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संविधान सभा में महिलाओं की स्थिति एवं प्रभाव

By - Gurumantra Civil Class

At - 2025-09-25 08:36:29

संविधान सभा में महिलाओं की स्थिति -

भारतीय संविधान सभा (Constituent Assembly) की स्थापना 1946 में हुई थी, जिसका उद्देश्य स्वतंत्र भारत के संविधान का निर्माण करना था। इस सभा में कुल 389 सदस्य थे (बाद में 299 निर्वाचित सदस्यों तक सीमित), लेकिन महिलाओं की संख्या केवल 15 थी, जो कुल सदस्यों का लगभग 5% थी।

यह संख्या कम होने के बावजूद, इन महिलाओं ने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे मुख्य रूप से स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता और महिलाओं के अधिकारों की पैरोकार थीं। पुरुष-प्रधान वातावरण में उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे लिंग-आधारित भेदभाव, पुरुष सदस्यों द्वारा उपहास और पारंपरिक भूमिकाओं के दबाव।

 फिर भी, उन्होंने मौलिक अधिकारों, समानता, अल्पसंख्यक अधिकारों और सामाजिक न्याय से संबंधित बहसों में सक्रिय भाग लिया। उनकी भागीदारी ने संविधान को एक समावेशी दस्तावेज बनाया, जो महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करता है।

इन महिलाओं की पृष्ठभूमि मुख्य रूप से महिलाओं की संस्थाओं जैसे ऑल इंडिया विमेंस कॉन्फ्रेंस (AIWC), विमेंस इंडियन एसोसिएशन और नेशनल काउंसिल ऑफ विमेन इन इंडिया से जुड़ी थी।

 वे विभिन्न राजनीतिक दलों (कांग्रेस, मुस्लिम लीग आदि) से जुड़ी थीं और संविधान की विभिन्न उप-समितियों में शामिल रहीं, जैसे मौलिक अधिकार समिति, सलाहकार समिति और हिंदू कोड बिल से संबंधित चर्चाएं। उनकी स्थिति को "संविधान की माताएं" (Founding Mothers) के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने न केवल संविधान का मसौदा तैयार करने में योगदान दिया, बल्कि महिलाओं की नागरिकता और राष्ट्रीय निर्माण में भागीदारी को मजबूत किया।

15 महिलाओं की सूची, पृष्ठभूमि और प्रमुख योगदान

नीचे संविधान सभा की 15 महिलाओं की सूची दी गई है, उनकी पृष्ठभूमि और संविधान निर्माण में प्रमुख योगदान के साथ। यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से संकलित है।

1. अम्मू स्वामीनाथन (Ammu Swaminathan)

पृष्ठभूमि: सामाजिक कार्यकर्ता, विमेंस इंडिया एसोसिएशन की सह-संस्थापक (1917)।

योगदान: मौलिक अधिकारों की वकालत की, जाति भेदभाव के खिलाफ बोलीं। हिंदू कोड बिल समिति में महिलाओं की प्रतिनिधित्व की मांग की, जहां पुरुष सदस्यों के उपहास का सामना किया।

2. एनी मस्करेन (Annie Mascarene)

पृष्ठभूमि: राजनीतिज्ञ, लोकतांत्रिक सिद्धांतों की पैरोकार।

योगदान: राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं के अधिकारों पर जोर दिया, बहसों में महिलाओं की आवाज सुनिश्चित की।

3. बेगम कुदसिया एजाज रसूल (Begum Qudsia Aizaz Rasul)

पृष्ठभूमि: अल्पसंख्यक प्रतिनिधि, मुस्लिम लीग से जुड़ी।

योगदान: अल्पसंख्यक अधिकारों को सुनिश्चित किया, धर्म-आधारित आरक्षण को समाप्त करने में समर्थन जुटाया।

4. दक्षयानी वेलायुधन (Dakshayani Velayudhan)

पृष्ठभूमि: दलित पृष्ठभूमि (पुलाया जाति), सामाजिक न्याय की पैरोकार।

योगदान: अस्पृश्यता के खिलाफ वकालत की, दलित मुद्दों को उजागर किया। बाद में दलित महिलाओं की संगठन बनाया।

5. दुर्गाबाई देशमुख (Durgabai Deshmukh)

पृष्ठभूमि: सामाजिक सुधारक, AIWC से जुड़ी।

योगदान: हिंदू कोड बिल की वकालत की, संपत्ति अधिकार और विधवाओं के अधिकारों पर जोर दिया। राज्यसभा सदस्यता की आयु 35 से 30 वर्ष करने का संशोधन पारित करवाया।

