जैविक कृषि (स्रोत: पीआईबी, डाउन टू अर्थ, जागरण जोश, ...इत्यादि)
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At - 2021-09-03 19:01:57
जैविक कृषि
वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण पूरे विश्व में बेहतर स्वास्थ्य व सुरक्षित भोजन की मांग में वृद्धि हुई है। भारत जैविक कृषकों की संख्या के मामले में प्रथम तथा जैविक कृषि क्षेत्रफल के मामले में 9वें स्थान पर है।
सिक्किम पूरी तरह से जैविक कृषि अपनाने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है। त्रिपुरा और उत्तराखंड राज्य भी इस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में प्रयास कर कर रहे हैं।
जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है, तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। सन् 1990 के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार आज काफी बढ़ा है।
इसमें भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाए रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है।
जैविक कृषि में मिट्टी, पानी, रोगाणुओं और अपशिष्ट उत्पादों, वानिकी और कृषि जैसे प्राकृतिक तत्त्वों का एकीकरण शामिल है।
जैविक कृषि के उद्देश्य: -
यह कृषि-आधारित उद्योग के लिये भोजन और फीडस्टॉक की बढ़ती आवश्यकता के कारण प्राकृतिक संसाधनों के सतत् उपयोग के लिये आदर्श पद्धति है।
यह सतत् विकास लक्ष्य-2 के अनुरूप है जिसका उद्देश्य 'भूख को समाप्त करना, खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना और बेहतर पोषण और कृषि को बढ़ावा देना' है।
भारत में जैविक कृषि की संभावना:-
उत्तर-पूर्व भारत पारंपरिक रूप से जैविक कृषि के अनुकूल रहा है और यहाँ रसायनों की खपत देश के बाकी हिस्सों की तुलना में बहुत कम है।
वर्तमान सरकार द्वारा जनजातीय और द्वीपीय क्षेत्रों में भी कृषि के जैविक तरीकों को आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
भारत वैश्विक ‘जैविक बाज़ारों’ में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर सकता है।
भारत से प्रमुख जैविक निर्यातों में सन बीज, तिल, सोयाबीन, चाय, औषधीय पौधे, चावल और दालें रहे हैं।
वर्ष 2018-19 में विगत वर्ष की तुलना में 50% की वृद्धि के साथ जैविक निर्यात लगभग 5151 करोड़ रुपए रहा है।
मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्ट रीजन (MOVCD-NER) एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना (CSS) है। यह सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन (NMSA) के तहत एक उप-मिशन है।
इसे वर्ष 2015 में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा राज्यों में प्रारंभ किया गया था।
यह योजना जैविक उत्पादन का 'प्रमाण' प्रदान करने ग्राहकों में उत्पाद के प्रति विश्वास पैदा करने के दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
2. ‘परंपरागत कृषि विकास योजना’ (PKVY):-
परंपरागत कृषि विकास योजना को वर्ष 2015 में प्रारंभ किया गया था जो 'सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन' (NMSA) के उप मिशन ‘मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन’ (Soil Health Management- SHM) का एक प्रमुख घटक है।
PKVY के तहत जैविक कृषि में 'क्लस्टर दृष्टिकोण' और 'भागीदारी गारंटी प्रणाली' (Participatory Guarantee System- PGS) प्रमाणन के माध्यम से 'जैविक ग्रामों' के विकास को बढ़ावा दिया जाता है।
‘भागीदारी गारंटी प्रणाली’ (Participatory Guarantee System-PGS) और जैविक उत्पादन के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम’ (National Program for Organic Production- NPOP) के तहत प्रमाणन को बढ़ावा दे रही हैं।
3. एक ज़िला- एक उत्पाद योजना:-
इस कार्यक्रम का उद्देश्य स्थानीय स्तर पर विशेष उत्पादों की अधिक दृश्यता और बिक्री को प्रोत्साहित करना है, ताकि ज़िला स्तर पर रोज़गार पैदा हो सके।
एक ज़िला- एक उत्पाद (One district - One product) योजना ने छोटे और सीमांत किसानों को जैविक कृषि के बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में मदद की है।
4. जैविक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म:-
👉🏻जैविक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म www.jaivikkheti.in को सीधे खुदरा विक्रेताओं के साथ-साथ थोक खरीदारों के साथ जैविक किसानों को जोड़ने की दिशा में कार्य कर रहा है।
प्रमुख बातें:-
जैविक कृषि की शुरुआत 14 साल पहले एक छोटे से क्षेत्र में छोटे से बदलाव के रूप में हुई थी और अब यह पूरे देश के लिये सीखने का एक अच्छा उदाहरण बन गया है।
