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गणतंत्र - विश्लेषण (इतिहास से वर्तमान)

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-01-18 22:30:07

गणतंत्र - विशेष


गणराज्य जोकि संस्कृत से; "गण" अर्थात जनता एवं  "राज्य" अर्थात रियासत/देश, एक ऐसा देश होता है जहां के शासनतन्त्र में सैद्धान्तिक रूप से देश का सर्वोच्च पद पर आम जनता में से कोई भी व्यक्ति पदासीन हो सकता है। इस तरह के शासनतन्त्र को गणतन्त्र(संस्कृत में  गण:पूरी जनता, तंत्र:प्रणाली यानी जनता द्वारा नियंत्रित प्रणाली) कहा जाता है। हालांकि "लोकतंत्र" या "प्रजातंत्र" इससे अलग होता है। लोकतन्त्र वो शासनतन्त्र होता है जहाँ वास्तव में सामान्य जनता या उसके बहुमत की इच्छा से शासन चलता है। 
आज विश्व के अधिकान्श देश गणराज्य हैं और इसके साथ-साथ लोकतान्त्रिक भी। भारत स्वयः भी एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है।

2017 तक, दुनिया के 206 सम्प्रभु राज्यों में से 159 अपने आधिकारिक नाम के हिस्से में "रिपब्लिक" शब्द का उपयोग करते हैं - निर्वाचित सरकारों के अर्थ से ये सभी गणराज्य नहीं हैं, ना ही निर्वाचित सरकार वाले सभी राष्ट्रों के नामों में "गणराज्य" शब्द का उपयोग किया गया हैं। भले राज्यप्रमुख अक्सर यह दावा करते हैं कि वे "शासितों की सहमति" से ही शासन करते हैं, नागरिकों को अपने स्वयं के नेताओं को चुनने की वास्तविक क्षमता को उपलब्ध कराने के असली उद्देश्य के बदले कुछ देशों में चुनाव "शो" के उद्देश्य से अधिक पाया गया है।

हर गणराज्य का लोकतान्त्रिक होना अवश्यक नहीं है। तानाशाही, जैसे हिट्लर का नाज़ीवाद, मुसोलीनी का फ़ासीवाद, पाकिस्तान और कई अन्य देशों में फ़ौजी तानाशाही, चीन, सोवियत संघ में साम्यवादी तानाशाही, इत्यादि गणतन्त्र हैं, क्योंकि उनका राष्ट्राध्यक्ष एक सामान्य व्यक्ति है या थे। लेकिन इन राज्यों में लोकतान्त्रिक चुनाव नहीं होते, जनता और विपक्ष को दबाया जाता है और जनता की इच्छा से शासन नहीं चलता। 
 

ऐसे कुछ देश हैं :-

  1. पाकिस्तान
  2. चीन
  3. अफ़्रीका के अधिक्तम् देश
  4. ईरान
  5. बर्मा
  6. दक्षिणी अमरीका के कई देश

हर लोकतन्त्र का गणराज्य होना आवश्यक नहीं है। संवैधानिक राजतन्त्र, जहाँ राष्ट्राध्यक्ष एक वंशानुगत राजा होता है, लेकिन असली शासन जन्ता द्वारा निर्वाचित संसद चलाती है, इस श्रेणी में आते हैं। 
 

ऐसे कुछ देश हैं :

ब्रिटेन और उसके डोमिनियन :-
कनाडा, ऑस्ट्रेलिया

 

स्पेन 

बेल्जियम


नीदरलैंड्स


स्वीडन


नॉर्वे


डेनमार्क


जापान


कम्बोडिया


लाओस

 

26 जनवरी 1950 को भारत को अपना संविधान मिला। इसी दिन भारतीय संविधान लागू हुआ और इसी के साथ भारत एक संप्रभु राज्‍य बन गया, जिसे गणतंत्र घोष‍ित किया गया। डॉ बीआर अंबेडकर ने संविधान की मसौदा समिति की अध्यक्षता की। गणतंत्र घोष‍ित किया गया, इसलिये इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।

राज्यसभा विशेष

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गणराज्य की परिभाषा का विशेष रूप से सन्दर्भ सरकार के एक ऐसे रूप से है जिसमें व्यक्ति नागरिक निकाय का प्रतिनिधित्व करते हैं और किसी संविधान के तहत विधि के नियम के अनुसार शक्ति का प्रयोग करते हैं, और जिसमें निर्वाचित राज्य के प्रमुख के साथ शक्तियों का पृथक्करण शामिल होता हैं, व जिस राज्य का सन्दर्भ संवैधानिक गणराज्य या प्रतिनिधि लोकतंत्र से हैं। अर्थात एक गणराज्य या गणतंत्र (गणतन्त्र) सरकार का एक रूप है जिसमें देश को एक "सार्वजनिक मामला" माना जाता है, न कि शासकों की निजी संस्था या सम्पत्ति। एक गणराज्य के भीतर सत्ता के प्राथमिक पद विरासत में नहीं मिलते हैं। यह सरकार का एक रूप है जिसके अन्तर्गत राज्य का प्रमुख राजा नहीं होता।

संप्रभु राष्ट्र

इसका आशय ऐसी सरकार से है जिसकी एक निश्चित भू-भाग में सर्वोच्च सत्ता होती है। यह ऐसा राष्ट्र होता है जो किसी भी मसले पर किसी अन्य शक्ति या देश पर निर्भर नहीं होता है। यह अन्य देशों के साथ स्वतंत्र संबंध रखने में सक्षम होता है।


यह शब्द ग्रीक शब्द पोलिटिया के लैटिन अनुवाद से उत्पन्न हुआ है । अन्य लैटिन लेखकों के बीच, सिसेरो ने पोलिटिया को रेस पब्लिका के रूप में अनुवादित किया और इसे पुनर्जागरण विद्वानों द्वारा "गणराज्य" (या विभिन्न पश्चिमी यूरोपीय भाषाओं में समान शब्द) के रूप में अनुवादित किया गया।

