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अधीनस्थ न्यायालय

By - Admin

At - 2024-01-25 09:34:09

अधीनस्थ न्यायालय

 

  • अधीनस्थ न्यायालय राज्य के उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ हैं। ये न्यायालय जिला और अन्य निचले स्तर पर उच्च न्यायालय के अधीन कार्य करते हैं। संविधान का अनुच्छेद 233 से 237 अधीनस्थ न्यायालय से संबंधित है। इनका गठन राज्य अधिनियम कानून के द्वारा होता है |

संरचना व क्षेत्राधिकार

  • राज्य कानून अधिनियम द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों के क्षेत्राधिकार व् शर्तों का निर्धारण किया जाता है किन्तु राज्यों में इसकी प्रकृति भिन्न – भिन्न हो सकती है ।
  • जिले का सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी जिला न्यायाधीश होता है जिसे दीवानी व फौजदारी मामलों में मूल व अपीलीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है |
  • जिला न्यायाधीश जब दीवानी मामलों की सुनवाई करता है तो उसे जिला न्यायाधीश कहते है तथा जब फौजदारी मामलों की सुनवाई करता है तो उसे सत्र न्यायाधीश कहते है |
  • जिला न्यायाधीश को न्यायिक व प्रशासनिक दोनों शक्तियां प्राप्त है , वह अपने अधीनस्थ न्यायालयों का निरीक्षण भी करता है तथा किसी भी दोषी को उम्रकैद व मृत्यु दंडदेने की अधिकारिता प्राप्त है , किंतु मृत्यु दंडदेने के मामलें में उच्च न्यायालय का अनुमोदन आवश्यक है तथा इस निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है |
  • जिला न्यायालय से नीचे दीवानी मामलों के लिए अधीनस्थ न्यायधीश का न्यायालय तथा सत्र न्यायधीश से नीचे फौजदारी मामलों के लिए मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी का न्यायालय होता है | अधीनस्थ न्यायालय को दीवानी मामलों के संदर्भ में व्यापक शक्ति प्राप्त है तथा मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी फ़ौजदारी मामलों में अधिकतम 7 वर्ष की सजा दे सकता है |
  • दीवानी मामलों के लिए सबसे निचले स्तर पर मुंसिफ न्यायाधीश का न्यायालय जिसका सीमित कार्य क्षेत्र होता है तथा वह छोटे दीवानी मामलों पर निर्णय देता है जबकि फ़ौजदारी मामलों पर सबसे निचले स्तर पर न्यायिक दंडाधिकारी का न्यायालय होता है , जो फौजदारी मामलों में अधिकतम 3 वर्ष की सजा दे सकता है |

 

 

जिला न्यायाधीश की नियुक्ति

जिला न्यायाधीश की नियुक्ति व पदोन्नति  राज्यपाल द्वारा राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से करता है, जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए निम्न योग्यता होनी चाहिए –

  • कम से कम 7 वर्ष तक किसी न्यायालय में अधिवक्ता रहा हो |
  • केंद्र अथवा राज्य के अधीन लाभ के पद पर ना हो |
  • उच्च न्यायालय ने उसकी नियुक्ति की सिफारिश की हो |

 

संविधान के अनुच्छेद 233 (1) के अनुसार किसी राज्य का राज्यपाल, जिला न्यायाधीश की नियुक्ति संबंधित उच्च न्यायालय के परामर्श से करता है । दूसरा, अनुच्छेद 233 (2) के अनुसार जो व्यक्ति केंद्र या राज्य की सेवा में पहले से नहीं है वैसी स्थिति में उस व्यक्ति को कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता का अनुभव हो, साथ ही उच्च न्यायालय ने उसकी नियुक्ति की सिफारिश की हो । संविधान के अनुच्छेद 234 के अनुसार, राज्यपाल, जिला न्यायाधीशों से भिन्न व्यक्ति को भी जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकता है किंतु ऐसे व्यक्ति, राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा अथवा उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद ही राज्यपाल द्वारा जिला न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किये जा सकते हैं।

