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अर्ध्द न्यायिक निकाय के बारे में व्याख्या (Explanation about quasi-judicial body) GS answer writing

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-08-06 08:22:07

प्रश्न :- भारत में अक्सर अर्द्ध न्यायिक निकाय  चर्चा में रहते हैं। उदाहरण सहित अर्द्ध न्यायिक निकाय के बारे में व्याख्या करें। (In India, quasi-judicial bodies are often discussed.  Explain with examples a quasi-judicial body.)

 
उत्तर :-

अर्द्ध न्यायिक निकाय अर्थात एक  ऐसा न्यायिक संगठन,  जिसे कानूनी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होती है और समस्या का समाधान निकालने के योग्य होता है अर्थात एक व्यक्ति या संगठन पर कानूनी दंड आरोपित करता है । किंतु इनकी शक्तियां विशेष क्षेत्र तक सीमित रहती है। यह न्यायालय की तरह सभी प्रकार के विवादों में निर्णय लेने की क्षमता नहीं रखता है। (Quasi-judicial body i.e. a judicial organization, which has the powers of a court of law and is capable of solving a problem, that is, to impose legal punishment on a person or organization.  But their powers are limited to a particular area.  It does not have the power to adjudicate in all types of disputes like the court.)

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कोई भी प्राधिकरण अर्ध्द न्यायिक कहीं जाती है जब उसके पास न्यायिक कार्य की कुछ विशेषताएं हो, किंतु सभी नहीं। ऐसा निकाय प्रायः अनुशासन भंग करने, आचार नियमों का उल्लंघन करने, धन एवं अन्य मामलों में विश्वास भंग करने जैसे मामलों में अधिनिर्णयन की शक्ति रखता है। हालांकि इनके द्वारा दिए गए दंड एवं अपराध की प्रकृति एवं गहनता पर निर्भर होती है, जिसे न्यायालय द्वारा चुनौती दिया जा सकता है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग, आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन, इत्यादि। (Any authority goes quasi-judicial when it has some characteristics of judicial function, but not all.  Such a body often has the power to adjudicate in cases of breach of discipline, violation of the rules of conduct, breach of trust in money and other matters.  However, the punishment given by them depends on the nature and severity of the offence, which can be challenged by the court.  For example National Human Rights Commission, Competition Commission of India, Income Tax Appellate Tribunal, National Consumer Disputes Redressal Commission, etc.)

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छात्र /छात्रा परिभाषा को थोड़ा संक्षेप में भी रख सकते हैं। परिभाषा के साथ,  कुछ उदाहरण लिख देने हैं। अब भारत में कार्य कर रहे अर्ध्द न्यायिक निकायों के कार्य , शक्ति एवं महत्वों  का व्याख्या करना है।  इसके उपरांत  निष्कर्ष लिखना है। (The student can also keep the definition a little succinct.  Along with the definition, some examples are to be written.  Now to explain the functions, power and importance of the quasi-judicial bodies functioning in India.  After this, the conclusion has to be written.)

इनकी विशेषताएँ :- 

  • अदालतों के कामों के बोझ को कम करने में भी सहायक होना।
  •  इन निकायों के पास केवल प्रशासनिक संस्थाओं संबंधी न्यायिक निर्णय लागू करने की शक्ति होती है जबकि सामान्य अदालतों के पास सभी प्रकार के विवादों का निर्णय का अधिकार होता है।
  •  इनके द्वारा की गई कार्यवाही के विरुद्ध अदालत में अपील की जा सकती है। 
  •  इन निकायों के समक्ष आमतौर पर इन  मामलों पर अपील की जा सकती है-  नियमों का उल्लंघन करने, आचरण के नियमों का उल्लंघन करने अथवा धन संबंधी मामले आदि।
  • न्यायिक निर्णय के दौरान नए कानून का निर्माण कर सकते हैं, जबकि अर्द्ध न्यायिक निकाय के  निर्णय मौजूदा कानून के निष्कर्षों पर आधारित होने चाहिए।
  • अर्द्ध-न्यायिक निकायों को हमेशा साक्ष्य और प्रक्रिया के सख्त न्यायिक नियमों का पालन ​​करने की आवश्यकता नहीं होती है एवं यह  निकाय समान्यतः तभी औपचारिक सुनवाई करते है  जब उनके शासी कानूनों, विनियमों या समझौतों के तहत ऐसा करना अनिवार्य हो।
  • इनके द्वारा दिए गए निर्णय आमतौर पर मिसाल के लिए न्यायिक निर्णय की तरह बहुत ज्यादा बाध्य  नहीं होते हैं। 

