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विनोबा भावे का भूमिहीन किसानों के लिए समानता का प्रयास(Vinoba Bhave's attempt at equality for the landless farmers) GS Mains Writing

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-08-05 16:01:37

प्रश्न-  आचार्य विनोबा भावे के भूदान व ग्रामदान आंदोलन स्वतंत्र भारत में समानता के लिए एक संघर्ष थी। इसकी विवेचना करें।

उत्तर - ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के पश्चात देश में समानता की अवधारणा को जमीनी स्तर से जोड़ना हमारे संविधान निर्माताओं का प्रमुख उद्देश्यों में से एक महत्वपूर्ण उद्देश्य था जो कि भारतीय संविधान के वर्तमान प्रस्तावना में भी निहित है और संविधान बनते समय उद्देशिका में भी निहित थे।

छात्र/छात्रा चाहे तो अपने उत्तर सीधे भूदान आंदोलन से भी शुरू कर सकते हैं, कृषि भूमि का तत्कालीन महत्व को बताते हुए।

 समाज में समानता की अवधारणा को व्यापक बनाने के लिए संविधान में जहां बहुत से प्रावधान दिए गए, सरकार द्वारा कई योजनाएं लाए गए, वहीं आर्थिक विषमता को एवं कृषि जोत में व्याप्त असमानता को दूर करने के लिए आचार्य विनोबा भावे द्वारा सन 1951 ईस्वी में आंध्र प्रदेश के पोचमपल्ली गांव जो कि वर्तमान में तेलांगना का भाग है, यहां से भूदान आंदोलन की शुरुआत किए गए। जिसका उद्देश्य भूमिहीन कृषि को की दयनीय दशा को सुधारना था।

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भूदान आंदोलन एक स्वैच्छिक भूमि सुधार आंदोलन था, जिसे रक्तहीन क्रांति का भी नाम दिया गया। विनोबा भावे की कोशिश थी कि भूमि का पुनर्वितरण सिर्फ  सरकारी कानूनों के जरिए ना होकर एक सामाजिक आंदोलन के माध्यम से भी किया जाए। इसलिए बीसवीं सदीं के पांचवें दशक में भूदान आंदोलन को सफल बनाने के लिए विनोबा जी ने गांधीवादी विचारों को चलते हुए रचनात्मक कार्य और ट्रस्टीशिप जैसे विचारों को प्रयोग में लाए। उन्होंने सर्वोदय समाज की स्थापना किए जोकि रचनात्मक कार्यकर्ताओं का अखिल भारतीय संगठन था एवं इसका उद्देश्य अहिंसात्मक तरीके से देश में सामाजिक परिवर्तन लाना था। विनोबा जी पदयात्रा करते हुए गांव- गांव जाकर स्वामियों से अपनी जमीन का कम से कम छठां हिस्सा दान के रुप में भूमिहीन किसानों को बीच बांटने के लिए देने का अनुरोध करते थे। उनके इस आंदोलन में उस वक्त प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता जयप्रकाश नारायण भी शामिल हो गए थे।

ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के पश्चात, भारत में भूमि का वितरण बहुत ही असमान था। देश की लगभग 57% कृषि योग्य भूमि का स्वामित्व कुछ मुट्ठी भर जमींदारों के हाथों में था।शुरुआती दिनों में विनोबा भावे ने वर्तमान तेलंगाना क्षेत्र के करीब 200 गांवों की यात्रा की थी जिनमें उन्हें दान में 12,200 एकड़ भूमि मिली थी। हालांकि उस समय कुल 5 करोड़ एकड़ जमीन दान में हासिल करने का लक्ष्य रखे थे, जो तत्कालीन भारत में 30 करोड़ एकड़ जोतने लायक जमीन छठां का हिस्सा था।

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कुछ जमींदारों ने जो कि अनेक गांवों के मालिक थे, उन्होंने भूमिहीनों को पूरा गांव देने की पेशकश भी किए‌।  इसे 'ग्रामदान' कहा गया। 'ग्रामदान' का अर्थ होता है 'सारी भूमि गोपाल की'। ग्रामदान वाले गांव की सारी भूमि सामूहिक स्वामित्व की मानी गई, जिस पर सबका बराबर का अधिकार था। इसकी शुरुआत तभी उड़ीसा से हुई थी, जिसमें काफी सफलता मिली। हालांकि  कुछ जमींदारों ने इस आंदोलन का अनुचित लाभ उठाया, वे केवल भूमि सीमांकन कानून से बचने के लिए अपनी भूमि का एक हिस्सा ही दान किया था। 

विनोबा जी का यह प्रयास भूमिहीन कृषक समाज को मुख्यधारा से जुड़ कर अपना जीवन यापन सम्मान पूर्वक से करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रयास था जो कि आर्थिक असमानता को दूर करने का  बेहतर कारण बन सकता था।  हालांकि आरंभिक समय में यह आंदोलन काफी लोकप्रिय भी हुआ और इसे काफी सफलता भी मिली किंतु 1960 के उत्तरार्ध्द से यह आंदोलन कमजोर पड़ने लगा। इसका एक कारण आंदोलन की रचनात्मक क्षमताओं का उचित उपयोग नहीं किया जाना भी था।  दान में मिली 45 लाख एकड़ भूमि में से बहुत कम जमीन ही भूमिहीनों के बीच बांटी जा सकी, क्योंकि इस भूमि का अच्छा खासा भाग खेती के लायक ही नहीं था एवं कुछ जमीन मुकदमों में भी फंसी हुई थी। 


जिन क्षेत्रों में लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं किया गया उन क्षेत्रों पर आगे चलकर नक्सलवादी विचारधारा का प्रचार प्रसार हुआ जिससे वर्ग संघर्ष एवं हिंसा में वृद्धि हुई। अतः भूदान आंदोलन अपेक्षित रूप से भले ही सफलता प्राप्त नहीं कर पाई किंतु स्वतंत्र भारत में समानता के लिए किया गया बहुत ही महत्वपूर्ण संघर्ष रहा जोकि सीमित क्षेत्रों में ही सही किंतु भूमि वितरण में व्याप्त असमानता को दूर करने का प्रयास किया एवं इन क्षेत्रों में वर्ग संघर्ष एवं हिंसा में वृद्धि होने से रोका। कानून के अलावा रचनात्मक आंदोलन के माध्यम से सामाजिक सामांजस  बनाते हुए भूमि सुधार की कोशिश की गई थी, जो कि स्वतंत्र भारत में समाजिक मजबूती के लिए एक रास्ता दिखाया। जिस कारण इस आंदोलन को रक्तहीन क्रांति का भी नाम दिया गया।

छात्र/छात्रा अपनी सुविधा के अनुसार इसमें और भी तथ्यों को जोड़ सकते हैं । जैसे तत्कालीन हैदराबाद के सातवें निजाम द्वारा जमीन दान दिया जाना विनोबा जी को.. उत्तर प्रदेश में भूदान के मामले में एक समय बड़ी सफलता मिलना एवं किन क्षेत्रों में जमीन दान में दिए गए और किन क्षेत्रों में नहीं दिए गए । जिन क्षेत्रों में दान दिए गए तो  कितने दिए गए,  इन तथ्यों को भी जोड़ सकते हैं लेकिन ध्यान रहे उत्तर पढ़ने में बोरिंग ना लगे।

                  द्वारा - चन्द्रशिव सर (Gold Medal Awarded Tutor )

 

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