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केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन दिशा-निर्देश-2022

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-01-17 22:33:46

केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन दिशा-निर्देश-2022

प्रत्यायन क्या है?

●प्रत्यायन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत एजेंसियों, शैक्षिक संस्थानों और अन्य संगठनों का मूल्यांकन किया जाता है।

● प्रत्यायन का कार्य इस उद्देश्य के लिए नामित निकायों द्वारा ही किया जाता है।

 

हाल ही में, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन दिशा निर्देश-2022 जारी किया है, जिसके अंतर्गत उसने कुछ शर्तें निर्धारित की हैं जिसके तहत पत्रकारों की मान्यता वापस ले ली जाएगी या निलंबित कर दी जाएगी।

मान्यता देने के लियेआवेदनों की जांच डीजी, पीआईबी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय प्रेस प्रत्यायन समिति द्वारा की जाती है।
इस समय देश में पीआईबी द्वारा मान्यता प्राप्त 2,457 पत्रकार हैं।

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◆ महत्वपूर्ण तथ्य:- 

यदि कोई पत्रकार देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध तथा सार्वजनिक व्यवस्था के संबंध में प्रतिकूल तरीके से कार्य करता है या गंभीर संज्ञेय अपराध करता है, तो उसकी मान्यता वापस ले ली जाएगी या निलंबित कर दी जाएगी।

शालीनता, या नैतिकता, या अदालत की अवमानना, मानहानि या अपराध के लिए उकसाने आदि से संबंधित प्रतिकूल कार्य जैसी अन्य परिस्थितियों में भी मान्यता वापस ली जा सकती है/निलंबित की जा सकती है।

मान्यता प्राप्त मीडियाकर्मियों को सार्वजनिक / सोशल मीडिया प्रोफाइल, विजिटिंग कार्ड्स, लेटर हेड्स या किसी अन्य फॉर्म या किसी भी प्रकाशित कार्य पर "भारत सरकार से मान्यता प्राप्त" शब्दों का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।

प्रत्यायन वापस लेने/निलंबित करने से संबंधित प्रावधान:-

● यदि कोई पत्रकार देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था के लिये गलत तरीके से कार्य करता है या उस पर गंभीर संज्ञेय अपराध का आरोप है।
● यदि उसका कार्य शालीनता या नैतिकता के प्रतिकूल है या अदालत की अवमानना, मानहानि या किसी अपराध हेतु उकसाने से संबंधित है।
मान्यता प्राप्त मीडियाकर्मियों को सार्वजनिक/सोशल मीडिया प्रोफाइल, विजिटिंग कार्ड्स, लेटर हेड्स या किसी अन्य फॉर्म या किसी भी प्रकाशित सामग्री पर "भारत सरकार से मान्यता प्राप्त" शब्द का उपयोग करने से प्रतिबंधित करना।

प्रत्यायन प्रदान करने से संबंधित प्रावधान:-

◆ प्रत्यायन केवल दिल्ली एनसीआर क्षेत्र के पत्रकारों के लिये ही उपलब्ध है जिसकी कई श्रेणियांँ हैं।
◆ एक पत्रकार को पूर्णकालिक पत्रकार या समाचार संगठन में एक कैमरापर्सन के रूप में न्यूनतम पाँच वर्ष का पेशेवर अनुभव होना चाहिये या पात्र बनने के लिये फ्रीलांसर के रूप में न्यूनतम 15 वर्ष का अनुभव होना चाहिये।
◆ 30 से अधिक वर्षों के अनुभव वाले और 65 वर्ष से अधिक आयु के वयोवृद्ध पत्रकार भी पात्र हैं।
◆ एक समाचार पत्र या पत्रिका के लिये न्यूनतम दैनिक संचलन 10,000 होना चाहिये और समाचार एजेंसियों के पास कम-से-कम 100 ग्राहक होने चाहिये। विदेशी समाचार संगठनों और विदेशी पत्रकारों पर भी इसी तरह के नियम लागू होते हैं।
◆ डिजिटल समाचार प्लेटफाॅर्मों के साथ काम करने वाले पत्रकार भी पात्र हैं, बशर्ते वेबसाइट पर प्रतिमाह न्यूनतम 10 लाख विशिष्ट विज़िटर होने चाहिये।
◆ विदेशी समाचार मीडिया संगठनों के लिये काम करने वाले स्वतंत्र पत्रकारों को कोई मान्यता नहीं दी जाएगी।

