वैदिक ॠचाओं की तरह लोक संगीत या लोकगीत अत्यंत प्राचीन एवं मानवीय संवेदनाओं के सहजतम उद्गार हैं। ये लेखनी द्वारा नहीं बल्कि लोक-जिह्वा का सहारा लेकर जन-मानस से निःसृत होकर आज तक जीवित रहे।
बिहार में संगीत का प्रारंभ वैदिक युग में हुआ।
भृगु, गौतम, याज्ञवलक्य आदि जैसे श्रेष्ठ ऋषि-मुनियों का संगीत साधना में प्रमुख स्थान था, जिनके आश्रम बिहार की भूमि पर अवस्थित थे।
उत्तर बिहार के मिथिलांचल में 13वीं शताब्दी के आरंभ में ही नयदेव द्वारा संगीत सम्बंधी रचना लिखी गई।
तुर्क शासन काल में बिहार में सूफी संतों के माध्यम से संगीत की प्रगति हुई, जबकि वैष्णव धर्म सुधार आंदोलन के माध्यम से नृत्य और संगीत दोनों का विकास हुआ।
यूरोप के एक पर्यटक ‘क्राउफर्ड’ ने 18वीं शताब्दी में बिहार का भ्रमण किया तथा भारत के इस राज्य को संगीत प्रधान राज्य बताया।
पटना में 1913 में प्रसिद्ध गायक रजाशाह ने भारतीय राग-रागिनियों का पुनः विभाजन एवं पुनर्गठन किया। रजाशाह ने ‘नगमत असफी’ नामक संगीत पुस्तक लिखी थी और एक नए वाद्ययंत्र ‘ठाट’ के प्रयोग का शुभारंभ किया।
पटना में ख्याल और ठुमरी को विशेष लोकप्रियता मिली। इनके अतिरिक्त गज़ल, दादरा, कजरी और चैती गायन को लोकप्रिय शैलियां थीं।
इनको लोकप्रिय बनाने में रोशनआरा, बेगम, एमाम बांदी, रामदासी आदि लोक गायिकाओं का विशेष योगदान रहा।
बिहार में विवाह के समय सुमंगली, जन्म-उत्सव पर सोहर, कृषि कार्यों में बारहमासा आदि गायन की लोकप्रिय शैलियां हैं।
भारतीय संगीत के क्षेत्र में विहार में ‘नचारी’, ‘लगनी’, ‘चैता’, ‘पूरबी’ और ‘फाग’ रागों का प्रमुख स्थान है। ‘नचारी’ राग के गीतों का सृजन मिथिला के प्रख्यात कवि विद्यापति ने किया था।
उत्तर बिहार में मुख्यत: मिथिला अथवा दरभंगा जिले में विवाह के अवसर पर ‘लगनी’ राग में गीत गाये जाते हैं।
इन गीतों की रचना का श्रेय भी महाकवि विद्यापति को दिया जाता है। चैत्र के महीने में ‘चैता’ राग में गाये जाने वाले गीत बिहार में मुख्यत: पटना, भोजपुर, बक्सर, रोहतास जिले में अधिक लोकप्रिय हैं।
बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में होली के विशेष अवसर पर ‘फाग’ राग में गीत गाने का विशेष प्रचलन है। इन गीतों को ‘फगुआ’ या ‘होली गीत’ भी कहा जाता है।
‘फाग’ राग के गीतों की रचना का श्रेय बेतियाराज के जमींदार नवलकिशोर सिंह को है।
‘पूरबी’ राग के गीतों के माध्यम से पति वियोग में रहने वाली नारियां अपनी दयनीय दशा एवं पति वियोग का वर्णन करती थीं। इन गीतों का उदय बिहार के सारण जिले में हुआ था।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते हैं, नदियां गाती हैं, फसलें गाती हैं। उत्सव, मेले और अन्य अवसरों पर मधुर कंठों में लोक समूह लोकगीत गाते हैं।
बिहार की लोकगीत संस्कृति को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –
1. संस्कार गीत :-संस्कार गीतों का संबंध मुख्यतः लौकिक अनुष्ठानों से है।
इन संस्कार गीतों के मुख्यतः दो स्वरूप हैं :-
क. शास्त्रीय गीतख. लौकिक गीत
संस्कार गीत सभी जातियों व जनजातियों द्वारा जन्म से लेकर मरण तक सभी प्रमुख अवसरों पर गाए जाते हैं यह गीत हर्ष, उल्लास और शोक से भरे होते हैं। जैसे – जन्म, मुंडन, विवाह, गौना, द्विरागमन आदि।
जन्म के समय सोहर,मुंडन के समय खेलौना, विवाह के समय विदाई आदि
बिहार में पुत्र जन्म के अवसर पर ‘सोहर गीत’ गाए जाते हैं। भोजपुर तथा मगध क्षेत्र में इस अवसर पर पँवड़िया नाच होता है, पँवड़िया लोग बच्चे के जन्म की बधाई गीतों के द्वारा देते हैं और बधावा माँगते हैं। संस्कार गीतों में सर्वाधिक गीत विवाह गीतों के अंतर्गत आते है।
इन गीतों में शिव विवाह एवं राम विवाह के प्रसंग वर्णित हैं। बिहार में ‘डोमकछ’ एक नाट्य लोकसंगीत है, जिसका गायन विवाह के अवसरों पर वर पक्ष की स्त्रियों के सम्मिलित सहयोग से होता है। मिथिला क्षेत्र में पुत्री की विदाई के समय विशिष्ट शैली का गीत गाया जाता है, जिसे “समदाउनि/समदावन/समदन” के नाम से जाना जाता है।
2. पर्वगीत :- बिहार में मुख्य रूप से दीपावली, छठ, तीज, नागपंचमी, गोधन, निहुरा, मधुश्रावणी, रामनवमी, कृष्णाष्टमी आदि सभी त्योहारों पर राज्य में उल्लास से मनाये जाते है। छठ पर्व बिहार के प्रमुख त्योहारों में से एक है जिसमे सूर्य के स्वरूप की पूजा की जाती है।
3. जाति संबंधी गीत:-
भारत की सामाजिक व्यवस्था में हर वर्ग एवं जातियों का विशेष महत्त्व है।प्रत्येक जातियों के अलग-अलग कुलदेवता हैं, जिनकी वीरतापूर्ण गाथाओं से युक्त लोकगीत जातीय गीतों की श्रेणी में आते हैं।
प्रत्येक जाति के गीत अलग-अलग विशिष्टताओं से युक्त है। अहीर, दुसाध, चमार, कहार, धोबी और लुहार सबके अपने-अपने जाति संबंधी गीत होते हैं। जैसे – बिरहा और लोरिकी गीत अहीरों द्वारा गाए जाते है।
4. पेशागीत:-
किसी कार्य के संपादन के समय जो गीत गाए जाते हैं, वे श्रम गीत, व्यवसाय गीत या क्रिया गीत की कोटि में आते हैं। जैसे – बिहार में चक्की चलाकर आटा पीसने के समय स्त्रियों द्वारा ‘लगनी’ गाई जाती है।
5. बालक्रीडा गीत
बाल-जीवन से संबद्ध गीतों को बाल गीत या शिशु गीत कहते हैं।
जैसे – अटकन-मटकन, चोरा-मुक्की, अट्टा-पट्टा, कबड्डी गीत, लोरी तथा बच्चों के उबटन लगाने के गीत ‘अपटोनी गीत’ हैं।
6. भजन या श्रुति गीत
देवी-देवताओं की आराधना से संबद्ध गीत भजन या श्रुति गीत की श्रेणी में आते हैं। इन गीतों का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व के साथ-साथ मांगलिक महत्त्व भी है। इनमें ईश्वर के सगुण एवं निर्गुण दोनों रूपों का वर्णन मिलता है।
सगुण गीतों – गोसाउनि गीत, नचारी, महेशवाणी, कीर्तन, विष्णुपद, पराती, साझ, गंगा के गीत, शीतला के गीत, देवी के गीत प्रमुख हैं।
