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प्रफुल्ल चंद्र चाकी

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-07-28 14:40:50

प्रफुल्ल चंद्र चाकी

प्रफुल्ल चाकी का जन्म उत्तरी बंगाल के बोगरा जिला (वर्तमान में बांग्लादेश में स्थित) के बिहारी गाँव में हुआ था। जब वे दो वर्ष के थे तभी उनके पिता जी का निधन हो गया। उनकी माता ने अत्यन्त कठिनाई से उनका पालन-पोषण किया। विद्यार्थी जीवन में ही प्रफुल्ल का परिचय स्वामी महेश्वरानन्द द्वारा स्थापित गुप्त क्रांतिकारी संगठन से हुआ। प्रफुल्ल ने स्वामी विवेकानंद के साहित्य का अध्ययन किया और वे उससे बहुत प्रभावित हुए। अनेक क्रांतिकारियों के विचारों का भी उन्होंने अध्ययन किया, इससे उनके अन्दर देश को स्वतंत्र कराने की भावना बलवती हो गई।

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बंगाल विभाजन के समय अनेक लोग इसके विरोध में उठ खड़े हुए। अनेक विद्यार्थियों ने भी इस आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। प्रफुल्ल ने भी इस आन्दोलन में भाग लिया। वे उस समय रंगपुर जिला स्कूल में कक्षा 9 के छात्र थे। प्रफुल्ल को आन्दोलन में भाग लेने के कारण उनके विद्यालय से निकाल दिया गया। इसके बाद उनका सम्पर्क क्रांतिकारियों की युगान्तर पार्टी से हुआ।

 

जब वे रंगपुर में थे, तब वे बारिन घोष से मिले, जो जुगांतर बंगाली साप्ताहिक के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। घोष ने प्रफुल्ल चाकी को जुगांतर समूह में शामिल होने के लिए कलकत्ता जाने के लिए राज़ी कर लिया। प्रफुल्ल का पहला कार्यभार सर जोसेफ़ बैंपफ़ील्ड फुलर (1854- 1935) को गोली मारना था, जो पूर्वी बंगाल और असम के नए प्रान्त के पहले उप राज्यपाल थे। दुर्भाग्य से, योजना अमल नहीं हो पाई, क्योंकि सर जोसेफ़ के यात्रा कार्यक्रम में अंतिम समय में एक बदलाव आ गया था। प्रफुल्ल को एक और अवसर दिया गया, जहाँ उन्हें और खुदीराम बोस को बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के मजिस्ट्रेट किंग्सफ़ोर्ड की हत्या करने के लिए चुना गया। कलकत्ता के मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य करते समय किंग्सफ़ोर्ड ने बंगाल के युवा राजनीतिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ़ कठोर और क्रूर दंडादेश जारी किए थे। किंग्सफ़ोर्ड का कार्यकाल अन्यायपूर्ण आदेशों से भरा था और इस कारण वे क्रांतिकारी संगठनों के निशाने पर आ गए थे। प्रफुल्ल और बोस को योजना को पूर्ण करने के लिए मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) भेजा गया था। इस अभियान के लिए प्रफुल्ल को अपनी पहचान छुपाने के लिए 'दिनेश चंद्र रॉय' नाम दिया गया था।

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कोलकाता का चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड क्रांतिकारियों को अपमानित करने और उन्हें दण्ड देने के लिए बहुत बदनाम था। क्रांतिकारियों ने किंग्सफोर्ड को जान से मार डालने का निर्णय लिया। यह कार्य प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस को सौंपा गया। ब्रिटिश सरकार ने किंग्सफोर्ड के प्रति जनता के आक्रोश को भाँप कर उसकी सरक्षा की दृष्टि से उसे सेशन जज बनाकर मुजफ्फरपुर भेज दिया। दोनों क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस उसके पीछे-पीछे मुजफ्फरपुर पहुँच गए। दोनों ने किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का बारीकी से अध्ययन किया। इसके बाद 30 अप्रैल 1908 ई० को किंग्सफोर्ड पर उस समय बम फेंक दिया जब वह बग्घी पर सवार होकर यूरोपियन क्लब से बाहर निकल रहा था। लेकिन जिस बग्घी पर बम फेंका गया था उस पर किंग्सफोर्ड नहीं था बल्कि बग्घी पर दो यूरोपियन महिलाएँ सवार थीं। वे दोनों इस हमले में मारी गईं।

 

दोनों क्रांतिकारियों ने समझ लिया कि वे किंग्सफोर्ड को मारने में सफल हो गए हैं। वे दोनों घटनास्थल से भाग निकले। प्रफुल्ल चाकी ने समस्तीपुर पहुँच कर कपड़े बदले और टिकिट खरीद कर रेलगाड़ी में बैठ गए। दुर्भाग्य से उसी में पुलिस का सब इंस्पेक्टर नंदलाल बनर्जी बैठा था। उसने प्रफुल्ल चाकी को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से अगली स्टेशन को सूचना दे दी। स्टेशन पर रेलगाड़ी के रुकते ही प्रफुल्ल को पुलिस ने पकड़ना चाहा लेकिन वे बचने के लिए दौड़े। परन्तु जब प्रफुल्ल ने देखा कि वे चारों ओर से घिर गए हैं तो उन्होंने अपनी रिवाल्वर से अपने ऊपर गोली चलाकर अपनी जान दे दी। यह घटना 1 मई 1908 की है। बिहार के मोकामा स्टेशन के पास प्रफुल्ल चाकी की मौत के बाद पुलिस उपनिरीक्षक एनएन बनर्जी ने चाकी का सिर काट कर उसे सबूत के तौर पर मुजफ्फरपुर की अदालत में पेश किया। यह अंग्रेज शासन की जघन्यतम घटनाओं में शामिल है। खुदीराम को बाद में गिरफ्तार किया गया था व उन्हें फांसी दे दी गई थी।

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