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भारतीय संविधान की विशेषताओं का वर्णन करते हुए भारतीय संविधान के गुण एवं अवगुण को बताएं।(Mains Answer Writing)

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-01-09 22:03:03

Gurumantra Answer Writing , 1

प्रश्न  भारतीय संविधान की विशेषताओं का वर्णन करते हुए भारतीय संविधान के गुण एवं अवगुण को बताएं। 

उत्तर :- संविधान अर्थात किसी देश का उसकी राजनीतिक व्यवस्था का वह बुनियादी सांचा-ढ़ांचा जिसके निर्धारण के अनुसार उसकी जनता शासित होती है।

संविधान की निम्न विशेषताएं है - 

1.यह राज्य की विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे प्रमुख अंगो का स्थापन करता है।
2. यह राज्य की कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका के शक्तियों का व्याख्या करता है एवं उनके दायित्वों का सीमांकन करता है।
3. यह राज्य की कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका का पारस्परिक एवं जनता के साथ संबंधों का विनियमन करता है। 
4. यह राज्य की 'आधार' विधि को निर्धारित करता है।
5. यह राजव्यवस्था के मूल सिद्धांतों का निर्धारण करता है।
6. वस्तुत:  प्रत्येक संविधान उसके संस्थापकों एवं निर्माताओं के आदर्शों, सपनों तथा मूल्यों का प्रतिबिंब होता है।
7.  संविधान जनता की विशिष्ट सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रकृति, आस्था एवं आकांक्षाओं पर आधारित होता है।

(इस प्रश्न के उत्तर में संविधान की विशेषताओं को इस प्रकार विस्तार पूर्वक लिखने के आवश्यकता नहीं है।  छात्र/छात्रा इसे संक्षेप में परिभाषा के साथ ही व्यक्त कर सकते हैं या फिर अपने सुविधानुसार विशेषताओं को इस प्रकार भी लिख सकते हैं।)


ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के बाद भारतीय गणराज्य का वर्तमान संविधान 26 जनवरी 1950 को पूर्ण रूप से लागू हुआ जिसके उपरांत भारतीय इतिहास में पहली बार भारत एक आधुनिक संस्थागत ढांचे के साथ पूर्ण संसदीय लोकतंत्र बना।  26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा निर्मित 'भारत का संविधान' पूर्व के ब्रिटिश संसद द्वारा लाए गए अधिनियम या चार्टर का ही विकसित रूप माना जाता है । इसका एक कारण यह भी है कि वर्तमान संविधान में 1935 के भारत शासन अधिनियम के बहुत से भाग निहित है। जैसे- द्विसदनात्मक विधानमंडल, केंद्र-राज्य संबंध,  केंद्र राज्य की शक्तियों का बंटवारा,  केंद्रीय बैंक की व्यवस्था, इत्यादि।

संविधान सभा द्वारा निर्मित, विश्व का सबसे लंबा एवं लिखित 'भारतीय संविधान' में कई विशेषताएं है।  विभिन्न राजनीतिक विद्वानों ने अपने - अपने शब्दों से कई प्रकार के गुण एवं अवगुण की व्याख्या किए हैं। जिसे निम्न प्रकार से वर्णित किया जा सकता है ।

भारतीय संविधान की विशेषताएं - 

1. निर्मित संविधान होना,
2. प्रस्तावना का निहित होना,
3. शक्ति का स्रोत जनता होना,
4. संविधान का स्वरूप स्पष्ट होना
5. समानता के सिद्धांत को धारण करना,
6. बंधुत्व को बढ़ावा देना,
7. भारत के राजनीतिक एवं भौगोलिक परिचय को स्पष्ट करना,
8. नागरिकों को मौलिक  अधिकार देने के साथ-साथ कर्तव्य का बोध कराना,
9. संसदीय प्रणाली अपनाना,
10. केंद्र राज्य संबंध की व्याख्या करना, 
11. संविधान संशोधन के लिए लचीला एवं कठोर प्रवृत्ति रखना,
12.  ढांचा से संघात्मक और आत्मा से एकात्मक होना,
13. स्वतंत्र न्यायपालिका होना,
14. स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की व्यवस्था होना।

(छात्र इन विशेषताओं की सूची को अपने सुविधानुसार क्लाउड चार्ट में प्रस्तुत करें, जिससे उत्तर आकर्षित लगे।)

1. निर्मित संविधान होना - भारतीय संविधान एक निर्मित संविधान का उदाहरण है अर्थात भारत का संविधान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों से बने
संविधान सभा द्वारा बनाया गया है। इस संविधान सभा में संविधान सभा के सदस्यों के अलावा पत्रकारों, बुद्धिजीवियों एवं आमजनों को भी शामिल होने के लिए एवं अपनी राय देने के लिए अनुमति थी।

