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तथागत( गौतम बुद्ध ), भाग-1, Pt facts

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-01-18 22:48:39

तथागत( गौतम बुद्ध )

• गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईस्वी पूर्व में लुंबिनी के कपिलवस्तु के निकट नेपाल की तराई में हुआ था | इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था 

• इनका गोत्र गौतम था| महात्मा बुद्ध की मृत्यु 483 ईसवी पूर्व में मल्लो  की राजधानी कुशीनगर में हुई  |उस समय वह 80 साल के थे |महात्मा बुद्ध का जब जन्म हुआ उसके 7 वे  दिन ही उनकी माता माया देवी या महामाया जो कोलिए गणराज्य की कन्या  थी उनका देहावसान हो गया अर्थात मृत्यु हो गई | उसके बाद उनका पालन पोषण उनकी मौसी महा प्रजापति गौतमी के द्वारा किया गया| 

• सिद्धार्थ के पिता का नाम शुद्धोधन था जो कपिलवस्तु के शाक्य गण के प्रधान थे | बचपन में ही ब्राह्मण कोंन्डील  ने  सिद्धार्थ को देख कर कहा था कि यह बच्चा या तो  चक्रवर्ती राजा होगा या सन्यासी होगा | महात्मा बुद्ध बचपन से ही चिंतन और मनन में लीन रहते थे इस वजह से उनकी शादी बहुत पहले ही यानी 16 वर्ष की अवस्था में *यशोधरा के साथ  कर दी गई|  यशोधरा के  और भी नाम है – बिंबा, भद्रकच्क्षा , गोपा|  

• यशोधरा शाक्य कुल की  कन्या थी और इन दोनों के बच्चे का नाम राहुल  था | महात्मा बुद्ध हमेशा से ही आध्यात्मिक की ओर प्रखर थे|

 

 महात्मा बुद्ध के जीवन को प्रभावित करने वाली 4 घटनाएं सबसे महत्वपूर्ण हैं जो क्रमशः हैं :-

1.वृद्ध व्यक्ति को देखना  

2.बीमार व्यक्ति को देखना 

3.मृत व्यक्ति को देखना

4.प्रसन्न मुद्रा में सन्यासी को देखना |

 

• इन सब को देखने के बाद महात्मा बुद्ध के अंदर वैराग्य की भावना उठी और उन्होंने जीवन का सत्य क्या है इसकी खोज के लिए 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग कर दिया जिसे महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है और जब उन्होंने गृह त्याग किया उस समय अपने महल से वह रथ से निकले थे और जो रथ चला रहे थे यानी सारथी का नाम चाण  था और घोड़े का नाम कन्थक  था |  महात्मा बुद्ध को सबसे पहले वैशाली में आलार कालाम मिले |उसके बाद राजगीर में  रुद्राक राम पुत्र  मिले और भी बहुत सारे धर्माचार्य मिले जिससे  उस समय  उन्होंने धर्म की शिक्षा ग्रहण की पर कोई भी शिक्षा उन्हें पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर सका | उसके बाद उन्होंने  बोधगया में पीपल वृक्ष के नीचे समाधि लगाई और उन्हें आठवें दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह  दिन था वैशाख पूर्णिमा का दिन | इसी दिन से महान गौतम महात्मा बुद्ध और तथागत कहलाने लगे |

 

• ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने जो प्रथम उपदेश दिया था वह पांच ब्राह्मणों को दिया था और यह उपदेश दिया था  सारनाथ में | सारनाथ में दिए इस प्रथम उपदेश को धर्म चक्र प्रवर्तन कहा जाता है | ज्ञान प्राप्ति के 20 वे वर्ष में महात्मा बुद्ध श्रावस्ती पहुंचे और वहां अंगुलीमाल नामक डाकू को अपना शिष्य बनाया था|  बुद्ध के सबसे अधिक शिष्य  कौशल राज्य से हुए और वहीं पर उन्होंने सबसे ज्यादा धर्म का प्रचार भी किया | महात्मा बुद्ध अपने जीवन के अंतिम वर्ष में अपने शिष्य चुंद  लोहार के घर पहुंचे और वहां उन्होंने सूअर का मांस खिला दिया | जिससे अतिसार रोग से पीड़ित हो गए | उसके बाद पावा  से वो  कुशीनगर चले गए|

