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नागरिकता अधिनियम : 1955 - 2019

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-01-17 22:44:40

नागरिकता अधिनियम : 1955 - 2019

 

 नागरिकता अधिनियम, 1955

  

• नागरिकता किसी व्यक्ति और राज्य के बीच संबंध को दर्शाती है।

• किसी भी राज्य की सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था के तहत केवल उन्ही लोगों को मौलिक अधिकार प्राप्त होते हैं जो उस राज्य के नागरिक होते हैं।

 

विश्व में नागरिकता प्रदान करने के प्रमुखतः दो सिद्धांत होते हैं -

 1. जन्म स्थान के आधार पर नागरिकता

 2. रक्त संबंधों के आधार पर नागरिकता। 

 

• भारतीय नेतृत्व सदैव ही जन्म स्थान के आधार पर नागरिकता देने के पक्ष में रहा है, वहीं रक्त संबंधों के आधार पर नागरिकता देने के विचार को भारतीय संविधान सभा ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह भारतीय लोकनीति (Indian Ethos) के विरुद्ध है।

• नागरिकता संविधान के तहत संघ सूची का विषय है और संसद के विशिष्ट क्षेत्राधिकार के तहत आता है।

• भारतीय संविधान ‘नागरिकता’ शब्द को परिभाषित नहीं करता, परंतु संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 तक भारतीय नागरिकता प्राप्त करने योग्य लोगों की विभिन्न श्रेणियों का विवरण दिया गया है।

• उल्लेखनीय है कि संविधान के अन्य प्रावधानों (जो कि 26 जनवरी, 1950 को लागू हुए) के विपरीत उपरोक्त अनुच्छेदों (5 से 11) को संविधान निर्माण के साथ यानी 26 नवंबर, 1949 को ही लागू कर दिया गया था।

• संविधान लागू होने के पश्चात् दिसंबर 1955 में नागरिकता अधिनियम, 1955 पारित किया गया जो सरकार को उन व्यक्तियों की नागरिकता निर्धारित करने का अधिकार देता है जिनके विषय में कोई संदेह है।

• यह अधिनियम भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान करता है यानी भारत का नागरिक किसी और देश का नागरिक नहीं हो सकता।

भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार कुछ प्रावधानों के अंतर्गत भारत की नागरिकता ली जा सकती है:-

 

1. पहला प्रावधान -  जन्म से नागरिकता का है:-

भारत का संविधान लागू होने यानी कि 26 जनवरी, 1950 के बाद भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति 'जन्म से भारत का नागरिक' है। इसके एक और प्रावधान के अंतर्गत 1 जुलाई 1987 के बाद भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक है, यदि उसके जन्म के समय उसके माता या पिता (दोनों में से कोई एक) भारत के नागरिक थे।

राज्यसभा विशेष

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2. दूसरा प्रावधान - वंशानुक्रम या रक्त संबंध के आधार पर नागरिकता देने का है:-

इस प्रावधान के अंतर्गत एक शर्त ये है कि व्यक्ति का जन्म अगर भारत के बाहर हुआ हो तो उसके जन्म के समय उसके माता या पिता में से कोई एक भारत का नागरिक होना चाहिए।

दूसरी शर्त ये है कि विदेश में जन्मे उस बच्चे का पंजीकरण भारतीय दूतावास में एक वर्ष के भीतर कराना अनिवार्य है अगर वो ऐसा नहीं करते तो उस परिवार को अलग से भारत सरकार की अनुमति लेनी होगी।

हालांकि इस प्रावधान में माँ की नागरिकता के आधार पर विदेश में जन्म लेने वाले व्यक्ति को नागरिकता देने का प्रावधान नागरिकता संशोधन अधिनियम 1992 के ज़रिए किया गया था।

 

