By - Gurumantra Civil Class
At - 2024-07-28 22:35:17
श्री कृष्ण सिंह
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कृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर 1887, खनवां गाँव, नवादा, बंगाल प्रेसिडेन्सी में हुआ था। उन्होंने 1906 में मुंगहिर जिला हाई इंग्लिश स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास किया। जब वे पटना कॉलेज में बीए के छात्र थे, तब 1910 में वे आरा गए और उन्होंने "बिहारी छात्र सम्मेलन" के पांचवें सत्र में भाग लिया, जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात बक्सरवासी और फोर्ट-विलियम प्रेसीडेंसी से बिहार को अलग करने के आंदोलन के प्रमुख नेता सच्चिदानंद सिन्हा ने की थी। 1913 में इतिहास में एमए और 1914 में बीएल की डिग्री प्राप्त करने के बाद वे 1915 में मुंगहिर में जिला न्यायालय में शामिल हुए। युवा डॉ. श्री कृष्ण सिंह लोकमान्य तिलक (1856-1920) वे असहयोग आंदोलन के भंवर में कूद पड़े। किंतु गाँधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन आरंभ करने पर इन्होंने वकालत छोड़ दी और शेष जीवन सार्वजानिक कार्यों में ही लगाया। साइमन कमीशन के बहिष्कार और नमक सत्याग्रह में भाग लेने पर ये गिरफ्तार किए गए।
उन्होंने ऐतिहासिक सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और कई बार गिरफ्तार भी हुए।
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कृष्ण सिंह बड़े ओजस्वी अधिवक्ता थे। ये 1937 में केन्द्रीय असेम्बली के और 1937 में ही बिहार असेम्बली के सदस्य चुने गए। 1937 के प्रथम कांग्रेस मंत्रिमंडल में ये बिहार के मुख्यमंत्री बने। राजनैतिक बंदियों की रिहाई के प्रश्न पर इन्होंने और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत ने त्याग पत्र की धमकी देकर अंग्रेज सरकार को झुकाने के लिए बाध्य कर दिया था। 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ होने पर कृष्ण सिंह के मंत्रिमंडल ने त्याग पत्र दे दिया। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए गांधी जी ने सिंह को बिहार का प्रथम सत्याग्रही नियुक्त किया था 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी ये जेल में बंद रहे।1946 में कृष्ण सिंह फिर बिहार के मुख्यमंत्री बने और 1961 तक मृत्युपर्यंत इस पद पर रहे। इनके कार्यकाल में बिहार में महत्त्व के अनेक कार्य हुए। जमींदारी प्रथा समाप्त हुई, सिंद्री का खाद कारखाना, बरौनी का तेल शोधक कारखाना, मोकाना में गंगा पर पुल इनमें से विशेष उल्लेखनीय है।
ये 'बिहार केसरी' के नाम से प्रसिद्ध हैं। कृष्ण सिंह 2 जनवरी, 1946 से अपनी मृत्यु तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। बिहार, भारत का पहला राज्य था, जहाँ सबसे पहले उनके नेतृत्व में ज़मींदारी प्रथा का उन्मूलन उनके शासनकाल में हुआ। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा अनुग्रह नारायण सिन्हा के साथ वे भी आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में जाने जाते हैं।
1952 और 1957 में हुए प्रथम और द्वितीय आम चुनावों में वे क्रमशः खड़गपुर और शेखपुरा निर्वाचन क्षेत्रों से विधायक चुने गए और 31 जनवरी 1961 को अपने निधन तक वे बिहार में मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष रहे।
अविभजित बिहार के विकास में उनके अतुलनीय, अद्वितीय व अविस्मरणीय योगदान के लिए "बिहार केसरी" श्रीबाबू को आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में जाना जाता है । अधिकांश लोग उन्हें सम्मान और श्रद्धा से "बिहार केसरी" और "श्रीबाबू" के नाम से संबोधित करते हैं।
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बिहार से झारखंड अलग हो जाने के बाद बिहार में खनिज का वह भंडार ना रहा जो भंडार झारखंड के अलग होने से पूर्व था, लेकिन इसके बावजूद बिहार में अभी कई ऐसे खनिज का भंडार है जो बिहार की आर्थिक समृद्धि के लिए सहायक हो सकती है। इस लेख में इन्हीं खनिजों के विषय में संक्षिप्त जानकारी देने का प्रयास किया गया है।
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बिहार एक ऐसा राज्य जोकि प्राचीन काल से ही विद्वानों के लिए प्रसिद्ध है, जिन्हें विश्व की प्राचीन विश्वविद्यालय के इतिहास होने का गौरव प्राप्त है। इस भूमि में प्राचीनकाल से ही कई साहित्यकार का जन्म हुआ, जिनकी कृति आज भी लोकप्रिय है।
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झारखंड के नए राज्य के निर्माण के रुप में बनने के बाद बिहार में जनजाति ?