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BPSC Special- पटना कलम

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-07-27 23:39:47

पटना कलम

 

बिहार की कला परंपरा में पटना कलम चित्रकला का महत्वपूर्ण स्थान है। वस्तुतः मध्यकालीन विहार में पटना कलम चित्रकला ने बिहार की कला परंपरा को समृद्ध किया। इस कला शैली का विकारा 18वीं सदी के मध्य से लेकर 20वीं सदी के आरंभ तक हुआ। उल्लेखनीय है कि पटना कलम चित्रकला का विकास मुगल साम्राज्य के पतन के बाद उत्पन्न परिस्थितियों से हुआ। वस्तुतः औरंगजेब द्वारा दरबार से कला से विस्थापन के बाद विभिन्न कलाकारों के क्षेत्रीय नयायों के यहाँ आश्रय लिया। इससे कला के विभिन्न क्षेत्रीय स्वरूप उभरे जिनमें पटना कलम शैली (चित्रकला) प्रमुख हैं। वस्तुतः इस शैली का विकास कंपनी काल में होने के कारण कई विद्वान इसे कंपनी शैली भी कहते है।

इस कला शैली पर एक ओर मुगलशाही शैली का प्रभाव है तो दूसरी ओर तत्कालीन ब्रिटिश कला का प्रभाव है। इस शैली को तत्कालीन कलाकारों ने कलकत्ता के कलाकारों से संपर्क के फलस्वरूप ग्रहण किया। इसके अतिरिक्त इसमें स्थानीय विशिष्टताएँ भी स्पष्ट है। वस्तुतः मुगल तत्व, यूरोपीय तत्वों एवं स्थानीय भारतीय तत्वों के सम्मिश्रण के कारण इस शैली की अलग पहचान है। तत्कालीन घनाढ्य भारतीय एवं ब्रिटिश कला प्रेमी इस कला के संरक्षक और खरीदार थे।

पटना कमल शैली को हम निम्नलिखित विशेषताओं के अंतर्गत देख सकते है - 

1. लघुचित्र (Miniatures) - पटना कलम चित्रकला लघु चित्रों की श्रेणी में आते है, जिन्हें अधिकतर कागज और कहीं-कहीं हाथी दाँत पर बनाया गया है। इस शैली की प्रमुख विशेषता इसका सादगीपूर्ण होना है। इन चित्रों में मुगल चित्रों की भव्यता का अभाव है। इसके अतिरिक्त इसमें काँगड़ा चित्र शैली के विपरीत भवन स्थापत्य कला की विशेषताएँ भी अनुपस्थित है। इसमें चटक रंगों का प्रयोग भी नगण्य है।

2. सामान्य जनजीवन का चित्रांकन- इस चित्रकला के अंतर्गत सामान्य जनजीवन का चित्रांकन किया गया है। इसमें परंपरागत भारतीय जीवन शैली भी अभिव्यक्ति हुई। इसके चित्रों में श्रमिक वर्ग (कसाई, कुली इत्यादि) दस्तकारी वर्ग, तत्कालीन आवागमन के साधनों, बाजार के दृश्यों आदि का चित्रांकन हुआ है।

3. बारीको एवं अलंकरण की विशेषता - पटना कलम के चित्रकारों को बारीकी एवं अंलकरण में महारत प्राप्त थी। इस शैली के चित्रों में चिड़ि‌यों का चित्रण खासतौर पर देखने योग्य है। इन चित्रों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इन कलाकारों को पक्षियों के शरीर विज्ञान की गहन जानकारी थी। वस्तुतः महादेव लाल द्वारा बनाई गई रागिनी गाधारी चित्र जिसमें विरह के अवसाद को बहुत बारीकी से स्पष्ट किया गया है, इस प्रकार शिवलाल द्वारा निर्मित मुस्लिम निकाह का चित्र तथा यमुना प्रसाद द्वारा चित्रित बेगमों की शराबखोरी का चित्र प्रमुख है।

4. पृष्ठभूमि एवं लैंडस्केप (अग्रभूमि) का कम प्रयोग- इस शैली में पृष्ठभूमि एवं लैंडस्केप का कम प्रयोग किया गया है। इसमें पृष्ठभूमि एवं प्राकृतिक दृश्यों को बढ़ाना महंगा पड़ता है और इसकी पूर्ति करने वाला कोई नहीं था। अतः इन लोगों ने कम खर्चीले पद्धति को अपनाया। जैसे-मनुष्य के चित्रों में ऊँची नाक, भारी भौहें, पतले चेहरे, गहरी आँखें और पनी मूंछें दिखाई गई हैं।

5. रंगने की निजी शैली- इस शैली में विषय वस्तु को पेंसिल से खाका बनाकर रंग भरने के बदले ब्रश से ही तस्वीर बनाने एवं रंगने का कार्य हुआ है। चित्रों में अधिकतर गहरे भूरे, गहरे लाल, हल्के पीले और गहरे नीले रंगों का प्रयोग हुआ हैं। चित्रकार विभिन्न (शेड्स) के लाल रंग लाह से, सफेद रंग विशेष प्रकार की मिट्टी से काला रंग कालिख से अधवा जलाए गए हाथी दाँत की राख से, नीला रंग नील से, लाजवर्त रंग लैपिज पत्थर से तथा गेरूआ रंग एक विशेष प्रकार की स्थानीय मिट्टी से तैयार करते थे। नीला एवं पीला रंग मिश्रित कर हरे रंग का निर्माण किया जाता था।

6. मुगल शैली से भिन्नता- पटना कलम शैली के चित्रों की भव्यता के विपरीत सजीवता पर बल दिया गया। इसके अतिरिक्त इसमें मुगल शैली के अंतर्गत राजे-रजवाडे से संबंधित विषय वस्तु के विपरीत सामान्य जीवन के पक्ष पर बल दिया गया है। इसके अतिरिक्त रंगों के उपयोग एवं छायाकंन के तरीके में भी स्पष्ट अंतर दिखता है।

7. महत्वपूर्ण कलाकार - पटना कलम शैली के प्रमुख कलाकारों में सेवक राम प्रमुख है। इनका काल 1770 से 1830 ई के बीच रहा। इसके अतिरिक्त हुलास लाल का नाम भी महत्वपूर्ण है। इनके प्रसिद्ध चित्रों में हिन्दू त्योहारों जैसे होली और दिवाली के चित्र प्रमुख हैं।

* इस शैली के अन्य चित्रकारों में जयराम दास, शिवदयाल लाल गुरू सहाय के नाम महत्वपूर्ण है -

• इस चित्रकला के अंतिम आचार्य ईश्वरी प्रसाद वर्मा थे।

इस कला शैली के पारखी राधा मोहन बाबू को शहीबों (पोट्रेट) की सर्जना का आचार्य कहा जाता है।

लगभग एक शताब्दी तक प्रचलित रहने के पश्चात् 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इस शैली का पतन प्रारंभ हो गया। जिसका प्रमुख कारण कला संरक्षकों को आर्थिक स्थिति का कमजोर होना था। जिससे अनेक कलाकार आश्रयहीन होकर रोजी-रोटी हेतु सरकारी नौकरी एवं अन्य व्यवसाय में लग गए। किंतु उक्त के बावजूद पटना कलम शैली ने एक नवीन एवं प्रभावी कला शैली के रूप में विहार की कला परंपरा को समृद्ध किया।

 

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

1. पटना कलम चित्रकला की मुख्य विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। (66वीं, 63वीं, 56-59वीं, 48-52वीं, बी.पी.एस.सी.)

 

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