3. तीसरा प्रावधान - पंजीकरण के ज़रिए नागरिकता देने का है:-

अवैध प्रवासी को छोड़कर अगर कोई अन्य व्यक्ति भारत सरकार को आवेदन कर नागरिकता माँगता है, तो ये कुछ विधियाँ हैं जिनके आधार पर उसे नागरिकता दी जा सकती है।

जोकि निम्न है :-

1. भारतीय मूल का वो शख़्स जो देश में नागरिकता के लिए आवेदन देने के पहले भारत में कम से कम 7 साल रह रहा हो।

2. भारतीय मूल का वो व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी देश का नागरिक हो। मतलब ये कि व्यक्ति पाकिस्तान और बांग्लादेश से बाहर किसी अन्य देश का नागरिक हो, और उस नागरिकता को छोड़कर भारत की नागरिकता चाहता हो।

3. वो शख़्स जिसकी शादी किसी भारतीय नागरिक से हुई हो और वो नागरिकता के आवेदन करने से पहले कम से कम सात साल तक भारत में रह चुका हो।

4. वो नाबालिग़ बच्चे जिनके माता या पिता भारतीय हों।

5. राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों के नागरिक जो भारत में रहते हों या भारत सरकार की नौकरी कर रहें हों, आवेदन पत्र देकर भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।

 

4. चौथा प्रावधान -  भूमि-विस्तार के ज़रिए नागरिकता देने का है:-

 यदि किसी नए भू-भाग को भारत में शामिल किया जाता है, तो उस क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को स्वतः भारत की नागरिकता मिल जाएगी। मिसाल के तौर पर 1961 में गोवा को, 1962 में पुद्दुचेरी को भारत में शामिल किया गया तो वहाँ की जनता को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो गई थी।

 

5. पाँचवां प्रावधान नेचुरलाइज़ेशन के ज़रिए नागरिकता देने का है:-

 यानी देश में रहने के आधार पर भी कोई व्यक्ति भारत में नागरिकता हासिल कर सकता है। बशर्ते वो नागरिकता अधिनियम की तीसरी अनुसूची की सभी योग्यताओं पर खरा उतरता हो।

 

नागरिकता की बर्ख़ास्तगी :-

नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा-9 में किसी व्यक्ति की नागरिकता ख़त्म करने का भी ज़िक्र किया गया है। 3 तरीक़े हैं जिनके ज़रिए किसी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता समाप्त हो सकती है :

1. यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी और देश की नागरिकता ग्रहण कर ले तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वयं ही समाप्त हो जाएगी।

2. यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से अपनी नागरिकता का त्याग कर दे तो उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाएगी।

3.  भारत सरकार को भी निम्न शर्तों के आधार पर अपने नागरिकों की नागरिकता समाप्त करने का अधिकार है :-

क. नागरिक 7 वर्षों से लगातार भारत से बाहर रह रहा हो।

ख. यदि ये साबित हो जाए कि व्यक्ति ने अवैध तरीक़े से भारतीय नागरिकता प्राप्त की।

ग. यदि कोई व्यक्ति देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो।

घ. यदि व्यक्ति भारतीय संविधान का अनादर करे।

 

हालांकि नागरिकता अधिनियम में अब तक कई  बार ( जैसे कि वर्ष 1986, 2003, 2005, 2015 और 2019) संशोधन किया जा चुका है।

 

 

भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनयम, 1986

 

भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 द्वारा जो व्यवस्था की गई थी, वह बहुत उदार थी और जम्मू-कश्मीर और असम जैसे राज्यों में विदेशियों ने अनाधिकृत रूप से प्रवेश कर इसका अनुचित लाभ भी उठाया। अतः “नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986” के आधार पर “नागरिकता अधिनियम, 1955” में संशोधन कर नागरिकता प्राप्त करने की शर्तों में परिवर्तन किया गया है।

संशोधन इस प्रकार हैं –

1. अब भारत में जन्मे केवल उस व्यक्ति को ही नागरिकता प्रदान की जाएगी, जिसके माता-पिता में से कम-से-कम एक भारत का नागरिक हो।