पोलिटिया शब्द का अनुवाद सरकार, राजनीति या शासन के रूप में किया जा सकता है और इसलिए यह हमेशा एक विशिष्ट प्रकार के शासन के लिए एक शब्द नहीं है जैसा कि आधुनिक शब्द गणतंत्र है। राजनीति विज्ञान पर प्लेटो के प्रमुख कार्यों में से एक का शीर्षक पोलिटिया था और अंग्रेजी में इसे गणतंत्र के रूप में जाना जाता है । हालांकि, शीर्षक के अलावा, द रिपब्लिक के आधुनिक अनुवादों में , पोलिटिया के वैकल्पिक अनुवादों का भी उपयोग किया जाता है।

हालांकि, अपनी राजनीति की पुस्तक III में , अरस्तू स्पष्ट रूप से यह कहने  वाले पहले शास्त्रीय लेखक थे कि पॉलिटिया शब्द का इस्तेमाल विशेष रूप से एक प्रकार की राजनीति के लिए किया जा सकता है : "जब नागरिक जनता के अच्छे के लिए बड़े पैमाने पर शासन करते हैं, तो इसे कहा जाता है सभी सरकारों के लिए सामान्य नाम से ( कोइनोन ओनोमा पासिन टुन पोलाइटिएन  ), सरकार ( पोलिटिया )"। शास्त्रीय लैटिन में भी, "रिपब्लिक" शब्द का इस्तेमाल किसी भी शासन को संदर्भित करने के लिए सामान्य तरीके से किया जा सकता है, या जनता के लिए काम करने वाली सरकारों को संदर्भित करने के लिए एक विशिष्ट तरीके से किया जा सकता है।

मध्ययुगीन उत्तरी इटली में कई ऐसे राज्य थे जहां राजशाही के बजाय कम्यून आधारित व्यवस्था थी। सबसे पहले इतालवी लेखक गिओवेनी विलेनी (1280-1348) ने इस तरह के प्राचीन राज्यों को लिबर्टिस पापुली (स्वतंत्र लोग) कहा। उसके बाद 15वीं शताब्दी में पहले आधुनिक इतिहासकार माने जाने वाले लियोनार्डो ब्रूनी (1370-1444) ने इस तरह के राज्यों को ‘रेस पब्लिका’ नाम दिया। लैटिन भाषा के इस शब्द का अंगे्रजी में अर्थ है- पब्लिक अफेयर्स (सार्वजनिक मामले)। इसी से रिपब्लिक शब्द की उत्पत्ति हुई है।जबकि ब्रूनी और मैकियावेली ने उत्तरी इटली के राज्यों का वर्णन करने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया, जो राजशाही नहीं थे, शब्द रेस पब्लिका  का मूल लैटिन में परस्पर संबंधित अर्थों का एक सेट है।

बाद की शताब्दियों में, अंग्रेजी शब्द " कॉमनवेल्थ " को रेस पब्लिका के  अनुवाद के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा , और अंग्रेजी में इसका उपयोग तुलनात्मक था कि रोमनों ने रेस पब्लिका शब्द का इस्तेमाल कैसे किया । विशेष रूप से, द प्रोटेक्टोरेट ऑफ ओलिवर क्रॉमवेल के दौरान, कॉमनवेल्थ शब्द नए राजतंत्रहीन राज्य को बुलाने के लिए सबसे आम शब्द था, लेकिन गणतंत्र शब्द भी आम उपयोग में था।  इसी तरह, पोलिश में इस शब्द का अनुवाद rzeczpospolita के रूप में किया गया था , हालांकि अनुवाद अब केवल पोलैंड के संबंध में ही प्रयोग किया जाता है।

वर्तमान में, "रिपब्लिक" शब्द का अर्थ आमतौर पर सरकार की एक प्रणाली है जो लोगों से अपनी शक्ति प्राप्त करती है, न कि किसी अन्य आधार से, जैसे कि आनुवंशिकता या दैवीय अधिकार ।

 

2017 तक , दुनिया के 206 संप्रभु राज्यों में से 159 अपने आधिकारिक नामों के हिस्से के रूप में "गणराज्य" शब्द का उपयोग करते हैं। ये सभी निर्वाचित सरकारें होने के अर्थ में गणतंत्र नहीं हैं, न ही निर्वाचित सरकारों वाले सभी राज्यों के नामों में "गणराज्य" शब्द का प्रयोग किया जाता है।

गणतंत्र शब्द लैटिन शब्द रेस पब्लिका से आया है , जिसका शाब्दिक अर्थ है "सार्वजनिक बात", "सार्वजनिक मामला", या "सार्वजनिक मामला" और इसका इस्तेमाल पूरे राज्य को संदर्भित करने के लिए किया जाता था। इस शब्द ने प्राचीन रोमन गणराज्य के संविधान के संदर्भ में अपना आधुनिक अर्थ विकसित किया , जो 509 ईसा पूर्व में राजाओं को उखाड़ फेंकने से लेकर 27 ईसा पूर्व में साम्राज्य की स्थापना तक चला । इस संविधान की विशेषता एक महत्वपूर्ण प्रभाव रखने वाले धनी अभिजात वर्ग से बनी एक सीनेट द्वारा की गई थी, सभी स्वतंत्र नागरिकों की कई लोकप्रिय सभाएं , जिनके पास मजिस्ट्रेटों का चुनाव करने और कानून पारित करने की शक्ति है और विभिन्न प्रकार के नागरिक और राजनीतिक अधिकार वाले मजिस्ट्रेटों की एक श्रृंखला  ।
हालांकि अक्सर एक गणतंत्र एक एकल संप्रभु राज्य होता है , लेकिन उप-संप्रभु राज्य संस्थाएं भी होती हैं जिन्हें गणराज्य कहा जाता है, या जिनके पास ऐसी सरकारें होती हैं जिन्हें प्रकृति में गणतंत्र के रूप में वर्णित किया जाता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान का अनुच्छेद IV "इस संघ के प्रत्येक राज्य को सरकार के एक रिपब्लिकन स्वरूप की गारंटी देता है"। एक अन्य उदाहरण सोवियत संघ था जिसने खुद को 15 व्यक्तिगत संघीय, बहुराष्ट्रीय, शीर्ष-स्तरीय उपखंडों या गणराज्यों के संदर्भ में " सोवियत समाजवादी गणराज्य " का एक संघ बताया । रूसी संघ एक ऐसा राज्य है जो आंशिक रूप से कई गणराज्यों से बना है ।

