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बंगाल के गवर्नर एवं गवर्नर जनरल

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-08-19 08:41:13

बंगाल के गवर्नर

1. क्लाइव (1757-60 ईo, 1765-67) –

• कंपनी द्वारा भारत में नियुक्त यह प्रथम गवर्नर था।

• प्लासी की विजय के बाद क्लाइव को बंगाल का प्रथम गवर्नर बनाया गया।

• बक्सर की विजय के बाद इसे पुनः गवर्नर बनाकर बंगाल भेजा गया।

• राजस्व सुधारो को व्यवस्थित करने के लिए परीक्षण व अशुद्धि (Trial & Error) के नियम को अपनाया गया।

• 1765 में बंगाल में बंगाल में द्वैध शासन लागु किया। जो वारेन हेस्टिंगस ने आते ही 1772 में समाप्त किया।

• बक्सर के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद मुग़ल शासक शाहआलम द्वितीय से 1765 ईo में इलाहबाद की संधि द्वारा बिहार, बंगाल और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त की।

• 1766 में मुंगेर तथा इलाहबाद में श्वेत अधिकारीयों ने श्वेत विद्रोह किया।

• क्लाइव ने इंग्लैंड में जाकर आत्महत्या कर ली।

प्रमुख घटनाएं

• दीवानी की प्राप्ति,

• व्यापार समिति,

• श्वेत विद्रोह (सैनिको को उपहार न दोहरा भत्ता बंद),

• द्वैध शासन,

• बर्क ने क्लाइव को ‘बड़ी-बड़ी नीवें रखने वाला’ कहा जबकि प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार ‘पीवल स्पीयर’ ने उसे “भविष्य का अग्रदूत” कहा।

• क्लाइव ने इंग्लैण्ड में जाकर आत्महत्या कर ली।

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【जॉन जेफानियाह होलवेल (John Zephaniah Holwell) , 1760 ई. :- यह क्लाइव के बाद बंगाल का स्थानापन्न गवर्नर बना, इसी ने ब्लैक होल की घटना का वर्णन किया था। 】

 2. वेंसिटार्ट (1760-65) –

• बक्सर के युद्ध के समय बंगाल का गवर्नर।

3. वेरेलस्ट (1767-69) –

• द्वैध शासन के समय बंगाल का गवर्नर था।

4. जॉन कर्टियर (1769-72) –

• इसी के समय 1770 में आधुनिक भारत का प्रथम अकाल पड़ा।

5. वारेन हेस्टिंग्स (1772-74) –

• यह बंगाल का अंतिम गवर्नर था।

• इसने बंगाल में द्वैध शासन समाप्त किया।

• रेग्युलेटिंग एक्ट के अंतर्गत वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया।

बंगाल के गवर्नर जनरल (1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत)

1. वारेन हेस्टिंग्स (1774-85) –

• 1772 ईo में राजस्व बोर्ड का गठन किया और और कोष को मुर्शिदाबाद से कलकत्ता लाया।

• 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत 1774 में कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी। इसका प्रमुख न्यायाधीश इम्पे को बनाया गया। इसके तीन अन्य न्यायाधीश चैम्बर्स, लिमैस्टर और हाइट।

• अवध के नबाब शुजाउद्दौला से 1774 में बनारस की संधि।

• फैजाबाद की संधि (1775) के तहत अवध की बेगमों की संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी दी गयी। इसी के तहत बनारस पर अंग्रेजों की सर्वोच्चता स्वीकार कर ली गयी।

• विलियम जोन्स ने कलकत्ता में 1784 में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल की स्थापना की।

• 1775 में नंदकुमार पर अभियोग चलाया गया। क्योकि इन्होंने वारेन हेस्टिंगस पर मीरजाफर की विधवा मुन्नी बेगम से साढ़े 3 लाख की घूस लेने का आरोप लगाया था।

• अंत में इम्पे की मदद से इन्हे फांसी पर लटका दिया गया।

• इस मुक़दमे को “न्यायिक हत्या” की संज्ञा दी गयी।

• यह भारत का एकमात्र गवर्नर जनरल था, जिस पर (1788 से 1795 तक) महाभियोग का मुकदमा चला। परन्तु संसद ने उसे सभी दोषों से मुक्त कर दिया।

महत्वपूर्ण घटना

• बनारस की सन्धि (1773)

• रेग्युलेटिंग एक्ट (1773) के अंतर्गत कलकत्ता में उच्चतम न्यायालय की स्थापना ।

• फैजाबाद की सन्धि (1775)

• एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल

• नन्द कुमार पर अभियोग (1775)

• पिट्स इंडिया एक्ट (1784)

• महाभियोग – हेस्टिंग्स भारत का एकमात्र गवर्नर जनरल था जिस पर बर्क ने महाभियोग का मुकदमा दायर किया।

