78वां स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर तैयारी करने वाले UPSC, BPSC, JPSC, UPPSC ,BPSC TRE & SI के अभ्यर्थीयों को 15 अगस्त 2024 तक 75% का Scholarship एवं 25 अगस्त 2024 तक 70% का Scholarship. UPSC 2025 और BPSC 71st की New Batch 5 September & 20 September 2024 से शुरु होगी ।

स्वतंत्रता आन्दोलन में बिहार की महिलाएँ

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-07-30 13:13:59

स्वतंत्रता आन्दोलन में बिहार की महिलाएँ

Bihar Current 2024,Just Clicks

BPSC 70th, SI & Bihar Special free Test & Notes, Just Click

बिहार में ऐसी अगणित महिलाएँ हुई जिन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के दरम्यान अपनी जान हथेली पर रखकर सम्पूर्ण महिला समाज को सक्रिय भागीदारी के लिए उत्प्रेरित किया।

बीसवीं सदी के प्रारम्भ से ही, विशेषकर बंग-भंग आन्दोलन के दौरान महिलाओं ने स्वतंत्रता आन्दोलन से अपने को जोड़ना प्रारम्भ कर दिया था। 1917 ई में गाँधीजी के विहार आगमन के पश्चात महिलाओं की जागरूकता में तेजी आई और 1919 तक कस्तूरचा गाँधी, सरला देवी, प्रभावती देवी, राजवंशी देवी, राधिका देवी आदि महिलाओं की प्रेरणा से सम्पूर्ण विहार महिला समाज में आजादी की लहर पैदा हो गई।

सन् 1921 ई के अक्टूबर में सरला देवी ने छात्रों से स्कूल, कॉलेजों को छोड़ने की अपील की। असहयोग आन्दोलन के दौरान प्रिन्स ऑफ वेल्स के आगमन के बहिष्कार की अगुवाई श्रीमती सावित्री देवी ने की। असहयोग आन्दोलन के दौरान श्रीमती सी० सी० दास और उर्मिला देवी भी काफी सक्रिय रही।

असहयोग आन्दोलन के बाद भी बिहार की महिलाएँ रचनात्मक कार्यों जैसे चरखा आदि के द्वारा मुख्यधारा से जुड़ी रही। महात्मा गाँधी के बिहार भ्रमण के दौरान जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती देवी बराबर उनके साथ थीं।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय बिहार की महिलाओं ने अपनी भूमिका बढ़ चढ़ कर निभाई। सम्रान्त परों की महिलाओं ने भी नमक कानून भंग करने में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। संथाल परगना में नमक सत्याग्रह का नेतृत्त्व श्रीमती शैलबाला राष ने किया। इस दौरान हजारीबाग जिला काँग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सरस्वती देवी, श्रीमती साधना देवी भागलपुर जिले के बिहपुर में श्रीमती माया देवी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। गोविन्दपुर के श्री नरसिंह गोप की पत्नी जिरियावती देवी ने अँग्रेज सिपाही को गोली मार दी। छपरा में शांति देवी ने एक विशाल जनसभा की अध्यक्षता की। दिघवारा प्रखंड पर तिरंगा फहराने के जुर्म में दो सगी बहनों शारदा एवं सरस्वती को 14 एवं 11 वर्ष की सजा दी गई। दुमका में एक विशाल जुलूस निकाला गया जिसके नेतृत्त्व जाम्बवती देवी एवं प्रभावती देवी ने किया। संथाल परगना में हरिहर मिर्धा की पत्नी को गोली मार दी गई। गया जिले की प्यारी देवी को आन्दोलन में भाग लेने के कारण कैम्प जेल भेज दिया गया जहाँ उनकी मौत हो गई। अगस्त क्रांति में भाग लेने वाली महिलाओं में शारदा देवी एवं ऊपा रानी मुखर्जी का नाम भी उल्लेखनीय है। वैशाली में सुनीति देवी एवं क्रांतिकारी बैकुण्ठ शुक्ल की पत्नी राधिका देवी ने पुरूष वेश में साईकिल यात्रा द्वारा जन-जागरण पैदा किया। शहीद फुलेना प्रसाद की पत्नी तारा देवी, मुजफ्फरपुर की भवानी मेहरोवा, भागलपुर की रामस्वरूप देवी। पटना की सुधा कुमारी शर्मा आदि महिलाओं ने अपना उल्लेखनीय योगदान दिया।
मुंगेर की महिलाओं ने भी काफी जोश के साथ इस क्रांति में भाग लिया। सितम्बर 1942 में चौथम थाने के रूहियार गाँव में पुलिस की गोली से कई महिलाएँ मारी गई। पलामू में महाक्रांति की बागडोर कुमार आर सी दास के हाथ में थी जिसने जपला सीमेन्ट कारखाने के मजदूरों को संगठित किया। उनके विरूद्ध भारत रक्षा कानून के तहत कारवाई की गई।

इस प्रकार बिहार की वीरांगनाओं ने सदैव राष्ट्रीय आन्दोलन में अपनी उपयोगिता साबित की और अपने मकसद में काफी हद तक कामयाब रही।

भगवती देवी को गिरफ्तार किया गया एवं छः माह की सजा दी गई। इस समय पटना में विदेशी वस्त्रों की दुकानों के सामने सत्याग्रह करने में जो सफलता मिली, उसका श्रेय महिला संगठनों को ही जाता है। इसकी बागडोर श्रीमती हसन इमाम के हाथों में थी। पटना के जिलाधीश ने महिला गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए भारी संख्या में महिला पुलिस की नियुक्ति की। इसी समय मुंगेर के एक बड़े घराने की महिला श्रीमती शाह मुहम्मद जुबैर ने पर्दा प्रथा को तिलांजलि दे दी। रामस्वरूप देवी ने गाँवों में घूम-घूमकर लोगों से सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेने की अपील की जिस कारण उन्हें गिरफ्तार कर भागलपुर जेल में डाल दिया गया। संथाल परगना में श्रीमती साधना देवी, गया में चन्द्रावती देवी आदि महिलाओं ने आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया। मार्च 1931 में आरा में श्रीमती कुसुमदेवी ने एक जनसभा को सम्बोधित किया जिसमें उन्होंने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत पर बिहार के नौजवानों को ललकारा। 26 जनवरी 1933 को स्वतंत्रता दिवस मनाने के कारण पटना में सात महिलाओं को गिरफ्तार किया गया जिसमें राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी राजवंशी देवी और चन्द्रावती देवी भी थी।

 

अगस्त 1942 में स्वतंत्रता की अन्तिम लड़ाई प्रारम्भ हुई। महिलाओं, खासकर चरखा समिति की सदस्यों ने अगस्त क्रांति की ज्वाला को धधकाने और उसे व्यापक बनाने की भरपूर कोशिश की। 9 अगस्त को महिलाओं का विराट जुलूस पटना से निकला, जिसका नेतृत्त्व डॉ राजेन्द्र प्रसाद की बहन श्रीमती भगवती देवी कर रही थी। ।। अगस्त को हजारीबाग में श्रीमती सरस्वती देवी के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस निकाला गया। सरस्वती देवी को गिरफ्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया। हजारीबाग से भागलपुर ले जाने के क्रम में छात्रों के एक दल ने धावा बोलकर उन्हें मुक्त करा लिया। लेकिन 14 अगस्त को एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए उन्हें पुनः गिरफ्तार कर लिया गया।

Comments

Releted Blogs

Sign In Download Our App