निर्गुण गीतों की कोई कोटि निर्धारित नहीं है, लेकिन कुछ लोकभजनों के अंदर निर्गुण उपमानों को निर्देशित किया जाता है।
7. ऋतुगीत
मौसम में परिवर्तन के अनुसार ऋतुगीत गाने की परंपरा है ।
फगुआ, चैता, कजरी, हिंडोला, चतुर्मासा और बारहमासा आदि गीत ऋतुगीत कहलाते हैं।
बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में कजरी महत्त्वपूर्ण गीत शैली है।
कहरवा और दादरा की लय में ठुमरी शैली में कजरी को गाया जाता है यह गीत मिथिला क्षेत्र में मलार नाम से प्रसिद्ध है।
वर्षाकालीन गीतों में सावन, झूला, हिंडोला प्रचलित हैं।
फाग या होली बसंत ऋतु का गीत है। यह मुख्यतया समूह में गाया जाता है।
चैत्र मास में गाया जाने वाला चैता लोकगीत में श्रृंगार रस के साथ करुण रस एवं मार्मिक व्यथाओं का समावेश होता है।
ऋतुगीतों में बारहमासा गीत बहुत लोकप्रिय है जिन्हे वर्ष के बारहों महीने का वर्णन रहता है।
8. गाथा गीत
ये गीत भारतीय वीर नायकों की वीरता की स्मृति में गाए जाने वाले गीत है। बुंदेलखंड में जिस प्रकार से आल्हा गाया जाता है, उसी प्रकार बिहार में वीर रस की गाथाओं को गीतबद्ध करने की परंपरा रही है।
इन गाथा गीतों में करुण, वात्सल्य और श्रृंगार रस का भी समावेश होता है। बिहार में इन गाथा गीतों के कुछ शीर्षक हैं, जिन्हे विभिन्न नामों से जाना जाता है |
जैसे – नयका बंजारा, मीरायन, राजा हरिचन (हरिश्चंद्र), लोरिकायन, दीना भदरी, चूनाचार, छतरी चौहान, धुधली-घटमा, विजयमल, सहलेस, राजा विक्रमादित्य, हिरणी-बिरणी, कुंवर ब्रजभार, अमर सिंह बरिया।
9. विशिष्ट गीत
इसके अंतर्गत पीड़िया के गीत, पानी माँगने के गीत, झूमर-झूले के गीत, बिरहा, जोगा, साँपरानी आदि गीत गाए जाते हैं।
10. विविध गीत
इसके अंतर्गत झिझिया के गीत, झरनी के गीत, नारी स्वतंत्रता का गीत, समाज-सुधार के गीत आदि आते हैं।
भोजपुर अंचल के भोजपुर अंचल के पूर्वी गीत, झूमर, विदेशिया, बटोहिया, मेलों का गीत एवं मिथिलांचल का तिरहुति, बटगमनी, नचारी, महेशवाणी, संदेश गीत, मंत्र गीत, आंदोलने गीत इस श्रेणी के गीत हैं।
भारत में लोक संगीत राज्यों, जातियों तथा जंजातियों के हिसाब से अलग- अलग हैं।
भारत के अलग- अलग क्षेत्र में अलग-अलग लोक गीत विकसित हुए हैं।
भारत के प्रमुख लोक संगीत इस प्रकार हैं-
1. मदिगा दप्पू- आंध्र प्रदेश
2.माला जमदिका- आंध्र प्रदेश
3.बिहूगीत- असम
4.टोकरीगीत- असम
5.कामरूप लोकगीत- असम
6.गोलपरिया गीत- असम
7.पंडवानी- छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड
8.बहुला- पश्चिम बंगाल
9.बटियाली- पश्चिम बंगाल
10.गरबा- गुजरात
11.दोहा- गुजरात
12.भावगीते- कर्नाटक, महाराष्ट्र
13.लावणी- महाराष्ट्र
14.पोवाडा- महाराष्ट्र
15.गोंधार- महाराष्ट्र
16. अभंग- महाराष्ट्र
17.ओड़िसी- ओड़िशा
