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स्वतंत्रता आन्दोलन में बिहार की भूमिका

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-07-30 14:10:15

स्वतंत्रता आन्दोलन में बिहार की भूमिका

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आधुनिक युग में बिहार ने राष्ट्रीय आन्दोलन के क्रमबद्ध रूपों में अ‌द्भुत एवं प्रेरक भूमिका निभाई है। विभिन्न कालों में स्वतंत्रता के लिए देश की पुकार पर बिहार का उत्तर, प्रखर और मुखर था।

1856 ई० तक अंग्रेजों ने लगभग सम्पूर्ण भारत पर अधिकार प्राप्त कर लिया। अंग्रेजों की इस विजय यात्रा के क्रम में देश में हुए कुल 68 विद्रोह में कई विद्रोह का केन्द्र बिहार रहा। अंग्रेजों द्वारा बंगाल विजय क बाद ही इस क्षेत्र में सन्यालियों का विद्रोह हुआ जिसका जिक्र कम्पनी के दस्तावेजों में मिलता है। कालानार में 1830 से 1869 ई के बीच हुए बहावी आन्दोलन, 1831 ई. का कोल विद्रोह, 1832 ई का भूमिज विद्रोह और 1856 ई के संथाल विद्रोह का केन्द्र बिहार रहा। 1857 ई० में ब्रिटिश हुकू‌मत के विरूद्ध एक व्यापक विद्रोह हुआ जिसे आजादी की प्रथम लड़ाई के रूप में मान्यता मिली। बिहार में इस विद्रोह का नेतृत्व कुंवर सिंह ने किया। उनकी मृत्यु होने पर उनके भाई अमर सिंह ने संघर्ष जारी रखा। 1857 के विद्रोहियों में पीर अली एवं हरेकृष्ण सिंह का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है।

उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय चेतना पूरे देश में फैल चुकी थी और बिहार भी इससे प्रभावित था। 1895 और 1901 ई. के बीच तत्कालीन दक्षिण बिहार में बिरसा के नेतृत्व में एक सशक्त विद्रोह हुआ लेकिन सत्ता द्वारा उसे बलपूर्वक दबा दिया गया। 20वीं सदी के प्रारम्भ से बिहार भी उन सभी आन्दोलनों के साथ चला जिसने अन्ततः देश की आजादी में अपनी भूमिका सिद्ध की।

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1. क्रान्तिकारी आतंकवाद और बिहार बंग-भंग विरोधी आन्दोलन के क्रम में बंगाल में क्रान्तिकारी आतंकवाद का प्रसार हुआ जिसका प्रभाव विहार पर भी पड़ा। बिहार में इस विचारधारा के आरम्भिक नेताओं में डॉक्टर ज्ञानेन्द्रनाथ, केदारनाथ बनर्जी और बाबा ठाकुरदास थे। बाबा ठाकुरदास ने 1906-07 में राधाकृष्ण सोसाइटी की स्थापना की और 'दि मदरलैंड' समाचारपत्र द्वारा क्रान्तिकारी विचारों का प्रचार किया। 1908 में मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी द्वारा जिला जज किंग्सफोर्ड को मारने के प्रयास में दो अन्य महिलाएँ मारी गई। चाकी ने आत्महत्या कर लिया जबकि सुदीराम बोस को फाँसी दे दी गई। 1913 ई० में शचीन्द्रनाथ सन्याल ने पटना में अनुशीलन समिति की एक शाखा की स्थापना की। रेवती नाग ने भागलपुर में और यदुनाथ सरकार ने बक्सर में युवा क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के उपाय किए। असहयोग आन्दोलन के बाद क्रांतिकारी आन्दोलन के दूसरे चरण में भी बिहार के योगेन्द्र शुक्ल जैसे क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद और मन्मथनाथ गुप्त के सम्पर्क में थे। शुक्ल जो को 1230 में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 22 वर्ष की सजा हुई। बिहार के बैकुंठे शुक्ल एवं चन्द्रमा सिंह भी प्रसिद्ध क्रान्तिकारी थे।