Their Features :- 

  • To also be helpful in reducing the burden of the work of the courts.
  •  These bodies have the power to enforce judicial decisions only in respect of administrative entities whereas ordinary courts have the power to adjudicate all types of disputes.
  •  An appeal can be made in the court against the action taken by them.
  •  Appeals can usually be made before these bodies on matters relating to violation of rules, violation of rules of conduct or money matters etc.
  •  Can make new laws during judicial decision, whereas the decisions of quasi-judicial bodies should be based on the findings of existing law.
  •  Quasi-judicial bodies are not always required to adhere to strict judicial rules of evidence and procedure and generally conduct formal hearings only when mandated by their governing laws, regulations or agreements.
  •  Decisions delivered by them are usually not as binding as judicial decisions for example.

अभ्यार्थी ध्यान रखें कि प्रश्न की प्रकृति के अनुसार ही विशेषताओं को लिखना है। उदाहरण के लिए यदि प्रश्न रहे कि अर्द्ध न्यायिक संस्था किसे कहते हैं इनके उदाहरण दे तो फिर विशेषताओं को लिखने की विशेष आवश्यकता नहीं है लेकिन यदि अर्द्ध न्यायिक संस्था के विषय में व्याख्या करने की बात हो या विश्लेषण करने की बात हो अथवा न्यायिक निर्णय की तुलना करना हो  तो इन विशेषताओं को अवश्य लिखना है। (Candidates should note that the characteristics have to be written according to the nature of the question.  For example, if the question is to give examples of what is called a quasi-judicial institution, then there is no special need to write the characteristics, but if there is a matter of interpretation or analysis about a quasi-judicial institution or a comparison of judicial decisions.  If you want to do this, then you have to write these characteristics.

 

अर्द्ध-न्यायिक निकायों की सीमाएँ-

  • प्रशासकीय अधिनिर्णयों की कार्रवाई प्रकाशित नहीं होना,
  • तथ्यों की समुचित जाँच नहीं होना,
  • निर्णय के विरुद्ध अपील का अधिकार।

Limitations of quasi-judicial bodies-

  • Action of administrative awards not to be published,
  •  Lack of proper verification of facts,
  •  Right of appeal against the decision.

अभ्यार्थी  यहां भी ध्यान रखें कि इन सीमाओं का वर्णन ऊपर परिभाषा के साथ कर दिया गया है, अभ्यार्थी इन सीमाओं का वर्णन परिभाषा के साथ भी कर सकते हैं या फिर अलग से भी कर सकते हैं,  लेकिन एक ही बार करना है।

Candidates, here also keep in mind that these limits have been described with the definition above, the candidates can describe these limits with the definition or they can also do it separately, but have to do it only once.

भारत में अर्द्ध-न्यायिक निकायों के उदाहरण (Examples of quasi-judicial bodies in India)

केंद्रीय सूचना आयोग   (Central Information Commission) -

यह आयोग केंद्र सरकार एवं केंद्र शासित प्रदेशों के अधीन कार्यरत कार्यालय, वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि के बारे में शिकायत एवं अपील की सुनवाई करता है तथा उनका निराकरण करता है। उदाहरण के लिए जनसूचना अधिकारी द्वारा जानकारी देने से मना करने पर एवं ऐसे अन्य शिकायत पर आयोग कार्यवाही करता है।  इनकी तरह ही राज्य सूचना आयोग भी एक अर्द्ध न्यायिक निकाय है। (This commission hears and resolves complaints and appeals regarding offices, financial institutions, public sector undertakings etc. working under the Central Government and Union Territories.  For example, the commission takes action on the refusal of information by the Public Information Officer and on such other complaints.  Like them, the State Information Commission is also a quasi-judicial body.)

