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काला धन

By - Admin

At - 2024-01-25 09:56:12

काला धन

प्रख्यात भारतीय अर्थशास्त्री अरुण कुमार की पुस्तक “अंडरस्टैंडिंग द ब्लैक इकॉनमी एंड ब्लैक मनी इन इंडिया” के अनुसार, भारत की ब्लैक इकॉनमी का कुल मूल्य देश की GDP के 62 प्रतिशत के बराबर है।

वस्तुतः अर्थशास्त्र में काले धन की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है, कुछ लोग इसे समानांतर अर्थव्यवस्था के नाम से जानते हैं तो कुछ इसे काली आय, अवैध अर्थव्यवस्था और अनियमित अर्थव्यवस्था जैसे नामों से भी पुकारते हैं। 

इसके दो रुप होते है :-

  • धन  (ख) आय

भारत में, अवैध तरीकों से अर्जित किया गया धन काला धन (ब्लैक मनी) कहलाता है। काला धन वह भी है जिस पर कर नहीं दिया गया हो। भारतीयों द्वारा विदेशी बैंको में चोरी से जमा किया गया धन का निश्चित ज्ञान तो नहीं है किन्तु श्री आर वैद्यनाथन ने अनुमान लगाया है कि इसकी मात्रा लगभग 7,280,000 करोड रूपये हैं।

 

जमा के आधार पर काले धन के विविध रूप   :-

1. आतंरिक काला धन:-

क..करेंसी का संग्रह करके

ख. सोना ,चाँदी आदि बहुमूल्य

 ग. धातुओं का संग्रह करके

घ. अचल संपत्ति के रूप में

 

 

2. बाह्य काला:-

क. विदेश के बैंकों में जमा धन

ख. विदेश में अचल सम्पति या उद्योग में निवेश करके या शेयर का रूप में

ग. टैक्स हेवन देशों में जमा धन

 

काला धन रोकने के कुछ  उपाय :-

क. करेंसी का विमुद्रीकरण करके,

ख. सोने, चाँदी आदि के आभूषणों में हॉलमार्क चिन्ह की अनिवार्यता कर,

ग.बेनामी या अवैध ढंग से अर्जित की गई संपत्ति को जब्त करके,

घ. किसी भी सामान की खरीदी पर बिल बनवाकर।

 

अर्थात काला बाज़ार (black market), भूमिगत अर्थव्यवस्था  (underground economy) या छुपी अर्थव्यवस्था (shadow economy) ऐसा छुपा हुआ बाज़ार होता है जिसमें कोई ग्रैर-कानूनी गतिविधियाँ चल रही होती हैं या किसी अन्य रूप में स्थापित नियमों का उल्लंघन करा जा रहा होता है। ऐसे बाज़ार में अक्सर विधि द्वारा वर्जित माल या सेवाएँ (जैसे कि वर्जित नशे के पदार्थ या वैश्या सेवाएँ) बेचे जा रहे होते हैं, किसी अनिवार्य कर को देने से बचा जा रहा होता है (जैसे कि तस्करी द्वारा लाया गया विदेशी माल जिसपर आयात कर नहीं दिया गया है) या किसी ऐसे व्यक्ति को चीज़े बेची जा रही होती हैं जो कानूनन वर्जित है (जैसे कि किशोरों को सिगरेट)। कभी-कभी आर्थिक संतुलन को हस्तक्षेप से बिगाड़ने वाली, नीयत से सही लेकिन आर्थिक रूप से गलत, सरकारी नीतियों के अनपेक्षित परिणाम में भी कालाबाज़ारी को बढ़ावा मिल सकता है।

हालांकि  सरकार ने वर्ष 2016 में काला धन समाप्त करने के उद्देश्य से ‘नोटबंदी’ जैसा बड़ा कदम उठाया था, परंतु जब RBI ने वर्ष 2017-18 के लिये अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की तो यह तथ्य सामने आया कि प्रतिबंधित नोटों में लगभग 99.3 प्रतिशत नोट बैंकों के वापस आ गए हैं। वस्तुतः नोटबंदी के विकल्प के अतिरिक्त अतिरिक्त काला धन अधिनियम को भी एक महत्त्वपूर्ण उपकरण माना जा रहा था जिससे लोगों को अपेक्षाएँ थी

 

स्त्रोत के आधार पर काला धन को मुख्यतः दो श्रेणियों से प्राप्त किया जा सकता है: -

1. गैर कानूनी गतिविधियों से।

2. कानूनी परंतु असूचित गतिविधियों से।

 