2. प्रस्तावना का निहित होना - 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा के गठन होने के बाद 13 दिसंबर 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में उद्देशिका प्रस्तुत किए गए, जिसमें संविधान के उद्देश्य, रूपरेखा एवं दर्शन निहित थे। संविधान पूर्ण होने के बाद इस उद्देशिका को प्रस्तावना का रूप दे दिया गया, जिसमें संपूर्ण संविधान का संक्षेप में दर्शन, उद्देश्य निहित है। कोई अधिनियम भारतीय संविधान के अनुरूप है या नहीं है प्रस्तावना इसको स्पष्ट करने में सहायक होता है, इसलिए इसे संविधान का दर्पण भी कहते हैं।

3. शक्ति का स्रोत जनता को होना- भारतीय संविधान के प्रस्तावना में वर्णित प्रथम शब्द 'हम भारत के लोग' स्पष्ट करता है कि भारतीय संविधान के शक्ति का स्रोत जनता है एवं प्रस्तावना के अंत में वर्णित शब्द 'अंगीकृत, अधिनियमित एवं आत्मार्पित करते हैं'  यह स्पष्ट करता है कि भारत की जनता संविधान निर्माण करने के बाद स्वयं को संविधान के प्रति अर्पित कर दिए हैं अर्थात हमारे देश में संविधान ही सर्वोच्च है, जिसका स्रोत जनता है।


4. संविधान का स्वरूप स्पष्ट होना - भारतीय संविधान अपने प्रस्तावना के माध्यम से अपने स्वरूप को स्पष्ट करती है कि भारत प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य होंगे। हाला की प्रस्तावना में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्द 42 वें संविधान संशोधन 1976 के बाद जोड़े गए हैं किंतु इससे पूर्व भी भारतीय संविधान अपने इसी स्वरूप को अनुपालन कर रहे थे।

5. समानता के सिद्धांत को धारण करना –

विविधता से परिपूर्ण भारत जैसे देश में भारतीय संविधान समानता के सिद्धांत को पूर्ण रूप से धारण किए हुए हैं। भारतीय संविधान ना सिर्फ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय पर केंद्रित है बल्कि यह विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता को भी प्रेरित करती है। उदाहरण के लिए अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22। संविधान प्रत्येक नागरिक के लिए प्रतिष्ठा और अवसर की समता का सिद्धांत को पालन करती है एवं सार्वभौमिक मताधिकार का भी व्यवस्था करती है । समता के सिद्धांत को पालन के लिए संविधान ना सिर्फ भेदभाव को निषेध करती है बल्कि सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े हुए नागरिक के लिए विशेष प्रावधान की भी करती है। उदाहरण के लिए अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18।

6. बंधुत्व  को बढ़ावा देना- भारत जैसे देश, जहां भिन्न-भिन्न संस्कृति के लोग, अलग अलग धार्मिक आस्था रखने वाले लोग रहते हैं, ऐसे में बंधुत्व को बढ़ावा देना अति आवश्यक है। भारतीय संविधान में बंधुत्व को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार के प्रावधान है। जैसे एकल नागरिकता, अनुच्छेद 51 क में  मौलिक कर्तव्य,  सार्वभौमिक मताधिकार, मौलिक अधिकारों को सीमित रखना, अनुच्छेद '19 के 2 से 6' तक स्वतंत्रता के अधिकारों का युक्तियुक्त निर्बंधन करना ।

7. भारत के राजनीतिक एवं भौगोलिक परिचय को स्पष्ट करना- भारतीय संविधान भारत के राजनीतिक एवं भौगोलिक परिचय को स्पष्ट रूप से वर्णित करती है। संविधान के भाग 1 में अनुच्छेद 1  स्पष्ट करती है कि भारत राज्यों का संघ होगा एवं भारत के राज्य क्षेत्र का क्षेत्र, संघ राज्य क्षेत्र का क्षेत्र और वे क्षेत्र जो भारत द्वारा अर्जित किए गए हैं या भारत में समाविष्ट हुए हैं वो भारत का राज्य क्षेत्र होंगे ।

