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आधुनिक बिहार का गठन

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-07-30 12:45:31

आधुनिक बिहार का गठन

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नामकरण 12 वीं सदी के अन्त में ओदन्तपुरी के साथ इस प्रदेश के बहुसंख्यक बौद्ध विहारों के कारण इसका नाम निहार पड़ा जो बाद में अपभ्रंश के कारण विहार हो गया।

बिहार भारत के उन गिने-चुने राज्यों में है जिसे अपने प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों पर गर्व है। हिन्दू, जैन एवं बौद्ध पर्व के महापुरुषों की यह जन्मभूमि भी रही है और कर्म भूमि थी। नालंदा, पाटलिपुत्र, वैशाली, राजगृह आदि यहाँ की प्राचीन संस्कृति और शिक्षा के ऐसे केन्द्र थे जो आज भी अपने गौरव के लिए विश्वविख्यात हैं। गुप्त साम्राज्य के विघटन से बिहार क्षेत्र का भी गौरव घटा। लेकिन पालवंश के उदय के साथ ही पाटलिपुत्र के गौरव की पुनरावृत्ति हुई। ।। वीं सदी के मध्य में बिहार राजनीतिक विघटन का शिकार बना। गया, भागलपुर, रोहतास आदि ने स्वयं को पृथक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया। बख्तियार खिलजी ने इस ग्राजनीतिक विघटन का फायदा उठाकर सम्पूर्ण बिहार को तेरहवीं सदी के प्रारम्भ में जीता। लेकिन बिहार पर पूरे सल्तनत काल में कभी-भी उसका प्रभावी नियंत्रण नहीं रहा।

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1575-76 ई० में अकबर ने बिहार को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया। परवर्ती मुगलों के समय 1733 ई० में बिहार को बंगाल सूबे का एक हिस्सा मान लिया गया। अँग्रेजों ने बिहार में अपना पहला कारखाना 1664 ई० में स्थापित किया। लगभग सौ वर्ष पश्चात क्लाइव 1757 में पटना आया और 1764 ई० में बक्सर युद्ध के पश्चात बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी ईस्ट इंडिया कम्पनी को प्राप्त हो गई। बिहार निरन्तर पिछड़ता जा रहा था क्योंकि बिहार पर अँग्रेज बंगाल की अपेक्षा काफी कम ध्यान देते थे। अतः बिहार वासियों में क्षोभ का वातावरण बनना प्रारम्भ हुआ।

1889 ई में बिहार के एक बुद्धिजीवी सचिदानन्द सिंहा इंग्लैंड गए। तत्कालीन प्रशासनिक संरचना में बिहार का कोई नाम नहीं था क्योंकि बिहार बंगाल का ही एक अंग था। इस पर इनको दुःख हुआ और इन्होंने बिहार को पृथक राज्य का दर्जा दिलाने का दृढ़ निश्चय किया।

1893 ई० में सच्चिदानन्द सिंह पटना लौटे और प्रमुख पत्रकार महेश नारायण एवं नन्दकिशोर लाल, कृष्ण सहाय की सहायता से जनवरी 1894 में पटना से 'बिहार टाइम्स' नामक समाचारपत्र निकालना शुरु किया। समाचारपत्र के माध्यम से बिहार पृथक्करण की विचारधारा अपनी जड़ जमाने लगी। सम्पूर्ण बिहार में पृथक्करण आन्दोलन जोर पकड़ने लगा। कुछ समय पश्चात बंगाल के तत्कालीन उपराज्यपाल अलेक्जेंडर मैकेंजी को डॉ. सिन्हा एवं नन्दकिशोर लाल ने बिहार को बंगाल से अलग करने के सम्बन्ध में एक ज्ञापन सौंपा किन्तु इसका कोई परिणाम सामने नहीं आया।

1907 ई के आसपास बिहार प्रान्त गठन हेतु प्रयास को काफी बल मिला जब ब्रह्मदेव नारायण, अली इमाम, मजहरूल हक, हसन इमाम आदि लोग डॉ सिन्हा के सहयोगी बने। सभी ने मिलकर 1908 एवं 1909 ई० में बिहार प्रादेशिक सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें बिहार को पृथक राज्य का दर्जा देने की माँग प्रस्तुत की गई। 1910 ई में मार्ले-मिन्टो सुधारों के अन्तर्गत प्रथभ चुनाव सम्पन्न हुआ जिसमें डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा बंगाल विधान परिषद की ओर से केन्द्रीय विधान परिषद में प्रतिनिधित्व है। निर्वाचित हुए। इस हैसियत से उन्होंने सरकार को बिहार को अलग प्रान्त का दर्जा दिए जाने के मसले पर प्रभावित करना शुरु किया। अली इमाम केन्द्रीय विधान परिषद के विधि सदस्य बने एवं उन्होंने भी इस हेतु परिषद के अन्दर दबाव बनाना शुरु किया।

दूसरी ओर बंग-भंग आन्दोलन इस समय तक कमजोर पड़ चुका था। सरकार उदारवादियों को संतुष्ट करने के लिए बंगाल विभाजन को रद्द करना चाहती थी। साथ ही वह नए सिरे से बिहार को ध्यान में रखकर बंगाल का विभाजन चाहती थी। 12 दिसम्बर 1911 को दिल्ली में शाही दरबार का आयोजन हुआ जहाँ सम्राट ने बिहार और उड़ीसा को मिलाकर एक नया प्रान्त बिहार के निर्माण की घोषणा की। बिहार प्रान्त का प्रस्ताव काँग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में 1911 के दिसम्बर में तेज बहादुर सप्रू ने प्रस्तुत किया था। इस प्रकार 1 अप्रैल 1912 को बिहार प्रान्त का विधिवत उद्घाटन हुआ जिसकी राजधानी पटना बनी।

31 मार्च, 1936 तक बिहार और उड़ीसा एक साथ रहे। 1 अप्रैल, 1936 को उड़ीसा प्रमंडल को पृथक कर उड़ीसा प्रान्त बनाया गया। शेष क्षेत्र बिहार बना। 1956 में राज्यों का भाषाई आधार पर पुनर्गठन किया गया लेकिन बिहार का अपना स्वतंत्र अस्तित्व बना रहा।

बिहार का अन्तिम विभाजन 15 नवम्बर, 2000 ई को हुआ जब बिहार से झारखण्ड को अलग कर उसे देश का 28वाँ राज्य बनाया गया। इस प्रकार शेष बचा बिहार आज वर्तमान बिहार राज्य के नाम से अस्तित्व में है।

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