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1857 की क्रांति और बिहार

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-07-18 11:26:47

1857 की क्रान्ति और बिहार

भारत में अंग्रेजों का आगमन 1600 ई में ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ व्यापार करने के उद्देश्य से हुआ था। धीरे-धीरे अंग्रेज भारत में शासन पर अधिकार करने लगे और उन्नीसवीं सदी तक आते-आते अंग्रेजों का प्रभुत्व भारत के अधिकांश क्षेत्रों पर हो गया। अंग्रेजों के शोषण तथा अत्याचार से भारतीय जनता जरत होने लगी और सन् 1857 में सर्वप्रथम अंग्रेजों को भारतीय जनता के जबरदस्त जनविरोध का सामना करना पड़ा। 1857 का विद्रोह अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष का प्रथम व्यापक जन-अभिव्यक्ति था लेकिन यह विद्रोह असफल रहा।

 

1857 की क्रांति की लहर अधिकतर ब्रिटिश भारत के प्रान्तों में फैली थी और इससे हमारा तत्कालीन विहार प्रान्त भी अजुता नहीं रहा। बिहार के लोगों द्वारा भी अंग्रेजों के खिलाफ सशक्त जनविद्रोह किया गया। तत्कालीन बिहार में विद्रोह का आरम्भ 12 जून, 1857 को देवघर जिला (वर्तमान में झारखंड राज्य) के रोहिणी गाँव में सैनिकों के साथ संघर्ष द्वारा प्रारम्भ हुआ। गहाँ पर सेना की 30वीं रेजीमेंट जो मेजर मैकडोनाल्ड के कमान में थी, के तीन सैनिकों द्वारा मेजर नार्मन लेस्ली तथा एक अन्य अंग्रेज अधिकारी की हत्या कर दी गई। इस प्रयास के बाद भी यहाँ पर विद्रोह को दबा दिया गया और तीनों सैनिकों को मृत्युदंड की सजा दी गई।

इसके बाद विद्रोह पटना में प्रारम्भ हुआ। 3 जुलाई 1857 को पटना सिटी में एक पुस्तक विक्रेता पीर अली के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष प्रारम्भ हुआ। पीर अली के नेतृत्व में विद्रोहियों ने पटना सिटी के चौक तक अधिकार कर लिया। वहाँ पर विद्रोह दबाने के लिए बिहार के अफीम के व्यापार के एजेण्ट मेजर लॉयल को भेजा गया लेकिन वह अपने सैनिकों के साथ ही मारा गया। इस समय पटना के कमिश्नर टेलर थे जिन्होंने विद्रोह को दबाने के लिए अनेक कठोर कदम उठाए। उसने पहले से ही पटना वासियों पर अनेक प्रतिबन्ध लगा रखे थे। 19 जून, 1857 को ही उसने पटना के तीन प्रतिष्ठित मुसलमानों मोहम्मद हुसैन, अहमदुल्ला और वायुजल हक को झांसा देकर गिरफ्तार कर लिया और उन पर बहावियों से सहयोग लेने और देने का आरोप लगाया। कमिश्नर टेलर के निर्देश पर पीर अली को दूकान और उसके घर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। पटना में 16 व्यक्तियों को मौत की सजा दी गई।