2. जो व्यक्ति पंजीकरण के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें अब भारत में कम-से-कम पांच वर्ष निवास करना होगा। पहले यह अवधि 6 माह थी।

3. देशीकरण द्वारा नागरिकता तभी प्रदान की जाएगी, जबकि सम्बन्धित व्यक्ति कम-से-कम 10 वर्ष तक भारत में रह चुका हो। पहले यह अवधि 5 वर्ष थी।

“नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986” जम्मू-कश्मीर और असम सहित भारत के सभी राज्यों पर लागू होगा।

 

नागरिकता कानून में संशोधन, 1992

1992 में संसद ने सर्वसम्मति से नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया, जिसके अंतर्गत व्यवस्था की गई है कि भारत से बाहर पैदा होने वाले बच्चे को, यदि उसकी माँ भारत की नागरिक है, तो उसे भारत की नागरिकता प्राप्त होगी। इससे पूर्व उसी दशा में भारत की नागरिकता प्राप्त होती थी, यदि उसका पिता भारत का नागरिक हो। इस प्रकार अब नागरिकता के प्रसंग में बच्चे की “माता को पिता के समक्ष स्थिति” प्रदान कर दी गई है।

 

 

नागरिकता संशोधन अधिनियम 2003

• नागरिकता संसोधन अधिनियम, 2003 के लागू होने के बाद वह बच्चा जिसके जन्म के समय माता- पिता दोनों भारतीय हो अथवा जन्म के समय दोनों में से कोई एक भारतीय नागरिक हो अथवा अवैध प्रवासी ना हो, भारतीय नागरिक माना जाएगा।

• इस संशोधन का मुख्य उद्देश्य विदेशियों को दोहरी नागरिकता प्रदान करना हैं। यह विधेयक लक्ष्मीमल सिंघवी की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया है। इस अधिनियम द्वारा 16 देशों में बसे भारतीय मूल के लोगों को उनकी विदेशी नागरिकता के साथ भारत की ओवरसीज नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।

 

 

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2005

• यह अधिनियम गृह मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश के आधार निर्भर करता है। यह PIO’s के 16 देशों के लिए दोहरी नागरिकता का प्रावधान प्रदान करता है।

• दरअसल केंद्र सरकार ने 28 जून 2005 को नागरिकता संशोधन अध्यादेश 2005 जारी किया गया । जिसके प्रावधान निम्नलिखित है

• भारतीय मूल के  वह लोग जो स्वयं या उनके माता-पिता, दादा दादी 20 जनवरी 1950 के बाद भारत से चले गए थे या 26 जनवरी 1950 को भारतीय नागरिक बनने के योग्य थे या उस जमीन से ताल्लुक रखते थे जो 15 अगस्त 1947 का हिस्सा बनी उनके नाबालिग बच्चे जिनकी राष्ट्रीयता ऐसे देश की है जो दोहरी नागरिकता की अनुमति देते हैं। भारतीय नागरिकता के लिए पंजीकरण के योग्य है

• किसी भी राज्य की जनसंख्या को दो वर्गों में बांटा गया है वह है नागरिक एवं अन्य देशीय नागरिकों को सभी प्रकार के सिविल एवं राजनीतिक अधिकार प्रदान किए जाते हैं जबकि अन्य देशीयों को नहीं ।

 

दोहरी नागरिकता

प्रवासी भारतीय एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों को दोहरी नागरिकता प्रदान करने के लिए दिसंबर 2003 में लक्ष्मी मल सिंधवी समितिकिधर बारिश होगी आधार पर संसद के दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन विधेयक 2003 पारित किया गया । नागरिकता संशोधन विधेयक 2003 द्वारा सिटीजनशिप एक्ट 1955 में मौजूद चार अनुसूचियों  हटाकर 16 देशों स्विजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा,  इजराइल, पुर्तगाल, फ्रांस,  स्वीडन, न्यूजीलैंड, यूनान, साइप्रस, इटली, फिनलैंड, आयरलैंड, नीदरलैंड, ब्रिटेन एवं अमेरिका के प्रवासी भारतीयों के लिए दोहरी नागरिकता का प्रावधान किया  गया