राज्यपाल जिला न्यायाधीश से भिन्न किसी व्यक्ति को न्यायिक सेवा में नियुक्त कर सकता है किन्तु ऐसे व्यक्ति को राज्य लोकसेवा आयोग व उच्च न्यायालयों के परामर्श के बाद ही नियुक्त किया जाएगा |

 

जिला न्यायाधीश किसी जिले का सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी होता है जोकि सिविल एवं अपराधिक दोनों ही मामलों में अधिकारिता को रखता है। जब वह सिविल मामले देखता है तो उसे जिला न्यायधीश कहते हैं एवं अपराधिक मामलों को देखने के दौरान उसे सत्र न्यायाधीश कहा जाता है। वे जिले के अन्य सभी अधीनस्थ न्यायालयों का निरीक्षण करने का शक्ति रखते हैं।

 

सभी न्यायाधीशों के स्थानांतरण, उन्हें स्थाईकरण करने, प्रोन्नत करने, निलंबित करने एवं दंड देने का अधिकार उच्च न्यायालय के पास है और वह इन मामलों में स्वयं आदेश देता है।

 

अधीनस्थ न्यायालय का संरचनात्मक ढांचा सभी राज्य में पूर्णत: समान नहीं होता है यहां कुछ समानता देखी जा सकती है  और कुछ असमानताएं भी। उदाहरण स्वरुप उच्च न्यायालयों के नीचे सिविल व अपराधिक न्यायालयों के तीन या चार स्तर होते हैं।

 

भारतीय संविधान के भाग 6 के अध्याय 6 के अंतर्गत अनुच्छेद 233 से 237 में अधीनस्थ न्यायालय की चर्चा की गई है, वहीं इसके अलावा सिविल प्रक्रिया संहिता- 1908 तथा आपराधिक प्रक्रिया संहिता - 1973 के माध्यम से भी अधीनस्थ न्यायालयों की अधिकार, शक्ति एवं कार्य के व्याख्या किया गया है।

 

 

उच्च न्यायालय

                   /

जिला एवं सत्र न्यायाधीश का न्यायालय

                  /

    1. सिविल या दीवानी पक्ष

    2. आपराधिक पक्ष

 

 

1. सिविल पक्ष -

क. वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश का न्यायालय

ख. प्रथम श्रेणी सिविल न्यायाधीश का न्यायालय

ग. मुंसिफ या कनिष्ठ सिविल जज का न्यायालय

 

2. आपराधिक पक्ष -

क. मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी का न्यायालय

ख.  प्रथम श्रेणी दंडाधिकारी का न्यायालय

ग.  द्वितीय श्रेणी दंडाधिकारी का न्यायालय

 

भारतीय संविधान के भाग 6 के अध्याय 6 के अंतर्गत अनुच्छेद 233 से 237 में अधीनस्थ न्यायालय की चर्चा की गई है, वहीं इसके अलावा सिविल प्रक्रिया संहिता- 1908 तथा आपराधिक प्रक्रिया संहिता - 1973 के माध्यम से भी अधीनस्थ न्यायालयों की अधिकार, शक्ति एवं कार्य के व्याख्या किया गया है।

 