दिशा-निर्देशों के अनुसार, भारत सरकार, प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) के प्रधान महानिदेशक की अध्यक्षता में केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन समिति नामक एक समिति का गठन करेगी।

इस समिति में मान्यता वापस लेने से संबंधित दिशा-निर्देशों की व्याख्या करने हेतु सरकार द्वारा नामित 25 सदस्य शामिल होंगे।‘केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन समिति’ अपनी पहली बैठक की तारीख से दो वर्ष की अवधि के लिये कार्य करेगी और यदि आवश्यक हो तो तिमाही में एक बार या अधिक बार बैठक करेगी।


प्रत्यायन  मदद के रुप में कैसे कार्य करता है :- 

◆  महत्त्वपूर्ण परिसर से रिपोर्ट करने की अनुमति:-
कुछ आयोजनों में जहाँ राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति मौज़ूद होते हैं, वहाँ केवल मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ही परिसर से रिपोर्ट करने की अनुमति होती है।

◆ पहचान की रक्षा में मदद:-


दूसरा, प्रत्यायन यह सुनिश्चित करती है कि एक पत्रकार अपने स्रोतों की पहचान की रक्षा करने में सक्षम है।
एक प्रत्यायन प्राप्त पत्रकार को यह खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है कि वह केंद्रीय मंत्रालयों के कार्यालयों में प्रवेश करते समय किससे मिलना चाहता है, क्योंकि प्रत्यायन कार्ड गृह मंत्रालय के सुरक्षा क्षेत्र के तहत भवनों में प्रवेश के लिये मान्य होता है।

◆ पत्रकार को लाभ:-


प्रत्यायन से पत्रकार और उसके परिवार को कुछ लाभ मिलते हैं, जैसे- केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजना में शामिल होना और रेलवे टिकट पर कुछ रियायतें मिलना।

इस मान्यता का महत्व क्या है ?

◆ प्रत्यायन सरकारी कार्यालयों एवं भारत सरकार द्वारा आयोजित विशेष कार्यक्रमों तथा समारोहों तक अभिगम में  सहायता करता है।

◆ गृह एवं रक्षा तथा वित्त जैसे कुछ मंत्रालय केवल मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ही पहुंच की अनुमति प्रदान करते हैं।

मीडिया के विनियमन हेतु किए गए पूर्व के प्रयास :-

● 1988 में मानहानि विधेयक निजी समाचार चैनलों के आगमन से पूर्व प्रेस को नियंत्रित करने का सबसे कुख्यात प्रस्ताव था। एक एकीकृत मीडिया तथा जनता के कई वर्गों के दबाव में, विधेयक को वापस ले लिया गया था।

●केरल एवं राजस्थान जैसी राज्य सरकारें प्रस्तावित नियमों के अपने स्वयं के संस्करण लेकर आई थीं जिन्हें दबाव एवं आलोचना के कारण वापस ले लिया गया था।

◆2018 में, पत्र सूचना कार्यालय (प्रेस इनफॉरमेशन ब्यूरो/पीआईबी) (सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत) ने एक फेक न्यूज दिशा निर्देश प्रस्तावित किया था, जिसके तहत पत्रकार को छद्म सामग्री (फेक कंटेंट) फैलाने वाले के रूप में देखे जाने पर मान्यता रद्द की जा सकती है। दबाव में आदेश वापस ले लिया गया।

●हाल ही में सरकार ने डिजिटल समाचार सामग्री की जांच के लिए आईटी अधिनियम के अंतर्गत नियमों की एक श्रृंखला का प्रस्ताव रखा है।