2. ताना भगत आन्दोलन बिहार की जनजातियों के बीच यह आन्दोलन 1913 ई० में शुरू हुआ जो अपेक्षाकृत अधिक जागृत भी था और राष्ट्रीय भी। इस आन्दोलन पर कांग्रेस और महात्मा गाँधी का स्पष्ट प्रभाव था। इस आन्दोलन की मुख्य माँग थीं-स्वशासन का अधिकार, लगान न देना, मनुष्यों में समता आदि। कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन एवं सविनय अवज्ञा आन्दोलन को भी इसका समर्थन मिला।

3. होमरुल आन्दोलन और बिहार सन् 1916 में राष्ट्रव्यापी होमरुल आन्दोलन की शुरुआत हुई। बिहार में भी मौलाना मजहरुल हक के नेतृत्त्व में होमरुल लीग की स्थापना हुई। सरफराज हुसैन खाँ उपाध्यक्ष एवं चन्द्रवंशी सहाय सचिव बनाए गए। 1910 ई० में एनी बेसेन्ट का दो बार पटना आगमन हुआ।

4. चम्पारण सत्याग्रह और बिहार न केवल बिहार बल्कि पूरे देश ने चम्पारण सत्याग्रह के साथ स्वतंत्रता आन्दोलन के गाँधी युग में प्रवेश किया। ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह का पहला प्रयोग भारत में गाँधीजी ने चम्पारण में ही किया। चम्पारण में तिनकठिया व्यवस्था के कारण किसानों को नील की खेती करने की बाध्यता थी और उनका शोषण हो रहा था। 1916 ई के कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के दौरान चम्पारण के राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर गाँधी जी चम्पारण आये। प्रारम्भिक कठिनाईयों के बाद अन्ततः गाँधी जी के सामने अंग्रेजों को झुकना पड़ा। एक कानून बनाकर तिनकठिया व्यवस्था का अन्त कर दिया गया।

5. खिलाफत, असहयोग आन्दोलन और बिहार खिलाफत को लेकर बिहार में गया, जहानाबाद, मुंगेर, पटना, पूर्णियाँ आदि जिलों में सभाएँ आयोजित की गई। तुर्की के सुल्तान की सहायता के लिए कोष इक‌ट्ठा किए गए। मजहरूल हक इन कार्यों में काफी सक्रिय थे। फरवरी 1919 को पटना में हसन इमाम की अध्यक्षता में एक सभा हुई जिसमें खलीफा के प्रति मित्र देशों द्वारा उचित व्यवहार के लिए लोकमत बनाने की बात कही गई। अप्रैल 1919 में इस आन्दोलन के प्रमुख नेता मौलाना शौकत अली पटना आए। 15 और 16 मई को फुलवारीशरीफ में मुस्लिम उलेमाओं का सम्मेलन हुआ जिसमें सरकार से पूर्ण असहयोग का प्रस्ताव पारित हुआ। ऐसा ही प्रस्ताव बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी और बिहार प्रादेशिक सभा ने भी पारित किए। असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सितम्बर 1920 को पारित हुआ। मगर इसके पूर्व ही बिहार में असहयोग का प्रस्ताव पारित हो चुका था। अगस्त 1920 में राजेन्द्र प्रसाद के सभापतित्व में बिहार प्रान्तीय राजनीतिक सम्मेलन की बैठक भागलपुर में सागलपुर में हुई जिसमें गाँधीजी के प्रसाद के सुझाव पर स्वराज के मुद्दे असहयोग के प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया। व्रजकिशोर को भी असहयोग आन्दोलन में शामिल कर लिया गया। आन्दोलन के क्रम में मजहरुल हक, राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद, मोहम्मद शफी आदि नेताओं ने विधायिका के चुनाव से अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार किया, छात्रों ने स्कूल और कॉलेजों से अपना नाम वापस ले लिया। शिक्षा के वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में राष्ट्रीय महाविद्यालय की स्थापना की गई। राजेन्द्र बाबू इसके प्राचार्य बने। राष्ट्रीय महाविद्यालय के ही प्रांगण में बिहार विद्यापीठ का उ‌द्घाटन 6 फरवरी 1921 को गाँधीजी द्वारा किया गया। मजहरुल हक को इसका कुलाधिपति और ब्रजकिशोर प्रसाद को कुलपति बनाया गया। मजहरुल हक ने 'दि मदरलैंड' अखबार 1921 से प्रारम्भ किया जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय भावना का प्रचार, असहयोग कार्यक्रम का प्रचार और हिन्दू-मुस्लिम एकता का उपदेश देना था। 22 सितम्बर को ब्रिटेन का युवराज का पटना आगमन हुआ। उस दिन पूरे शहर में हड़ताल रही।

