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शहीद पीर अली

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-07-29 21:49:21

शहीद पीर अली..... जीवन वृतांत

पीर अली खां का जन्म 1820 में आजमगढ़ के एक गांव मोहम्मदपुर में हुआ था। किशोरावस्था में वो घर से भागकर पटना आ गए थे। पटना के जमींदार नवाब मीर अब्दुल्ला ने उनकी परवरिश की और पढ़ाया-लिखाया। बड़े होने पर नवाब साहब की मदद से उन्होंने किताबों की एक दुकान खोल ली। आगे चलकर वही दुकान बिहार के क्रांतिकारियों के जमावड़े का अहम ठिकाना बन गई। क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आने के बाद पीर अली खां दुकान पर क्रांतिकारी साहित्य मंगाकर रखने लगे।

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खान पेशे से एक बुकबाइंडर थे और वे स्वतंत्रता सेनानियों को गुप्त रूप से महत्वपूर्ण पत्रक, पैम्फलेट और कोडित संदेश वितरित करते थे । उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नियमित अभियान चलाए।

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पीर अली ने अंग्रेजों की गुलामी से देश को आज़ाद कराने की मुहिम में अपने हिस्से का योगदान देना अपने जीवन का मकसद बना लिया। उनका मानना था कि गुलामी की जिंदगी से मौत बेहतर होती। समय के साथ उनका दिल्ली और अन्य स्थानों के क्रांतिकारियों के साथ संपर्क में आए। दिल्ली के प्रमुख क्रांतिकारियों में एक अजीमुल्लाह खान उनके आदर्श थे, जिनके सुझाव और दिशा निर्देश पर वो चलने लगे।

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यूं तो पीर अली उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे, लेकिन उन्होंने बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाया। प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेजी शासन को हिलाने में अपनी भूमिका निभाई। विरोध के दौरान उन्होंने अंग्रेजों का सामना किया। 

3 जुलाई 1857 की रात विलियम टेलर अपने आवास पर जब भोजन की तैयारी में जुटे थे उसी वक्त मजिस्ट्रेट ने आकर सूचना दी कि सैकड़ों बागियों के झुंड ने कैथोलिक चर्च के पादरी के घर पर हमला कर दिया है। टेलर ने तुरंत ही कैप्टेन रैट्रे को 150 सिख सिपाहियों के साथ बागियों से निबटने के लिए रवाना कर दिया। स्वयं टेलर घोड़े पर पर सवार होकर आसपास रहने वाले यूरोपियनों को सावधान करने निकल पड़ा। उसने जगह-जगह पर बागियों से निबटने के लिए सिख सिपाहियों को तैनात कर दिया। पूरी तैयारी कर लेने के बाद टेलर अपने आवास के बाहर ही खड़ा होकर हरकारे की प्रतीक्षा करने लगा जो उसे घटनास्थल की ख़बरों से अवगत करवाता। तभी हाथ में नंगी तलवार लिए हुए हरकारे ने आकर टेलर को बताया कि बागियों ने डॉ लॉयल की हत्या कर दी है। उसने यह भी बताया कि बागियों की संख्या ज्यादा थी, इसलिए हमारे सिपाहियों को वहां से भागना पड़ा। तब टेलर ने अपने एक नौकर को सबसे तेज भागने वाले घोड़े पर दानापुर फौजी छावनी के जनरल के पास रवाना कर दिया, ताकि वो वहां से 50 यूरोपियन सिपाहियों को भेज सके। तब तक टेलर को सूचना मिली कि बागी वहां से भाग गए हैं। तब तक सुबह के चार बज गए थे। इस रात की मुठभेड़ में जख्मी एक बागी विलियम टेलर के हाथों में पड़ गया। 4 तारीख की सुबह टेलर उसे अपने घर पर ले आया। वह बुरी तरह जख्मी था। पहले तो उसने कुछ भी नहीं बताया। टेलर ने उसे सिख हॉस्पिटल में डॉ सदरलैंड और डॉ कॉट्स के पास भेज दिया। वहां दोनों डॉक्टरों ने बहुत सावधानी के साथ उसका इलाज किया।उसे अब उम्मीद होने लगी थी कि वह अब बच जायेगा और उसे फांसी की सजा नहीं होगी तो उसने पीर अली सहित सारे बागियों की जानकारी टेलर को दे दी।5 जुलाई 1857 को उन्हें उनके 33 अनुयायियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। 

21 लोगों को उसी दिन पेड़ के सहारे फांसी पर लटका दिया गया। पीर अली जख्मी थे। टेलर ने उस दिन उन्‍हें फांसी नहीं दी। वह पीर अली से कुछ जानकारी हासिल करना चाहता था।    

7 जुलाई, 1857 को, खान को पटना के तत्कालीन कमिश्नर विलियम टायलर द्वारा पूरे सार्वजनिक दृश्य में फाँसी दे दी गई, 14 अन्य विद्रोहियों के साथ, जिनमें घसीटा खलीफा, गुलाम अब्बास, नंदू लाल उर्फ ​​सिपाही, जुम्मन, मडुवा, काजिल खान शामिल थे। , रमज़ानी, पीर बख्श, पीर अली, वाहिद अली, गुलाम अली, महमूद अकबर और असरार अली खान। 

 

पीर अली के नेतृत्व में 3 जुलाई 1857 को 200 से ज्यादा आजादी के दीवाने इकट्ठे हुए। उन्होंने अपने सैकड़ों हथियारबंद साथियों के साथ पटना के गुलजार बाग स्थित अंग्रेजों के प्रशासनिक भवन पर धावा बोल दिया। गुलजारबाग के उस भवन से क्रांतिकारी गतिविधियों पर नजर रखी जाती थी।क्रांतिकारियों के चौतरफा हमले से घिरे अंग्रेज अधिकारी डॉ. लायल ने क्रांतिकारियों पर फायरिंग शुरू कर दी। क्रांतिकारियों की जवाबी फायरिंग में डॉक्टर लायल अपने कई साथियों समेत मारा गया। अंग्रेजी हुकूमत की अंधाधुंध गोलीबारी में कई क्रांतिकारी भी बलिदान हुए, लेकिन पीर अली और उनके ज्यादातर साथी हमले के बाद बच निकलने में कामयाब हुए।दो दिनों के बाद 5 जुलाई 1857 को पीर अली और उनके दर्जनों साथियों को पुलिस ने बगावत के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद उन्हें यातनाएं दी गई। पटना के तत्कालीन कमिश्नर विलियम टेलर ने उनसे कहा कि अगर आप अपने क्रांतिकारी साथियों के नाम बता देंगे तो आपकी सजा टल जाएगी। लेकिन, पीर अली ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

अंग्रेजी हुकूमत उनसे इतना खौफ खाती थी कि उन्हें गिरफ्तार करने के दो दिन के अंदर बिना कोई मुकदमा चलाए उन्हें सरेआम फांसी दे दी गई।

पटना हवाई अड्डे से सटे एक सड़क का नाम 2008 में नीतीश कुमार की सरकार द्वारा उनके नाम पर रखा गया है। इसके अलावा, पटना में गांधी मैदान के पास जिला मजिस्ट्रेट के आवास के सामने बच्चों के पार्क, शहीद पीर अली खान पार्क का नाम बिहार राज्य सरकार द्वारा उनके नाम पर रखा गया था ।

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