 नंद कुमार अभियोग (1775) –

नन्द कुमार जो मुर्शिदाबाद का भूतपूर्व दीवान था, उसने हेस्टिग्स पर यह आरोप लगाया था कि उसने मीरजाफर की विधवा मुन्नी बेगम से ₹ 3.5 लाख नवाब मुबारिकुद्दौला का संरक्षक बनने के लिए घूस ली थी। वारेन हेस्टिग्स ने इलिजाह इम्‍पे (Elijah Impey) की मदद से जालसाजी के मुकदमे में नन्द कुमार को फांसी पर लटका दिया इसे न्यायिक हत्या कहा गया है। पिट्स इण्डिया एक्ट के विरोध में इस्तीफा देकर जब वारेन हेस्टिंग्स फरवरी, 1785 ई. में इंग्लैण्ड पहुँचा, तो बर्क द्वारा उस पर महाभियोग लगाया गया। ब्रिटिश पार्लियामेण्ट में 1788 ई.से 1795 ई. तक 7 वर्ष महाभियोग चला, परन्तु संसद ने उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।

[सर जॉन मैकफरसन(1785 -86) :- सर जॉन मैकफरसन ने भारत में अस्थायी नियुक्ति पर मात्र एक वर्ष कार्य किया।]

2. लॉर्ड कार्नवालिस (1786-93) –

• इसे भारत में सिविल सेवा का जन्मदाता कहा जाता है। प्रारम्भ में परीक्षा की अधिकतम आयु 23 वर्ष थी।

• भारत में पुलिस सेवा का जन्मदाता भी इन्हें ही कहा जाता है।

• इसने 1789 में दासों के व्यापर पर रोक लगा दी।

• इन्होंने 1793 में बंगाल में स्थाई बंदोबस्त व्यवस्था लागू की।

• कार्नवालिस संहिता द्वारा इन्होंने कर तथा न्याय प्रशासन को अलग-अलग कर दिया।

• कार्नवालिस एकमात्र ब्रिटिश गवर्नर जनरल है जिसकी समाधि भारत (गाजीपुर) में स्थित है।

इनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण सुधार :-

न्यायिक सुधार

  • कार्नवालिस कोड शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धान्त पर आधारित था, जिसके तहत न्याय प्रशासन तथा कर को पृथक् कर दिया गया अर्थात् कलेक्टर की न्यायिक व फौजदारी शक्तियाँ ले ली गई तथा उसके पास केवल कर सम्बन्धी शक्तियाँ रह गईं।
  • उसने वकालत के पेशे को नियमित बनाया।

सिविल सेवा सुधार

  • कार्नवालिस को भारत में नागरिक सेवा ICS का जन्मदाता माना जाता है।
  • प्रथम भारतीय ICS सत्येन्द्रनाथ टैगोर 1863 ई. में बने।
  • प्रारम्भ में इस परीक्षा की अधिकतम आयु सीमा 23 वर्ष थी, जिसे लिटन ने घटाकर 19 वर्ष कर दिया।

पुलिस सुधार

  • कार्नवालिस ने ग्रामीण क्षेत्रों में जमींदारों के पुलिस अधिकारों को समाप्त कर थानों की स्थापना की और वहाँ एक दरोगा व कुछ पुलिस कर्मचारी नियुक्त किए।
  • अंग्रेजी दण्डनायकों (Magistrates) को जिले की पुलिस का भार दिया गया।
  • कार्नवालिस ने पुलिस तथा न्यायिक प्रशासन को सीधे अपने अधीन ले लिया।

राजस्व सुधार

  • कार्नवालिस ने 1787 ई. में प्रान्त को राजस्व क्षेत्रों (36 से घटाकर 23 कर दी) में विभाजित कर उन पर एक कलेक्टर नियुक्त कर दिया।
  • 1790 ई. में जमींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया गया। शर्त यह थी कि वे कम्पनी को वार्षिक कर देते रहें। उसने रेवेन्यू बोर्ड की स्थापना की।
  • कार्नवालिस ने व्यापारिक सुधारों के तहत ठेकेदारों के स्थान पर गुमाश्तों तथा व्यापारिक प्रतिनिधियों द्वारा माल लेने की व्यवस्था बना दी तथा निजी व्यापार को समाप्त कर दिया।
  • कम्पनी के कार्यकर्ताओं के वेतन को बढ़ाकर बेईमानी व धूर्तबाजी को खत्म करने का प्रयास किया। साथ ही उसने प्रत्येक पदाधिकारी को भारत में आने से पूर्व अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा देने को बाध्य किया।

स्थायी बन्दोबस्त

  • बंगाल की स्थायी भूमि, कर व्यवस्था पर अन्तिम निर्णय कार्नवालिस ने सर जॉन शोर के सहयोग से लिया और अन्तिम रूप से जमींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया गया।
  • 1790 ई. में बंगाल के जमींदारों से 10 वर्षीय व्यवस्था की गई, जिसे 1793 ई. में स्थायी कर दिया गया, जिसे स्थायी बन्दोबस्त कहते हैं।
  • इस व्यवस्था के अन्तर्गत जींदारों को अब भू-राजस्व का 10/11 भाग कम्पनी को तथा 1/11 भाग अपनी सेवाओं के लिए अपने पास रखना था।
  • कम्पनी ने यद्यपि इसे पूरी तरह से अपने हित में बताया, परन्तु शीघ्र ही यह व्यवस्था उत्पीड़न तथा शोषण का साधन बन गई।

