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ब्रिटिश शासन काल में बिहार में पश्चिमी शिक्षा का विकास

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-07-30 11:56:13

ब्रिटिश शासन काल में बिहार में पश्चिमी शिक्षा का विकास

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उन्नीसवीं सदी के दूसरे तथा तीसरे दशक से पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव विहार प्रान्त पर धीरे-धीरे बढ़ता गया। 19वीं सदी के प्रारमी तक राज्य की ओर से कोई भी शिक्षा प्रणाली विकसित नहीं की गई थी। पुराने विद्यालयों में विद्या की जो विधि सुष्यपरिणत ढंग से चलायी जाती थी वह अनेक बाधाओं के कारण धीरे-धीरे लुप्त होती चली गई। उस समय बिहार में शिक्षा वस्तुतः राजाओं, जमीन्दारों तथा समाज के उदार लोगों के व्यक्तिगत दान पर निर्भर करती थी। बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में उस समय भारी अवनति हुई जब स्थायी बन्दोबस्त के कारण राजाओं एवं जमीन्दारों की आप में पर्याप्त कमी आ गई। बुकानन के अनुसार दरभंगा महाराज ने शिक्षा पर पर्याप्त ध्यान दिया था। एडम के सर्वेक्षण के अनुसार 1844 ई के आस-पास बिहार तथा बंगाल में प्रायः प्रत्येक ग्राम में एक विद्यालय था। साक्षरता का औसत 7.75% था।

आधुनिक भारत में शिक्षा के क्षेत्र में 1835 ई एक महत्त्वपूर्ण वर्ष है। इस वर्ष लार्ड विलियम बैटिंग ने घोषणा की कि शिक्षा के लिए जो भी कुछ भी धन मंजूर हो उसे केवल अँग्रेजी शिक्षा के लिए ही खर्च करना सर्वोत्तम है। फलतः अँग्रेजी शिक्षा के लिए पूर्णियाँ, बिहारशरीफ, भागलपुर, आरा तथा छपरा में जिला स्कूल की स्थापना की गई। 1863 ई० में देवघर, मोतिहारी, हजारीबाग तथा चाईबासा के लिए भी जिला स्कूल मंजूर किए गए। संथाल परगना के पाकुड़ का उच्च विद्यालय 1859 ई. में स्थापित हुआ था।

बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सभापति चार्ल्स वुड के शिक्षा सम्बन्धी निर्देश (डिस्पेच) के अनुसार 9 जनवरी 1863 ई को पटना महाविद्यालय की स्थापना हुई। बिहार का सबसे पुराना उच्च शिक्षा के लिए सर्वोत्कृष्ट महाविद्यालय होने के कारण राज्य में इसे गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। पटना कॉलेज में कला संकाय में स्नातकोत्तर विभाग 1917 ई० में तथा भौतिकी एवं रसायनशास्त्र विभाग 1919 ई में खोले गए। सन् 1917 ई० में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना से विहार में उच्च शिक्षा के विस्तार का एक नया अध्याय प्रारम्भ हुआ। 1925 ई में पटना मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई। विज्ञान सम्बन्धी उच्च शिक्षा देने के लिए 1928 ई में

एक स्वतंत्र महाविद्यालय के रूप में पटना सायंस कॉलेज की स्थापना की गई।

1917 में ब्रिटिश सरकार ने शिक्षा में सुधार हेतु सुझाव देने के लिए सैडलर आयोग का गठन किया। आयोग ने व्यावहारिक विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी डिप्लोमा एवं डिग्री की उपाधि का प्रबन्ध करने की बात की तथा व्यावसायिक शिक्षा हेतु विद्यालय एवं महाविद्यालय की स्थापना का सुझाव दिया। इसके पूर्व ही पूसा में 1902 ई० में एग्रीकल्चरल रिसर्च सेन्टर एवं एक्सपेरिमेन्ट फॉर्म के रूप में कृषि-सम्बन्धी शोध एवं प्रयोग केन्द्र स्थापित हो चुका था। इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य कृषि के क्षेत्र में नए-नए अनुसंधानों को बढ़ावा देना था। 1930 ई में पटना में पशु चिकित्सालय की स्थापना की गई। इसका मुख्य उद्देश्य पशुधन को बढ़ावा था। खनिज संसाधनों के उचित दोहन के लिए 1926 ई० में धनबाद में इण्डियन स्कूल ऑफ माइन्स की स्थापना की गई।

