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भारत के मिट्टियों का वर्गीकरण

By - Gurumantra Civil Class

At - 2022-03-05 03:09:59

भारत में मिट्टी, उनकी विशेषता एवं किस फसल के लिए कौन-सी मिट्टी उपयोगी है -

     

• प्रकृति में मिट्टी (मृदा) सबसे महत्त्वपूर्ण नवीकरण योग्य प्राकृतिक संसाधन है।

• यह पौधों के विकास का माध्यम है जो पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के जीवों का पोषण करती है।

• मृदा एक जीवन तंत्र है , लेकिन कुछ सेंटीमीटर गहरी मृदा बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं। 

• मृदा बनने की प्रक्रिया में उच्चावच, जनक शैल अथवा संस्तर शैल, जलवायु, वनस्पति और अन्य जैव पदार्थ और समय मुख्य कारक हैं। 

• प्रकृति  अनेक तत्वों जैसे – तापमान परिवतर्न , बहते जल की क्रिया, पवन, हिमनदी और अपघटन क्रियाएँ आदि मृदा बनने की प्रक्रिया में योगदान देती हैं। 

• मृदा में होने वाले रासायनिक और जैविक परिवर्तन भी महत्त्वपूर्ण हैं। मृदा जैव और अजैव दोनों प्रकार के पदार्थों से निर्मित होती है।

• भारत जैसे विशाल देश में विभिन्न प्रकार की मिट्टियां पाई जाती है जो कि देश के अलग-अलग फसलों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। 

• भारतीय मिट्टीयों का सर्वेक्षण समय-समय पर कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के द्वारा किया जाता रहता है। 

• अगर हम देश में मौजूद मिट्टी के प्रकारों की बात करें तो यहां मुख्य रूप से पांच प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। 

• ये सभी मिट्टी अपने जगह-जगह के जलवायु के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। 

 

हमारे देश में मुख्य रूप से 5 प्रकार की मिट्टियां पाई जाती है:-

1.  जलोढ़ मिट्टी

• जलोढ़ मिट्टी को कछार मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।

• नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी कहते है। 

• यह मिट्टी देश के मुख्य उत्तरी मैदान में पाई जाती है।

• प्रकृति रूप से य़ह काफी उपजाऊ मिट्टी होती है।

• यह मिट्टी मुख्यता गंगा, सिन्धु और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाई जाती है। 

• यह उपजाऊ मिट्टी राजस्थान के उत्तरी भाग, पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम के आधे भाग में पाई जाती है।

• ये मिट्टी नदियों के द्वारा जमा किए गए तलछटो से बनती है।

• यह मृदा विस्तृत रूप से फैली हुई है और यह देश की महत्त्वपूर्ण मृदा है। 

• भारत का संपूर्ण उत्तरी मैदान जलोढ़ मृदा से बना है। 

• यह मृदाएँ हिमालय की तीन महत्त्वपूर्ण नदी तंत्रों सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाए गए निक्षेपों से बनी हैं। 

• एक सँकरे गलियारे के द्वारा ये मृदाएँ राजस्थान और गुजरात तक विस्तृत हैं। 

• पूर्वी तटीय मैदान, विशेषकर महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों के डेल्टे भी जलोढ़ मृदा (Alluvial soil) से बने हैं।

• जलोढ़ मृदा (Alluvial soil) में रेत, सिल्ट और मृत्तिका के विभिन्न अनुपात पाए जाते हैं। जैसे हम नदी के मुहाने से घाटी में ऊपर की ओर जाते हैं मृदा के कणों का आकार बढ़ता चला जाता है। 

• नदी घाटी के उपरी भाग में, जैसे ढाल भंग के समीप मोटे कण वाली मृदाएँ पाई जाती हैं। कणों के आकार या घटकों वेफ अलावा मृदाओं की पहचान उनकी आयु से भी होती है। 

इसके आधार पर जलोढ़ मृदाएँ दो प्रकार की हैं :-

1. बांगर मृदा (पुराना जलोढ़) 

 2. खादर मृदा (नया जलोढ़)

• जलोढ़ मृदाएँ बहुत उपजाऊ होती हैं। अधिकतर जलोढ़ मृदाएँ पोटाश, फास्पफोरस और चूनायुक्त होती हैं जो इनको गन्ने, चावल, गेहूँ और अन्य अनाजों और दलहन फसलों की खेती के लिए उपयुक्त बनाती है। 