3. सर जॉन शोर (1793-98) –

• इसने मैसूर के प्रति अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया।

• इसी ने जमींदारों को भूमि का वास्तविक स्वामी माना था।

• इनके समय में चार्टर एक्ट पास हुआ था एवं निजाम और मराठों के बीच 1795 ई. में खुर्दा का युद्ध लड़ा गया।

4. लॉर्ड वेलेजली (1798-1805) –

• 1798 ई. में रिचर्ड कॉले वेलेजली जिसे माक्विस ऑफ वेलेजली के नाम से जाना जाता है, भारत का गवर्नर-जनरल बना।

• लॉर्ड वेलेजली बंगाल का शेर के उपनाम से प्रसिद्ध था।

• वह अपनी सहायक सन्धि प्रणाली के कारण प्रसिद्ध हुआ।

• सहायक सन्धि का प्रयोग वेलेजली से पूर्व भारत में डूप्ले द्वारा किया गया था।

• भारत में अंग्रेजी सत्ता की श्रेष्ठता साबित करने और फ्रांसीसियों के भय को समाप्त करने के उद्देश्य से इसने सहायक संधि प्रणाली को अपनाया।

सहायक सन्धि

• फ्रांसीसियों के भय को समाप्त करने तथा अंग्रेजी सत्ता की श्रेष्ठता स्थापित करने के उद्देश्य से वेलेजली ने भारत में सहायक सन्धि प्रणाली को प्रचलित किया।

• इस सन्धि को स्वीकार करने वाले राज्यों के वैदेशिक सम्बन्ध अंग्रेजी राज्य के अधीन हो जाते थे, परन्तु उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाता था।

• सहायक सन्धि करने वाले प्रत्येक राज्य को अपनी राजधानी में एक अंग्रेजी रेजीडेण्ट को रखना पड़ता था तथा कम्पनी की पूर्व आज्ञा के बिना राजा किसी भी यूरोपीय को अपनी सेवा में नहीं ले सकता था।

• सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले राज्यों का क्रम है – हैदराबाद (1798 ई.), मैसूर (1799 ई.), तंजौर (1799 ई.), अवध (1801 ई.), पेशवा (1802 ई.), भोंसले (1803 ई.), सिन्धिया (1804 ई.)।

• इन राज्यों के अलावा सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले अन्य राज्य थे-जयपुर, जोधपुर, मच्छेड़ी, बूंदी तथा भरतपुर ।

• तंजौर (अक्टूबर, 1799 ई.) व कर्नाटक (जुलाई, 1801 ई.) पर कब्जे के बाद इसके समय में ही 1801 ई. में मद्रास प्रेसीडेन्सी का सृजन किया गया।

• इसी के कार्यकाल में द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1802-03 ई.) हुआ।

• लॉर्ड वेलेजली के समय चौथा आंग्ल मैसूर युद्ध (1799 ई.) हुआ जिसमें श्रीरंगपट्टम का दुर्ग जीत लिया गया और टीपू को वीरगति प्राप्त हुई।

• नागरिक सेवा में भर्ती किए गए युवकों को प्रशिक्षित करने के लिए 1800 ई. में लॉर्ड वेलेजली ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की।

• 1799 ई. में वेलेजली ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगाया।

• 1803 ई. में इसने बाल हत्या पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया।

सहायक संधि स्वीकार करने वाले राज्यों का क्रम :-

क. हैदराबाद – 1798

ख. मैसूर, तंजौर – 1799

ग. अवध – 1801

घ. पेशवा – 1802

ड़. भोसले – 1803

च. सिंधिया – 1804

छ. जोधपुर, जयपुर, बूंदी, भरतपुर, मच्छेड़ी

5. सर जॉर्ज बार्लो (1805) –

• इसने भी अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया और मराठों के प्रति शांतिपूर्ण नीति अपनाई।

• उसने सिन्धिया को ग्वालियर तथा गोहुद के प्रदेश वापस कर दिए।

• राजपूतों से ब्रिटिश सुरक्षा को वापस ले लिया, किन्तु उसने डायरेक्टरों की आज्ञा के विरुद्ध बेसीन की सन्धि जारी रखी।

• इसी के काल में वेल्लोर में सिपाहियों का विद्रोह हुआ, जिसका कारण फौजी वर्दियों को पहनने, बालों को कटाने आदि से सम्बन्धित था, जिसे मद्रास के गवर्नर लॉर्ड विलियम बैंटिक ने शान्त किया।

• इस विद्रोह के कारण ही बालों को वापस बुला लिया गया।

6. लॉर्ड मिंटो (1807-13) –

• 1809 में चार्ल्स मेटकॉफ और रणजीत सिंह के मध्य अमृतसर की संधि हुयी।

• गवर्नर-जनरल के रूप में भारत आने से पूर्व वह नियन्त्रण बोर्ड का अध्यक्ष था।

• इसके समय में पर्शिया के शाह से एक सन्धि हुई, जिसके अनुसार कोई भी विदेशी सेना उसकी अनुमति के बिना उसके क्षेत्रों से नहीं गुजर सकती थी।

• 1809 ई. में लॉर्ड मिण्टो महाराजा रणजीत सिंह के साथ अमृतसर की सन्धि में सम्मिलित हुआ।