उत्तरी बिहार के मुजफ्फरपुर में 25 जुलाई 1857 को असंतुष्ट सैनिकों ने मेजर होम्स सहित अन्य अधिकारियों की हत्या कर दी। इसके बाद 30 जुलाई को सम्पूर्ण पटना प्रमंडल (सारण, तिरहुत, चम्पारण, पटना, बिहार, शाहाबाद जिले) में मार्शल लॉ लगा दिया गया। इस समय तक सम्पूर्ण बिहार में विद्रोह की लहर फैलने लगी थी। 25 जुलाई 1857 को ही दानापुर में तीन रेजीमेंटों के सैनिकों ने बगावत कर दी और वे शाहाबाद जिला में प्रवेश करके जगदीशपुर के जमींदार कुँवर सिंह से मिलकर विद्रोही बन गए। कुछ असंतुष्ट सैनिकों ने रोहतास, सासाराम के विद्रोही जमींदारों से सांठ-गांठ कर ली। बिहार के राजगीर, बिहारशरीफ एवं गया आदि जगहों पर भी छिटपुट विद्रोह प्रारम्भ हो चुका था। इस बीच विद्रोहियों ने गया पहुँचकर करीब 400 लोगों को मुक्त करा लिया। अंग्रेज समर्थक टिकारी राज पर भी हमला हुआ। अगस्त महीने में भागलपुर में भी विद्रोह भड़का। वर्तमान झारखंड राज्य के पलामू क्षेत्र में विप्लव शाही एवं पिताम्बर शाही के नेतृत्व में विद्रोह आरम्भ हुआ।

कुँवर सिंह, 1857 की क्रांति में बिहार की ओर से अमिट छाप छोड़ने वाले 80 वर्षीय सिपाही थे। इस क्रांति में कुँवर सिंह की बहादुरी ने अविस्मरणीय भूमिका निभाई। 25 जुलाई 1857 को दानापुर रेजीमेंट के विद्रोही सैनिक आरा की तरफ बढ़े और इन्होंने जगदीशपुर पहुंचकर कुँवर सिंह को अपना नेता चुना। कुँवर सिंह ने सैनिकों को एकत्र करना प्रारम्भ किया और अपनी सेना 10 हजार तक बढ़ा ली। 27 जुलाई को अपनै सैनिकों की सहायता से उन्होंने आरा पर अधिकार कर लिया। आरा में एक स्वतंत्र सरकार की स्थापना कर उन्होंने स्वयं को शासक घोषित किया। आरा की घटना को देखकर दानापुर छावनी के कैप्टन डनवर अपने सैनिकों को लेकर कुंवर सिंह को पराजित करने के लिए बढ़ा। दो दिनों तक घमासान युद्ध हुआ, इस युद्ध में डनवर की हत्या हुई और कुंवर सिंह के हौसले बुलन्द हुए। इसके बाद बंगाल आर्टीलरी का मेजर बिसेन्ट आयर जो इलाहाबाद जा रहा था, ने बक्सर से लौटकर आरा पर आक्रमण कर दिया। 3 अगस्त को बीबीगंज के पास कुँवर सिंह से भीषण लड़ाई हुई। इस लड़ाई के बाद कुँवर सिंह को आरा छोड़ना पड़ा और विभिन्न जगहों से होते हुए वे लखनऊ पहुँचे। इस दौरान कुँवर सिंह बिहार में भाग लिया। 29 नवम्बर 1857 को नाना साहेब का कानपुर पर अधिकार हो गया। इस युद्ध में नाना साहेच और तात्या टोपे के साथ कुंवर सिंह ने भी अपनी वीरता का जौहर दिखाया। कुँवर सिंह आजमगढ़ की ओर बढ़े। अंग्रेज उनकी छापामार युद्ध प्रणाली से काफी परेशान हो गया था। लाई केनिंग ने स्थिति की गम्भीरता को समझकर एडवर्ड लुगार्ड को आजमगढ़ को कुँवर सिंह से मुक्त कराने के लिए भेजा। अपनी सेना को दो टुकड़ों में बाँटकर एक के साथ वे जगदीशपुर की ओर बढ़े। गाजीपुर के पास गंगा नदी पार करते समय डगलस के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना से इनका मुकाबला हुआ जिसमें वे बुरी तरह घायल हो गए। घायलावस्था में ही वे जगदीशपुर पहुँचे जहाँ 23 अप्रैल को कैप्टन ली ग्रांड की सेना से उनका अन्तिम मुकाबला हुआ। कुँवर सिंह ने अपनी अन्तिम लड़ाई जीतने के बाद अपने प्राण त्याग दिये।