• अधिक उपजाऊपन के कारण जलोढ़ मृदा वाले क्षेत्रों में गहन कृषि की जाती है और यहाँ जनसंख्या घनत्व भी अधिक है। सूखे क्षेत्रों की मृदाएँ अधिक क्षारीय होती हैं। 

• इन मृदाओं का सही उपचार और सिंचाई करके इनकी पैदावार बढ़ाई जा सकती है।

जलोढ़ मिट्टी की विशेषता :-

क. ये खाद से भरपूर और उपजाऊ होती है।

ख. हर साल इसका नवीनीकरण होता है।

ग. चावल, गेहूं, गन्ना, जूट और दालें इस मिट्टी पर उगने वाली मुख्य फसलें है।

2. काली मिट्टी

• काली मिट्टी की सबसे खास विशेषता यह है कि यह नमी को अधिक समय तक बनाए रखती है। 

• इस मिट्टी को कपास की मिट्टी या रेगड़ मिट्टी भी कहते है। 

• काली मिट्टी कपास की उपज के लिए महत्वपूर्ण है। 

• यह मिट्टी लावा प्रदेश में पाई जाती है। 

• जो की गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश समेत आंध्र प्रदेश के पश्चिमी भाग में आता है।

• इन मृदाओं का रंग काला है और इन्हे ‘रेगर’ मृदाएँ भी कहा जाता है। 

• काली मृदा कपास की खेती के लिए उचित समझी जाती है काली मृदा के निर्माण में जलवायु और जनक शैलों ने काली मृदा के बनने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 

• इस प्रकार की मृदाएँ दक्कन पठार , बेसाल्ट क्षेत्र के उत्तर पश्चिमी भागों में पाई जाती हैं और लावा जनक शैलों से बनी है।

• ये मृदाएँ  महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठार पर पाई जाती हैं और दक्षिण पूर्वी दिशा में गोदावरी और कृष्णा नदियों की घाटियों तक विस्तृत हैं।

• काली मृदा बहुत महीन कणों अर्थात् मृत्तिका से बनी है। इसकी नमी धारण करने की क्षमता बहुत होती है। 

• इसके अलावा ये मृदाएँ कैल्शियम कार्बाेनेट, मैगनीशियम, पोटाश और चूने  जैसे पौष्टिक तत्त्वों से परिपूर्ण होती हैं, परंतु इनमें फास्फोरस की मात्रा कम होती है। 

• गर्म और शुष्क मौसम में इन मृदाओं में गहरी दरारें पड़ जाती हैं जिससे इनमें अच्छी तरह वायु मिश्रण हो जाता है। 

• गीली होने पर ये मृदाएँ चिपचिपी हो जाती है और इन को जोतना मुश्किल होता है।

• इसलिए, इसकी जुताई मानसून प्रारंभ होने की पहली बौछार से ही शुरू कर दी जाती है।

काली मिट्टी की विशेषता

क. ये मिट्टी ज्वालामुखी प्रवाह से बनती है।

ख. इसमें चूना, मैग्नेशियम और लौह जैसे खनिज तत्व पाए जाते है।

ग. इसमें पोटाश, नाइट्रोजन और जैविक पदार्थों की कमी पाई जाती है।

घ. ये कपास की खेती के लिए काफी उपयुक्त मिट्टी मानी जाती है।

3. लाल मिट्टी

• लाल मृदा दक्कन पठार के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में रवेदार आग्नेय चट्टानों पर कम वर्षा वाले भागों में विकसित हुई है। 

• लाल और पीली मृदाएँ ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य गंगा मैदान के दक्षिणी छोर पर और  पश्चिमी घाट में पहाड़ी पद पर पाई जाती है। 

• इन मृदाओं का लाल रंग रवेदार आग्नेय और रूपांतरित  चट्टानों में लौह धातु के प्रसार के कारण होता है।

• इनका पीला रंग इनमें जलयोजन के कारण होता है।

• यह मिट्टी चट्टानों से कटी हुई मिट्टी है।

• यह अधिकतर भारत के दक्षिणी भू-भाग पर मिलती है। 

• इस मिट्टी का क्षेत्र महाराष्ट्र के दक्षिणी भू-भाग में, मद्रास में, आंध्र में, मैसूर में, झारखंड के छोटा नागपुर व पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों तक फैली हुई है।