• सन्धि पर अंग्रेजों की ओर से चार्ल्स मेटकॉफ ने हस्ताक्षर किए।

7. लॉर्ड हेस्टिंग्स (1813-23) –

• वह भारत में इस दृढ़ संकल्प के साथ आया कि वह देश के कार्यों में हस्तक्षेप न करने की नीति का पालन करेगा, किन्तु बाद में उसने अनुभव किया कि देश की स्थिति ऐसी है कि उस नीति पर चलना सम्भव नहीं है।

• इसने अहस्तक्षेप की नीति का परित्याग कर दिया और ब्रिटिश प्रभुसत्ता को स्थापित किया।

• इसी के समय आंग्ल-नेपाल युद्ध (1814-16) हुआ जिसकी समाप्ति संगौली की सन्धि से हुयी।

• इसी ने पिंडारियों का दमन किया।

• इसने मराठा संघ का अंत कर बाजीराव को गद्दी से उतार कर अंग्रेजों का पेंशनभोगी बना दिया।

आंग्ल-नेपाल युद्ध (1814 – 1816 ई.)

• सर्वप्रथम लॉर्ड हेस्टिग्स को नेपाल के विरुद्ध 1814 ई. में कार्रवाई करनी पड़ी।

• कर्नल निकल्सन तथा गार्डनर के नेतृत्व में अल्मोड़ा पर अधिकार करने में सफल हो गए। गोरखा नेता अमर सिंह थापा हार गया। तथा उसने शरण ले ली।

• इसके पश्चात मार्च, 1816 ई. में संगौली की सन्धि पर हस्ताक्षर हुए।

• संगीली की सन्धि के अनुसार, गढ़वाल, कुमाऊँ, शिमला, रानीखेत एवं नैनीताल अंग्रेजों के अधिकार में आ गए तथा गोरखों ने काठमाण्डू में ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखना स्वीकार कर लिया।

पिण्डारियों का दमन (1817 – 1818 ई.)

• हेस्टिग्स को पिण्डारियों के दमन का भी श्रेय प्राप्त है। यह लुटेरों का एक दल था, जिसमें हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों सम्मिलित थे। हेस्टिग्स ने पिण्डारियों के दमन के लिए उत्तरी सेना की कमान स्वयं संभाली, जबकि दक्षिणी सेना की कमान टॉमस हिसलोप को दी गई।

• उनके नेताओं में वासिल मोहम्मद ने सिन्धिया के यहाँ शरण ली, किन्तु उसने आत्महत्या कर ली। करीम खाँ को गोरखपुर में एक छोटी-सी रियासत दे दी गई और चीतू को शेर मारकर खा गया। अमीर खान को टोंक का नवाब बना दिया गया, 1824 ई. तक पिण्डारियों का दमन कर दिया गया।

मराठा संघ का अन्त

• हेस्टिग्स द्वारा मराठा को तृतीय युद्ध में पराजित कर मराठा संघ को भंग कर दिया गया।

• 1 जून, 1817 ई. को पेशवा ने अपनी हार स्वीकार कर एक सन्धि पर हस्ताक्षर किए, जिसके अनुसार मराठा संघ समाप्त हो गया।

• हेस्टिंग्स ने बाजीराव द्वितीय को गद्दी से उतारकर ₹ 18 लाख वार्षिक पेंशन देकर कानपुर के समीप बिठूर नामक स्थान पर भेज दिया।

• हेस्टिग्स के समय में ही एलफिन्सटन ने बम्बई में महालवाड़ी तथा रैयतवाड़ी व्यवस्था के मिश्रण को लागू किया।

• बंगाल में रैयत के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए 1822 ई. में ‘टैनेन्सी एक्ट’ या ‘काश्तकारी अधिनियम’ लागू किया गया, जिसके अनुसार यदि रैयत अपना निश्चित किराया देती रहे, तो उसे विस्थापित नहीं किया जाएगा।

8. लॉर्ड एडम्स (1823) –

• यह दूसरा स्थानापन्न गवर्नर था।

• इसके समय प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

9. लॉर्ड एम्हर्स्ट (1823-28) 

• मुग़ल शासक अकबर द्वितीय से बराबरी के स्तर से मिलने वाला यह पहला गवर्नर जनरल था।

• इसी के समय प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध (1824-26) लड़ा गया।

• इसी के समय 1824 में बैरकपुर छावनी में सैनिक विद्रोह हुआ। क्योंकि भारतीय सेनिकों ने बर्मा जाकर युद्द करने से मना कर दिया था। क्योंकि समुद्र की यात्रा करना धर्म विरुद्ध था।

• लॉर्ड एमहर्ट के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना बर्मा का प्रथम युद्ध तथा भरतपुर का उत्तराधिकार युद्ध है।

• इस युद्ध का समापन 1826 ई. के ‘याण्डबू की सन्धि’ से हुआ, जिसके तहत बर्मा नरेश महाबन्दुला ने अंग्रेजी कम्पनी को अराकान तथा तनासरिम के प्रान्त दिए। मणिपुर की स्वतन्त्रता को स्वीकार कर लिया गया और अपनी राजधानी में एक अंग्रेज रेजीडेण्ट को रखना स्वीकार कर लिया।