गणतंत्र का प्राचीन स्त्रोत

वैशाली बिहार प्रान्त के वैशाली जिला में स्थित एक गाँव है। ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह गाँव मुजफ्फरपुर से अलग होकर 12 अक्टुबर 1992 को वैशाली के जिला बनने पर इसका मुख्यालय हाजीपुर बनाया गया। वज्जिका यहाँ की मुख्य भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था।
ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक ईसा से लगभग छठी सदी पहले वैशाली में ही दुनिया का पहला गणतंत्र यानी ‘गणराज्य’ कायम हुआ था। आज जो लोकतांत्रिक देशों में अपर हाउस और लोअर हाउस की प्रणाली है, जहां सांसद जनता के लिए पॉलिसी बनाते हैं। ये प्रणाली भी वैशाली गणराज्य में था। वहां उस समय छोटी-छोटी समितियां थी, जो गणराज्य के अंतर्गत आने वाली जनता के लिए नियमों और नीतियों को बनाते थे। 

अमेरिका में होने वाले चुनावों के वक़्त हमें प्रेसिडेंशियल डिबेट्स की खबर देखने को मिलती है। ऐसी ही बहसें आज से लगभग 2500 साल पहले वैशाली गणराज्य में अपने नए गणनायक को चुनने के लिए होती थीं। कई इतिहासकारों का ये भी मानना है कि अमेरिका में जब लोकतंत्र का ताना-बाना बुना जा रहा था, तब वहां के पॉलिसी-मेकर्स के दिमाग में वैशाली के गणतंत्र का मॉड्यूल चल रहा था।

वैशाली में गणतंत्र की स्थापना लिच्छवियों ने की थी। लिच्छवियों का संबंध एक हिमालयन ट्राइब लिच्छ से था। वैशाली गणराज्य को लिच्छवियों ने खड़ा किया था और ये इसलिए किया गया था, ताकि बाहरी आक्रमणकारियों से बचा जा सके और अगर कोई बाहर से आक्रमण करे तो गणराज्य को जनता का पूरा समर्थन हासिल हो।

गणराज्य बनने के बाद ठीक ऐसा ही हुआ था। कलांतर में वैशाली एक शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा। इस प्रकार एक नई प्रणाली ईजाद हुई, जिसे हम गणतंत्र कहते हैं। इसे दुनिया के ज्यादातर देशों ने अपनाया है और मॉडर्न ग्लोबल वर्ल्ड का बेस्ट सिस्टम माना गया। आज इंडिया हो या यूरोप का कोई देश या फिर अमेरिका, सब इसी सिस्टम को मानते हैं, जिसकी शुरुआत आज से 2600 साल पहले भारत के वैशाली में हुई थी। हालांकि आज के गणराज्य में और वैशाली के गणराज्य में बहुत से फर्क हैं, पर मेन आइडिया वहीं से लिया गया था। वैशाली गणराज्य को नियंत्रित करने के लिए कुछ समितियां बनाई गई थीं, जो हर तरह के कामों पर बारीकी से नजर रखती थीं। ये समितियां समय के हिसाब से गणराज्य की नितियों में तब्दीली लाती थीं, जो काम आज के समय में किसी लोकतांत्रिक देशों में जनता के द्वारा चुने गए सांसद करते हैं।

प्राचीन काल में दो प्रकार के राज्य कहे गए हैं। एक राजाधीन और दूसरे गणधीन। राजाधीन को एकाधीन भी कहते थे। जहाँ गण या अनेक व्यक्तियों का शासन होता था, वे ही गणाधीन राज्य कहलाते थे। इस विशेष अर्थ में पाणिनि की व्याख्या स्पष्ट और सुनिश्चित है। उन्होंने गण को संघ का पर्याय कहा है (संघोद्धौ गणप्रशंसयो :, अष्टाध्यायी 3,3,86)। साहित्य से ज्ञात होता है कि पाणिनि और बुद्ध के काल में अनेक गणराज्य थे। तिरहुत से लेकर कपिलवस्तु तक गणराज्यों का एक छोटा सा गुच्छा गंगा से तराई तक फैला हुआ था। बुद्ध शाक्यगण में उत्पन्न हुए थे। लिच्छवियों का गणराज्य इनमें सबसे शक्तिशाली था, उसकी राजधानी वैशाली थी। किंतु भारतवर्ष में गणराज्यों का सबसे अधिक विस्तार वाहीक (आधुनिक पंजाब) प्रदेश में हुआ था। उत्तर पश्चिम के इन गणराज्यों को पाणिनि ने आयुधजीवी संघ कहा है। वे ही अर्थशास्त्र के वार्ताशस्त्रोपजीवी संघ ज्ञात होते हैं। ये लोग शांतिकल में वार्ता या कृषि आदि पर निर्भर रहते थे किंतु युद्धकाल में अपने संविधान के अनुसार योद्धा बनकर संग्राम करते थे। इनका राजनीतिक संघटन बहुत दृढ़ था और ये अपेक्षाकृत विकसित थे। इनमें क्षुद्रक और मालव दो गणराज्यों का विशेष उल्लेख आता है। उन्होंने यवन आक्रांता सिकंदर से घोर युद्ध किया था। वह मालवों के बाण से तो घायल भी हो गया था। इन दोनों की संयुक्त सेना के लिये पाणिनि ने गणपाठ में क्षौद्रकमालवी संज्ञा का उल्लेख किया है। पंजाब के उत्तरपश्चिम और उत्तरपूर्व में भी अनेक छोटे मोटे गणराज्य थे, उनका एक श्रुंखला त्रिगर्त (वर्तमान काँगड़ा) के पहाड़ी प्रदेश में विस्तारित हुआ था जिन्हें पर्वतीय संघ कहते थे। दूसरा श्रुंखला सिंधु नदी के दोनों तटों पर गिरिगहवरों में बसने वाले महाबलशाली जातियों का था जिन्हें प्राचीनकाल में ग्रामणीय संघ कहते थे। वे ही वर्तमान के कबायली हैं। इनके संविधान का उतना अधिक विकास नहीं हुआ जितना अन्य गणराज्यों का। वे प्राय: उत्सेधजीवी या लूटमार कर जीविका चलानेवाले थे।