8. नागरिकों को मौलिक अधिकार देने के साथ-साथ कर्तव्य का बोध कराना- किसी भी लोकतांत्रिक देश की आदर्शता उसकी जनता के मानवीय स्थिति पर निर्भर करती है। भारत का संविधान अपने नागरिकों को राज्य के विरुद्ध मौलिक अधिकार प्रदान करती है जिससे वे अपना भौतिक एवं नैतिक विकास कर सके तथा राज्य के उन कृत्यों का विरोध कर सकें जो मानवता संविधान एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है। अनुच्छेद 13 में संविधान स्पष्ट करता है कि सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकार के संरक्षक होंगे एवं राज्य द्वारा कोई भी विधि नागरिक के मौलिक अधिकार को हनन नहीं कर सकती है। संविधान द्वारा अनुच्छेद 14 से 18 तक समता का अधिकार दिया गया है, अनुच्छेद 19 से 22 तक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, अनुच्छेद 23 और 24 में शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया गया है, अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, अनुच्छेद 29 और 30 में सांस्कृतिक संरक्षण का अधिकार दिया गया है, वही अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों का अधिकार दिया गया है। 

              'कर्तव्य के बिना अधिकार अधूरा है' इस सिद्धांत का पालन करते हुए 42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्य का प्रावधान किया गया, जो देश के बंधुत्व को बढ़ाने के लिए भी आवश्यक है।

 

9. संसदीय प्रणाली अपनाना - भारत में संसदीय प्रणाली अपनाई गई है। संसदीय प्रणाली में सरकार बनाने के लिए जहां जनता का बहुमत प्राप्त करना आवश्यक है वहीं इस प्रणाली में कार्यपालिका विधायिका के प्रति जिम्मेवार होती है अर्थात कार्यपालिका जनप्रतिनिधि के प्रति जिम्मेवार होती है, जो भारत जैसे विविधता से परिपूर्ण देश के लिए जनता का सरकार, संविधान एवं एकात्मक व्यवस्था पर विश्वास बनाए रखने के लिए बहुत आवश्यक है। इस प्रणाली में संसद का निचला सदन या किसी राज्य विधानमंडल का निचला सदन सरकार को बर्खास्त कर सकती है अर्थात जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार को बर्खास्त किया जा सकता है। इस प्रणाली में एक संवैधानिक प्रमुख होता है तो दूसरा वास्तविक प्रमुख होता है जो संवैधानिक प्रमुख के नाम पर शासन चलाता है एवं वास्तविक प्रमुख विधायिका के प्रति जिम्मेवार होता है।

10. केन्द्र - राज्य संबंध की व्याख्या करना –भारतीय संविधान के भाग 1 में स्पष्ट कर दिया गया है कि भारत जोकि इंडिया है, राज्यों का संघ होगा। संसदीय प्रणाली होने के कारण केन्द्र एवं राज्य का अपना अपना सरकार होता है। भारतीय संविधान केन्द्र एवं राज्य के सरकारों की शक्तियों को सीमांकित करती है । अनुसूची सात के माध्यम से केंद्र एवं राज्य सरकार के विषयों को सूचित करती है । भारतीय संविधान स्पष्ट रुप से केन्द्र राज्य के विधायी,  प्रशासनिक एवं वित्तीय संबंध को व्यवस्थित करती है। जैसे अनुच्छेद 245-255 तक विधायी संबंध का चर्चा करना , अनुच्छेद 256 से प्रशासनिक संबंधों पर चर्चा करना, अनुच्छेद 268-293 तक केन्द्र -राज्य के वित्तीय संबंधों का चर्चा करना।

11. संविधान संशोधन के लिए लचीला एवं कठोर प्रवृत्ति रखना – परिवर्तन संसार का नियम है अर्थात किसी भी देश की परिस्थिति हर काल में एक समान नहीं रहती है। इस कारण राजव्यवस्था में भी परिवर्तन की आवश्यकता होती है। भारत का संविधान में संशोधन की व्यवस्था ना तो अमेरिका की तरह कठोर है और  ना ही इंग्लैंड की तरह लचीला बल्कि यह दोनों का समन्वय है, अर्थात ना तो यहां संशोधन करना बहुत ज्यादा जटिल है और  ना ही बहुत आसान । भारत में संशोधन के लिए तीन प्रक्रिया अपनाई गई है । संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत द्वारा, संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत द्वारा, संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत एवं राज्यों की सहमति के द्वारा।

