By - Gurumantra Civil Class
At - 2024-08-11 22:20:01
11 अगस्त - शहीद दिवस
पटना सचिवालय में होने वाले सात अमर बलिदान
सन 1942 में 11 अगस्त के दिन पटना के पुराने सचिवालय पर तिरंगा फहराने के क्रम में सातों वीर युवा उमाकांत प्रसाद सिन्हा, रामानंद सिंह, सतीश प्रसाद झा, जगपती कुमार, देवीपद चौधरी, राजेन्द्र सिंह और राम गोविंद सिंह अंग्रेजों की गोलियों का शिकार हुए थे ।
साल 1942 में अगस्त क्रांति के दौरान 11 अगस्त को समय दो बजे पटना सचिवालय पर झंडा फहराने निकले लोगों में से सातों युवा पर जिलाधिकारी डब्ल्यूजी आर्थर के आदेश पर पुलिस ने गोलियां चलाईं। सबसे पहले जमालपुर गांव के 14 वर्षीय को पुलिस ने गोली मार दी गई।देवीपद को गिरते पुनपुन के दशरथा गांव के राम गोविंद सिंह ने तिरंगे को थामा और आगे बढऩे लगे। उन्हें भी गोली का शिकार होना पड़ा। साथी को गोली लगते देख रामानंद, जिनकी कुछ दिन पूर्व शादी हुई थी, आगे बढऩे लगे। उन्हें भी गोली मार दी।गर्दनीबाग उच्च विद्यालय में पढऩे वाले छात्र राजेन्द्र सिंह तिरंगा फहराने को आगे बढ़े लेकिन वह सफल नहीं हुए। उन्हें भी गोलियों से ढेर कर दिया गया। तभी राजेन्द्र सिंह के हाथ से झंडे लेकर बीएन कॉलेज के छात्र जगतपति कुमार आगे बढ़े। जगतपति को एक गोली हाथ में लगी और दूसरी गोली छाती में तीसरी गोली जांघ में। इसके बावजूद तिरंगे को झुकने नहीं दिया।तब तक तिरंगे को फहराने को आगे बढ़े उमाकांत। पुलिस ने उन्हें भी गोली का निशाना बनाया। उन्होंने गोली लगने के बावजूद सचिवालय के गुंबद पर तिरंगा फहरा दिया।
ये सात छात्र हुए थे शहीद-
1. उमाकांत प्रसाद सिंह :
राम मोहन राय सेमेनरी स्कूल में नौवीं कक्षा के छात्र थे। वह सारण जिले के नरेंद्रपुर गांव के निवासी थे।
2. सतीश प्रसाद झा : –
पटना कॉलेजिएट के 10वीं कक्षा के छात्र थे। भागलपुर जिले के खडहरा के रहने वाले थे।3. रामानंद सिंह : राम मोहन राय सेमेनरी स्कूल में नौवीं कक्षा के छात्र थे। पटना जिले के शहादत गांव के रहने वाले थे।
4. देवीपद चौधरी :-
मिलर हाई स्कूल के नौवीं कक्षा के छात्र थे। सिलहट जमालपुर के रहने वाले थे।
5. राजेन्द्र सिंह :-
पटना हाई स्कूल में 10वीं कक्षा के छात्र थे। सारण जिले के बनवारी गांव के रहने वाले थे।
6. राम गोविंद सिंह :-
पुनपुन हाई स्कूल के 10वीं के छात्र थे। पटना अंतर्गत दशरथा के रहने वाले थे।
7. जगतपति कुमार :-
बीएन कॉलेज में सेकेंड इयर के स्टूडेंट थे। औरंगाबाद जिले के खराठी गांव के रहने थे।
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आंदोलन की पृष्ठभूमि -
वर्ष 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा विद्रोह था। बिहार ने सबसे क्रूर दमन के विरोध में आंदोलन में एक निर्णायक भूमिका निभाई। कांग्रेस कार्य समिति ने 5 अगस्त, 1942 को बंबई में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसे बाद में भारत छोड़ो प्रस्ताव कहा गया, जिसमें भारत से ब्रिटिश सत्ता को वापस लेने की मांग की गई थी। यह प्रस्ताव 7 और 8 अगस्त, 1942 को बंबई में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा पूरी तरह से समर्थन किया गया था। यहीं पर महात्मा गांधी ने "करो या मरो" का प्रसिद्ध नारा दिया था।
बड़े पैमाने पर सविनय अवज्ञा के इस प्रादुर्भाव को रोकने के लिए, सरकार ने 9 अगस्त के शुरुआती घंटों में महात्मा गांधी और CWC के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया।बिहार में भी कई राष्ट्रवादियों को गिरफ्तार किया गया।
पटना के जिला मजिस्ट्रेट डब्ल्यू. जी. आर्चर ने राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार किया और उन्हें बांकीपुर जेल भेज दिया गया।सरकार के दमन के विरोध में महाधिवक्ता बलदेव सहाय ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
फूलन प्रसाद वर्मा, श्रीकृष्ण सिन्हा, अनुग्रह नारायण सिन्हा, और कुछ अन्य नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया था। सरकार द्वारा प्रवृत्त दमन जन क्रांति की जाँच करने में विफल रहा। छात्रों ने इस स्वतंत्रता आंदोलन में एक वीर की भूमिका निभाई।इस उथल-पुथल के दौरान, 11 अगस्त 1942 की सुबह, 6000 छात्रों की भीड़ तत्कालीन पटना सचिवालय के द्वार पर पहुंची, जिनमें से अधिकतर निहत्थे और बिना किसी क्षति या संपत्ति को नुकसान पहुंचाए केवल इमारत पर कांग्रेस का झंडा फहराने के घोषित उद्देश्य के साथ मौजूद थे।
उनका सामने जिला मजिस्ट्रेट डब्ल्यू जी आर्चर की कमान में ब्रिटिश भारतीय सैन्य पुलिस थी।दोपहर 2:00 बजे तक, छात्र सचिवालय तक पहुंचने के लिए पुलिस के साथ संघर्ष करते रहे लेकिन आधिकारिक हवालों द्वारा, उन्होंने पुलिस पर हमला नहीं किया और ना ही कोई तोड़फोड़ की गई। हालांकि यह छात्र शांतिपूर्ण तरीके से झंडा फहराना चाहते थे इसके बावजूद उन पर गोली चलाने का आदेश इसलिए दिया गया क्योंकि वह ब्रिटिश साम्राज्य के प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाना चाहते थे या धूमिल करना चाहते थे ।
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