• वहां जाकर अपना अंतिम उपदेश सुभद्द  को दिया|  80 वर्ष की अवस्था में कुशीनगर में ही उनकी मृत्यु हो गई और इस मृत्यु को महापरिनिर्वाण कहा जाता है | जब उनकी मृत्यु हो गई तो उनके शरीर के धातु को 8 भाग किया गया और आठ भाग वहां के 8 दावेदारों ने अपने में बांट लिया| उनमें है कपिलवस्तु के शाक्य ,वैशाली के लिच्छवी , मगध के अजातशत्रु ,पिपली वन के मोरिय ,  रामग्राम  के कोलिए ,पावा के मल्ल, अल्कप्प  के बुली , और वेठ दीप  के ब्राह्मण| इन सब ने महात्मा बुद्ध के शरीर के धातु को 8 भागों में बांट के प्रत्येक भाग पर स्तूप बनवाया|महात्मा बुद्ध ने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया|  

 

बौद्ध धर्म का जो मूलाधार था, चार आर्य सत्य जो निम्नलिखित हैं – दुख है, दुख समुदाय, दुख निरोध, दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा |

 

• दुख के कारणों को प्रतीत्यसमुत्पाद कहा जाता है ,जो महात्मा बुद्ध के द्वितीय आर्य सत्य दुख समुदाय का हिस्सा है | इसे द्वादश निदान चक्र भी कहते हैं ,हेतु परंपरा भी कहा जाता है | 

 

यह जो द्वादश निदान चक्र हैं यह  निम्नलिखित है –

 अविद्या , संस्कार, विज्ञान, नाम रूप ,षडायतन , स्पर्श, तृष्णा, उपादान ,भव ,जाति, जरा मरण | इनमें से अविद्या और संस्कार पूर्व जन्म से और जाति और ज़रा मरण  भावी यानी भविष्य के जन्म से और जो शेष बचते हैं वह वर्तमान जन्म से संबंधित हैं |

 

• चतुर्थ आर्य सत्य यानि दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा में अष्टांगिक मार्ग का जिक्र किया हुआ है|

 जो निम्नलिखित हैं – सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प ,सम्यक वाक, सम्यक  क्रमांत,सम्यक आजीव , सम्यक  व्यायाम ,सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि |

 इन सभी  को तीन स्कन्धो  में बांटा गया है – प्रज्ञा ,शील और समाधि |  प्रथम तीन – सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, और सम्यक वाक्  प्रज्ञा से संबंधित है |

 

• सम्यक कर्मान्त, सम्यक आजीव,   सम्यक व्यायाम – शील  से संबंधित है , और सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि –  समाधि से संबंधित है| प्रज्ञा शील और समाधि को बौद्ध दर्शन का त्रिस्कंध  कहा जाता है |

 

बौद्ध धर्म की विशेषताएं

 

• बौद्ध धर्म का सबसे प्रमुख विशेषता है –

 

1. मध्यम मार्ग  (मध्यम प्रतिपदा)

 

2. बौद्ध धर्म  मूलतः अनीश्वरवादी है

 

3. अनात्मवाद  है

 

4. पुनर्जन्म को स्वीकार करता है

 

5. बौद्ध धर्म कर्म फल के सिद्धांत को मानते हैं

 

6. निर्वाण या मोक्ष बौद्ध धर्म स्वीकार है

 

7. बौद्ध दर्शन क्षणिक वाली दर्शन है

 

8. बौद्ध दर्शन ने मानव व्यक्तित्व को पांच कंधों से निर्मित बताया है – रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान

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