• 1824 ई. का बैरकपुर विद्रोह भी इसी के समय हुआ।

10. लॉर्ड विलियम वेंटिक (1828-35) –

• बैंटिक को भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल का पद सुशोभित करने का गौरव प्राप्त है।

• 1806 ई. में उसने सैनिकों के माथे पर जातीय चिहन लगाने और कानों में बालियाँ पहनने पर रोक लगा दी थी, जिससे वेल्लोर में प्रथम धार्मिक सैनिक विद्रोह हुआ। बैंटिक अपनी विजय के कारण नहीं, बल्कि सामाजिक सुधारों के लिए याद किया जाता है।

• भारत का गवर्नर जनरल बनने से पूर्व 1803 में इसे मद्रास का गवर्नर नियुक्त किया गया था।

• यह एक कट्टर उदारवादी प्रशासक था। इसका कार्यकाल विभिन्न सामाजिक सुधारों के लिए जाना जाता है।

• इसी ने सर्वप्रथम “संभागीय आयुक्तों” की नियुक्ति की।

• इसने सैनिको को माथे पर जातीय चिन्ह लगाने और कानों में बालियाँ पहनने से मना किया।

• इसने ऐसा उनमें जातीय भेद-भाव ख़त्म करने के उद्देश्य से किया था।

• 1829 के नियम 17 के तहत इसने सती प्रथा को समाप्त कर दिया। प्रारम्भ में इसे सिर्फ बंगाल प्रेसिडेंसी में लागू किया गया था।

• ठगी प्रथा की समाप्ति के लिए कर्नल स्लीमन को नियुक्त किया और 1830 में इस प्रथा का अंत कर दिया।

• 1833 के चार्टर एक्ट की धारा 87 के तहत अब जाति, धर्म, रंग, जन्मस्थान इत्यादि के आधार पर किसी को पद से वंचित नहीं किया जायेगा।

• 7 मार्च 1835 के एक प्रस्ताव के बाद अंग्रेजी को उच्च शिक्षा का माध्यम मान लिया गया।

• 1835 में कलकत्ता में एक मेडिकल कॉलेज की नींव रखी गयी।

सामाजिक सुधार

• सती तथा ठगी-प्रथा का अन्त बैंटिक ने सती प्रथा के खिलाफ कानून बनाकर दिसम्बर, 1829 ई. में धारा XVII द्वारा विधवाओं के सती होने को अवैध घोषित किया।

• प्रारम्भ में यह कानून केवल बंगाल प्रेसीडेन्सी में लागू किया गया था, पर 1830 ई. में इसे बम्बई एवं मद्रास प्रेसीडेन्सियों में भी लागू किया गया।

• ठगी प्रथा की समाप्ति के लिए बैंटिक ने कर्नल स्लीमन की नियुक्ति की। 1830 ई. तक ठगी प्रथा का अन्त हो गया।

• नरबलि व शिशु हत्या पर प्रतिबन्ध लगाया।

• बैंटिक ने नरबलि तथा राजपूतों में लड़कियों की शिशु-हत्या पर भी प्रतिबन्ध लगाया।

सरकारी सेवाओं में भेदभाव का अन्त

• बैंटिक ने सरकारी सेवाओं में भेदभावपूर्ण व्यवहार को खत्म करने के लिए 1833 ई. के एक्ट की धारा 87 के अनुसार जाति या रंग के स्थान पर योग्यता को ही सेवा का आधार माना तथा कम्पनी के अधीनस्थ किसी भी भारतीय नागरिक को “उसके धर्म, जन्मस्थान, जाति अथवा रंग” के आधार पर किसी पद से वंचित नहीं रखा जा सकेगा; यह बात स्वीकार की गई।

समाचार-पत्रों के प्रति उदार नीति - 

• सामाचार-पत्रों के प्रति बैंटिक की नीति उदार थी। वह इसे असन्तोष से रक्षा का अभिद्वार मानता था।

• उसके भत्ता बन्द करने तथा अन्य वित्तीय सुधारों पर समाचार-पत्रों में कड़ी प्रतिक्रिया हुई। इस पर भी वह उनकी स्वतन्त्रता के पक्ष में ही रहा।

न्यायिक सुधार

• न्याय सम्बन्धी सुधारों के कार्य में सर चार्ल्स मैटकॉफ, बटरवर्थ, बेली तथा हाल्ट मैकेंजी ने बैंटिक की मदद की। 

वित्तीय सुधार

• वित्तीय सुधारों के परिणामस्वरूप नवम्बर, 1828 ई. में एक आदेश प्रकाशित किया गया जिसके द्वारा कलकत्ता के चार सौ मील के क्षेत्रों में भत्तों में 50% की कटौती की गई।

• बंगाल में भू-राजस्व को एकत्र करने के क्षेत्र में प्रभावकारी प्रयास किए गए।

• रॉबर्ट मार्टिन्स बर्ड के निरीक्षण में पश्चिमोत्तर प्रान्त में ऐसी भू-कर की व्यवस्था की गई, जिससे अधिक कर एकत्र होने लगा।