यहां पहली श्रेणी ज़्यादा स्पष्ट है, क्योंकि जो आय गैर-कानूनी गतिविधियों से कमाई जाती है, वह सामान्यतः कर अधिकारियों से छुपी होती है और इसलिये उसे काला धन कहा जाता है। जबकि दूसरी श्रेणी में उस आय को सम्मिलित किया जाता है जो कमाई तो कानूनी गतिविधियों से जाती है, परंतु उसके बारे में कर अधिकारियों को सूचित नहीं किया जाता है।

आमतौर पर लोग यह समझते हैं कि जाली मुद्रा काले धन का ही एक रूप होती है, परंतु असल में ऐसा नहीं है। जहाँ एक ओर जाली मुद्रा का संबंध अनधिकृत एजेंटों द्वारा नए और नकली नोट छापने से है, वहीं काले धन का प्रत्यक्ष संबंध कर की चोरी से होता है।

 

भारत में काला धन

 

  • भारत में काले धन की समस्या का विकास 1960 के दशक से शुरू हुआ था। उस समय इसका मुख्य कारण आय और कॉर्पोरेट कर की उच्च दर को बताया गया था। उच्च करों की दर का परिणाम यह हुआ कि आम लोग और व्यापारिक समुदाय काफी बड़े पैमाने पर कर की चोरी करने लगे। वर्ष 1991 में उदारीकरण के पश्चात् काले धन का मुद्दा और भी जटिल हो गया।
  • चूँकि काले धन की गणना अपेक्षाकृत काफी कठिन होती है और इसके निर्धारण में प्रयोग होने वाली मान्यताओं में अब तक एकरूपता नहीं आ पाई है इसलिये इसकी निश्चित मात्रा का अनुमान अब नहीं लगाया गया है। इस संबंध में अलग-अलग रिपोर्ट्स अलग-अलग अनुमान प्रस्तुत करती हैं।
  • ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि काले धन के रूप में भारत ने वर्ष 2001-2010 की समय सीमा में लगभग 120 बिलियन अमेरिकी डॉलर खो दिये। विदित है कि इस रिपोर्ट में काले धन के निर्माण में भारत को 8वाँ स्थान प्राप्त हुआ था।
  • इसी प्रकार भारत के एक पूर्व CBI निदेशक ने कहा था कि भारत में काले धन की कुल मात्रा लगभग 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • कई विद्वानों का मत है कि भारत का लगभग 90 प्रतिशत काला धन भारत में ही स्थित है जिसका मूल्य तकरीबन 70 लाख करोड़ है। एक अध्ययन के मुताबिक भारत में काले धन के रूप में कमाए गए 100 रुपए में से 90 रुपए भारत में ही रहते हैं जबकि शेष 10 रुपए राउंड ट्रिपिंग और ट्रांसफर प्राइसिंग जैसी वित्तीय पद्धतियों के माध्यम से देश से बाहर चले जाते हैं।

 

काले धन की उत्पत्ति

 

1. भ्रष्टाचार :- विशेषज्ञ काले धन की उत्पत्ति के पीछे कई कारण गिनाते हैं, परंतु इनमें से भ्रष्टाचार को सबसे महत्त्वपूर्ण कारण माना जाता है। रिश्वत लेना या देना तथा नौकरशाहों, राजनेताओं, सिविल सेवकों एवं हाई प्रोफाइल कारोबारियों द्वारा ऐसी मुद्रा में लेन-देन करना जिसे सरकार की नज़रों से छिपाया गया हो जैसे प्रथाएँ देश में काले धन की उत्पत्ति को बढ़ावा देती हैं।

 

2. उच्च कर :- जानकार करों की उच्च दर को भी काले धन की उत्पत्ति का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण मानते हैं। करों की उच्च दर आम नागरिकों को अपनी आय पर कर न देने और उसे अवैध रूप से रखने के लिये मजबूर करती हैं।

 

3. विदेशी बैंक :- विदेशी बैंक भी इस संदर्भ में एक विशेष भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे विदेशों में काले धन के जमाखोरों के लिये एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करते हैं। विशेष रूप से स्विस बैंक उन लोगों के लिये सबसे सुरक्षित जगह बन गई है जो कर का भुगतान नहीं करना चाहते हैं और सरकार से अपनी आय छिपाते हैं, क्योंकि ये अपने ग्राहकों की किसी भी जानकारी का खुलासा नहीं करते हैं। रिपोर्ट बताती हैं कि स्विस बैंक के खातेधारकों में सबसे अधिक संख्या भारतीयों की है।