लाल मिट्टी की विशेषता :-

क. इस मिट्टी में लालपन इसमें मौजूद लौह तत्वों के कारण होती है।

ख. इसमें गेहूं, चावल, बाजरा, तिलहन और कपास की खेती को किया जा सकता है।

ग. ये दक्षिण के हिस्से तमिलनाडु, महाराषअट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाई जाती है।

4. रेतीली मिट्टी

• यह मिट्टी रेगिस्तान के थार प्रदेश में, पंजाब के दक्षिणी भू-भाग के साथ राजस्थान के कुछ अन्य भागों में मिलती है।

• ये मिट्टी ज्यादातर राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों मे ही पाई जाती है।

• यह अच्छी तरह से उपजाऊ और विकसित मिट्टी नहीं होती है।

• वाष्पीकरण बारिश के अधिक हो जाने के कारण इस मिट्टी में नमक की मात्रा काफी ज्यादा होती है।

• मरुस्थली मृदाओं का रंग लाल और भूरा होता है। ये मृदाएँ आम तौर पर रेतीली और लवणीय होती हैं। 

• कुछ  क्षेत्रों में नमक की मात्रा इतनी अधिक है कि झीलों से जल वाष्पीकृत करके खाने का नमक भी बनाया जाता है। 

• शुष्क जलवायु और उच्च तापमान के कारण जलवाष्पन दर अधिक है और मृदाओं में  नमी की मात्रा कम होती है। मृदा की सतह के नीचे कैल्शियम की मात्रा बढ़ती चली जाती है और नीचे की परतों में चूने की सतह पाई जाती है। 

• इसके कारण मृदा में जल अंतः स्यंदन (Infiltration) अवरुद्ध हो जाता है। 

• इस मृदा को सही तरीके से सिंचित करके कृषि योग्य बनाया जा सकता है, जैसा कि वर्तमान में  पश्चिमी राजस्थान में हो रहा है।

इस मिट्टी की विशेषता :-

क. ये ज्यादातर खारी परत का रूप ले लेती है।

ख. इस मिट्टी में गेहूं, बाजरा, मूंगफली को उगाया जा सकता है।

ग. जैविक पदार्थों की इसमें काफी कमी होती है।

घ. यह मिट्टी तेलहन के उत्पादन के लिए अधिक उपर्युक्त मानी जाती है।

 

5. लैटराइट मिट्टी

 

• लैटेराइट शब्द ग्रीक भाषा के शब्द लेटर (Latter) से लिया गया है जिसका अर्थ है ईंट|

• लैटेराइट मृदा उच्च तापमान और अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है। 

• यह भारी वर्षा से अत्यधिक निक्षालन (Leaching) का परिणाम है। 

• इस मृदा में नमी की मात्रा कम पाई जाती है क्योंकि अत्यधिक तापमान के कारण जैविक पदार्थों को अपघटित करने वाले बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। 

• लेटराइट मृदा पर अधिक मात्रा में खाद और रासायनिक उर्वरक डाल कर ही खेती की जा सकती है। 

• ये मृदाएँ मुख्य तौर पर कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और ओडिशा तथा असम के पहाड़ी क्षेत्रा में पाई जाती है।

• मृदा संरक्षण की उचित तकनीक अपना कर इन मृदाओं पर कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में चाय और काॅफी उगाई जाती हैं। 

• तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल की लाल लेटराइट मृदाएँ काजू की फसल के लिए अधिक उपयुक्त हैं।

• लैटराइट मिट्टी, दक्षिणी प्रायद्वीप के दक्षिण पूर्व की ओर पतली पट्टी के रूप में मिलती है।

• इस मिट्टी को प्राय पश्चिम बंगाल से लेकर असम के क्षेत्रों तक देखा जाता है।

मिट्टी की विशेषता :-

क. यह मिट्टी आमतौर पर केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उड़ीसा में पाई जाती है।

ख. इस मिट्टी में चाय, कॉफी, नारियल, सुगंधित अखरोट आदि उगाए जाते है।

ग. इस मिट्टी का गठन निक्षालन के कारण होता है, चोटियों के समकक्ष पर यह अच्छी तरह से विकसित होती है।

 

आमतौर पर मिट्टी को उपज की दृष्टि से इस तरह से होना चाहिए कि ‘वह पौधों की जड़ों को सही ढंग से पकड़ सकें और साथ ही मुलायम भी हो ताकि वह पूरी तरह से जल को सोख सके।