संक्षेप में

उच्च न्यायालय के अधीन कई श्रेणी के न्यायालय होते है  इन्हें संविधान में अधीनस्थ न्यायालय कहा गया है । इनका गठन राज्य अधिनियम कानून के आधार पर किया गया है। विभिन्न राज्यों  में इनके अलग-अलग नाम और अलग-अलग दर्जे हैं। लेकिन व्यापक परिप्रेक्ष्य में इनके संगठनात्मक ढांचे में समानता है। प्रत्येक राज्य, जिलों में बंटा हुआ है और प्रत्येक जिले में एक जिला अदालत होती है। इस जिला अदालत का उस जिले भर में अपील सम्बंधी क्षेत्राधिकार होता  है। इन जिला अदालतों के अधीन कई निचली अदालतें होती है, जैसे- अतिरिक्त जिला अदालत, सब-कोर्ट, मुंसिफ मजिस्ट्रेट अदालत, द्वितीय श्रेणी विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत, कारखाना कानून और श्रम कानूनों के लिए विशेष मुंसिफ मजिस्ट्रेट अदालत आदि। जिला अदालत का मुख्य कार्य अधीनस्थ न्यायालयों से आयी अपीलों को सुनना है। लेकिन अदालत विशेष हैसियत के तौर पर मूल मामलों को भी अपने हाथ में ले सकती है। उदाहरण के लिए भारतीय उत्तराधिकार कानून अभिभावक और आश्रित कानून तथा भूमि अधिग्रहण कानून आदि से संबंधित मामलों की सुनवाई भी कर सकती है।

अधीनस्थ न्यायालयों में एक जिला न्यायाधीश का न्यायालय और दूसरा मुंसिफ न्यायाधीश का न्यायालय होता है। जिला स्तर के अधीनस्थ न्यायालय को जिला न्यायाधीश या सत्र न्यायाधीश के न्यायालय के नाम से जाना जाता है । इस स्तर के न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश, सयुक्त न्यायाधीश, और सहायक न्यायाधीश की अदालतें सम्मिलित होती है । जिला न्यायाधीश और सत्र न्यायाधीश का न्यायालय, जिला स्तर पर आरंभिक क्षेत्राअधिकार का मुख्य न्यायालय होता है संविधान के प्रावधानों के अनुसार, एक ही अधिकारी दीवानी और फौजदारी कानूनों के तहत कार्य करता है और वह जिला और सत्र न्यायाधीश के नाम से जाना जाता है। इन न्यायालयों का वित्तीय अधिकार क्षेत्र सीमित नहीं होता । ये न्यायालय उन मामलों की सुनवाई कर सकते है जिसमें अधिकतम सजा एक वर्ष से अधिक न हो।

अधीनस्थ न्यायालय के दूसरी श्रेणी के न्यायालय मुंशिफ न्यायाधीश या दीवानी न्यायाधीश या प्रथम श्रेणी के जूडीशियल मजिस्ट्रेट के न्यायालय के नाम से जाने जाते है । सामान्यतया इन न्यायालयों की स्थापना प्रखंड (तहसील) स्तर पर की जाती है, जिसके अधिकार क्षेत्र में अनेक तालुके या तहसीलें हो सकती हैं।

 

अनुच्छेदों का व्याख्या

अनुच्छेद 233. - जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति

(1) किसी राज्य में जिला न्यायाधीश नियुक्त होने वाले व्यक्तियों की नियुक्ति तथा जिला न्यायाधीश की पदस्थापना और प्रोन्नति उस राज्य का राज्यपाल ऐसे राज्य के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामर्श करके करेगा।

(2) वह व्यक्ति, जो संघ की या राज्य की सेवा में पहले से ही नहीं है, जिला न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए केवल तभी पात्र होगा जब वह कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता या लीडर रहा है और उसकी नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालय ने सिफारिश की है।

 

अनुच्छेद 233क. कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्तियों का और उनके द्वारा किए गए निर्णयों आदि का विधिमान्यकरण -

किसी न्यायालय का काई निर्णय, डिक्री या आदेश होते हुए भी,

(क) उस व्यक्ति की जो राज्य की न्यायिक सेवा में पहले से ही है या उस व्यक्ति की, जो कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता या लीडर रहा है, उस राज्य में जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की बाबत,  और

ऐसे व्यक्ति की जिला न्यायाधीश के रूप में पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण की बाबत,

जो संविधान (बीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1966 के प्रारंभ से पहले किसी समय अनुच्छेद 233 या अनुच्छेद 235 के उपबंधों के अनुसार न करके अन्यथा किया गया है, केवल इस तनय के कारण कि ऐसी नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण उक्त उपबंधों के अनुसार नहीं किया गया था, यह नहीं समझा जाएगा कि वह अवैध या शून्य है या कभी भी अवैध या शून्य रहा था ;

