भारत में बैंकिंग क्षेत्र में एक सेवा प्रधान क्षेत्र है जिसका उद्देश्य वस्तुओं का निर्माण व विक्रय न होकर सेवाएं प्रदान करना है । बैंकिंग सेवाओं की उपयुक्तता, प्रभावकारिता एवं लाभदायकता हेतु यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि बैंक कर्मचारियों को बैंकिंग विधियों, नीतियों, प्रक्रियाओं व व्यवहारों का पर्याप्त ज्ञान हो ।
एक नये विकासोन्मुखी वातावरण की रचना हेतु हमारे बैंक वर्तमान में अपनी गतिविधियों एवं प्रतिक्रियाओं में समय की पुकार के अनुकूल क्रांतिकारी परिवर्तन करने में सतत् प्रयत्नशील है । इस हेतु बैंक कर्मचारियों के शिक्षण एवं प्रशिक्षण हेतु देश में अनेक प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जा चुकी है ।
बैंकिंग सुधार से जुड़ी महत्वपूर्ण समितियां
सुन्दरम समिती (1968ई.) :-
(क) भारतीय बैंकों के कल्याणकारी लक्ष्यों के लिए राष्ट्रीयक कर देना चाहिए |
(ख) बैंकों का विकासात्मक कार्यों में इस्तेमाल करने के लिए |
(ग) क्षेत्रिय प्रसार करने के लिए |
(घ) बैंकों का सीमित हाथों में संकेन्द्रण से रोकने के लिए |
• ‘सुन्दरम समिती’ के सिफारिश पर 1969ई. में 14बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया |
अन्य कुछ प्रमुख समितियां :-
चक्रवर्ती समिति:-
चक्रवर्ती समिति (Chakravarti Committee) ने वर्ष 1985 में बैंकिंग क्षेत्र में सुधार के लिए कुछ सिफारिशें की थी। बैंकिंग क्षेत्र में उच्च स्तर की कार्यप्रणाली एवं दक्षता (Efficiency) को प्राप्त करने के लिए इस समिति का गठन किया गया था। गैर निष्पादित संपत्तियों को वसूलने के सम्बन्ध में सुझाव दिए थे। सरकार द्वारा इस समिति द्वारा दी गई सिफारिशों को ठीक से लागू नहीं किया गया।
2. गोइपोरिया समिति :-
गोइपोरिया समिति ग्राहक सेवा सुधार से सम्बन्धित था।
3. नरसिंहम समिति:-
प्रथम नरसिंहम समिति (Narasimham Committee I) वर्ष 1991 में बनी और यह समिति पूरे वित्त सुधार से जुड़ी थी।
प्रथम नरसिंहम समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्न हैं-
वर्ष 1991 में देश में LPG (Liberalisation, Privatisation and Globalisation) सुधार लागू किए जा चुके थे।
मौद्रिक नीति के उपकरणों (SLR, CRR, Repo Rate आदि) को नीचे लाया जाए।
प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए गैर-सरकारी एवं विदेशी बैंकों को बढ़ावा दिया जाए।
भारत में 4 स्तरीय बैंकिंग हो –
अंतर्राष्ट्रीय स्तरीय
राष्ट्रीय स्तरीय
जिला स्तरीय
ग्राम स्तरीय
बैंकों को खुद अपनी ब्याज दरें तय करने की छूट दी जाए।
जो बैंक नरसिम्हन समिति के सुझावों के बाद (1994 के बाद) बनाए गए थे, उन्हें दूसरी पीढ़ी के बैंक कहा गया।
द्वितीय नरसिंहम समिति (Narasimham Committee II) वर्ष 1998 में बनाई गई थी।ये समिति पूर्णतः बैंकिंग सुधारों से सम्बन्धित थी।
नरसिंहम समिति द्वितीय के प्रमुख सुझाव निम्न हैं-
गैर निष्पादित संपत्तियों में सुधारों के द्वारा बैंकों के परिसंपत्तियां को मजबूत बनाने की बात की।
नष्ट परिसंपत्तियों के लिए एक संस्था बनाई जाए ताकि उनको वसूला जा सके।
प्राथमिकता क्षेत्र में ऋण दान को रोक दिया जाए, जिससे बैंकों के NPA में कमी की जा सके।
भारतीय रिजर्व बैंक के लिए वित्तीय पर्यवेक्षण बोर्ड (Board Of Financial Supervision) लाया जाए। जोकि एक स्वतंत्र एवं स्वायत्त संस्था हो एवं इसे राजनीति से दूर रखा जाए।
विस्तार पूर्वक :-
भारतीय अर्थव्यवस्था में 1991 के आर्थिक संकट के उपरान्त बैंकिंग क्षेत्र के सुधार के दृष्टि से जून 1991 में एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में नरसिंहम् समिति अथवा वित्तीय क्षेत्रीय सुधार समिति की स्थापना की गई जिसने अपनी संस्तुतियां दिसंबर 1991 में प्रस्तुत की। नरसिंहम समिति की द्वितीय में स्थापना 1998 में हुई।