इंजीनियरिंग की शिक्षा देने के लिए 'पटना इंजीनियरिंग कॉलेज' की स्थापना की गई।

शिक्षा के प्रचार-प्रसार में स्वयंसेवी संस्थाओं तथा प्रमुख व्यक्तियों ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस क्षेत्र में आर्य समाज तथा इसाई मिशनरियों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। आर्य समाज ने वैदिक धर्म के पुनरुत्थान के लिए डी० ए० वी स्कूलों की श्रृंखला की शुरुआत की। ब्रह्म समाज के तत्त्वावधान में पटना में राम मोहन राय सेमिनरी की स्थापना की गई। ईसाई मिशनरियों ने मूलतः अपने धर्म के प्रचार के लिए शिक्षा के कई केन्द्र खोले। मुसलमानों के बीच शिक्षा के प्रचार बो लिए भी कई केन्द्रों की स्थापना की गई। मुसलमानों में शिक्षा क्षेत्र में सुधार हेतु प्रेरणास्त्रोत बना। अलीगढ़ आन्दोलन जिसके नेता सैयद अहमद खाँ मुस्लिम समाज में जागृति हेतु प्रयासरत थे। मुजपफरपुर में 'बिहार साइंटिफिक सोसाइटी' की स्थापना की गई। 1872 ई. में इसकी स्थापना ईमदार अली खाँ ने की। कालान्तर में 1873 ई० में इसकी एक शाखा की स्थापना पटना में हुई। पटना में मौहम्मडन एजुकेशन सोसाइट की स्थापना हुई जिसके द्वारा 'मोहम्मडन एंग्लो एरेविक' स्कूल की स्थापना 1886 ई० में पटना सिटी में की गई।

1914 ई० में बिहार-उड़ीसा की सरकार ने अपने प्रान्त में नारी शिक्षा के सम्बन्ध में जाँच-पड़ताल करने के लिए एक समिति का गठन किया। समिति ने महिलाओं में उच्च शिक्षा के विस्तार के लिए बॉकीपुर तथा कटक (उड़ीसा) के कन्या विद्यालयों में इण्टरमीडिएट श्रेणी खोलने की सिफारिश की। सरकार ने यह भी निर्णय लिया था कि प्रत्येक कमिश्नरी में आर्थिक सुविधानुसार कम से कम एक कन्या महाविद्यालय अवश्य खोला जाए। नीतिगत फैसला के बावजूद प्रगति काफी धीमी रही। बिहार एवं उड़ीसा में शिक्षा पाने वाली लड़‌कियों की संख्या 1927 ई. में केवल 0.7% ही थी। सन् 1929 ई० में हाटोंग कमिटी ने बिहार का उल्ले करते हुए लिखा "लगभग 25 लाख लड़‌कियों में से यहाँ के विद्यालयों में शिक्षा पाने वाली लड़‌कियों की संख्या केवल एक लाध सोलह हजार है और उनमें भी अधिकांश प्राथमिक विद्यालयों में ही है। फिर भी जागृति के लक्षण स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे हैं।" बाद में सह शिक्षा की भी व्यवस्था की गई और अनेक विद्यालय खोले गए। 1947 ई० में दरभंगा मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई।

विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न

1. 1858 से 1914 के दौरान बिहार में पाश्चात्य शिक्षा के सम्प्रसार का वर्णन कीजिए। (65वीं, बी.पी.एस.सी.)

2. बिहार में 1857 से 1947 तक पाश्चात्य शिक्षा के विकास की विवेचना कीजिए। (63ीं, बी.पी.एस.सी.)

3. बिहार में 1813 से 1947 तक पाश्चात्य शिक्षा के विकास की विवेचना कीजिए। (60-62वीं, बी.पी.एस.सी.)

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