By - Gurumantra Civil Class
At - 2025-11-13 08:59:30
संसद ने पारित किए तीन आपराधिक कानून सुधार विधेयक
भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम उपनिवेशी युग के भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 का स्थान लेंगे।
नए आपराधिक कानून सुधारों के बारे में:
❖ समिति का गठन: भारत के गृह मंत्रालय ने 4 मई 2020 को एक समिति गठित की थी, जिसका नेतृत्व प्रो. (डॉ.) रणबीर सिंह ने किया।
❖ उद्देश्य: अपराधों और दंड की स्पष्ट परिभाषाएं प्रदान करके आपराधिक न्याय प्रणाली को आधुनिक बनाना। अपराध कानून और आपराधिक प्रक्रिया "संविधान की समवर्ती सूची" (Concurrent List) के अंतर्गत आते हैं।
भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली का इतिहास:
❖ ब्रिटिश शासन और संहिताकरण: ब्रिटिश शासन के दौरान आपराधिक कानून संहिताबद्ध किए गए, और आज भी बने हुए हैं।
❖ लॉर्ड थॉमस बैबिंगटन मैकाले को भारत के आपराधिक कानूनों के संहिताकरण का मुख्य वास्तुकार माना जाता है।
नए विधेयकों की आवश्यकता:
1. औपनिवेशिक विरासत: पुराने और जटिल आपराधिक कानूनों को आधुनिक और सरल बनाने के लिए।
2. देशद्रोह कानून का दुरुपयोग: IPC की धारा 124A (देशद्रोह) का राजनीतिक असहमति को दबाने के लिए दुरुपयोग किया गया।
3. मामलों की लंबित संख्या और देरी: पुराने कानूनों की जटिल प्रक्रियाएं न्याय में देरी और लंबित मामलों की संख्या बढ़ाती थीं।
4. कम दोषसिद्धि दर: दोषसिद्धि दर कम होने से आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रभावशीलता पर सवाल उठते थे।
5. भीड़भाड़ वाली जेलें और विचाराधीन कैदी: बड़ी संख्या में कैदी बिना मुकदमे के जेल में रहते थे।
6. प्रतिशोधात्मक से सुधारात्मक न्याय: अपराधियों के पुनर्वास और पीड़ितों की सुरक्षा के लिए सुधारात्मक उपाय लाना।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की प्रमुख विशेषताएँ:
1. शरीर के खिलाफ अपराध: IPC की तरह हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, हमला और गंभीर चोट पहुँचाने को अपराध बनाए रखा गया है।
2. महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध: सामूहिक बलात्कार के मामलों में पीड़िता की उम्र की सीमा 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई।
3. देशद्रोह (राजद्रोह) हटाया गया: BNS ने IPC की धारा 124A (देशद्रोह) को हटा दिया है।
4. आतंकवाद: BNS की धारा 113 में आतंकवाद की परिभाषा को UAPA, 1967 की धारा 15 के अनुसार संशोधित किया गया।
5. संगठित अपराध: इसमें अपहरण, जबरन वसूली, सुपारी हत्या, भूमि कब्जा, वित्तीय घोटाले और साइबर अपराध जैसे अपराध शामिल किए गए हैं।
6. मॉब लिंचिंग: पाँच या अधिक व्यक्तियों द्वारा हत्या या गंभीर चोट पहुँचाना अपराध की श्रेणी में रखा गया है। यह अपराध नस्ल, जाति, लिंग, भाषा या व्यक्तिगत विश्वास के आधार पर किया गया हो।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की अन्य प्रमुख विशेषताएँ:
7. आत्महत्या का अपराधीकरण (जब यह सरकारी कर्तव्यों को प्रभावित करे): यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है ताकि किसी सरकारी कर्मचारी को अपने आधिकारिक कार्यों से रोक सके या मजबूर कर सके, तो इसे अपराध माना जाएगा।