इनमें भी जो कुछ विकसित थे उन्हें पूग और जो पिछड़े हुए थे उन्हें ब्रात कहा जाता था। संघ या गणों का एक तीसरा गुच्छा सौराष्ट्र में विस्तारित हुआ था। उनमें अंधकवृष्णियों का संघ या गणराज्य बहुत प्रसिद्ध था। कृष्ण इसी संघ के सदस्य थे अतएव शांतिपूर्व में उन्हें अर्धभोक्ता राजन्य कहा गया है। ज्ञात होता है कि सिंधु नदी के दोनों तटों पर गणराज्यों की यह श्रृंखला ऊपर से नीचे को उतरती सौराष्ट्र तक फैल गई थी क्योंकि सिंध नामक प्रदेश में भी इस प्रकर के कई गणों का वर्णन मिलता है। इनमें मुचकर्ण, ब्राह्मणक और शूद्रक मुख्य थे।

भारतीय गणशासन के संबंध में भी पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। गण के निर्माण की इकाई कुल थी। प्रत्येक कुल का एक एक व्यक्ति गणसभा का सदस्य होता था। उसे कुलवृद्ध या पाणिनि के अनुसार गोत्र कहते थे। उसी की संज्ञा वंश्य भी थी। प्राय: ये राजन्य या क्षत्रिय जाति के ही व्यक्ति होते थे। ऐसे कुलों की संख्या प्रत्येक गण में परंपरा से नियत थी, जैसे लिच्छविगण के संगठन में 7707 कुटुंब या कुल सम्मिलित थे। उनके प्रत्येक कुलवृद्ध की संघीय उपाधि राजा होती थी। सभापर्व में गणाधीन और राजाधीन शासन का विवेचन करते हुए स्पष्ट कहा है कि साम्राज्य शासन में सत्ता एक व्यक्ति के हाथ में रहती है। (साम्राज्यशब्दों हि कृत्स्नभाक्) किंतु गण शासन में प्रत्येक परिवार में एक एक राजा होता है। (गृहे गृहेहि राजान: स्वस्य स्वस्य प्रियंकरा:, सभापर्व, 14,2)। इसके अतिरिक्त दो बातें और कही गई हैं। एक यह कि गणशासन में प्रजा का कल्याण दूर दूर तक व्याप्त होता है। दूसरे यह कि युद्ध से गण की स्थिति सकुशल नहीं रहती। गणों के लिए शम या शांति की नीति ही थी। यह भी कहा है कि गण में परानुभाव या दूसरे की व्यक्तित्व गरिमा की भी प्रशंसा होती है और गण में सबको साथ लेकर चलनेवाला ही प्रशंसनीय होता है। गण शासन के लिए ही परामेष्ठ्य यह पारिभाषिक संज्ञा भी प्रयुक्त होती थी। संभवत: यह आवश्यक माना जाता था कि गण के भीतर दलों का संगठन हो। दल के सदस्यों को वग्र्य, पक्ष्य, गृह्य भी कहते थे। दल का नेता परमवग्र्य कहा जाता था।

गणसभा में गण के समस्त प्रतिनिधियों को सम्मिलित होने का अधिकार था किंतु सदस्यों की संख्या कई सहस्र तक होती थी अतएव विशेष अवसरों को छोड़कर प्राय: उपस्थिति परिमित ही रहती थी। शासन के लिये अंतरंग अधिकारी नियुक्त किए जाते थे। किंतु नियमनिर्माण का पूरा दायित्व गणसभा पर ही था। गणसभा में नियमानुसार प्रस्ताव (ज्ञप्ति) रखा जाता था। उसकी तीन वाचना होती थी और शलाकाओं द्वारा मतदान किया जाता था। इस सभा में राजनीतिक प्रश्नों के अतिरिक्त और भी अनेक प्रकार के सामाजिक, व्यावहारिक और धार्मिक प्रश्न भी विचारार्थ आते रहते थे। उस समय की राज्य सभाओं की प्राय: ऐसे ही लचीली पद्धति थी।

 