4. चुनाव अभियान :-  चुनावी अभियानों भी काले धन की उत्पत्ति में अहम योगदान देते हैं। संसद या विधानसभा चुनावों अथवा स्थानीय स्तर पर किसी अन्य प्रकार चुनावों के लिये उम्मीदवारों द्वारा किये गए अभियानों के कारण करोड़ों की काली कमाई पैदा होती है। आँकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने तकरीबन 3,166 करोड़ रुपए से अधिक नकद, शराब, ड्रग्स और ज्वैलरी जब्त की गई थी।

 

काले धन का प्रभाव

 

1. सार्वजनिक राजस्व की हानि:- काले धन में वृद्धि और प्रसार का अर्थव्यवस्था पर काफी गंभीर प्रभाव देखने को मिलता है, क्योंकि इसके कारण सरकार के राजस्व में कमी आती है। काले धन को कुछ लोग समानांतर अर्थव्यवस्था के रूप में भी देखते हैं, क्योंकि यह धारणा है कि केवल काले धन से ही अलग अर्थव्यवस्था वर्तमान भारतीय अर्थव्यवस्था के समानांतर चल रही है। जानकारों का मानना है कि यदि देश को उसकी समानांतर अर्थव्यवस्था का कुछ हिस्सा भी प्राप्त हो जाता है तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचेगा।

 

2. राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय :- काला धन लोगों द्वारा कर का भुगतान करते समय सरकार को कम आय का खुलासा करने का परिणाम होता है जिसके परिणामस्वरूप देश की राष्ट्रीय आय में भी कमी आती है। यदि देश की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में काले धन की कुछ मात्रा भी समावेशित होती है तो देश की राष्ट्रीय आय में भारी उछाल देखने को मिल सकता है, इससे न सिर्फ देश का विकास होगा बल्कि आम लोगों के जीवन स्तर में सुधार आएगा।

 

3. सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता में कमी :- चूँकि सरकार के राजस्व में कमी आती है तो वह लोगों के कल्याण पर अधिक-से-अधिक खर्च भी नहीं कर पाती है, जिससे सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता में भी कमी देखने को मिलती है। इसका एक अन्य पक्ष यह है कि गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक वस्तुएँ और सेवाएँ केवल उन्ही लोगों को मिल पाती हैं जो अधिकारियों को रिश्वत देते हैं।

 

4. उच्च कराधान :- कराधान के पीछे मुख्य कारण संतुलित बजट बनाने हेतु सरकार द्वारा किये गए व्यय के लिये राजस्व अर्जित करना है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि किसी कारण से सरकार को घाटा होता है तो वह इस घाटे को पूरा करने के लिये कर की दरों में वृद्धि करेगी। अगर काले धन की मात्रा अर्थव्यवस्था में वापस आ जाती है तो उससे कर की दरों में कमी संभावना बढ़ जाएगी।

5. मौद्रिक और राजकोषीय नीति निर्धारण में कठिनाई: - काले धन की मौजूदगी के कारण सरकार को अर्थव्यवस्था से संबंधी स्पष्ट आँकड़े प्राप्त नहीं हो पाते हैं जिसके कारण उसे नीति निर्धारण के समय कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति के अनुकूल नीतियाँ बनाना भी संभव नहीं हो पाता है।

 

 

सरकार द्वारा किये गए प्रयास

 

1. आय घोषणा योजना :- सरकार द्वारा इस योजना की शुरुआत काला धन जमा करने वालों को अपनी पूरी अवैध आय घोषित करने में सक्षम बनाने हेतु की गई थी साथ ही इस योजना में अवैध आय के निर्धारण के लिये समय सीमा भी निर्धारित की गई थी। इस योजना में सभी को बैंक या डाकघर में अपनी अवैध आय का खुलासा करने की अनुमति दी गई थी। इस योजना में घोषित अवैध आय का 25 प्रतिशत हिस्सा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में जमा किया जाना था।

2. विमुद्रीकरण या नोटबंदी:- यह वर्तमान सरकार द्वारा देश में काले धन को समाप्त करने के लिये उठाए गए कुछ महत्त्वपूर्ण कदमों में से एक था। 8 नवंबर, 2016 को केंद्र सरकार ने 500 और 1000 रुपए की वैद्यता को समाप्त कर दिया और 500 तथा 2000 रुपए के नए नोट जारी किये। सरकार के इस कदम का मुख्य उद्देश्य समानांतर अर्थव्यवस्था को समाप्त करना था, हालाँकि बाद के दिनों में इस कदम को आतंकवादी गतिविधियों पर रोक लगाने वाले कदम के रूप में भी प्रस्तुत किया गया।