6. हंसा मेहता (Hansa Mehta)

पृष्ठभूमि: सामाजिक कार्यकर्ता, UN कमीशन ऑन ह्यूमन राइट्स की सदस्य।

योगदान: यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत की, यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स में "all men" को "all human beings" में बदलवाया। अस्पृश्यता प्रतिबंध पर जोर दिया।

7. कमला चौधरी (Kamla Chaudhary)

पृष्ठभूमि: स्वतंत्रता सेनानी, AIWC से जुड़ी।

योगदान: सामाजिक न्याय और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता पर जोर दिया।

8. लीला रॉय (Leela Roy)

पृष्ठभूमि: क्रांतिकारी, स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय।

योगदान: महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों पर बहस में योगदान।

9. मालती चौधरी (Malati Choudhury)

पृष्ठभूमि: सामाजिक कार्यकर्ता, गांधीवादी।

योगदान: सामाजिक सुधार और अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान केंद्रित।

10. पूर्णिमा बनर्जी (Purnima Banerjee)

पृष्ठभूमि: राजनीतिज्ञ, कांग्रेस से जुड़ी।

योगदान: अनुच्छेद 312F में महिलाओं के लिए सकारात्मक भेदभाव का संशोधन प्रस्तावित किया, आरक्षण का विरोध लेकिन महिलाओं की सीटें महिलाओं द्वारा भरने की वकालत।

11. राजकुमारी अमृत कौर (Rajkumari Amrit Kaur)

पृष्ठभूमि: स्वास्थ्य मंत्री (बाद में), AIWC से जुड़ी।

योगदान: यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत की, सामाजिक कल्याण के साथ धर्म की स्वतंत्रता को जोड़ा। "निर्माणशील नागरिकता" की अवधारणा दी।

12. रेणुका रे (Renuka Ray)

पृष्ठभूमि: विधिवेत्ता, AIWC से जुड़ी।

योगदान: महिलाओं के लिए आरक्षण का विरोध किया, योग्यता आधारित समानता पर जोर। हिंदू कोड बिल और संपत्ति अधिकारों की पैरोकार।

13. सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu)

पृष्ठभूमि: कवयित्री, स्वतंत्रता सेनानी, कांग्रेस अध्यक्ष।

योगदान: राष्ट्रीय एकता और महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी पर जोर दिया।

14. सुचेता कृपलानी (Sucheta Kripalani)

पृष्ठभूमि: स्वतंत्रता सेनानी, उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री।

योगदान: सामाजिक सुधार और महिलाओं की शिक्षा पर योगदान।

15. विजयलक्ष्मी पंडित (Vijaya Lakshmi Pandit)

पृष्ठभूमि: राजनयिक, UN महासभा की पहली महिला अध्यक्ष।

योगदान: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व, समानता और मानवाधिकारों पर जोर।

महत्वपूर्ण तथ्य

• प्रतिनिधित्व और चुनौतियां: महिलाओं की संख्या कम होने के कारण उन्हें पुरुष सदस्यों के वर्चस्व का सामना करना पड़ा। वे घरेलू जिम्मेदारियों और राजनीतिक भूमिकाओं के बीच संतुलन बनाती रहीं।

• 1939 के AIWC रिपोर्ट में महिलाओं को "सस्ती नकल" न बनने की बात कही गई, बल्कि समान अवसरों की मांग की गई।

• संविधान पर प्रभाव: इन महिलाओं ने अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव निषेध), 16 (समान अवसर), और 39(d) (समान वेतन) जैसे प्रावधानों को आकार दिया। उन्होंने हिंदू कोड बिल, यूनिफॉर्म सिविल कोड और बाल विवाह निषेध पर जोर दिया।

• विरासत: उनकी वजह से आज पंचायतों में महिलाओं के लिए 33-50% आरक्षण (73वां संशोधन) है, और 1.4 मिलियन से अधिक महिलाएं पंचायत नेता हैं।ea0b1f 1952 में पहली लोकसभा में महिलाएं 5% थीं, जो आज 14% है, लेकिन अभी भी सुधार की जरूरत है।

• समयावधि: सभा ने 2 वर्ष, 11 माह और 17 दिन कार्य किया, और इन महिलाओं ने सामाजिक न्याय और लिंग समानता को मजबूत किया।

• ये महिलाएं संविधान को एक "जीवंत दस्तावेज" बनाने में सफल रहीं, जो महिलाओं के सशक्तिकरण का आधार बना।

 

 

 

 

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