• अफीम के व्यापार को नियमित करते हुए इसे केवल बम्बई बन्दरगाह से निर्यात की सुविधा दी गई, इसका परिणाम यह हुआ कि कम्पनी को निर्यात कर का भी भाग मिलने लगा, जिससे उसके राजस्व में वृद्धि हुई।

• बैंटिक ने लोहे तथा कोयले के उत्पादन, चाय तथा कॉफी के बगीचों तथा नहरों की परियोजनाओं को भी प्रोत्साहन दिया।

शिक्षा सम्बन्धी सुधार - 

• सन् 1835 में एक प्रस्ताव द्वारा विलियम बैंटिक ने घोषणा की “ब्रिटिश सरकार का प्रमुख उद्देश्य भारतीयों में साहित्य तथा विज्ञान की उन्नति करना होना चाहिए तथा शिक्षा के लिए स्वीकृत धन का व्यय सर्वोत्तम रूप से केवल अंग्रेजी शिक्षा पर ही होना चाहिए।”

• इस प्रकार अंग्रेजी को भारत में उच्च शिक्षा का माध्यम मान लिया गया। 1835 ई. में बँटिक ने कलकत्ता में मेडिकल कॉलेज की नींव रखी।

सार्वजनिक सुधार के कार्य

• लॉर्ड मिण्टो के समय में प्रारम्भ की गई सिंचाई योजनाओं को विलियम बैंण्टिक के समय में कार्यान्वित किया गया।

• उत्तर-पश्चिमी प्रान्त में जल को बाँटने के सम्बन्ध में नहरें खोदी गईं।

• सड़कों में सुधार किया गया।

• कलकत्ता से दिल्ली तक की जी.टी. रोड की मरम्मत व बम्बई से आगरा तक एक सड़क बनाने का कार्य आरम्भ हुआ।

भारतीय रियासतों के प्रति नीति

• बेंटिक ने रियासतों के प्रति अहस्तक्षेप की नीति अपनाई, परन्तु कुछ रियासतों में अव्यवस्था का आरोप लगाकर बैंटिक ने 1831 ई. में मैसूर 1834 ई. में कुर्ग तथा कछार की रियासतों को अपने प्रदेश में मिला लिया।

• हैदराबाद, बूंदी, जोधपुर, कोटा तथा भोपाल में बैंटिक ने अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया था। इस काल में आगरा एक नई प्रेसीडेन्सी बनी तथा यहाँ एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई।

• इसने डिविजनल कमिश्नर (मण्डलायुक्त) की नियुक्ति की।

11. चार्ल्स मेटकॉफ (1835-36) –

• मेटकॉफ ने ही 1809 ई. में रणजीत सिंह के साथ अमृतसर सन्धि से सम्बन्धित बातचीत की थी।

• इसने समाचार पत्रों पर से प्रतिबन्ध हटा लिया।

• इसी कारण इसे “समाचार पत्रों का मुक्तिदाता” भी कहा जाता है।

12. लॉर्ड ऑकलैंड (1836-42) -

• अफगानिस्तान का भगौड़ा शासक शाहशुजा, रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य एक त्रिपक्षीय संधि हुयी।

• इसी के समय शेरशाह सूरी मार्ग का नाम बदलकर Grand Trunk Road ( G T रोड ) रख दिया गया।

• इसके शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना प्रथम अफगान युद्ध था।

• प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध (1839 – 42 ई.) में अंग्रेजों को भारी क्षति हुई।

• अफगानिस्तान की समस्या के समाधान के लिए शाहशुजा, रणजीत सिंह व अंग्रेजों के बीच एक त्रिपक्षीय सन्धि (1838 ई.) हुई। इस सन्धि के द्वारा शाहशुजा को अफगानिस्तान की गद्दी पर बैठाया जाना तय हुआ, परन्तु बाद में रणजीत सिंह इस सन्धि से अलग हो गए।

• लॉर्ड ऑकलैण्ड ने भारत के विभिन्न सरकारी स्कूलों में अनेक छात्रवृत्तियां प्रारम्भ की, उसने बम्बई तथा मद्रास में मेडिकल स्कूल स्थापित किए।

• 1839 ई. में ऑकलैण्ड ने कलकत्ता से दिल्ली तक जी.टी. रोड का निर्माण शुरू करवाया तथा इसी के समय में ‘शेरशाह सूरी मार्ग’ का नाम बदलकर जी. टी. रोड (ग्राण्ड ट्रंक रोड) रख दिया गया।

• ऑकलैण्ड ने दोआब में सिंचाई की एक विस्तृत योजना को स्वीकृति दी।

• अवध के साथ सन्धि की, परन्तु ब्रिटिश सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया और उसे वापस बुला लिया।

13. लॉर्ड एलनबरो (1842-44)

• इसने 1843 के अधिनियम 5 द्वारा दास प्रथा का अंत कर दिया।

• 1843 में सिंध का विलय किया।

• भारत में आने से पूर्व उसने कम्पनी के नियन्त्रक बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में काम किया था। एलनबरो के समय में सर चार्ल्स नेपियर के नेतृत्व में 1843 ई. में सिन्ध का विलय किया गया।