पश्चिम में गणराज्यों की परंपरा

प्राचीन भारत की भाँति ग्रीस की भी गणपरंपरा अत्यंत प्राचीन थीं। दोरियाई कबीलों ने ईजियन सागर के तट पर 12 वीं सदी ई. पू. में ही अपनी स्थिति बना ली। धीरे धीरे सारे ग्रीस में गणराज्यवादीं नगर खड़े हो गए। एथेंस, स्पार्ता, कोरिंथ आदि अनेक नगरराज्य दोरिया ग्रीक आवासों की कतार में खड़े हो गए। उन्होंने अपनी परंपराओं, संविधानों और आदर्शों का निर्माण किया, जनसत्तात्मक शासन के अनेक स्वरूप सामने आए। प्राप्तियों के उपलक्ष्यस्वरूप कीर्तिस्तंभ खड़े किए गए और ऐश्वर्यपूर्ण सभ्यताओं का निर्माण शुरू हो गया। परंतु उनकी गणव्यवस्थाओं में ही उनकी अवनति के बीज भी छिपे रहे। उनके ऐश्वर्य ने उनकी सभ्यता को भोगवादी बना दिया, स्पार्ता और एथेंस की लाग डाट और पारस्परिक संघर्ष प्रारंभ हो गए और वे आदर्श राज्य--रिपब्लिक--स्वयं साम्राज्यवादी होने लगे। उनमें तथाकथित स्वतंत्रता ही बच रही, राजनीतिक अधिकार अत्यंत सीमित लोगों के हाथों रहा, बहुल जनता को राजनीतिक अधिकार तो दूर, नागरिक अधिकार भी प्राप्त नहीं थे तथा सेवकों और गुलामों की व्यवस्था उन स्वतंत्र नगरराज्यों पर व्यंग्य सिद्ध होने लगी। स्वार्थ और आपसी फूट बढ़ने लगी। वे आपस में तो लड़े ही, ईरान और मकदूनियाँ के साम्राज्य भी उन पर टूट पड़े। सिकंदर के भारतीय गणराज्यों की कमर तोड़ने के पूर्व उसे पिता फिलिप ने ग्रीक गणराज्यों को समाप्त कर दिया था। साम्राज्यलिप्सा ने दोनों ही देशों के नगरराज्यों को नकार दिया। परंतु पश्चिम में गणराज्यों की परंपरा समाप्त नहीं हुई। इटली का रोम नगर उनका केंद्र और आगे चलकर अत्यंत प्रसिद्ध होने वाली रोमन जाति का मूलस्थान बना। हानिबाल ने उसपर धावे किए और लगा कि रोम का गणराज्य चूर चूर हो जायगा पर उस असाधारण विजेता को भी जामा की लड़ाई हारकर अपनी रक्षा के लिये हटना पड़ा। रोम की विजयनी सेना ग्रीस से लेकर इंग्लैंड तक धावे मारने लगी। पर जैसा ग्रीस में हुआ, वैसा ही रोम में भी। सैनिक युद्धों में ग्रीस को जीतनेवाले रोमन लोग सभ्यता और संस्कृति की लड़ाई में हार गए और रोम में ग्रीस का भोगविलास पनपा। अभिजात कुलों के लाड़ले भ्रष्टाचार में डूबे, जनवादी पाहरू बने और उसे समूचा निगल गए- पांपेई, सीजर, अंतोनी सभी। भारतीय मलमल, मोती और मसालों की बारीकी, चमक और सुगंध में वे डूबने लगे और प्लिनी जैसे इतिहासकार की चीख के बावजूद रोम का सोना भारत के पश्चिमी बंदरगाहों से यहाँ आने लगा। रोम की गणराज्यवादी परंपरा सुख, सौंदर्य और वैभव की खोज में लुप्त हो गई और उनके श्मशान पर साम्राज्य ने महल खड़ा किया। अगस्तस उसका पहला सम्राट् बना और उसके वंशजों ने अपनी साम्राज्यवादी सभ्यता में सारे यूरोप को डुबो देने का उपक्रम किया। पर उसकी भी रीढ़ उन हूणों ने तोड़ दी, जिनकी एक शाखा ने भारत के शक्तिशाली गुप्त साम्राज्य को झकझोरकर धराशायी कर देने में अन्य पतनोन्मुख प्रवृत्तियों का साथ दिया। 

तथापि नए उठते साम्राज्यों और सामंती शासन के बावजूद यूरोप में नगर गणतंत्रों का आभास चार्टरों और गिल्डों (श्रेणियों) आदि के जरिए फिर होने लगा। नगरों और सामंतों में, नगरों और सम्राटों में गजब की कशमकश हुई और सदियों बनी रही; पर अंतत: नगर विजयी हुए। उनके चार्टरों के सामंतों और सम्राटों को स्वीकार करना पड़ा।
 मध्यकाल में इटली में गणराज्य उठ खड़े हुए, जिनमें प्रसिद्ध थे जेनोआ, फ्लोरेंस, पादुआ एवं वेनिस और उनके संरक्षक तथा नेता थे उनके ड्यूक। पर राष्ट्रीय नृपराज्यों के उदय के साथ वे भी समाप्त हो गए। नीदरलैंड्स के सात राज्यों ने स्पैनी साम्राज्य के विरु द्ध विद्रोह कर संयुक्त नीदरलैंड्स के गणराज्य की स्थापना की।

आगे भी गणतंत्रात्मक भावनाओं का उच्छेद नहीं हुआ। इंग्लैंड आनुवंशिक नृपराज्य था, तथापि मध्ययुग में वह कभी कभी अपने को कामनबील अथवा कामनवेल्थ नाम से पुकारता रहा। 18वीं सदी में वहाँ के नागरिकों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिये अपने राजा (चाल्र्स प्रथम) का वध कर डाला और कामनवेल्थ अथवा रिपब्लिक (गणतंत्र) की स्थापना हुई। पुन: राजतंत्र आया पर गणतंत्रात्मक भावनाएँ जारी रहीं, राजा जनता का कृपापात्र, खिलौना बन गया और कभी भी उसकी असीमित शक्ति स्थापित न हो सकी।