8. फर्जी भाषण (Fake Speech): धारा 153B "हेट स्पीच" से संबंधित है। यह उन कृत्यों को अपराध घोषित करती है जो समुदायों के बीच "असहमति, दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना" को बढ़ावा देते हैं।
9. सुप्रीम कोर्ट के फैसले: BNS, सर्वोच्च न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों के अनुरूप है।
10. प्रकाशन पर दंड: धारा 73 के तहत बलात्कार या यौन हमले के मामलों में पीड़िता की जानकारी को अनुमति के बिना प्रकाशित करने पर दो साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।
11. छोटे संगठित अपराधों की पुनर्परिभाषा: चोरी में अब धोखे से चोरी (trick theft), वाहन से चोरी, घर या व्यापारिक प्रतिष्ठान से चोरी, कार्गो चोरी, पॉकेटमारी, कार्ड स्किमिंग द्वारा चोरी, दुकानों में चोरी और एटीएम चोरी शामिल हैं।
12. सामुदायिक सेवा (Community Service): यह एक नए दंड के रूप में जोड़ा गया है।
प्रमुख चुनौतियाँ:
1. आपराधिक जिम्मेदारी की आयु: आपराधिक उत्तरदायित्व की न्यूनतम आयु 7 वर्ष से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी गई है।
2. देशद्रोह पर बदलाव: यह उन कृत्यों की सीमा का विस्तार करता है जो भारत की एकता और अखंडता को खतरे में डाल सकते हैं।
3. सामुदायिक सेवा: इसका स्वरूप और प्रशासनिक प्रक्रिया स्पष्ट नहीं की गई है।
4. महिलाओं के खिलाफ अपराध: न्यायमूर्ति वर्मा समिति (2013) और सुप्रीम कोर्ट की कई सिफारिशों को शामिल नहीं किया गया है।
5. मसौदा संबंधी समस्याएँ:
BNS ने धारा 377 को हटा दिया है, जिससे वयस्क पुरुष के साथ बलात्कार किसी भी कानून के तहत अपराध नहीं रहेगा।
6. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता अधिनियम, 2023 (BNSS): इसे 11 अगस्त 2023 को लोकसभा में दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 को बदलने के लिए पेश किया गया था।
प्रस्तावित प्रमुख परिवर्तन (BNSS के तहत):
1. विचाराधीन कैदियों की हिरासत:
यदि कोई आरोपी अधिकतम सजा की आधी अवधि जेल में बिता चुका हो, तो उसे निजी मुचलके पर रिहा करना होगा।
यह प्रावधान आजीवन कारावास वाले अपराधों और ऐसे मामलों पर लागू नहीं होगा जहां एक ही व्यक्ति के खिलाफ एक से अधिक मामले लंबित हों।
2. चिकित्सीय जांच (Medical Examination): कोई भी पुलिस अधिकारी ऐसे परीक्षण का अनुरोध कर सकता है।
3. फॉरेंसिक जांच: जिन अपराधों में 7 वर्ष या अधिक की सजा होती है, उनके लिए फॉरेंसिक जांच अनिवार्य होगी।
4. नमूने एकत्र करना: पुलिस अब बिना गिरफ्तारी के भी उंगलियों के निशान और आवाज के नमूने एकत्र कर सकती है।
5. प्रक्रियाओं के लिए समय-सीमा: BNSS विभिन्न कानूनी प्रक्रियाओं के लिए एक निश्चित समय-सीमा निर्धारित करता है।
6. निवारक हिरासत (Preventive Detention):
छोटे मामलों में व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होगा या रिहा करना होगा।
मुख्य मुद्दे:
1. हिरासत की प्रक्रिया: पुलिस 15 दिनों की हिरासत ले सकती है, जिसे 60 या 90 दिनों की न्यायिक हिरासत अवधि में आंशिक रूप से स्वीकृत किया जा सकता है।
2. हथकड़ी लगाने का अधिकार: अब इसे केवल गिरफ्तारी के समय तक सीमित नहीं रखा गया है, बल्कि इसे विस्तारित किया गया है।
3. आरोपियों के अधिकार:
BNSS में पहली बार अपराध करने वाले व्यक्ति को अधिकतम सजा का एक-तिहाई हिस्सा पूरा करने के बाद जमानत मिलने का प्रावधान है।
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