कुंवर सिंह की मृत्यु के बाद भी आजादी की लड़ाई जारी रही। इनमें अमर सिंह, हरकिसन सिंह, जोधन सिंह, अली करीम तथा अन्य लोग शामिल थे। अमर सिंह ने कैमूर की पहाड़ि‌यों में अंग्रेजों के विरुद्ध काफी समय तक मोर्चा संभाले रखा। कुंवर सिंह की मृत्यु के बाद अमर सिंह ने ही विद्रोहियों को नेतृत्व प्रदान किया और उनका नियंत्रण काफी दिनों तक शाहाबाद पर बना रहा। बिहार के अन्य भागों में भी 1857 का विद्रोह फैला। उस समय दक्षिणी विहार में छोटानागपुर, मानभूमि, सिंहभूम, और पलामू में भी ब्रिटिश सत्ता को संघर्षपूर्ण चुनौती दी गई। हजारीबाग की देशी सेना ने बगावत कर दिया, इसके बाद रामगढ़ में पैदल सेना ने भी बगावत कर दिया। 5 अगस्त 1857 को पुरुलिया एवं चाईबासा में अवस्थित रामगढ़ की फौज ने विद्रोह कर दिया। रामगढ़ बटालियन के जयमंगल पांडेय और नादिर अली खाँ तथा दो अन्य स्थानीय नेता गिरफ्तार हुए और उन्हें फाँसी दे दी गई।

सिंहभूम और पलामू में विद्रोह जारी रहा। पोरहत के राजा अर्जुन सिंह के नेतृत्व में सिंहभूम के कोलों ने विद्रोह कर दिया।

जनवरी 1858 में उसने कम्पनी की सेना को पराजित किया। पलामू के भयानक विद्रोह को कुचलने के लिए 16 जनवरी 1858 को कैप्टन डाल्टन स्वयं सेना के साथ पहुँचे। इसके साथ लेफ्टिनेंट ग्राह्य भी था। दोनों ने पलामू के किले पर आक्रमण किया एवं विद्रोहियों को तितर-बितर कर दिया। इस प्रकार 1857 के विद्रोह में बिहार के क्रांतिकारियों ने शानदार भूमिका निभाई। लेकिन यह विद्रोह अन्ततः असफल रहा।

विद्रोह की असफलता के निम्नलिखित कारण थे-

1. मजबूत संगठन का अभाव जिस कारण विद्रोह नेतृत्व विहीन होता चला गया और अन्ततः कम्पनी ने विद्रोह को पूरी कुचल दिया।

2. अस्त्र-शस्त्र की कमी- ब्रिटिश सेना के मुकाबले विद्रोहियों के पास हथियारों की भारी कमी थी।

3. संचार व्यवस्था का अभाव समूचे देश के विद्रोही हालाँकि एकमात्र उद्देश्य से युद्धरत थे लेकिन संचार व्यवस्था के बिना इनमें संवादहीनता की स्थिति प्रायः बन जाती थी।

4. विद्रोहियों को आम जनता का भी पर्याप्त समर्थन नहीं मिला। आम जनता का एक बड़ा वर्ग या तो कम्पनी का समर्थक या अथवा विद्रोह से निरपेक्ष था। फलतः कम्पनी ने आसानी से विद्रोह को दबा दिया।

5. ब्रिटिश सेना प्रत्येक क्षेत्र में विद्रोहियों से बेहतर साबित हुई। वह तकनीक के स्तर पर भी विश्वस्तरीय थी जबकि विद्रोही सेना मात्र भावना से प्रेरित थी। फलतः अंग्रेज सफल रहे।

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

1. 1857 विद्रोह के क्या कारण थे? बिहार में उसका प्रभाव क्या था। (65वीं, बी.पी.एस.सी.)

2. 1857 के विद्रोह में बिहार की योगदान की विवेचना कीजिए। (63वीं, बी.पी.एस.सी.)

3 बिहार संदर्भ में 1857 के क्रान्ति के महत्व की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए। (56वीं-59वीं, बी.पी.एस.सी.)

4. बिहार में 1857 के विद्रोह की उद्भव के कारणों का की विवेचना कीजिए तथा उसकी असफलता का उल्लेख करें।

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