नरसिंहम् समिति की सिफारिशों ने भारत में बैंकिंग क्षमता को बढ़ने में मदद की है। इसने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये व्यापक स्वायत्तता प्रस्तावित की गई थी। समिति ने बड़े भारतीय बैंकों के विलय के लिये भी सिफारिश की थी। इसी समिति ने नए निजी बैंकों को खोलने का सुझाव दिया जिसके आधार पर 1993 में सरकार ने इसकी अनुमति प्रदान की। भारतीय रिजर्व बैंक की देखरेख में बैंक के बोर्ड को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखने की सलाह भी नरसिंहम् समिति ने दी थी।
वित्तीय प्रणाली की समीक्षा के लिए एम. नरसिंहम ने 1991 में निम्नलिखित सिफारिशें की-
इस समिति ने तरलता अनुपात में कमी करने की सिफारिश की जिसमें कानूनी तरलता अनुपात (SLR) को अगले पांच वर्षों में 38.5 प्रतिशत से कम करके 28 प्रतिशत कर देने की सिफारिश की।
इस समिति ने निर्देशित ऋण कार्यक्रमों को समाप्त करने की सिफारिश की।
इस समिति के अनुसार ब्याज दरों का निर्धारण बाजार की शक्तियों के द्वारा होना चाहिए। ब्याज दरों के निर्धारण में रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
इस समिति ने बैकों की लेखा प्रणाली में भी सुधार करने की बात की।
इस समिति ने बैकों के ऋणों की समय पर वसूली के लिए विशेष ट्रिब्यूनल की स्थापना पर जोर दिया।
नरसिंहम समिति ने बैंकों के पुनर्निर्माण के ऊपर भी जोर दिया। इस समिति के अनुसार 3 या 4 अन्तर्राष्ट्रीय बैंक, 8 या 10 राष्ट्रीय बैंक तथा कुछ स्थानीय बैंक एवं कुछ ग्रामीण बैंक एक देश के अन्दर होने चाहिए।
इस समिति ने शाखा लाइसेंसिंग की समाप्ति की सिफारिश की।
नरसिंहम समिति ने विदेशी बैंकिग को भी अपने देश में प्रोत्साहित करने की सिफारिश की।
इस समिति ने बैंकों पर दोहरे नियंत्रण को समाप्त करने की सिफारिश की।
पहले बैंकों पर वित्त मंत्रालय तथा रिजर्व बैंक का नियंत्रण होता था। नरसिंहम कमेटी ने सुझाया कि बैंकों पर केवल रिजर्व बैंक का नियंत्रण होना चाहिए।
1998 में गठित नरसिंहम समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित हैः-
सुदृढ़ वाणिज्यिक बैंकों आपस में विलय अधिकतम आर्थिक और वाणिज्यिक माहौल पैदा करेगा और इससे उद्योगों का विकास होगा।
सुदृढ़ वाणिज्यिक बैकों का विलय कमजोर वाणिज्यिक बैकों के साथ नहीं किया जाना चाहिए।
देश के बड़े बैंकों को अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया जाना चाहिए।
जोखिम भरी आस्तियों से पूंजी के अनुपात को सन् 2000 तक 9 प्रतिशत तथा सन् 2002 तक 10 प्रतिशत के स्तर पर लाया जाना चाहिए।
सरकारी प्रतिभूतियों द्वारा कवर किए गए असुविधाजनक हो चुके ऋणों को गैर निष्पादनीय अस्ति माना जाए।
रुपये 2,00,000 लाख से कम के ऋणों पर ब्याज नियंत्रण का अधिकार बैंकों को दिया जाए।
4. वर्मा समिति :-
वर्मा पैनल (Verma Committee) वर्ष 1998 में बनाया गया था। वर्मा पैनल ने कमजोर बैंकों को बड़े बैंकों में विलय कराने की सलाह दी थी।
एस.इ.पी : - 1999ई. में वर्मा समिति ने यह सूत्र दिया था |
एस. – सोल्वंसी (अदायगी)
इ . – अर्निंग
पी. – प्रोफिटेबिलिटी
इनकी अन्य सिफारिशें :-
(क) बैंकों के व्यय के प्रबंधन बेहतर किया जाए |इसके लिए वलान्ट्री रिटायरमेंट स्कीम ( स्वेच्छिक सेवानिवृत्त योजना ) जैसी व्यवस्था को लाया जाए | ऐसी व्यवस्था लाने से कर्मचारियों के खर्च में 25%की कमी आ जाएगी |
(ख) वी.आर.एस यदि सफल णा हो तो ऐसी स्थिति में भत्तों को रोक दिजिये |
(ग) दुर्बल बैंकों को विदेशी शाखा खोलने णा दिया जाए |
(घ) एक बार जब दुर्बल बैंक का पुनर्निर्माण हो जाए तो इसको या तो बड़े बैंकों के साथ जोड़ दिया जाए या इनका भी विनिवेश कर दिया जाए |
5. दामोदरण समिति :-
दामोदरण समिति (Damodaran Committee) वर्ष 2011 में आयी थी।
