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पाल कला

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-07-29 08:15:16

पाल कला

बिहार प्रदेश की कला परम्परा अत्यन्त समृद्धशाली रही है और इस कला परम्परा को पालगुग में भी अत्यधिक मजबूती मिली, जिसका प्रमाण आज भी विभिन्न स्थानों पर उपलब्ध है। बिहार और बंगाल के क्षेत्रों में पाल शासकों व तत्कालीन संतों के द्वारा पाल कला का विकास 8वीं से 12वीं सदी के मध्य सफलतापूर्वक किया गया। अन्य कलाओं के साथ पालयुग में पत्थर व काँसे की मूर्तियों के निर्माण की एक उन्नत शैली का विकास हुआ।

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इस काल में विकसित हुए विभिन्न कलाओं तथा उनकी विशेषताओं को निम्न शीर्षक के अधीन किया जा सकता है:-

(क) स्थापत्य कला

(ख) मूर्तिकला

(ग) मृदभांड कला

(घ) चित्रकला

(च) भित्तिचित्र

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स्थापत्य कला :- स्थापत्य कला के क्षेत्र में पाल काल में अनेक महाविहार स्तूप, चैत्य, मंदिर एवं दुर्गा का निर्माण हुआ। इस काल के स्थापत्य कला पर धर्म का स्पष्ट प्रभाव दिखता है। विभिन्न महाविहारों में ओवंतपुरी, नालंदा, विक्रमशिला एवं सोमापुर विहारों की स्थापना का श्रेय पाल शासक धर्मपाल, देवपाल की कला प्रवृत्ति को जाता है। नालंदा में विभिन्न युगों में बने मंदिर स्तूप और विहार आदि में पाल शासकों का प्रमुख योगदान रहा है। इसकाल में बौद्ध भिक्षुओं के लिए बने आवास एक निश्चित मोजना को प्रदर्शित करते हैं। विक्रमशिला महाविहार के अवशेष पालयुगीन स्थापत्य कला की विशिष्टता को प्रदर्शित करता है। यहाँ एक मंदिर और स्तूप के अवशेष मिले हैं। इसके अतिरिक्त कहलगाँव का गुफा मंदिर, गया स्थित विष्णुपद मंदिर का अर्द्धमण्डप सूरजगढ़ा, इंडपै, जयमंगलगढ़ इत्यादि पालकला के ज्वलंत एवं प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

मूर्तिकला : पालयुग में मूर्ति निर्माण कला का अत्यधिक विकास हुआ। विशेषकर पत्थर एवं काँसे की प्रतिमाएँ काफी निर्मित होने लगी। कांस्य प्रतिमाओं के निर्माण की शैली का जनक धीमन तथा उसके पुत्र बीतपाल को माना जाता है। ये नालंदा निवासी थे तथा धर्मपाल एवं देवपाल के अधीन कार्यरत थे। पालकालीन मूर्तिकला की शैली को मध्यकालीन मूर्तिकला की 'पूर्व शैली' के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। इस काल की कांस्य प्रतिमाएँ साँचे में ढली होती थी। ऐसी मूर्ति नालंदा एवं कुक्रिहार (गया के निकट) से प्राप्त हुई है। इसकाल की अधिकांश मूर्तियाँ बौद्ध धर्म से प्रभावित हैं। बुद्ध की सर्वाधिक प्रतिमाएँ मिली हैं। इस समय हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं का भी निर्माण हुआ है जिसमें विष्णु, बलराम, सूर्य और गणेश की मूर्तियाँ हैं।

पाल कालीन प्रस्तर प्रतिमाएँ भी कलाकत्मक सुन्दरता का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। ये मूर्तियाँ काले बेसाल्ट पत्थर की बनी हैं जो संथाल परगना एवं मुंगेर से प्राप्त की गई हैं। सामान्यतः इन मूर्तियों में केवल शरीर के सामने वाले भाग को दिखाया गया है। इन मूर्तियों में अलंकार की प्रधानता है। मुख्यतया देवी-देवताओं का ही चित्रण किया गया है। सभी मूर्तियाँ कलाकार की शिल्पगत परिपक्वता को दर्शाती है।

मृदभांड कला :- पाल काल में मृदभांड के सुन्दर एवं कलात्मक रूपों का विकास हुआ। इस कला का विकास राजावट हेतु हुआ और ऐसी मूर्तियाँ दीवारों पर बनाई जाती हैं जिसमें धार्मिक एवं सामान्य जीवन के दृश्य देखे जा सकते हैं। मृदभांडों पर धार्मिक प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। कलात्मक सुन्दरता का एक उत्कृष्ट उदाहरण एक तख्ती है जिस पर एक स्त्री को बैठी हुई मुद्रा में दिखाया गया है। एक हाथ में आईना लिए वह अपने रूप को निहार रही है। चेहरे की सुन्दरता और भोलापन, उभरे हुए उरोज एवं उसकी पतली कमर के माध्यम से उसके शारीरिक सौन्दर्य पर ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास किया गया है। उसके शरीर को आभूषणों से ढककर उसकी सुन्दरता को और आकर्षक बनाया गया है।

चित्रकला :- पाल

युग की चित्रकला दो रूपों में प्राप्त है :-

(क) पाण्डुलिपियों पर

(ख) दीवारों पर

पाण्डुलिपियों में विषय वस्तु के अनुकूल एवं सजावटी चित्रण देखें जा सकते हैं। चित्रित पाण्डुलिपि वर्तमान में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सुरक्षित हैं। इनमें प्राथमिक (प्रधान) रंगों में लाल, नीला, काला एवं सफेद रंगों का तथा सहायक रंगों में हरा, बैंगनी, हल्का गुलाबी एवं धूसर रंगों का प्रयोग किया गया है। भित्तिचित्र :- पाल काल में चित्रकला का एक अन्य रूप भित्ति चित्र भी है। यह रूप नालंदा जिले के सराध स्थल से प्राप्त हुआ है। यह मूलतः अजन्ता कला से प्रेरित है। यहाँ ग्रेनाइट पत्थर से बने हुए एक बड़े चबूतरे के नीचे के भाग पर कुछ ज्यामितीय आकार के फूलों की आकृतियों एवं मनुष्यों तथा पशुओं का चित्रण किया गया है। कुछ आकृतियों में हाथी, घोड़ा, नर्तकी, बोधिसत्व की आकृत्ति स्पष्ट रूप से पहचानी जा सकती है।

पाल युग के कलात्मक अवशेष नेपाल, रॉयल एशियाटिक सोसाइटी (कलकत्ता), कला भवन काशी, बोस्टन संग्रहालय (अमेरिका) में सुरक्षित हैं। इस प्रकार पाल काल में कला के विविध विधाओं का काफी विकास हुआ।

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

1. पाल कला तथा भवन निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए तथा बौद्ध धर्म के साथ उनके संबंध पर प्रकाश डालिए। (65वीं, बी.पी.एस.सी.)

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