प्रवासियों को दिए गए अधिकार -  प्रवासियों  को उनके अपने देश की नागरिकता की साथ-साथ भारत की नागरिकता भी उपलब्ध होगी , जिसके तहत  उनको  निम्न अधिकार प्राप्त हैं :-

ऐसी दोहरी नागरिकता प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के व्यक्तियों को भारत में आने जाने की स्वतंत्रता होगी ।

इसके तहत इन्हें भारत में रहने, संपत्ति अर्जित करने एवं पूंजी निवेश करने का अधिकार होगा ।

वर्ष 2006 में प्रवासी भारतीयों को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है ।

प्रवासियों पर आरोपित प्रतिबंध - प्रवासी भारतीयों को निम्न अधिकारों से वंचित किया गया है

भारत में कोई संवैधानिक पद इन्हें प्राप्त नहीं होगा  :-

सार्वजनिक नौकरियों के लिए संविधान के अनुच्छेद 16 में प्रदत अवसर की समानता का  अधिकार भी  प्रवासी भारतीयों को नहीं प्रदान किया गया है

उद्देश्य - भारत चीन के बाद  दूसरा ऐसा देश है जिसके करोड़ों लोग विश्व के 110 देशों में बसे हुए हैं भारतीय प्रवासियों ने अमेरिका सहित तमाम देशों में शानदार आर्थिक तरक्की की है उनसे भारत में पूंजी निवेश करवाकर भारत के विदेशी मुद्रा कोष को समृद्ध बनाना एवं आर्थिक विकास को गति प्रदान  करना ही का मूल उद्देश्य है।

 

 

 

 

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम-2015

• राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने 6 जनवरी, 2015 से नागरिकता (संशोधन) अधिनियम-2015 को तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया था, जिसके तहत भारतीय नागरिक अधिनियम-1955 में निम्न संशोधन किए गए हैं।

• वर्तमान में भारतीय नागरिकता के लिए भारत में लगातार एक वर्ष तक रहना अनिवार्य है, लेकिन, अगर केन्द्र सरकार संतुष्ट है तो विशेष परिस्थितियों में इसमें छूट दी जा सकती है। 

• इस प्रकार की विशेष परिस्थितियों के बारे में लिखित रिकॉर्ड दर्ज करने के बाद विशेष 12 माह के लिए छूट दी जा सकती है, जो अधिकतम 30 दिन के लिए अलग-अलग अंतराल के बाद दी जा सकती है।

• भारतीय नागरिकों के ओ.सी.आई नाबालिग बच्चों का प्रवासी भारतीय नागरिक (ओ सी आई) के तौर पर पंजीकरण की शर्तों को उदार बनाया जाएगा।

• ऐसे नागरिकों के बच्चों या पोता-पोतियों अथवा पड़ पोता-पोतियों के लिए प्रवासी भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकरण का अधिकार होगा।

• धारा 7ए के तहत पंजीकृत प्रवासी भारतीय के पति या पत्नी या भारतीय नागरिक के पति या पत्नी के लिए प्रवासी भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकरण का अधिकार होगा और जिनकी शादी दो वर्ष की अवधि के लिए पंजीकृत या कायम रही हो, वे तुरंत ही इस धारा के तहत आवेदन कर सकते हैं।

• वर्तमान पी.आई.ओ कार्डधारकों के संबंध में केन्द्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित कर यह स्पष्ट कर सकती है कि किस दिनांक से सभी मौजूदा पी.आई.ओ कार्डधारकों को ओ.सी.आई कार्डधारकों के रूप में बदलने का निर्णय किया जाए।