12. ढांचा से संघात्मक और आत्मा से एकात्मक होना-  भारतीय संविधान के पिता माने जाने वाले बाबा भीमराव अंबेडकर के शब्दों में भारत का संविधान ढांचा से संघात्मक है और आत्मा से एकात्मक है । अर्थात प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए दोहरी राजनीतिक प्रणाली की व्यवस्था की गई है किंतु देश की एकता और अखंडता की मजबूती के लिए एकात्मक व्यवस्था में राजनीतिक प्रणाली को निहित किया गया है। संघात्मक व्यवस्था का उदाहरण है केंद्र एवं राज्य में शक्तियों और कार्यों का वितरण होना, केंद्र एवं राज्य का अपनी सरकार होना, केंद्र एवं राज्य का अपना विधानमंडल होना, केंद्र एवं राज्य का अपना वित्तीय शक्ति होना। वही एकात्मक व्यवस्था का उदाहरण है शक्तियों का वितरण केंद्र के पक्ष में होना, राज्यों के विषयों पर केंद्र का क्षेत्राधिकार होना, राज्यों के पृथक संविधान का अभाव होना, इकहरी नागरिकता होना, संविधान संशोधन में केंद्र की शक्ति होना, राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति होना, राज्यों का राज्यसभा में समान प्रतिनिधित्व अभाव होना, राज्यों के वित्तीय संबंध में केंद्र पर निर्भर होना, संकटकाल में संविधान का बिना संशोधन के  अनुच्छेद 352 356 और 360 के अनुरूप एकात्मक कर लेना।

13. स्वतंत्र न्यायपालिका होना - भारत में दोहरी राजनीतिक प्रणाली अपनाई गई है अर्थात केंद्र एवं राज्य की अपनी-अपनी सरकारें एवं विधानमंडल की व्यवस्था की गई है। केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण कर दिया गया है, अतः ऐसे में यदि केंद्र एवं राज्य की सरकार के बीच शक्तियों को लेकर वाद- विवाद होती है तो इसे सुलझाने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता है जो भारतीय संविधान द्वारा प्रावधान किया गया है। भारत की न्यायपालिका ना केवल केंद्र एवं राज्य के बीच विवाद को समझाती है बल्कि यह   नागरिकों के मौलिक अधिकार को संरक्षण भी देती है । भारत में उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का दर्जा प्राप्त है, इस कारण भारतीय न्यायपालिका विधायिका एवं कार्यपालिका के कार्यों को न्यायिक पुनरीक्षण के द्वारा संविधान के किसी उपबंध से  असंगत होने पर अवैध घोषित कर सकती है।

14. स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की व्यवस्था होना- किसी भी लोकतांत्रिक देश में मतदान को महापर्व माना जाता है, इसलिए निष्पक्ष मतदान के लिए भारतीय संविधान में स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की व्यवस्था की गई है जोकि अर्द्ध न्यायिक संस्था भी है एवं इससे संबंधित वर्णन अनुछेद 324 से 329 तक किए  गए हैं। भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में लोकतंत्र के प्रति लोगों का विश्वास मजबूत करने के लिए निर्वाचन आयोग का स्वतंत्र होना बहुत ही महत्वपूर्ण है।   निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सांसद और विधायकों का चुनाव कराती है। निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा के बाद स्वत: आचार संहिता लागू हो जाती है, जिसके उपरांत सरकार की शक्तियां नाम मात्र की रह जाती है एवं चुनाव से संबंधित समस्त प्रशासनिक निर्णय चुनाव आयोग द्वारा लिए जाते हैं ।

इसके अलावे अन्य कई भारतीय संविधान के गुण है।  जैसे कि राज्य के नीति निदेशक तत्व होना जहां सरकारों को राज्य के प्रशासन के चलाने के लिए आधार दिए गए हैं। अनुच्छेद 21 के द्वारा व्यक्ति के गरिमामय जीवन का अधिकार देना। महिलाओं, अनुसूचित जाति और  जनजाति के लिए विशेष प्रावधान देना।  कुछ विशेष क्षेत्रों के लिए भी विशेष प्रावधान देना।  ऐसे बहुत सारे और भी गुण भारतीय संविधान में निहित है जो कि भारतीय संविधान को एक आदर्श संविधान का रूप देती है। किंतु इसके बावजूद कई राजनीतिक विद्वानों द्वारा इनके आलोचनात्मक पक्ष भी रखें गए हैं जैसे कि - 

1.अत्यधिक लंबा होना 
2. वकीलों के लिए स्वर्ग होना 
3. बहुत सा शब्दों का व्याख्या ना होना। उदाहरण के लिए  संविधान में अल्पसंख्यक शब्द का वर्णन किया गया है किंतु अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है
4.  संविधान का दो तिहाई भाग 1935 के भारत शासन अधिनियम से लिया जाना और अन्य देशों के संविधान से लिया जाना जिस कारण से इसे उधार का भी संविधान कहा जाता है । 

निष्कर्ष - 

इन कमियों के बावजूद भी भारत का संविधान को एक आदर्श संविधान के रुप में उदाहरण दिया जा सकता है और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि संविधान के लागू होने के  इतने वर्षों के बाद भी लोगों के संविधान के प्रति विश्वास एवं आस्था बना रहना एवं भारतीय लोकतंत्र का दिनोंदिन मजबूत होना।

                      द्वारा - चन्द्रशिव सर (Gold Medal Awarded Tutor)

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