By - Gurumantra Civil Class
At - 2024-07-30 13:13:59
स्वतंत्रता आन्दोलन में बिहार की महिलाएँ
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बिहार में ऐसी अगणित महिलाएँ हुई जिन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के दरम्यान अपनी जान हथेली पर रखकर सम्पूर्ण महिला समाज को सक्रिय भागीदारी के लिए उत्प्रेरित किया।
बीसवीं सदी के प्रारम्भ से ही, विशेषकर बंग-भंग आन्दोलन के दौरान महिलाओं ने स्वतंत्रता आन्दोलन से अपने को जोड़ना प्रारम्भ कर दिया था। 1917 ई में गाँधीजी के विहार आगमन के पश्चात महिलाओं की जागरूकता में तेजी आई और 1919 तक कस्तूरचा गाँधी, सरला देवी, प्रभावती देवी, राजवंशी देवी, राधिका देवी आदि महिलाओं की प्रेरणा से सम्पूर्ण विहार महिला समाज में आजादी की लहर पैदा हो गई।
सन् 1921 ई के अक्टूबर में सरला देवी ने छात्रों से स्कूल, कॉलेजों को छोड़ने की अपील की। असहयोग आन्दोलन के दौरान प्रिन्स ऑफ वेल्स के आगमन के बहिष्कार की अगुवाई श्रीमती सावित्री देवी ने की। असहयोग आन्दोलन के दौरान श्रीमती सी० सी० दास और उर्मिला देवी भी काफी सक्रिय रही।
असहयोग आन्दोलन के बाद भी बिहार की महिलाएँ रचनात्मक कार्यों जैसे चरखा आदि के द्वारा मुख्यधारा से जुड़ी रही। महात्मा गाँधी के बिहार भ्रमण के दौरान जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती देवी बराबर उनके साथ थीं।
इस प्रकार बिहार की वीरांगनाओं ने सदैव राष्ट्रीय आन्दोलन में अपनी उपयोगिता साबित की और अपने मकसद में काफी हद तक कामयाब रही।
भगवती देवी को गिरफ्तार किया गया एवं छः माह की सजा दी गई। इस समय पटना में विदेशी वस्त्रों की दुकानों के सामने सत्याग्रह करने में जो सफलता मिली, उसका श्रेय महिला संगठनों को ही जाता है। इसकी बागडोर श्रीमती हसन इमाम के हाथों में थी। पटना के जिलाधीश ने महिला गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए भारी संख्या में महिला पुलिस की नियुक्ति की। इसी समय मुंगेर के एक बड़े घराने की महिला श्रीमती शाह मुहम्मद जुबैर ने पर्दा प्रथा को तिलांजलि दे दी। रामस्वरूप देवी ने गाँवों में घूम-घूमकर लोगों से सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेने की अपील की जिस कारण उन्हें गिरफ्तार कर भागलपुर जेल में डाल दिया गया। संथाल परगना में श्रीमती साधना देवी, गया में चन्द्रावती देवी आदि महिलाओं ने आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया। मार्च 1931 में आरा में श्रीमती कुसुमदेवी ने एक जनसभा को सम्बोधित किया जिसमें उन्होंने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत पर बिहार के नौजवानों को ललकारा। 26 जनवरी 1933 को स्वतंत्रता दिवस मनाने के कारण पटना में सात महिलाओं को गिरफ्तार किया गया जिसमें राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी राजवंशी देवी और चन्द्रावती देवी भी थी।
अगस्त 1942 में स्वतंत्रता की अन्तिम लड़ाई प्रारम्भ हुई। महिलाओं, खासकर चरखा समिति की सदस्यों ने अगस्त क्रांति की ज्वाला को धधकाने और उसे व्यापक बनाने की भरपूर कोशिश की। 9 अगस्त को महिलाओं का विराट जुलूस पटना से निकला, जिसका नेतृत्त्व डॉ राजेन्द्र प्रसाद की बहन श्रीमती भगवती देवी कर रही थी। ।। अगस्त को हजारीबाग में श्रीमती सरस्वती देवी के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस निकाला गया। सरस्वती देवी को गिरफ्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया। हजारीबाग से भागलपुर ले जाने के क्रम में छात्रों के एक दल ने धावा बोलकर उन्हें मुक्त करा लिया। लेकिन 14 अगस्त को एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए उन्हें पुनः गिरफ्तार कर लिया गया।
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