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'मिथिला का शेर' रासबिहारी लाल मंडल

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-10-13 13:38:31

रासबिहारी लाल मंडल

राजा रास बिहारी लाल मंडल (1866-1918) एक ज़मींदार, परोपकारी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक नेता थे । उन्होंने बंग भंग आंदोलन के दौरान 'भारत माता का संदेश' नामक एक पुस्तक लिखी थी। 

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रास बिहारी लाल मंडल का जन्म 1866 ई० में मधेपुरा से 12 किमी पूर्व में स्थित मुरहा ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम रघुवर दयाल मंडल था। वे 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक से 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक छः वर्षों तक ऑनरेरी मजिस्ट्रेट के पद पर बने रहे। जमींदार होते हुए भी उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया। 1899 में लखनऊ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में इन्होंने न सिर्फ भाग लिया बल्कि निर्भीकता पूर्वक अपने विचार व्यक्त किये। वर्ष 1917 में मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड समिति के समक्ष इन्हांेने वायसराय चेम्सफोर्ड को जब परम्परागत ‘सलामी’ देने के बजाय उनसे हाथ मिलाया तो वायसराय चेम्सफोर्ड भी दंग रह गये। कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने सबसे पहले पूर्ण स्वराज्य की मांग की। कलकत्ता से छपने वाली हिन्दुस्तान की तत्कालीन प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक अमृत बाजार पत्रिका ने रासबिहारी लाल मंडल की अदम्य साहस और अभूतपूर्व निर्भिकता की प्रशंसा की एवं अनेक लेख लिखे और दरभंगा महाराज ने उन्हें ‘मिथिला का शेर’ कह कर संबोधित किया। 27 अप्रैल, 1908 के सम्पादकीय में अमृत बाजार पत्रिका ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश पर विस्तृत टिप्पणी की थी जिसमें भागलपुर के जिला पदाधिकारी लायल के रासबिहारी बाबू के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यवहार को देखते हुए उनके विरुद्ध सभी मामले को दरभंगा हस्तांतरित कर दिया था।

डा० राजेन्द्र प्रसाद कई बार मुरहो भी आये थे। उन्हीं के शब्दों में ‘‘जब रास बिहारी बाबू देश के राष्ट्रीय नेता थे, तब वे एक साधारण स्वयंसेवक थे।’’  

रास बिहारी बाबू ने 11वीं कक्षा तक पढ़ाई की और उन्हें हिंदी , उर्दू , मैथिली , संस्कृत , फ़ारसी , अंग्रेजी और फ्रेंच भाषाओं का ज्ञान था। छोटी उम्र में ही उन्होंने मुरहो की ज़मींदारी संपत्ति पर नियंत्रण कर लिया।

रास बिहारी लाल मंडल बिहार में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और वे 1908 से 1918 तक बिहार प्रांतीय कांग्रेस समिति और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के निर्वाचित सदस्य रहे थे। वे 1910 में इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 25वें अधिवेशन में बिहार के प्रतिनिधियों में से एक थे। 

1911 में रासबिहारी लाल ने गोप जातीय महासभा की स्थापना की। बाद में गोप जातीय महासभा और अहीर क्षत्रिय महासभा का विलय कर अखिल भारतीय यादव महासभा का गठन किया गया। 

वह मुर्हो इस्टेट के यादव जमींदारी परिवार से थे। ऐसा कहा जाता है कि जब जॉर्ज पंचम 1911 में भारत आए थे तो उन्होंने सभा में भारतीयों को फ्रेंच में बात करने के लिए ललकारा था तो रासबिहारी लाल मंडल ने उस चुनौती को स्वीकार किया था ।

बाबू रास बिहारी लाल की 26 अगस्त 1918 को बनारस में 52 वर्ष की आयु में बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। 

बाबू रासबिहारी लाल से जुड़े अन्य रोचक तथ्य :

● रास बिहारी लाल मंडल बिहार में कांग्रेस पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और वह 1908 से 1918 तक बिहार प्रांतीय कांग्रेस समिति और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य बने रहे।

● वह 1910 में इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 25वें सत्र में बिहार के अधिवेशन में से एक थे।

● 1911 में रासबिहारी लाल ने गोप जातीय महासभा की स्थापना की। बाद में गोप जाति महासभा और अहीर क्षत्रिय महासभा का विलय होकर अखिल भारतीय यादव महासभा का गठन हुआ।

● ब्रिटिश विरोध के बावजूद 1911 में भारत में सम्राट जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के दिल्ली दरबार में रासबिहारी लाल को प्रतिष्ठित स्थान दिया गया।

● रासबिहारी लाल बंधुओं का विरोध करने वाले बिहार के कुछ जमीदारों में से एक थे । उन्होंने अपने 120 से अधिक आर्किटेक्चरल आर्किटेक्चर के खिलाफ़ भाग लिया था, जिसके कारण उन्होंने अपने 120 से अधिक आर्किटेक्चरल आर्किटेक्चर के ख़िलाफ़ भाग लिया था।

● महाराज ने रासबिहारी लाल को ‘मिथिला का शेर’ की उपाधि से सम्मानित किया था और कोसी क्षेत्र के लोग उन्हें ‘यादव राजा’ कहते थे।

● 1917 में मोंटेग-केमफोर्ड समिति के एक सहयोगी का नेतृत्व करते हुए, बाबू रासबिहारी लाल ने वायसिन चेल्मफोर्ड से हाथ जोड़कर और नए राजनीतिक सुधारों के स्थान की मांग की और पारंपरिक ‘सलामी’ की शुरुआत की। अहीरों की सेना में एक अलग रेजिमेंट की मांग की गई।

● रासबिहारी लाल भगवान नाथ जेनरी, बिपिन चंद्र पाल, सच्चिदानंद सिन्हा जैसे कांग्रेस नेता जुड़े हुए थे और वह उन नेताओं में से थे जिन्होंने कांग्रेस से कहा था कि पूर्ण स्वराज की मांग की थी। टैब कलकत्ता से प्रकाशित भारत की प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक होने वाली अमृता मार्केट पत्रिका ने रासबिहारी लाल मंडल के अदम्य साहस और साहस की प्रशंसा की और कई लेख और विज्ञापन लिखे।

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