 

(ख) किसी राज्य में जिला न्यायाधीश के रूप में अनुच्छेद 233 या अनुच्छेद 235 के उपबंधों के अनुसार न करके अन्यथा नियुक्त, पदस्थापित, प्रोन्नत या अंतरित किसी व्यक्ति द्वारा या उसके समक्ष संविधान (बीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1966 के प्रारंभ से पहले प्रयुक्त अधिकारिता की, पारित किए गए या दिए गए निर्णय, डिक्री, दंडादेश या आदेश की और किए गए अन्य कार्य या कार्यवाही की बाबत,  केवल इस तनय के कारण कि ऐसी नियुक्ति, पदस्थापना, प्रोन्नति या अंतरण उक्त उपबंधों के अनुसार नहीं किया गया था, यह नहीं समझा जाएगा कि वह अवैध या अधिमान्य है या कभी भी अवैध या अधिमान्य रहा था।

 

अनुच्छेद 234.-  न्यायिक सेवा में जिला न्यायाधीशों से भिन्न व्यक्तियों की भर्ती-

जिला न्यायाधीशों से भिन्न व्यक्तियों की किसी राज्य की न्यायिक सेवा में नियुक्ति उस राज्य के राज्यपाल द्वारा, राज्य लोक सेवा आयोग से और ऐसे राज्य के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात्‌‌, और राज्यपाल द्वारा इस निमित्त बनाए गए नियमों के अनुसार की जाएगी।

 

अनुच्छेद 235. - अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण-

जिला न्यायालयों और उनके अधीनस्थ न्यायालयों का नियंत्रण, जिसके अंतर्गत राज्य की न्यायिक सेवा के व्यक्तियों और जिला न्यायाधीश के पद से अवर किसी पद को धारण करने वाले व्यक्तियों की पदस्थापना, प्रोन्नति और उनको छुट्टी देना है, उच्च न्यायालय में निहित होगा, किंतु इस अनुच्छेद की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह ऐसे किसी व्यक्ति से उसके अपील के अधिकार को छीनती है जो उसकी सेवा की शर्तों का विनियमन करने वाली विधि के अधीन उसे है या उच्च न्यायालय को इस बात के लिए प्राधिकृत करती है कि वह उससे ऐसी विधि के अधीन विहित उसकी सेवा की शर्तों  के अनुसार व्यवहार न करके अन्यथा व्यवहार करे।

 

अनुच्छेद 236. निर्वचन--इस अध्याय में,-

(क) '' जिला न्यायाधीश''  पद के अंतर्गत नगर सिविल न्यायालय का न्यायाधीश, अपर जिला न्यायाधीश, संयुक्त जिला न्यायाधीश, सहायक जिला न्यायाधीश, लघुवाद न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, मुख्य प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट, अपर मुख्य प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट, सेशन न्यायाधीश, अपर सेशन न्यायाधीश और सहायक सेशन न्यायाधीश है ;

 

 संविधान (बीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1966 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।

 

(ख) '' न्यायिक सेवा'' पद से ऐसी सेवा अभिप्रेत है जो अनन्यतः ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनी है, जिनके द्वारा जिला न्यायाधीश के पद का और जिला न्यायाधीश के पद से अवर अन्य सिविल न्यायिक पदों का भरा जाना आशयित है।

 

अनुच्छेद 237. – कुछ वर्ग या वर्गों के मजिस्ट्रेटों पर इस अध्याय के उपबंधों का लागू होना-

 राज्यपाल, लोक अधिसूचना द्वारा, निदेश दे सकेगा कि इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंध और उनके अधीन बनाए गए नियम ऐसी तारीख से, जो वह इस निमित्त नियत करे, ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए,  जो ऐसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएँ, राज्य में किसी वर्ग या वर्गों के मजिस्ट्रेटों के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे राज्य की न्यायिक सेवा में नियुक्त व्यक्तियों के संबंध में लागू होते हैं।

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