• एलनबरो का कार्यकाल कुशल अकर्मण्यता की नीति का काल कहा जाता है।

14. लॉर्ड हार्डिंग (1844-48) 

• इसी के समय प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध हुआ।

• इस युद्ध का समापन लाहौर की संधि से हुआ।

• इन्होंने ही जाति में प्रचलित नरबलि प्रथा को समाप्त करने के लिए कैम्पबेल की नियुक्ति की।

• भारत में गर्वनर-जनरल के रूप में आने से पूर्व लॉर्ड हॉर्डिंग 20 वर्षों तक पार्लियामेण्ट में रहा था।

• वह द्वीप पेनिनसुलर युद्ध का नायक था तथा वाटरलू की लड़ाई में भी उसने भाग लिया था।

• लॉर्ड हॉर्डिंग के शासनकाल की सबसे मुख्य घटना प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध थी। यह युद्ध दिसम्बर, 1845 ई. में प्रारम्भ हुआ, जिसमें चार लड़ाइयाँ मुदकी, फिरोजशाह, बद्दोवल व आलीवाल में हुई, परन्तु सबरॉव की लड़ाई में सिख हार गए तथा युद्ध की समाप्ति लाहौर की सन्धि (1846 ई.) से हुई। इस युद्ध का परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में रहा व हेनरी लॉरेन्स को रेजीडेण्ट के रूप में नियुक्त किया गया और अंग्रेजों ने अपना साम्राज्य जालन्धर से पंजाब तक विस्तृत कर लिया।

• लॉर्ड हॉडिंग ने अपने सुधारों में नमक-कर कम कर दिया तथा बहुत-से चुंगी कर हटा दिए। अनियन्त्रित व्यापार को प्रोत्साहन दिया तथा देसी रियासतों का अपनी-अपनी सीमाओं में सती-प्रथा खत्म करने को कहा।

• गोण्ड एवं मध्य भारत में मानव बलि प्रथा का दमन तथा हत्या पर रोक हॉर्डिंग के काल की महत्वपूर्ण घटना थी।

15. लॉर्ड डलहौजी (1848-56) –

• डलहौजी भारत में राज्य हड़पने की नीति और भाल लाने के लिए जाना जाता है।

अपनी राज्य हड़प नीति के तहत इसने निम्न राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया :-

• सतारा (1848), जैतपुर, सम्भलपुर (1849), बाघाट (1850), ऊदेपुर (1852), झाँसी (1853), नागपुर (1854), अवध (1856)

• कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर ने डलहौजी को करौली विलय की आज्ञा नहीं दी।

• इसने 1850 के सिक्किम के कुल दूरवर्ती इलाकों को भारत में मिलाया। 1852 में पंजाब पर अधिकार कर लिया।

• गवर्नर जनरल के कार्य के बोझ को कम करने के लिए बंगाल में एक लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति की व्यवस्था की।

• इसी के समय शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया।

• इसके कार्यकाल में पहली बार एक सार्वजानिक निर्माण विभाग की स्थापना की गयी।

• इसी के समय भारत में पहली रेल लाइन 1853 में बम्बई से ठाणे तक बिछाई गयी।

• पहली विद्युत तार सेवा कलकत्ता से आगरा के बीच शुरू की गयी।

• 1854 में पहली बार डाक टिकटों का प्रचलन प्रारम्भ किया गया।

पंजाब का विलय

• द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध (1848 ई.) डलहौजी के समय में हुआ।

• सिख पूर्ण रूप से पराजित हुए तथा पंजाब को अंग्रेजी राज्य में 1849 ई. में मिला लिया गया।

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध

• लॉर्ड डलहौजी के समय में फॉक्स युद्धपोत के अधिकारी कामेडोर लैम्बर्ट को रंगून भेजा गया और द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध लड़ा गया, जिसका परिणाम बर्मा की हार था तथा लोअर बर्मा एवं पीगू का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय (1852 ई.) कर लिया गया।

सिक्किम का विलय

• यह नेपाल और भूटान राज्यों के बीच एक छोटा-सा राज्य था, जिसमें दार्जिलिंग भी सम्मिलित था।

• इसे 1850 ई. में अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया। 

व्यपगत का सिद्धान्त

• डलहौजी का शासनकाल व्यपगत सिद्धान्त के कई मामलों को लागू करने के लिए प्रसिद्ध है।

• इस सिद्धान्त का मूल आधार यह था कि चूँकि अंग्रेजी कम्पनी भारत में सबसे बड़ी शक्ति है। इसलिए अधीन रियासतों अथवा राज्यों को उसकी स्वीकृति के बिना किसी को गोद लेने का अधिकार नहीं था तथा कम्पनी को यह अधिकार प्राप्त था कि वह जब चाहे इस प्रकार की स्वीकृति को लौटा ले।

डलहौजी ने तत्कालीन रजवाड़ों को तीन भागों में बाँटा है : –

• वे रजवाड़े जो न ही किसी को कर देते थे तथा न ही किसी के नियन्त्रण में थे तथा बिना अंग्रेजी हस्तक्षेप के गोद ले सकते थे।