मानव अधिकारी (राइट्स ऑव मैन) की लड़ाई जारी रही और अमरीका के अंग्रेजी उपनिवेशों ने इंग्लैंड के विरु द्ध युद्ध ठानकर विजय प्राप्त की और अपनी स्वतंत्रता की घोषणा में उन अधिकारों को समाविष्ट किया। फ्रांस की प्रजा भी आगे बढ़ी; एकता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के नारे लगे, राजतंत्र ढह गया और क्रांति के फलस्वरूप प्रजातंत्र की स्थापना हुई। नेपोलियन उन भावनाओं की बाढ़ पर तैरा, फ्रांस स्वयं तो पुन: कुछ दिनों के लिए निरंकुश राजतंत्र की चपेट में आ गया, किंतु यूरोप के अन्यान्य देशों और उसके बाहर भी स्वातंत्र्य भावनाओं का समुद्र उमड़ पड़ा। 19वीं सदी के मध्य से क्रांतियों का युग पुन: प्रारंभ हुआ और कोई भी देश उनसे अछूता न बचा। राजतंत्रों को समाप्त कर गणतंत्रों की स्थापना की जाने लगी। परंतु 19वीं तथा 20वीं सदियों में यूरोप के वे ही देश, जो अपनी सीमाओं के भीतर जनवादी होने का दम भरते रहे, बाहरी दुनियाँ में----एशिया और अफ्रीका में----साम्राज्यवाद का नग्न तांडव करने से न चूके। 1917 ई. में माक्र्सवाद से प्रभावित होकर रूस में राज्यक्रांति हुई और जारशाही मिटा दी गई। 1948 ई. में उसी परंपरा में चीन में भी कम्युनिस्ट सरकार का शासन शुरू हुआ। ये दोनों ही देश अपने को गणतंत्र की संज्ञा देते हैं और वहाँ के शासन जनता के नाम पर ही किए जाते हैं। परंतु उनमें जनवाद की डोरी खींचनेवाले हाथ अधिनायकवादी ही हैं। सदियों की गुलामी को तोड़कर भारत भी आज गणराज्य की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिय कटिबद्ध है और अपने लिए एक लोकतंत्रीय सांवैधानिक व्यवस्था का सृजन कर चुका है।


विश्व इतिहास के प्राचीन युग के गणों की तरह आज के गणराज्य अब न तो क्षेत्र में अत्यंत छोटे हैं और न आपस में फूट और द्वेषभावना से ग्रस्त। उनमें न तो प्राचीन ग्रीस का दासवाद है और न प्राचीन और मध्यकालीन भारत और यूरोप के गणराज्यों का सीमित मतदान। उनमें अब समस्त जनता का प्राधान्य हो गया है और उसके भाग्य की वही विधायिका है। सैनिक अधिनायकवादी भी विवश होकर जनवाद का दम भरते और कभी कभी उसके लिये कार्य भी करते हैं। गणराज्य की भावना अमर है और उसका जनवाद भी सर्वदा अमर रहेगा।


शास्त्रीय गणराज्य


आधुनिक प्रकार का "गणराज्य" अपने आप में शास्त्रीय दुनिया में पाए जाने वाले किसी भी प्रकार के राज्य से अलग है।  फिर भी, शास्त्रीय युग के कई राज्य हैं जिन्हें आज भी गणतंत्र कहा जाता है। इसमें प्राचीन एथेंस और रोमन गणराज्य शामिल हैं । जबकि इन राज्यों की संरचना और शासन किसी भी आधुनिक गणराज्य से अलग था, इस बारे में बहस चल रही है कि किस हद तक शास्त्रीय, मध्ययुगीन और आधुनिक गणराज्य एक ऐतिहासिक सातत्य बनाते हैं। जेजीए पोकॉक ने तर्क दिया है कि एक विशिष्ट गणतांत्रिक परंपरा शास्त्रीय दुनिया से वर्तमान तक फैली हुई है। अन्य विद्वान असहमत हैं। उदाहरण के लिए, पॉल राहे का तर्क है कि शास्त्रीय गणराज्यों में सरकार का एक रूप था, जो किसी भी आधुनिक देश में उन लोगों के साथ कुछ ही संबंध रखता था। 

शास्त्रीय गणराज्यों के राजनीतिक दर्शन ने बाद की शताब्दियों में गणतांत्रिक विचारों को प्रभावित किया है। मैकियावेली , मोंटेस्क्यू , एडम्स और मैडिसन जैसे गणराज्यों की वकालत करने वाले दार्शनिक और राजनेता शास्त्रीय ग्रीक और रोमन स्रोतों पर बहुत अधिक निर्भर थे, जिन्होंने विभिन्न प्रकार के शासनों का वर्णन किया था।

अरस्तू की राजनीति सरकार के विभिन्न रूपों की चर्चा करती है। एक रूप अरस्तू ने पोटेटिया नाम दिया , जिसमें अन्य रूपों का मिश्रण शामिल था। उन्होंने तर्क दिया कि यह सरकार के आदर्श रूपों में से एक था। पॉलीबियस ने इनमें से कई विचारों पर विस्तार किया, फिर से मिश्रित सरकार के विचार पर ध्यान केंद्रित किया । इस परंपरा में सबसे महत्वपूर्ण रोमन काम सिसरो का डे रे पब्लिका है ।

समय के साथ, शास्त्रीय गणराज्य साम्राज्य बन गए या साम्राज्यों द्वारा विजय प्राप्त कर ली गई। अधिकांश यूनानी गणराज्यों को सिकंदर के मैसेडोनिया साम्राज्य में मिला लिया गया था । रोमन गणराज्य ने भूमध्यसागरीय अन्य राज्यों पर नाटकीय रूप से विजय प्राप्त की, जिन्हें कार्थेज जैसे गणराज्यों के रूप में माना जा सकता है । रोमन गणराज्य स्वयं ही रोमन साम्राज्य बन गया।