सरकार ने काले धन को कम करने और कर संग्रह को बढ़ने आदि को विमुद्रीकरण के उद्देश्यों के रूप में प्रस्तुत किया था। हालाँकि वर्ष 2018 में ही जारी भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट में दर्शाया गया था कि विमुद्रीकरण के दौरान अवैद्य घोषित किये गए कुल नोटों का तकरीबन 99.3 प्रतिशत हिस्सा वापस आ गया था।

RBI द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के आधार पर कई विशेषज्ञों का मानना था कि यदि विमुद्रीकरण का उद्देश्य काले धन को समाप्त करना था तो आँकड़ों के अनुसार यह योजना असफल रही है।

 

3. बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 :- यह अधिनियम बेनामी लेनदेन को रोकता है और बेनामी संपत्ति को ज़ब्त करने का प्रावधान है। उल्लेखनीय है कि यह अधिनियम बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 में संशोधन का प्रावधान करता है। संशोधित कानून में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति अदालत द्वारा बेनामी लेनदेन संबंधी अपराध का दोषी पाया जाता है, तो उसे कम-से-कम 1 वर्ष कारावास की सजा दी जाएगी, लेकिन यह 7 वर्ष से अधिक नहीं हो सकती। इसके अलावा उस व्यक्ति को संपत्ति के बाज़ार मूल्य का अधिकतम 25 प्रतिशत हिस्सा भी शुल्क के रूप में देना होगा।

 

4. दोहरे करवंचना समझौते (DTAA) : - DTAA वह संधि है जिसे करदाताओं को उनकी अर्जित आय पर दो बार कर का भुगतान करने से बचाने के लिये भारत तथा अन्य देशों द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था। वर्तमान में भारत ने 88 देशों के साथ DTAA संधि पर हस्ताक्षर किये हैं।

 

5. पैन रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाना:-सरकार ने 2.5 लाख रुपए से अधिक के लेन-देन के लिये पैन (PAN) को अनिवार्य बना दिया है, जिसका प्रमुख उद्देश्य कर अधिकारियों से छुपाए जाने वाले लेन-देन को नियंत्रित करना है।

 

 

कुछ महत्वपूर्ण समाधान :-

  • आयकर विभाग को आय के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में व्यय की सीमा भी निर्धारित करना चाहिये ताकि इससे अधिक व्यय करने पर वह स्वयमेव जाँच के दायरे में आ जाए।
  • शिक्षण संस्थाओं की कैपिटेशन फीस पर नज़र रखनी चाहिये। धर्मार्थ संस्थाओं के लिये वार्षिक रिटर्न अनिवार्य बनाना, इन संस्थाओं का पंजीकरण एवं विभिन्न एजेंसियों के बीच सूचना के आदान-प्रदान की व्यवस्था होनी चाहिये।
  • चुनावों में काले धन का प्रयोग रोकने के लिये व्यापक कार्य योजना बनानी चाहिये क्योंकि यहाँ काला धन खपाना काफी आसान है जो काला धन के सृजन को प्रेरित करता है। राजनीतिक दलों को ‘सूचना का अधिकार’ (RTI) के दायरे में लाना चाहिये एवं इनके बही-खातों की नियमित ऑडिटिंग करनी चाहिये।
  • हवाला करोबार पर अंकुश लगाना चाहिये और आयकर विभाग के अधिकारों एवं स्वायत्तता में वृद्धि की जानी चाहिये।

 

इसे मापना इतना कठिन क्यों है :-

 

  • समिति की रिपोर्ट के अनुसार रियल एस्टेट, खनन, औषधीय, तंबाकू, फिल्म तथा टेलीविज़न कुछ ऐसे प्रमुख उद्योग हैं जहाँ काले धन की अधिकता पाई जाती है। रिपोर्ट में ज़ोर देते हुए कहा गया है कि भारत के पास काले धन का अनुमान लगाने के लिये कोई भी सटीक और विश्वसनीय पद्धति नहीं है।
  • काले धन को मापने के लिये जिन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है वे मान्यताओं पर आधारित होती हैं और भारत में अभी तक इस संदर्भ में कार्यरत सभी एजेंसियों की मान्यताओं में एकरूपता नहीं आ पाई है।

 

 

प्रयोग की जाने वाली कुछ प्रमुख विधियाँ:-

 