 इसके साथ ही मिट्टी में संतुलित क्षार भी होना चाहिए।

सर्वप्रथम 1879 ई० में डोक शैव ने मिट्टी का वर्गीकरण किया और मिट्टी को सामान्य और असामान्य मिट्टी में विभाजित किया :-
 

1. जलोढ़ मिट्टी या कछार मिट्टी (Alluvial soil),
2. काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी (Black soil),
3. लाल मिट्टी (Red soil),
4. लैटराइट मिट्टी (Laterite) 
5. मरु मिट्टी (desert soil)।

 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने भारत की मिट्टी को आठ समूहों में बांटा है: -

(1) जलोढ़ मिट्टी
(2) काली मिट्टी
(3) लाल एवं पीली मिट्टी
(4) लैटराइट मिट्टी
(5) शुष्क मृदा (Arid soils)
(6) लवण मृदा (Saline soils)

(7) पीटमय मृदा (Peaty soil) तथा जैव मृदा (Organic soils
(8) वन मृदा (Forest soils)

जल को अवषोषण करने की क्षमता सबसे अधिक दोमट मिट्टी में होती है। 
मृदा संरक्षण के लिए 1953 में केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड की स्थापना की गयी थी। 
मरूस्थल की समस्या के अध्ययन के लिए राजस्थान के जोधपुर में अनुसंधान केन्द्र बनाये गये हैं।

 

मिट्टी के अन्य प्रकार:-

 

वन मृदा (Forest Soil):-

• ये मृदाएँ आमतौर पर पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहाँ पर्याप्त वर्षा-वन उपलब्ध हैं। 

• इन मृदाओं के गठन में पर्वतीय पर्यावरण के अनुसार बदलाव आता है। 

• नदी घाटियों में ये मृदाएँ दोमट और सिल्टदार होती है परंतु ऊपरी ढालों पर इनका गठन मोटे कणों का होता है।

• हिमालय के हिमाच्छादित क्षेत्रों में इन मृदाओं का बहुत अपरदन होता है और ये अधिसिलिक (Acidic) तथा ह्यूमस रहित होती हैं। 

• नदी घाटियों के निचले क्षेत्रों, विशेषकर नदी सोपानों और जलोढ़ पंखों, आदि में ये मृदाएँ उपजाऊ होती हैं।

​​जैविक मिट्टी (पीट मिट्टी)

• जैविक मिट्टी को दलदली मिट्टी के नाम से जाना जाता है। 

• भारत में दलदली मिट्टी का क्षेत्र केरल, उत्तराखंड एवं पश्चिम बंगाल में पाये जाते है।

• दलदली मिट्टी में भी फॉस्फोरस एवं पोटाश की मात्रा कम होती है, लेकिन लवण की मात्रा अधिक होती है।

• दलदली मिट्टी भी फसल के उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है।

 

लवणीय मिट्टी या क्षारीय मिट्टी

• लवणीय मिट्टी को क्षारीय मिट्टी, रेह मिट्टी, उसर मिट्टी एवं कल्लर मिट्टी के नाम से जाना जाता है। 

• क्षारीय मिट्टी वैसे क्षेत्र में पाये जाते हैं, जहाँ पर जल की निकास की सुविधा नहीं होती है। 

• वैसे क्षेत्र की मिट्टी में सोडियम, कैल्सियम एवं मैग्नीशियम की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे वह मिट्टी क्षारीय हो जाती है। 

• क्षारीय मिट्टी का निर्माण समुद्रतटीय मैदान में अधिक होती है। इसमें नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है।

• भारत में क्षारीय मिट्टी पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान एवं केरल के तटवर्ती क्षेत्र में पाये जाते हैं। क्षारीय मिट्टी में नारियल की अच्छी खेती होती है।

 

पर्वतीय मिट्टी

• पर्वतीय मिट्टी में कंकड़ एवं पत्थर की मात्रा अधिक होती है। 

• पर्वतीय मिट्टी में भी पोटाश, फास्फोरस एवं चूने की कमी होती है। पहाड़ी क्षेत्र में खास करके बागबानी कृषि होती है। 

• पहाड़ी क्षेत्र में ही झूम खेती  होती है। 

• झूम खेती सबसे ज्यादा नागालैंड में की जाती है। 

• पर्वतीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा गरम मसाले की खेती की जाती है।

 

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