6. स्वराज दल और बिहार 1922 में गया में काँग्रेस अधिवेशन चितरंजन दास की अध्यक्षता में हुई जिसमें चुनाव में भाग लेने के सवाल पर स्वराजदल का गठन हुआ। बिहार में इस दल की बैठक 2 जून, 1923 को पटना में हुई। बिहार में इस पार्टी को अधिक सफलता नहीं मिली।

सन् 1928 में साइमन कमीशन का भारत आगमन हुआ। राष्ट्रवादियों ने इसके बहिष्कार का निर्णय लिया। 12 दिसम्बर को आयोग के पटना पहुँचने पर विरोध प्रदर्शन हुआ, आयोग को काला झंडा दिखाया गयी और उसका बहिष्कार किया गया। 7. सविनय अवज्ञा आन्दोलन और बिहार विहार में नमक सत्याग्रह का आरम्भ 15 अप्रैल 1930 को चम्पारण और सारण जिले में नमकीन मिट्टी से नमक बनाकर किया गया। इस आन्दोलन का विस्तार पटना, शाहाबाद एवं मुजफ्फरपुर आदि जिलों में भी हुआ। कठोर सरकारी दमन द्वारा लगभग 13 हजार लोगों को कैद कर लिया गया। मई 1930 में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी ने विदेशी वस्त्रों एवं शराब की दुकानों के आगे धरना देने का प्रस्ताव रखा। छपरा जेल के कैदियों ने नंगी हड़ताल कर विदेशी वस्त्र पहनने से इंकार कर दिया। इस आन्दोलन के क्रम में बिहार में 'चौकीदारी कर' नहीं देने के लिए भी आन्दोलन हुए। 1933 में गाँधीजी ने व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा का प्रस्ताव रखा। बिहार में इसका भी व्यापक प्रभाव रहा। लगभग 880 सत्याग्रही जेल गए।

भारत छोड़ो आन्दोलन और बिहार 8 अगस्त 1942 को यह आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। 9 अगस्त को राजेन्द्र प्रसाद की गिरफ्तारी हुई जिसका प्रबल विरोध हुआ। प्रायः सभी शैक्षिक केन्द्रों में हड़‌ताल हुई और राष्ट्रीय झंडे लहराये गए। 11 अगस्त को छात्रों के एक जुलूस ने सचिवालय भवन के सामने विधायिका की इमारत पर राष्ट्रीय झंडा फहराने की कोशिश की जिसमें पुलिस की गोली से सात छात्र मारे गए। विरोध स्वरूप 12 अगस्त को पटना में पूर्ण हड़ताल रही। उसी शाम कांग्रेस मैदान में आयोजित सभा में जगत नारायण की अध्यक्षता में प्रस्ताव पारित हुआ कि संचार सुविधाओं को ठप कर दिया जाए और सरकारी कार्यों को शिथिल किया जाए। पूरे बिहार में रेल की पटरियाँ उखाड़ी गई। डाकघरों, थानों एवं अन्य सरकारी इमारतों को जलाया गया। इस आन्दोलन के क्रम में बिहार में 15 हजार से अधिक लोग बन्दी बनाए गए, 8783 व्यक्तियों को सजा हुई, 134 लोग मारे गए तथा 362 लोग घायल हुए। इस संघर्ष में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने अग्रणी भूमिका निभाई। हजारीबाग जेल से भागकर उन्होंने 'आजाद दस्ता' का गठन किया जो 1943 के अन्त तक सक्रिय रहा। अगस्त क्रांति में बिहार की भूमिका के सम्बन्ध में 'हाउस ऑफ कॉमन्स' में ब्रिटिश राजनीतिज्ञ 'एमटी' ने कहा था- "बिहार में उपद्रव विशेष रूप से उग्र है और यह प्रान्त एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।"

अतः स्वतंत्रता आन्दोलन में बिहार ने प्रारम्भ से अन्त तक अपने दायित्व का पूर्ण निर्वहन किया है।

 

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