भारत में काले धन को मापने की दो प्रमुख विधियाँ विद्यमान हैं:

 

1. मौद्रिक विधि : - यह विधि भारत में काले धन को मापने की सबसे लोकप्रिय विधि है। इसके अंतर्गत यह माना जाता है कि काले धन की उपलब्धता तथा उसमें आने वाला परिवर्तन, किसी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत मुद्रा के प्रवाह और भंडारण को प्रतिबिंबित या प्रभावित करता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि इस विधि के अंतर्गत काले धन को मापने के लिये अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह पर नज़र रखना आवश्यक है।

 

2. इनपुट आधारित विधि : -इस विधि के अंतर्गत यह पता लगाने का प्रयास किया जाता है कि अर्थव्यवस्था के अंतर्गत कितना पैसा जनरेट किया जाना चाहिये था और असल में कितना हुआ है। इन्हीं दोनों के अंतर को काला धन कहा जाता है। उदाहरण के लिये सबसे पहले एक शहर में निर्मित सभी घरों की गणना करें और यह अनुमान लगाएँ कि इन सभी के निर्माण में कितने सीमेंट की आवश्यकता होगी, इसके बाद यह जाँच करें कि कर रिकॉर्ड के अनुसार शहर में कितना सीमेंट बेचा गया है। यदि इन दोनों के मध्य अंतर आता है तो इसका अर्थ है कि कुछ धन कर अधिकारियों से छुपाया गया है और वह काला धन है।

 

काले धन पर अंकुश लगाने के सरकारी प्रयास :-

 

1. विधायी कार्यवाही:- सरकार ने पहले ही इस संदर्भ में कई कानून बनाए हैं जो अर्थव्यवस्था में काले धन पर अंकुश लगाने और आर्थिक लेन-देन की सूचना देने को अनिवार्य बनाते हैं। इसमें वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) तथा कर आरोपण अधिनियम 2015, बेनामी लेन-देन (निषेध) संशोधन अधिनियम, एवं भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, आदि शामिल हैं।

 

2. पैन रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाना:- सरकार ने 2.5 लाख रुपए से अधिक के लेन-देन के लिये पैन (PAN) को अनिवार्य बना दिया है, जिसका प्रमुख उद्देश्य कर अधिकारियों से छुपाए जाने वाले लेन-देन को नियंत्रित करना है।

 

3. आयकर विभाग की कार्यवाही:- आयकर विभाग ने भी ऐसे लोगों की पहचान करना शुरू कर दिया है जो एक वित्तीय वर्ष में उच्च मूल्य के आर्थिक लेन-देन तो करते हैं, परंतु अपना रिटर्न दाखिल नहीं करते हैं।

 

काला धन अर्थव्यवस्था के लिये किस प्रकार घातक है:-

 

  • अर्थव्यवस्था में काले धन की अधिकता से देश में एक ‘समानांतर अर्थव्यवस्था’ (Parallel economy) सृजित हो जाती है जिसकी पहचान एवं नियमन अत्यंत मुश्किल होता है। इस प्रकार यह समानांतर अर्थव्यवस्था देश के आर्थिक विकास को चौपट कर देती है।
  • काला धन भूमिगत अर्थव्यवस्था सृजित करता है जिससे राष्ट्रीय आय एवं GDP से संबंधित आँकड़ों का सही आकलन कर पाना मुश्किल हो जाता है और अर्थव्यवस्था की गलत तस्वीर प्रस्तुत होती है। इससे नीति निर्माण में सटीकता नहीं आ पाती है।
  • काले धन के सृजन के दौरान कर वंचना (Tax Evasion) होती है जिससे सरकार को राजस्व हानि होती है। परिणामस्वरूप सरकार को उच्च करारोपण एवं ‘घाटे का वितपोषण’ (deficit financing) का सहारा लेना पड़ता है जो अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाता है।
  • काले धन का खर्च मनोरंजन, विलासिता, भ्रष्टाचार, चुनावों के वित्त पोषण, सट्टेबाजी अथवा आपराधिक गतिविधियों में किया जाता है जिससे एक तरफ अपराध एवं भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है तो दूसरी तरफ उपयोग पैटर्न बिगड़ने से दुर्लभ संसाधनों का अपव्यय होता है।

 

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में विशेष जांच दल (एसआईटी)का गठन किया गया है। विदेशी बैंकों में जमा काले धन की जांच और उसे लाने की कोशिशों पर यह दल निगरानी रखेगा।