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India) :-

 इस आयोग का गठन भारत में प्रतिस्पर्द्धा कानून में वर्णित प्रावधानों को लागू करने के लिये किया गया। यदि कहीं प्रतिस्पर्द्धा को सीमित करने का प्रयास होता है तो यह दंड भी दे सकता है। उदाहरणस्वरूप अधिक गंभीर मामलों में यह किसी कंपनी पर, जिसने प्रतिस्पर्द्धा कानून का उल्लंघन किया हो, उसे पिछले 3 वर्षों के टर्नऑवर का 10 प्रतिशत ज़ुर्माना लगा सकता है। (This commission was set up to implement the provisions mentioned in the Competition Law in India.  If there is an attempt to limit the competition, it can also lead to punishment.  For example, in more serious cases, it can impose a penalty of 10 percent of the turnover of the previous 3 years on a company that has violated the competition law.)

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal) - 

इस आयोग का कार्य  पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन तथा व्यक्तियों एवं संपत्ति के नुकसान के लिये सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित मामलों सहित पर्यावरण संरक्षण एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों का प्रभावी एवं तीव्र निपटारा करना होता है। उदाहरण के लिए बीते दिनों न्यायाधिकरण ने ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ द्वारा यमुना नदी के किनारे (दिल्ली) आयोजित कार्यक्रम के कारण उत्पन्न प्रदूषण पर ज़ुर्माना लगाया है। (The function of this commission is to provide effective and speedy disposal of matters related to environmental protection and conservation of other natural resources, including enforcement of any legal rights related to the environment and grant of assistance and compensation for damage to persons and property or matters related thereto.  For example, in the past, the tribunal has imposed a fine on pollution caused by an event organized by the 'Art of Living' on the banks of river Yamuna (Delhi).)

दूरसंचार विवाद समाधान और अपील न्यायाधिकरण (Telecom Disputes Resolution and Appellate Tribunal)

यह दूरसंचार क्षेत्र में उत्पन्न हुए विवादों की सुनवाई एवं उनका निराकरण करता है। उदाहरण के लिए कुछ दिन पहले रिलायंस जियो की फ्री कॉलिंग और डेटा से संबंधित मामलों में न्यायिक कार्यवाही करना। (It hears and resolves disputes arising in the telecom sector.  For example, a few days ago to take judicial proceedings in cases related to Reliance Jio's free calling and data.)

हालांकि इन  निकायों के अतिरिक्त उपभोक्ता न्यायालय, केंद्रीय प्रशासनिक प्राधिकरण आदि भी अर्द्ध-न्यायिक निकायों की श्रेणी में आते हैं। इन  निकायों  की अपनी सीमाएँ होने के  बावजूद यह कई मायनों में काफी महत्त्वपूर्ण है। ये निकाय न्यायपालिका के कार्यभार को कम करने के साथ-साथ जटिल मुद्दों का विशेषीकृत समाधान निकालने में सक्षम है एवं  कम खर्च में तीव्र न्याय दिलाने में सहायता करता है। इसके अंतर्गत परंपरागत न्यायिक प्रक्रिया से इतर खुली कार्रवाई एवं तर्क के आधार पर निर्णय होता है। (However, apart from these bodies, consumer courts, central administrative authorities, etc. also come under the category of quasi-judicial bodies.  Despite these bodies having their limitations, it is important in many respects.  These bodies are capable of reducing the workload of the judiciary as well as come up with specialized solutions to complex issues and help in providing speedy justice at low cost.  Under this, the decision is made on the basis of open action and logic, unlike the traditional judicial process.)

                        ~~द्वारा - चन्द्रशिव सर (Gold Medal Awarded Tutor)

अभ्यास प्रश्न (For Exercise)

अर्द्ध न्यायिक निकाय के भूमिका का वर्णन करते हुए इनके महत्व पर प्रकाश डालें। (While describing the role of quasi-judicial body, throw light on its importance.) 

   150 - 200 शब्दों में (In 150 - 200 words)

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आवश्यक सूचना -  ऊपर दिए गए Answer writing में 10 गलती ढूंढने वाले Students को Gurumantra Civil Class के  One month General Package उपहार स्वरूप दिए जाएंगे। गलती बताने के लिए Website/Application  के Contact Us में जाएं।

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