अतीत से भिन्नता :-


● आलोचक कह रहे हैं कि दिशा निर्देश आदेश के स्थान पर प्रतिबंध की प्रकृति में अधिक हैं।
● मान्यता वापस लेने के लिए शर्तें निर्धारित करने में, ये दिशा निर्देश दिशा-निर्देशों के स्थान पर सेंसरशिप नियमों के रूप में अधिक कार्य करते हैं।
● विगत दिशा निर्देश प्रकृति में अधिक सामान्य थे तथा इसमें उल्लेख किया गया था कि यदि दुरुपयोग पाया जाता है तो मान्यता वापस ले ली जाएगी।
● नए दिशानिर्देशों में, हालांकि, 10 प्रावधान उल्लेखित हैं जिसके तहत एक पत्रकार को मान्यता वापस ली जा सकती है।

दिशानिर्देशों की आलोचना :-

◆ प्रेस स्वतंत्रता में बिगड़ती रैंकिंग: 2020 में, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2020 में 180 देशों में भारत को 142 वें स्थान पर रखा।

◆स्वतंत्र मीडिया के संवैधानिक अधिकार के विरुद्ध: दिशा निर्देश एक स्वतंत्र मीडिया के कार्यकरण के मार्ग में आने का खतरा उत्पन्न करते हैं।
यद्यपि संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे को आम तौर पर देश में एक स्वतंत्र प्रेस के लिए खाका निर्धारित करने के रूप में व्याख्या की गई है, जिसे न्यायालयों के पश्चातवर्ती निर्णयों ने सुनिश्चित किया है।

◆रिपोर्ट को अमान्य बनाने का जोखिम:-  रिपोर्ट, विशेष रूप से एक खोजी प्रकृति की, सरकार की आलोचना को अब देश के हितों के लिए प्रतिकूल माना जा सकता है एवं इसे एक पत्रकार को मान्यता देने से इनकार करते समय कि क्या मानहानिकारक है, केंद्रीय मीडिया प्रत्यायन समिति की दिशा-निर्देशों का अर्थ निकालने एवं निर्धारित करने की व्याख्या तथा विवेक पर छोड़ दिया जाएगा।

दिशानिर्देश में संभावित चिंताएँ:- 

एक पत्रकार के प्रत्यायन को निलंबित या वापस लिया जाना चाहिये या नहीं, यह तय करते समय भारत की संप्रभुता या अखंडता के लिये क्या यह प्रतिकूल है, इसका आकलन करने हेतु दिशा-निर्देश सरकार द्वारा नामित अधिकारियों के विवेक पर छोड़ दिये गए हैं।

पत्रकार की मुख्य ज़िम्मेदारियों में से एक गलत कार्य को उज़ागर करना है, चाहे वह सार्वजनिक अधिकारियों, राजनेताओं, बड़े व्यापारियों, कॉर्पोरेट समूहों या सत्ता में बैठे अधिकारियों द्वारा क्यों न किया गया हो।

इसका परिणाम कई बार ऐसी शक्तियों द्वारा पत्रकारों को डराना या सूचना को बाहर आने से रोकना हो सकता है।
पत्रकार अक्सर उन मुद्दों और नीतिगत फैसलों पर रिपोर्टिंग करते हैं जो सरकार के विरुद्ध होते हैं।

संवेदनशील मुद्दों पर किसी भी प्रकार के मामले को इनमें से किसी भी प्रावधान का उल्लंघन माना जा सकता है।

संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता :- 

संविधान, अनुच्छेद 19 के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो वाक् स्वतंत्रता इत्यादि के संबंध में कुछ अधिकारों के संरक्षण से संबंधित है।

प्रेस की स्वतंत्रता को भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत संरक्षित है, जिसमें कहा गया है- "सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा"।

हालाँकि प्रेस की स्वतंत्रता भी असीमित नहीं होती है। कानून इस अधिकार के प्रयोग पर प्रतिबंधों को लागू कर सकता है, जो अनुच्छेद 19 (2) के तहत इस प्रकार हैं-

भारत की संप्रभुता और अखंडता के हितों से संबंधित मामले, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता या न्यायालय की अवमानना के संबंध में मानहानि या अपराध को प्रोत्साहन।

स्रोत- द हिंदू, जागरण, पीआईबी

 

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