By - Gurumantra Civil Class
At - 2024-07-29 22:39:11
गांधी जी के जीवनदाता 'बतख मियां'
बतख मियां , एक रसोइया थे जिन्होंने 1917 में महात्मा गांधी की जान बचाई थी, जब उन पर फूड पॉइज़निंग के कारण हत्या का प्रयास किया गया था। वे बिहार के मोतिहारी में एक नील संयंत्र के कर्मचारी थे ।
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चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी को एक नील संयंत्र के प्रबंधक इरविन ने रात के खाने पर आमंत्रित किया था। इरविन ने अपने रसोइए बतख मियां से आग्रह किया कि वह एक गिलास दूध में ज़हर मिलाकर गांधी को पिलाए। वह परोसने गया, लेकिन राजेंद्र प्रसाद को साजिश का पता चल गया । प्रयास से बचने के बाद, महात्मा गांधी ने चंपारण में अपना विरोध जारी रखा ।
जब चंपारण में गांधी की हत्या की ये कोशिश नाकाम हो गई तो एक और अंग्रेज़ मिल मालिक था, उसे बहुत ग़ुस्सा आया ।उसने कहा कि गांधी अकेले मिल जाएं तो मैं गोली मार दूंगा । ये बात गांधीजी तक पहुंच गई । गांधी उसी के इलाक़े में थे। अगली सुबह गांधी अपनी सोंटी लिए हुए उसकी कोठी पर पहुंच गए। उन्होंने वहां चौकीदार से कहा कि उन्हें बता दो कि मैं आ गया हूं और मैं अकेला हूं। कोठी का दरवाज़ा नहीं खुला और वो अंग्रेज़ बाहर नहीं निकला।
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बतख़ मियां का कोई नामलेवा नहीं बचा, उनको जेल हो गई। उनकी ज़मीनें नीलाम हो गईं।
1957 में राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति थे। वो मोतिहारी गए. वहां एक जनसभा में उन्होंने भाषण दिया। उन्हें लगा कि वो दूर खड़े एक आदमी को पहचानते हैं। उन्होंने वहीं से आवाज़ लगाई- बतख़ भाई, कैसे हो?
बतख़ मियां को मंच पर बुलाया और ये क़िस्सा लोगों को बताया और उनको अपने साथ ले गए। बाद में बतख़ मियां के बेटे जान मियां अंसारी को उन्होंने कुछ दिन के लिए राष्ट्रपति भवन में बुलाकर रखा।
साथ में राष्ट्रपति भवन ने बिहार सरकार को एक ख़त लिखा कि चूंकि उनकी ज़मीनें चली गई हैं, तो उन्हें 35 एकड़ ज़मीन मुहैया कराई जाए ।
हालांकि वर्ष 1917 में चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी को जहर देने के एक ब्रिटिश अधिकारी के आदेश का उल्लंघन करने वाले रसोइये बतख मियां के पोते-पोतियों को अभी भी उस पूरी जमीन का इंतजार है, जिसका वादा स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 1952 में किया था।
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