व्यापारिक गणराज्य

यूरोप में मध्य युग के अंत में नए गणराज्य दिखाई दिए, जब कई छोटे राज्यों ने सरकार की गणतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया। ये आम तौर पर छोटे, लेकिन धनी, व्यापारिक राज्य थे, जैसे कि इतालवी शहर-राज्य और हैन्सियाटिक लीग , जिसमें व्यापारी वर्ग प्रमुखता से बढ़ गया था। नुड हाकोन्सेन ने उल्लेख किया है कि, पुनर्जागरण द्वारा , यूरोप को उन राज्यों के साथ विभाजित किया गया था जो एक जमींदार अभिजात वर्ग द्वारा नियंत्रित थे और जो एक वाणिज्यिक अभिजात वर्ग द्वारा नियंत्रित गणराज्य थे। 
शास्त्रीय लेखक इटली के गणराज्यों के लिए प्राथमिक वैचारिक स्रोत थे, उत्तरी यूरोप में, प्रोटेस्टेंट सुधार को नए गणराज्यों की स्थापना के औचित्य के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। [४२] सबसे महत्वपूर्ण कैल्विनवादी धर्मशास्त्र था , जो स्विस संघ में विकसित हुआ, जो मध्यकालीन गणराज्यों में सबसे बड़े और सबसे शक्तिशाली में से एक था। जॉन केल्विन ने राजशाही के उन्मूलन का आह्वान नहीं किया, लेकिन उन्होंने इस सिद्धांत को आगे बढ़ाया कि अधार्मिक राजाओं को उखाड़ फेंकने का कर्तव्य विश्वासियों का है। फ्रांसीसी धर्म युद्ध के दौरान हुगुएनोट्स के लेखन में गणराज्यों की वकालत दिखाई दी । 

केल्विनवाद ने इंग्लैंड और नीदरलैंड में गणतांत्रिक विद्रोहों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इटली के शहर-राज्यों और हैन्सियाटिक लीग की तरह, दोनों महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र थे, जिसमें एक बड़ा व्यापारी वर्ग नई दुनिया के साथ व्यापार से समृद्ध था। दोनों क्षेत्रों की आबादी के बड़े हिस्से ने भी केल्विनवाद को अपनाया।

1641 में अंग्रेजी गृहयुद्ध शुरू हुआ। प्यूरिटन के नेतृत्व में और लंदन के व्यापारियों द्वारा वित्त पोषित, विद्रोह एक सफलता थी, और राजा चार्ल्स प्रथम को मार डाला गया था। इंग्लैंड में जेम्स हैरिंगटन , अल्गर्नन सिडनी और जॉन मिल्टन राजशाही को खारिज करने और सरकार के गणतंत्रात्मक रूप को अपनाने के लिए बहस करने वाले पहले लेखकों में से कुछ बन गए। अंग्रेजी राष्ट्रमंडल अल्पकालिक था, और राजशाही जल्द ही बहाल कर दी गई। डच गणराज्य का नाम 1795 तक बना रहा, लेकिन 18वीं शताब्दी के मध्य तक स्टैडथोल्डर एक वास्तविक सम्राट बन गया था । केल्विनवादी भी उत्तरी अमेरिका के ब्रिटिश और डच उपनिवेशों के शुरुआती बसने वालों में से कुछ थे।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के वर्षों में, शेष यूरोपीय उपनिवेशों में से अधिकांश ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की, और अधिकांश गणराज्य बन गए। दो सबसे बड़ी औपनिवेशिक शक्तियाँ फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम थीं। रिपब्लिकन फ्रांस ने अपने पूर्व उपनिवेशों में गणराज्यों की स्थापना को प्रोत्साहित किया। यूनाइटेड किंगडम ने उस मॉडल का पालन करने का प्रयास किया जो उसके पहले बसने वाले उपनिवेशों के लिए स्वतंत्र राष्ट्रमंडल क्षेत्र बनाने के लिए था जो अभी भी उसी राजशाही के तहत जुड़ा हुआ है। जबकि अधिकांश बसने वाले उपनिवेशों और कैरिबियन के छोटे राज्यों ने इस प्रणाली को बरकरार रखा, इसे अफ्रीका और एशिया के नए स्वतंत्र देशों ने खारिज कर दिया, जिन्होंने अपने गठन को संशोधित किया और गणराज्य बन गए।

मध्य पूर्व में ब्रिटेन ने एक अलग मॉडल का अनुसरण किया; इसने इराक , जॉर्डन , कुवैत , बहरीन , ओमान , यमन और लीबिया सहित कई उपनिवेशों और जनादेशों में स्थानीय राजतंत्र स्थापित किए । बाद के दशकों में क्रांतियों और तख्तापलट ने कई राजाओं और स्थापित गणराज्यों को उखाड़ फेंका। कई राजतंत्र बने हुए हैं, और मध्य पूर्व दुनिया का एकमात्र हिस्सा है जहां कई बड़े राज्यों पर लगभग पूर्ण राजनीतिक नियंत्रण वाले राजाओं का शासन है। 

वहीं प्रथम विश्व युद्ध के बाद, रूसी क्रांति के दौरान रूसी राजशाही गिर गई । रूस अस्थायी सरकार एक उदार गणराज्य की तर्ज पर उसके स्थान पर स्थापित किया गया था, लेकिन इस से परास्त कर दिया गया बोल्शेविक जो स्थापित करने के लिए पर चला गया सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ । यह मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा के तहत स्थापित पहला गणतंत्र था । साम्यवाद पूरी तरह से राजशाही का विरोधी था, और २०वीं शताब्दी के दौरान कई गणतांत्रिक आंदोलनों का एक महत्वपूर्ण तत्व बन गया। रूसी क्रांति मंगोलिया में फैल गई , और 1924 में अपनी लोकतांत्रिक राजशाही को उखाड़ फेंका। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कम्युनिस्टों ने धीरे-धीरे रोमानिया , बुल्गारिया , यूगोस्लाविया , हंगरी और अल्बानिया पर नियंत्रण हासिल कर लिया , यह सुनिश्चित करते हुए कि राज्यों को समाजवादी गणराज्यों के रूप में फिर से स्थापित किया गया था। राजतंत्र।

साम्यवाद अन्य विचारधाराओं के साथ भी घुलमिल गया। इसे उपनिवेशवाद के विघटन के दौरान कई राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों ने अपनाया था । वियतनाम में, कम्युनिस्ट रिपब्लिकन ने गुयेन राजवंश को एक तरफ धकेल दिया , और पड़ोसी लाओस और कंबोडिया में राजतंत्रों को 1970 के दशक में कम्युनिस्ट आंदोलनों द्वारा उखाड़ फेंका गया। अरब समाजवाद ने विद्रोहों और तख्तापलट की एक श्रृंखला में योगदान दिया जिसने मिस्र , इराक, लीबिया और यमन के राजतंत्रों को बेदखल कर दिया। अफ्रीका में मार्क्सवादी-लेनिनवाद और अफ्रीकी समाजवाद ने बुरुंडी और इथियोपिया जैसे राज्यों में राजशाही और गणराज्यों की घोषणा का अंत किया ।