न्यायमूर्ति रेड्डी इस जांच दल के अध्यक्ष होंगे। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम बी शाह विशेष जांच दल के उपाध्यक्ष होंगे। न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति एस एस निज्जर की पीठ ने निर्देश दिया कि इस मामले में सरकार द्वारा गठित की गई उच्च स्तरीय समिति तुरंत एसआईटी से जुड़ जाए।

 

‘के.एन. वांचू समिति’ ने अर्थव्यवस्था पर काले धन के प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा था कि देश की अर्थव्यवस्था पर काले धन के बड़े खतरनाक और विनाशकारी प्रभाव पड़ते हैं । आज काला धन देश की प्रगति को गंभीर रूप से अवरुद्ध कर रहा है, क्योंकि काले धन के कारण सरकार को राजस्व-प्राप्ति की सीधे-सीधे हानि होती है ।

 

चुनाव और काला धन:-

  • चुनाव में धन के बढ़ते प्रभाव और चुनाव के खर्च में होनेवाली भारी वृद्धि भी काले धन की उत्पत्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । चुनाव में पैसे का प्रभाव किसी से छुपा नहीं है । चुनाव में उम्मीदवार सारा खर्च स्वयं तो वहन नहीं कर पाता, अत: वह कई दिशाओं-बड़े ठेकेदारों अथवा पूँजीपतियों-से सोंठ-गाँठ कर आर्थिक साधन ‘चंदे’ के रूप में जुटाता है ।
  • सरकार ने बड़ी कंपनियों पर चुनाव में राजनीतिक दलों को चंदा देने पर रोक लगा दी है । अत: वह चंदा राजनीतिक दल को व्यक्तिगत रूप में प्राप्त होता है, जो काला धन ही होता है । चुनावों में खर्च होनेवाला काला धन पूँजीपति कर लगवाकर तथा वस्तुओं के मूल्य बढ़ाकर जनता की जेब से ही निकलवाते हैं, जिससे महँगाई बढ़ती है ।
  • भारत सरकार द्वारा सन् 1971 में नियुक्त ‘वांचू समिति’ ने प्रत्यक्ष कर के ढाँचे में सुधार हेतु कहा था कि राजनीतिक दलों की अपने खर्च के लिए पूँजीपतियों और व्यवसायियों पर निर्भरता ही काले धन का प्रमुख कारण है । अत: चुनाव में बेहिसाब खर्च की प्रवृत्ति पर रोक लगाना अत्यंत आवश्यक है ।

अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु

•            विनिर्माण क्षेत्र में सबसे काला धन पाया जाता है |

•            पेशा में सबसे ज्यादा काला आय है |

•            रियल एस्टेट में सबसे ज्यादा काला धन पाया जाता हैं |

 

•            काला धन क्यों होता है :-

(क)    राजकोषिय घर्षण के कारण ( व्यक्ति अपने क्रय शक्ति को बनाए रखने के लिए कालाधन जमा करता है)|

(ख)    कर वसूली की प्रक्रिया बहुत जटिल हैं |

(ग)    कर का आधार छोटा हैं

(घ)     जनसंख्या का ज्यादा होना या जनसंख्या में अप्रत्याशित  वृद्धि होना

(ङ)     कर-सम्बंधित न्यायिक प्रावधान का ढीला होना

(च)    बेनामी संपत्ति का होना

(छ)    समुचित आंकड़े का अभाव

 

•            कालाधन का प्रभाव :-

(क)    सरकार के राजस्व में गिरावट

(ख)    भ्रष्टाचार का जन्म

(ग)    व्यापार की तरलता प्रभावित होंगी

(घ)     आय के वितरण को प्रभावित करता है

(ङ)     आतंकवाद और मादक पदार्थों की तस्करी बढ़ जाने की आशंका

 

काला धन निकालने के संभावित उपाय:-

काले धन को बाहर निकालने के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित उपाय अभी तक प्रयोग में लाए गए हैं या लाए जा रहे हैं अथवा शीघ्र ही प्रवर्तित किए जा सकते  है-

काले धनधारियों से यह अपेक्षा करना कि वे स्वत: तथा स्वेच्छापूर्वक अपने काले धन को प्रकट कर दें, वास्तव में, सिद्धांतत: यह बड़ी उचित तथा श्रेष्ठ व्यवस्था हो सकती है, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह समर्थन-योग्य नहीं है, क्योंकि यह उपाय केवल युद्ध अथवा राष्ट्रीय संकट के समय ही कारगर हो

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