भारत के पास बहुत अच्छी उपजाऊ और उत्पादक कृषि भूमि है। भारत में 60 प्रतिशत से अधिक भूमि क्षेत्र कृषि कार्यों हेतु उपयुक्त है।
भारत की कुल ग्रामीण आबादी का लगभग 58 प्रतिशत मुख्य रूप से आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर है।
इस तरह अधिक क्षमता के साथ, स्वस्थ और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने से पूरे देश की कृषि संबंधी प्रोफ़ाइल में बदलाव अपेक्षित है तथा देश का स्वास्थ्य सूचकांक भी बदल सकता है।
वैश्विक स्तर पर विशेषज्ञों का सुझाव है कि भविष्य में कृषि क्षेत्र में जैविक कृषि के विकास की बहुत अधिक संभावनाएँ विद्यमान है।
पश्चिमी दुनिया के लिये भी जैविक कृषि का काफी अधिक महत्त्व है।
भारत के लिये जैविक कृषि दोबारा अतीत में वापस लौटने और प्राचीन प्रथाओं को दोबारा अपनाने जैसा है।
सिक्किम वर्ष 2016 में भारत का पहला पूर्ण जैविक राज्य बना। उसे जैविक राज्य का दर्जा अपनी लगभग 75,000 हेक्टेयर कृषि भूमि पर जैविक प्रथाओं एवं जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाने से प्राप्त हुआ है।
सिक्किम में रासायनिक कीटनाशकों, उर्वरकों या आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का कोई उपयोग नहीं किया जाता है।
सिक्किम में इस मिशन की शुरुआत और सफलता के लिये कई कारक विद्यमान थे, जैसे कि इसके लिये बुनियादी आवश्यकताओं को प्राप्त करना।
जैविक कृषि की शुरुआत एवं विकास के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य किसानों को प्रशिक्षित करना है।
भारत में जैविक कृषि के बारे में अपेक्षाकृत कम जागरूकता है, जबकि अधिकांश देश पर्यावरण संरक्षण के लिये जैविक कृषि को अपना रहे हैं। भारत भी इस दिशा में प्रयासरत हैं।
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर मोमेंट (International Federation of Organic Agriculture Moment) के अनुसार, जैविक कृषि को अपनाने वाले देशों की सूची में भारत का नौवाँ स्थान है।
अधिकांश किसान रसायन-आधारित खेती के हानिकारक प्रभावों को नहीं जानते हैं, कुछ अन्य किसान जो कि इन हानिकारक प्रभावों को समझते हैं लेकिन वे यह नहीं जानते कि इसमें कितना और किस प्रकार आवश्यक परिवर्तन किया जा सकता है।
कीटनाशकों का व्यापक स्तर पर प्रयोग, मिट्टी का कटाव और अन्य समस्याएँ जलवायु परिवर्तन में योगदान कर रहे हैं।
मिट्टी भी रासायनिक पदार्थो के अत्यधिक उपयोग के चलते काफी अम्लीय हो गई है।
जैविक कृषि को अपनाने के लिये किसानों को प्रशिक्षित करना कई प्रकार से लाभकारी हो सकता है। जैविक कृषि पद्धति को अपनाने से यह कृषि में कीटनाशकों के उपयोग को कम कर देगा जिससे खेतों में काम करने वाले लोगों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव बहुत कम पड़ेगा।
किसानों को जैविक कृषि के संदर्भ में शिक्षित किया जाना काफी अधिक महत्त्वपूर्ण है।
कृषि में जैविक पद्धतियों को अपनाने का किसानों की आय और लाभप्रदता दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
जिन किसानों ने भी इसे अपनाया है उनकी उत्पादकता में भारी वृद्धि हुई है इसके साथ ही कृषि भूमि की उर्वरता और उत्पादकता भी बढ़ रही है।
किसानों को जैविक कृषि के लिये तकनीकी स्तर पर प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने और इस क्षेत्र में नवीनतम तकनीकी तथा वैज्ञानिक विकास के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है।
किसानों द्वारा अपने दैनिक कृषि कार्यों में कार्बनिक उपकरणों और तकनीकों (organic tools and techniques) का कुशल और प्रभावी तरीके से उपयोग किया जाना, उनके प्रशिक्षण का ही एक हिस्सा है।
कृषि कार्यों में कार्बनिक तरीकों पर प्रशिक्षण प्रदान कर कई प्रकार से किसानों को सशक्त बनाया जा सकता है। इससे उन्हें अच्छे वित्तीय निर्णय लेने और कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के नए विकल्पों को खोजने में मदद मिलेगी।
नवीनतम उपकरणों और तकनीकों को अपनाकर किसान भूमि, पानी और अन्य पारिस्थितिक कारकों को सुसंगत बनाकर कृषि उत्पादन और विपणन में सुधार कर अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं ।
भारत में जैविक कृषि की सफलता काफी हद तक प्रशिक्षण और प्रमाणन पर निर्भर करती है। किसानों को त्वरित गति से रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम कर अपनी पारंपरिक कृषि पद्धतियों को अपनाना होगा।
किसानों को उर्वर मिट्टी के निर्माण, कीट प्रबंधन, अंतर-फसल और खाद एवं कम्पोस्ट निर्माण जैसे पहलुओं पर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
जैविक कृषि पद्धतियों के महत्त्व और लाभ पर नियमित रूप से किसानों को सलाह देना और उनके साथ विचार-विमर्श करना आवश्यक है।