इस्लामी राजनीतिक दर्शन का पूर्ण राजशाही के विरोध का एक लंबा इतिहास रहा है, विशेष रूप से अल-फ़राबी के काम में । शासक की इच्छा पर शरिया कानून को प्राथमिकता दी गई, और शूरा के माध्यम से शासकों का चुनाव करना एक महत्वपूर्ण सिद्धांत था। जबकि प्रारंभिक खिलाफत ने एक निर्वाचित शासक के सिद्धांतों को बनाए रखा, बाद के राज्य वंशानुगत या सैन्य तानाशाही बन गए, हालांकि कई ने सलाहकार शूरा का कुछ ढोंग बनाए रखा।

इनमें से किसी भी राज्य को आमतौर पर गणतंत्र नहीं कहा जाता है। मुस्लिम देशों में गणतंत्र का वर्तमान उपयोग पश्चिमी अर्थ से उधार लिया गया है, जिसे 19 वीं शताब्दी के अंत में भाषा में अपनाया गया था।  २०वीं शताब्दी में मध्य पूर्व के अधिकांश हिस्सों में गणतंत्रवाद एक महत्वपूर्ण विचार बन गया, क्योंकि इस क्षेत्र के कई राज्यों में राजतंत्रों को हटा दिया गया था। इराक एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बन गया। कुछ राष्ट्र, जैसे कि इंडोनेशिया और अजरबैजान , धर्मनिरपेक्ष के रूप में शुरू हुए। में ईरान , 1979 क्रांति राजशाही को उखाड़ फेंका और एक बनाया इस्लामी गणराज्य के विचारों पर आधारित इस्लामी लोकतंत्र ।


उप-राष्ट्रीय गणराज्य


सामान्य तौर पर एक गणतंत्र होने का अर्थ संप्रभुता भी होता है क्योंकि राज्य पर लोगों का शासन होता है जिसे किसी विदेशी शक्ति द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इसके महत्वपूर्ण अपवाद हैं, उदाहरण के लिए, सोवियत संघ में गणराज्य सदस्य राज्य थे जिन्हें गणराज्य नामित करने के लिए तीन मानदंडों को पूरा करना था:--

  1. सोवियत संघ की परिधि पर हो ताकि अलग होने के उनके सैद्धांतिक अधिकार का लाभ उठा सकें;
  2. अलगाव पर आत्मनिर्भर होने के लिए आर्थिक रूप से मजबूत होना; तथा
  3. जातीय समूह के कम से कम दस लाख लोगों के नाम पर रखा जाना चाहिए, जो उक्त गणराज्य की बहुसंख्यक आबादी को बनाना चाहिए।

कभी-कभी यह तर्क दिया जाता है कि पूर्व सोवियत संघ भी एक सुपर-राष्ट्रीय गणराज्य था, इस दावे के आधार पर कि सदस्य राज्य अलग-अलग राष्ट्र राज्य थे ।

यूगोस्लाविया के सोशलिस्ट संघीय गणराज्य एक संघीय छह गणराज्यों (बोस्निया समाजवादी गणराज्य और हर्जेगोविना, क्रोएशिया, मैसेडोनिया, मोंटेनेग्रो, सर्बिया और स्लोवेनिया) से बना इकाई थी। प्रत्येक गणतंत्र की अपनी संसद, सरकार, नागरिकता संस्थान, संविधान आदि थे, लेकिन कुछ कार्य महासंघ (सेना, मौद्रिक मामले) को सौंपे गए थे। AVNOJ के दूसरे सत्र के निष्कर्ष और संघीय संविधान के अनुसार प्रत्येक गणराज्य को आत्मनिर्णय का अधिकार भी था ।

संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्यों को संघीय सरकार की तरह, गणतंत्र के रूप में होना आवश्यक है, जिसमें अंतिम अधिकार लोगों के पास है। यह आवश्यक था क्योंकि राज्यों का उद्देश्य अधिकांश घरेलू कानूनों को बनाना और लागू करना था, संघीय सरकार को सौंपे गए क्षेत्रों के अपवाद के साथ और राज्यों को निषिद्ध। देश के संस्थापकों का इरादा अधिकांश घरेलू कानूनों को राज्यों द्वारा नियंत्रित किया जाना था। राज्यों को एक गणतंत्र बनाने की आवश्यकता को नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने और एक राज्य को तानाशाही या राजशाही बनने से रोकने के रूप में देखा गया था, और मूल 13 राज्यों (सभी स्वतंत्र गणराज्यों) की ओर से अन्य राज्यों के साथ एकजुट होने की अनिच्छा को दर्शाया गया था।
अमेरिकी क्रांति के बाद मूल 13 ब्रिटिश उपनिवेश स्वतंत्र राज्य बन गए , जिनमें से प्रत्येक के पास सरकार का एक गणतंत्रात्मक रूप था।
स्विट्ज़रलैंड में, सभी छावनियों को सरकार का एक गणतांत्रिक स्वरूप माना जा सकता है। कई रोमांस-भाषी कैंटों को आधिकारिक तौर पर गणराज्यों के रूप में संदर्भित किया जाता है, जो स्विस परिसंघ के भीतर उनके इतिहास और स्वतंत्रता की इच्छा को दर्शाता है। उल्लेखनीय उदाहरण गणतंत्र और जिनेवा के कैंटन और गणराज्य और टिसिनो के कैंटन हैं ।

स्त्रोत - विभिन्न पुस्तक एवं पत्रिका

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