• भूमि अधिग्रहण, कार्यमुक्ति, संकट, भारतीय नागरिकता की पहचान और अन्य संबंधित मुद्दों के लिए भारतीय नागरिकता अधिनियम-1955 है। 

• इस अधिनियम के तहत जन्म, पीढ़ी, पंजीकरण, विशेष परिस्थितियों में स्थान का विलय या किसी स्थान में शामिल किये जाने के साथ ही नागरिकता समाप्त होने और संकट के समय में भी भारतीय नागरिकता प्रदान की जाती है।

 

 

• नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 को लोकसभा में ‘नागरिकता अधिनियम’ 1955 में बदलाव के लिए लाया गया था । केंद्र सरकार ने इस विधेयक के जरिए अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाइयों को बिना वैध दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव रखा है। 

• इसके लिए उनके निवास काल को 11 वर्ष से घटाकर छह वर्ष कर दिया गया है। यानी अब ये शरणार्थी 6 साल बाद ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस बिल के तहत सरकार अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के प्रयास में है।

• यह बिल लोकसभा में 15 जुलाई 2016 को पेश हुआ था जबकि 1955 नागरिकता अधिनियम के अनुसार, बिना किसी प्रमाणित पासपोर्ट, वैध दस्तावेज के बिना या फिर वीजा परमिट से ज्यादा दिन तक भारत में रहने वाले लोगों को अवैध प्रवासी माना जाएगा।

 

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019

• नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करने के लिये लाया गया है।

• नागरिकता अधिनियम, 1955 नागरिकता प्राप्त करने के लिये विभिन्न आधार प्रदान करता है। जैसे- जन्म, वंशानुगत, पंजीकरण, देशीयकरण और क्षेत्र इत्यादि।

• इसके अलावा यह भारत के विदेशी नागरिक (Overseas Citizen of India-OCI) कार्डधारकों के पंजीकरण और उनके अधिकारों को नियंत्रित करता है।

• OCI भारत यात्रा के लिये पंजीकृत प्रणाली को बहुउद्देशीय, आजीवन वीज़ा जैसे कुछ लाभ प्रदान करता है।

• हालाँकि अवैध प्रवासियों के लिये भारतीय नागरिकता प्राप्त करना प्रतिबंधित है।

• अवैध अप्रवासी से तात्पर्य एक ऐसे विदेशी व्यक्ति से है जो वैध यात्रा दस्तावेज़ों जैसे कि वीज़ा और पासपोर्ट के बिना देश में प्रवेश करता है या फिर वैध दस्तावेज़ों के साथ देश में प्रवेश करता है, लेकिन अनुमत समयावधि समाप्ति के बाद भी देश में रुका रहता है।

• अवैध प्रवासी पर भारत में मुकदमा चलाया जा सकता है और उसे निर्वासित या कैद किया जा सकता है।

• सितंबर 2015 और जुलाई 2016 में सरकार ने अवैध प्रवासियों के कुछ समूहों को कैद या निर्वासित करने से छूट दी।

संशोधन अधिनियम के प्रमुख प्रावधान :-

विधेयक में किये गये संशोधन के अनुसार, 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों एवं ईसाइयों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।

 

इन प्रवासियों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 में भी छूट प्रदान करनी होगी।

 

 

1946 और 1920 के अधिनियम केंद्र सरकार को भारत में विदेशियों के प्रवेश, निकास और निवास को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान करते हैं।

 

*पंजीकरण या देशीयकरण द्वारा नागरिकता: -* अधिनियम किसी भी व्यक्ति को पंजीकरण या देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्ति के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान करता है लेकिन इसके लिये कुछ योग्यताओं को पूरा करना अनिवार्य है। जैसे- आवेदनकर्त्ता आवेदन करने के एक वर्ष पहले से भारत में रह रहा हो या उसके माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक हो, तो वह पंजीकरण के बाद नागरिकता के लिये आवेदन कर सकता है।

 

