

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