कृषि उपज की गुणवत्ता की निगरानी करने और किसानों को समय-समय पर सलाह देने के लिये कृषि क्षेत्र में कृषिविदों (Agronomists) को तैनात किया जाना चाहिये।
भारत सरकार के नेशनल सेंटर फॉर ऑर्गेनिक फार्मिंग (National Centre for Organic Farming) और भागीदारी गारंटी योजना (Participatory Guarantee Scheme) जैसे प्रमाणन कार्यक्रम अनिवार्य रूप से शुरू किये जाने की आवश्यकता है।
वर्तमान में जैविक कृषि के बारे में जागरूकता सामान्यतया समृद्ध शहरी भारतीयों तक ही सीमित है।
वे स्पष्ट रूप से जैविक भोजन के स्वास्थ्य संबंधी लाभों से अवगत हैं और इससे भी अधिक उनके पास इन्हें खरीदने की क्रयशक्ति भी हैं।
किसानों को जैविक कृषि के लाभों से अवगत कराकर इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिये और उन्हें भविष्य में इसमें व्याप्त संभावनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
पर्यावरण संबंधी लाभ के साथ-साथ स्वच्छ, स्वस्थ, गैर-रासायनिक उपज किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये लाभदायक है। जैविक कृषि भारतीय कृषि क्षेत्र के विकास के लिये काफी अधिक महत्त्वपूर्ण है।
केंद्र सरकार ने जैविक खेती प्रमोट करने के लिए सरकार ने परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) बनाई है।
पीकेवीवाई (paramparagat krishi vikas yojana) के तहत तीन साल के लिए प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये की सहायता दी जा रही है।
इसमें से किसानों को जैविक खाद, जैविक कीटनाशकों और वर्मी कंपोस्ट आदि खरीदने के लिए 31,000 रुपये (61 प्रतिशत) मिलता है।
मिशन आर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ इस्टर्न रीजन के तहत किसानों को जैविक इनपुट खरीदने के लिए तीन साल में प्रति हेक्टेयर 7500 रुपये की मदद दी जा रही है।
स्वायल हेल्थ मैनेजमेंट के तहत निजी एजेंसियों को नाबार्ड के जरिए प्रति यूनिट 63 लाख रुपये लागत सीमा पर 33 फीसदी आर्थिक मदद मिल रही है।
कैसे मिलता है जैविक खेती का सर्टिफिकेट ?
जैविक खेती प्रमाण पत्र लेने की एक प्रक्रिया है. इसके लिए आवेदन करना होता है। फीस देनी होती है। प्रमाण पत्र लेने से पहले मिट्टी, खाद, बीज, बोआई, सिंचाई, कीटनाशक, कटाई, पैकिंग और भंडारण सहित हर कदम पर जैविक सामग्री जरूरी है।
यह साबित करने के लिए इस्तेमाल की गई सामग्री का रिकॉर्ड रखना होता है। इस रिकॉर्ड के प्रमाणिकता की जांच होती है।उसके बाद ही खेत व उपज को जैविक होने का सर्टिफिकेट मिलता है।
इसे हासिल करने के बाद ही किसी उत्पाद को ‘जैविक उत्पाद’ की औपचारिक घोषणा के साथ बेचा जा सकता है।एपिडा ने आर्गेनिक फूड की सैंपलिंग और एनालिसिस के लिए एपिडा ने 19 एजेंसियों को मान्यता दी है।
आर्गेनिक फार्मिंग और उसका बाजार
इंटरनेशनल कंपीटेंस सेंटर फॉर आर्गेनिक एग्रीकल्चर (ICCOA) के मुताबिक भारत में जैविक उत्पादों का बाजार 2020 तक 1.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आंकड़ा हासिल कर लेगा।
केंद्रीय आयात निर्यात नियंत्रण बोर्ड (एपीडा-APEDA) के मुताबिक भारत ने 2017-18 में लगभग 1.70 मिलियन मीट्रिक टन प्रमाणिक जैविक उत्पाद पैदा किया।
2017-18 में हमने 4.58 लाख मीट्रिक आर्गेनिक उत्पाद एक्सपोर्ट किए. इससे देश को 3453.48 करोड़ रुपये मिले।
भारत से जैविक उत्पादों के मुख्य आयातक अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा, स्विट्जरलैंड, आस्ट्रेलिया, इजरायल, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, न्यूजीलैंड और जापान हैं।
अतः संपूर्ण विश्व में बढ़ती हुई जनसंख्या एक गंभीर समस्या है, बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ भोजन की आपूर्ति के लिए मानव द्वारा खाद्य उत्पादन की होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए तरह-तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग, प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थो के बीच आदान-प्रदान के चक्र को (इकालाजी सिस्टम) प्रभावित करता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है, साथ ही वातावरण प्रदूषित होता है तथा मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आती है।
इसलिए ऐसी स्थिति में बेहतर मानव समाज के निर्माण के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र पर ध्यान देना आवश्यक है और इसके लिए जैविक खेती बेहतर विकल्प है।
हालांकि भारत में प्राकृतिक खेती कोई नई अवधारणा नहीं है। अत: अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुपालन में उत्पादकों की अधिक जागरूकता और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने से भारतीय जैविक किसान जल्द ही वैश्विक कृषि व्यापार में प्रमुख भूमिका निभाने में सक्षम होंगें।