स्वाभाविक रूप से नागरिकता प्राप्त करने की योग्यता में से एक यह है कि व्यक्ति आवेदन करने से पहले एक निश्चित समयावधि से भारत में रह रहा हो या केंद्र सरकार में नौकरी कर रहा हो और कम-से-कम 11 वर्ष का समय उसने भारत में बिताया हो।

इस योग्यता के संबंध में विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों एवं ईसाइयों के लिये एक प्रावधान है। व्यक्तियों के इन समूहों के लिये 11 साल की अवधि को घटाकर पाँच साल कर दिया जाएगा।

 

नागरिकता प्राप्त करने पर:-

(i) ऐसे व्यक्तियों को भारत में उनके प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जाएगा और

 (ii) उनके खिलाफ अवैध प्रवास या नागरिकता के संबंध में कानूनी कार्यवाही बंद कर दी जायेगी।

 

संशोधित अधिनियम की व्यावहारिकता :-

• अवैध प्रवासियों के लिये नागरिकता का यह प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा। 

• इन आदिवासी क्षेत्रों में कार्बी आंगलोंग (असम), गारो हिल्स (मेघालय), चकमा जिला (मिज़ोरम) और त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र जिला शामिल हैं।

• इसके अलावा यह बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत ‘इनर लाइन’ में आने वाले क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा। 

• इन क्षेत्रों में इनर लाइन परमिट के माध्यम से भारतीयों की यात्राओं को विनियमित किया जाता है।

• वर्तमान में यह परमिट प्रणाली अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड पर लागू है। 

• मणिपुर को राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से इनर लाइन परमिट (Inner Line Permit- ILP) शासन के तहत लाया गया है और उसी दिन संसद में यह बिल पारित किया गया था।

 

OCI के पंजीकरण को रद्द करना:-

 अधिनियम में यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार कुछ आधारों पर OCI के पंजीकरण को रद्द कर सकती है। इसमें शामिल हैं: 

(i) यदि OCI ने धोखाधड़ी द्वारा पंजीकरण कराया हो 

(ii) यदि पंजीकरण कराने कि तिथि से पाँच वर्ष की अवधि के भीतर OCI कार्डधारक को दो साल या उससे अधिक समय के लिये कारावास की सज़ा सुनाई गई हो 

 (iii) यदि ऐसा करना भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के हित में आवश्यक हो।

विधेयक पंजीकरण को रद्द करने के लिये एक और आधार जोड़ता है, इस नए आधार के अनुसार, OCI ने केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अधिनियम या किसी अन्य कानून के प्रावधानों का उल्लंघन किया है तो कार्डधारक को सुनवाई का अवसर दिये बिना OCI रद्द करने के आदेश नहीं दिया जाएगा।

 

संशोधन अधिनियम को लेकर चिंता

1. *उत्तर-पूर्व के मुद्दे:-*

यह 1985 के असम समझौते का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों को धर्म की परवाह किये बिना देश से बाहर निकाल दिया जाएगा।

आलोचकों का तर्क है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के आने से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC) का प्रभाव खत्म हो जाएगा।

असम में अनुमानित 20 मिलियन अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं और उनके कारण राज्य के संसाधनों एवं अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक दबाव पड़ने के अलावा राज्य की जनसांख्यिकी में भी भारी बदलाव आया है।

आलोचकों का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है (जो नागरिक और विदेशी दोनों को समानता और अधिकार की गारंटी देता है) क्योंकि धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत संविधान की प्रस्तावना में निहित है।

भारत में कई अन्य शरणार्थी हैं जिनमें श्रीलंका, तमिल और म्याँमार से आए हिंदू रोहिंग्या शामिल हैं लेकिन उन्हें अधिनियम के तहत शामिल नहीं किया गया है।

अवैध प्रवासियों और सताए गए लोगों के बीच अंतर करना सरकार के लिये मुश्किल होगा।

विधेयक उन धार्मिक उत्पीड़न की घटनाओं पर प्रकाश डालता है जो इन तीन देशों में हुए हैं जो उन देशों के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर बुरा असर डाल सकता है।