दामोदरण समिति के प्रमुख सुझाव निम्नवत हैं-
बैंकिंग क्षेत्र में ग्राहकों से उपयोगकर्ता शुल्क को घटाने की सिफारिश की।
बैंक खातों में न्यूनतम राशि बनाय रखने की आवश्यकता को हटाने की बात कही।
ग्राहकों द्वारा बैंकों में ऋण हेतु बंधक रखी गयी परिसंपत्तियां एवं उनसे संबंधित दस्तावेज, ऋण चुकाने के 15 दिनों की अंतराल में वापस देने का सुझाव दिया।
बैंकों से संबंधित शिकायतों के लिए एकीकृत सहायता केंद्र (कॉल सेंटर) का भी सुझाव दिया।
6. विमल जालान समिति :-
विमल जालान समिति (Vimal Jalan Committee) के तहत भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रह चुके विमल जालान ने 2013 में अपनी रिपोर्ट पेश की।
इस रिपोर्ट की महत्वपूर्ण बिन्दु निम्नवत हैं-
बैंकों के लाइसेंस से जुड़े नये निर्देश दिए।
इन्ही की सिफारिश पर 2014 पर IDFC (Infrastructure Development Finance Company) और बंधन बैंक जो कि पहले गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC-Non Banking Financial Companies) थी, इन दोनों को बैंक का दर्जा दिया गया।
NBFC (Non-Banking Financial Company) – ऐसे क्षेत्र जहां ऋण की मांग ज्यादा और बैंकों की पहुंच कम वहां NBFC (प्राइवेट कंपनियां) द्वारा जनता को ऋण दिया जाता है। यदि इनका काम अच्छा होता है तो इन्हें बैंक बनाया जा सकता है।
ये बैंकों से 2 तरह से अलग होती हैं-
भारतीय बैंकिंग एक्ट के तहत पंजीकृत नहीं होती।
ये जमा नहीं सिर्फ ऋण देते हैं।
बैंक बनने के लिए इनके पास 200 करोड़ की परिसंपत्तियां और इनका कुल NPA 5% से कम होना चाहिए। साथ ही इन NBFCs का किसी भी औद्योगिक घराने से सम्बन्ध नहीं होना चाहिए।
7. नचिकेत मोर समिति
नचिकेत मोर समिति (Nachiket Mor Committee) वर्ष 2016 में आयी थी।
नचिकेत मोर समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नवत हैं-
प्रत्येक वयस्क का एक खाता हो।
देश के हर जगह 15 मिनट की दूरी पर बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध हों।
प्राथमिकता क्षेत्र को मिलने वाला ऋण 40% से बढ़ाकर 50% कर दिया जाए।
अपना ग्राहक जानो (KYC – Know Your Customer) को लाने का सुझाव।
अलग-अलग क्षेत्रों (प्राथमिक, द्वितीयक एवं सेवा क्षेत्र) के लिए अलग-अलग बैंक हो।
2014 के प्रारंभ से 12 महीनों के भीतर 18 वर्ष एवं उससे ऊपर की आयु के 50% जनता को बैंक खाता प्रदान किया जाए।
इसके बाद के 12 महीनों में बचे हुए 50% जनता को भी बैंक खाता प्रदान किया जाए।
इस उद्देश्य से ग्रामीण क्षेत्रों में 15 मिनट की पैदल दूरी पर बैंकिंग सेवा उपलब्ध हो।
वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देश के वित्तीय स्वास्थ्य के साथ किसी भी प्रकार का समझौता ना किया जाए अतः आधार कार्ड को मुख्य आधार बनाया जाया।
समिति के अनुसार यदि बड़े वाणिज्यिक बैंकों को यह जिम्मेदारी सौंपी जाए तब वे समर्पित रूप से इसे पूरा नहीं कर पाएंगे।
अतः ऐसे वर्गीकृत बैंकों की स्थापना की जाए जो ऐसे उद्देश्य की पूर्ति के लिए समर्पित हो।
इसी वर्गीकृत बैंक के रूप में पेमेंट बैंक (भुगतान बैंक) एवं स्मॉल फाइनेंस बैंक (लघु वित्तीय बैंक) की अवधारणा प्रस्तुत की गई। इन बैंकों की स्थापना के लिए नवंबर 2014 में आरबीआई ने दिशानिर्देश जारी किए।
8. के.एस.सेरे समिति (1990) :-
(क) इनकी सिफारिश थी कि बैंकों में इ.एफ.टी की व्यवस्था अपनाई जाए
(ख) इन्हीं के सिफारिश के आधार पर बैंकर्स बुक इरिडेंस एक्ट – 1891 में संसोधन किया गया , जिसे उपभोक्ताओं और बैंकों दोनों की सुविधा के अंतर्गत इ.एफ.टी को अपनाया |
इ.एफ.टी को तीन चरणों में अपनाया गया था :-
(अ) अंत:बैंक अंतर शाखाई (इन्टेरा)
(आ) सरकारी विभाग एवं बैंकों के बीच
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