18.संभलपुरी- ओड़िशा
19.महिया- पंजाब
अन्य प्रमुख लोक-गीत
1. लावणी–लावणी महाराष्ट्र का एक प्रमुख लोक संगीत है। यह संगीत उपकरण ढोलकी पर गाया जाता है। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र में प्रसिद्ध है, और कर्नाटक तथा मध्य प्रदेश में भी लावणी का प्रचलन है। प्राचीन काल में इसका प्रयोग थके हुए सैनिकों की थकान दूर करने और उनका मनोरंजन करने के लिए भी किया जाता था।
2. पंडवानी- पंडवानी राजस्थान का एक लोक संगीत है। यह छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और झारखंड में प्रसिद्ध है। यह पांडवों की कहानी पर आधारित गीत हैं। इसकी शैली वेदमती और कापालिक हैं।
3. बटियाली- इसकी उत्पत्ति वर्तमान बांग्लादेश के भाटी इलाके में हुई। यह पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध है।
4. अभंग-विट्ठल या विठोबा की स्तुति में अभंग नमक छंद गाये जाते हैं। इसका शुरुआती वर्णन 13वीं सदी में मिलता है। यह महाराष्ट्र में प्रसिद्ध है।
5. बिहूगीत- बिहूगीत असम का लोकगीत है जो बिहू त्यौहार के अवसर पर गया जाता है।
6. संभलपुरी- यह उड़ीसा का एक संगीत है। यह मुख्य रूप से पश्चिम उड़ीसा में स्थित है।
7. पोवाडा- पोवाडा महाराष्ट्र का एक लोक संगीत है। यह वीर रस पर आधारित लोक संगीत है। इसमें मुख्य रूप से शिवाजी के युद्ध वीरता का गायन है। इसका गायन करने वालों को मराठी भाषा में शाहीर कहा जाता है।
8. गरबा-गरबा गुजरात का अन्य प्रसिद्ध लोकगीत और नृत्य है। इसे महिलाओं द्वारा अनेक त्यौहारों विशेष रूप से नवरात्रि के मौके पर किया जाता है।
9. कामरूप लोकगीत-यह असम का लोकगीत है। यह असम के कामरूप जिले में विकसित हुई।
10. भजन और कीर्तन- एक भजन या कीर्तन एक हिंदू भक्ति गीत है, जो अक्सर प्राचीन मूल का है। कीर्तन वेद की परंपरा में गहराई से निहित हैं। भजनों में अक्सर दिव्य भाषा में सरल गीत होते हैं।
कई भजन चुने हुए देवता के कई नाम और पहलुओं को दर्शाते हैं, विशेष रूप से हिंदू सहस्रनामों के मामले में, जो देवत्व के 1008 नामों को सूचीबद्ध करते हैं।
परंपरागत रूप से, संगीत भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित है, जो वीणा, सारंगी, वेणु (बांसुरी), मृदंगा (या तबला) (पारंपरिक वाद्य यंत्र) पर बजाए जाने वाले रागों और ताल (तालबद्ध ताल के पैटर्न) पर आधारित है। सिखों के धर्मग्रंथ में 31 राग और 17 ताल हैं, जो कीर्तन संगीत रचनाओं का आधार हैं। भजन-गायन की विभिन्न परंपराएं, जैसे कि निर्गुणी, गोरखनाथी, वल्लभपन्थी, अष्टछाप और मधुरा-भक्ति, युगों से चली आ रही हैं।
प्रत्येक संप्रदाय में भजन और गायन के तरीकों के अपने-अपने सेट हैं। दक्षिण भारत में भजन का पारंपरिक रूप संप्रदाय भजनों के रूप में जाना जाता है।
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