यह विधेयक किसी भी कानून का उल्लंघन करने पर OCI पंजीकरण को रद्द करने की अनुमति देता है। यह एक ऐसा व्यापक आधार है जिसमें मामूली अपराधों सहित कई प्रकार के उल्लंघन शामिल हो सकते हैं (जैसे नो पार्किंग क्षेत्र में पार्किंग)।

 

सरकार का रुख:-

• सरकार ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश इस्लामिक गणराज्य हैं जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक हैं इसलिये उन्हें उत्पीड़ित अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता है।

• सरकार के अनुसार, इस विधेयक का उद्देश्य किसी की नागरिकता लेने के बजाय उन्हें सहायता देना है।

• यह विधेयक उन सभी लोगों के लिये एक वरदान के रूप में है, जो विभाजन के शिकार हुए हैं और अब ये तीन देश लोकतांत्रिक इस्लामी गणराज्यों में परिवर्तित हो गए हैं।

• सरकार ने इस विधेयक को लाने के कारणों के रूप में पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों एवं सम्मान की रक्षा करने में धार्मिक विभाजन तथा बाद में नेहरू-लियाकत संधि की 1950 की विफलता पर भारत के विभाजन का हवाला दिया है।

• आज़ादी के बाद दो बार भारत ने माना है कि उसके पड़ोस में रह रहे अल्पसंख्यक उसकी ज़िम्मेदारी हैं।

• सबसे पहले विभाजन के तुरंत बाद और बाद में 1972 में इंदिरा-मुजीब संधि के दौरान भारत ने 1.2 मिलियन से अधिक शरणार्थियों को आश्रय दिया था। 

• यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि दोनों अवसरों पर केवल हिंदू, सिख, बौद्ध और ईसाई ही भारत की शरण आए थे।

• श्रीलंका, म्याँमार के अल्पसंख्यकों को इसमें शामिल न करने के सवाल पर सरकार ने स्पष्ट किया कि शरणार्थियों को नागरिकता देने की प्रक्रिया विभिन्न सरकारों द्वारा समय-समय पर अनुच्छेद 14 के तहत उचित योग्यता के आधार पर की गई है।

• जनवरी 2019 में सरकार ने असम समझौते की धारा-6 के कार्यान्वयन के लिये उच्च-स्तरीय समिति की बैठक बुलाई और समिति से आग्रह किया कि वह केंद्र सरकार को जल्द-से-जल्द अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये प्रभावी कदम उठाने हेतु प्रावधान करें।

• इस प्रकार सरकार ने असम के लोगों को आश्वासन दिया है कि उनकी भाषायी, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान संरक्षित रहेगी।

 

कानूनी आधार पर व्यक्तियों के विभिन्न वर्ग :-

1.  नागरिक:- भारत के पूर्ण सदस्य, राज्य तथा संविधान के प्रति पूर्ण निष्ठा रखने वाले, मूलभूत अधिकार एवं कर्तव्य के प्राप्तकर्ता होते हैं।

 

2. अन्यदेशीय व्यक्ति:-  इन्हें अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार प्राप्त है लेकिन अनुच्छेद 19 के तहत वाक् स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त नहीं होता है, यह शत्रु या मित्र अन्यदेशीय   हो सकते हैं।

 

3. राज्यविहीन व्यक्ति  :- इस श्रेणी में अवैध प्रवासियों को शामिल किया जाता है, जिन्हें नागरिकता संबंधी दस्तावेज ना होने के कारण अवैध घोषित कर दिया जाता है।

 

4. शरणार्थी :- अपने मूल देश से वर्ग, नस्ल, भाषा, राष्ट्रीयता, सामाजिक उत्पीड़न के आधार पर विभेद व भय के कारण भारत में शरण लेने वाले व्यक्ति होते हैं।

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