• वे रजवाड़े जो पहले मुगलों एवं पेशवाओं के अधीन थे, परन्तु इसके समय में अंग्रेजों के अधीन थे, उन्हें गोद लेने से पहले अंग्रेजों से अनुमति लेना आवश्यक था।

• वे रियासतें जिनका निर्माण स्वयं अंग्रेजों ने किया था। उन्हें गोद लेने का अधिकार नहीं था। अपने व्यपगत सिद्धान्त का पालन करते हुए डलहौजी ने 1848 ई. में सतारा, 1849 ई. में जैतपुर तथा सम्बलपुर, 1850 ई. में बघाट, 1852 ई. में उदयपुर, 1853 ई. में झाँसी, 1854 ई. में नागपुर को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

• 1856 ई. में अवध को (आउटम रिपोर्ट के आधार पर कुशासन के आरोप में) तथा 1853 ई. में बकाया धनराशि वसूलने के लिए बराड़ को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

प्रशासनिक सुधार

• डलहौजी ने प्रशासनिक सुधारों के अन्तर्गत भारत के गवर्नर-जनरल के कार्यभार को कम करने के लिए बंगाल के एक लेफ्टिनेण्ट गवर्नर की नियुक्ति की व्यवस्था की।

• उन नए प्रदेशों को जिन्हें हाल ही में ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया था, के लिए डलहौजी ने सीधे प्रशासन की व्यवस्था प्रारम्भ की जिसे नॉन-रेगूलेशन प्रणाली कहा जाता है।

• इसके अन्तर्गत ही प्रदेशों में नियुक्त कमिश्नरों को प्रत्यक्ष रूप से गवर्नर-जनरल के प्रति उत्तरदायी बनाया गया।

सैन्य सुधार

• सैन्य सुधारों के अन्तर्गत डलहौजी ने कलकत्ता में स्थित तोपखाने का कार्यालय मेरठ में तथा सेना का मुख्य कार्यालय शिमला में स्थापित किया।

• उसने पंजाब में नई अनियमित सेना का गठन एवं गोरखा रेजीमेण्ट के सैनिकों की संख्या में वृद्धि की।

• डलहौजी के समय भारतीय सेना एवं अंग्रेजी सेना का अनुपात (6 : 1) था।

शिक्षा सम्बन्धी सुधार

• 1854 ई. का चार्ल्स वुड का डिस्पैच जो विश्वविद्यालयी शिक्षा से सम्बन्धित था, डलहौजी के समय में पारित हुआ। इसी तरह प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालयी स्तर की शिक्षा के लिए एक व्यापक योजना बनाई गई।

रेल एवं तार

• डलहौजी ने तार तथा रेल विभाग को अत्यन्त महत्व दिया। उसने रेलों के निर्माण के सम्बन्ध में अंग्रेजी निगमों के साथ ठेकों का निश्चय किया।

• उसके काल में भारत में 1853 ई. में प्रथम रेलवे लाइन बम्बई से थाणे व दूसरी रेलवे लाइन 1854 ई. में कलकत्ता से रानीगंज के बीच बिछाई गई। (ब्रिटेन में 1825 ई. से ही रेलवे लाइनें बिछाई जा रही थीं)

• डलहौजी के ही काल में प्रथम विद्युत तार सेवा कलकत्ता से आगरा के बीच प्रारम्भ हुई।

डाक सुधार

• आधुनिक काल की डाक व्यवस्था का आधार भी डलहौजी के काल में ही निश्चित किया गया।

• डलहौजी ने डाक विभाग में सुधार करते हुए 1854 ई. में नया पोस्ट ऑफिस एक्ट पास किया।

• इस एक्ट के अन्तर्गत तीनों प्रेसीडेन्सियों में एक-एक महानिदेशक नियुक्त करने की व्यवस्था की गई।

• देश में पहली बार डाक टिकटों का प्रचलन आरम्भ हुआ। अब डाक विभाग आय का एक स्रोत बन गया।

वाणिज्यिक सुधार

• वाणिज्यिक सुधार के अन्तर्गत डलहौजी ने खुले व्यापार की नीति का अनुसरण किया तथा भारत के बन्दरगाहों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए खोल दिया।

• कराची, बम्बई, कलकत्ता के बन्दरगाहों का विकास किया गया।

सार्वजनिक निर्माण विभाग

• डलहौजी से पूर्व फौजी सदस्य ही सार्वजनिक निर्माण कार्य के उत्तरदायी थे।नागरिक विभाग के कार्यों की उपेक्षा होती थी।

• डलहौजी ने पहली बार एक सार्वजनिक निर्माण विभाग बनाया।

• गंगा नहर का निर्माण कर 8 अप्रैल, 1854 ई. को उसे सिंचाई के लिए खोल दिया गया।

• डलहौजी ने जी.टी. रोड का निर्माण कार्य भी पुन: शुरू करवाया।

• पंजाब में बारी दोआब नहर का निर्माण कार्य आरम्भ किया गया।

• संथाल विद्रोह (1855 – 56 ई.) इसके काल की महत्वपूर्ण घटना है।

लॉर्ड कैनिंग (1856-62) –

• गवर्नर जनरल बनकर भारत आया ,फिर भारत का वायसराय कहलाया

 

 

 

 

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