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स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार-झारखंड की महिलाओं का योगदान

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-08-15 00:45:31

स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार-झारखंड की महिलाओं का योगदान

अगस्त 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन बंबई में आयोजित था। इसमें मौंटेगु - चेम्सफाेर्ड के प्रस्तावों को निराशाजनक बताते हुए बिहार के विख्यात बैरिस्टर हसन इमाम के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल भेजने का निर्णय लिया गया। इसमें हसन इमाम के साथ उनकी पत्नी और बेटी शमी भी गयी थी। जालियावालाबाग हत्याकांड के बाद देश भर में गुस्से की लहर दौड़ गयी। इसके बाद बिहार में जो आंदोलन हुए उसमें महिलाओं ने भी आगे बढ़ कर भाग लिया।

 

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सन 1917 ई. में बिहार में महात्मा गाँधी के पदार्पण के साथ ही आंदोलन में महिलाओं का झुकाव बढ़ गया। 1919 तक कस्तुरुबा गाँधी, श्रीमती सरला देवी, प्रभावती जी, राजवंशी देवी, सुनीता देवी, राधिका देवी, और वीरांगना महिलाओं की प्रेरणा से सम्पूर्ण बिहार की महिलाओं में आजादी के प्रति रुझान बढ़ गया।

सरला देवी ने 1921 में बिहार आहांन किया। श्रीमती सावत्री देवी, ने प्रिंस ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन के दौरान होने वाला समारोहों के बहिष्कार आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। पटना की श्रीमती सी. सी. दास, और श्रीमती उर्मिला देवी, ने स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में चरखा एवं अन्य स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार में भाग लिया।

1921 ई. में देशबंधु कोष के लिए जब गांधी जी ने बिहार का भ्रमण किया तो यहां की महिलाओं ने अपने आभूषण तक को दान में दिया। इस कार्य में महात्मा गांधी के साथ श्रीमती प्रभावती देवी (जयप्रकाश नारायण की पत्नी) ने महत्वपूर्ण योगदान दिया

पटना में श्रीमती हसन इमाम तथा श्रीमती विंध्यवासिनी देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने विदेशी वस्त्रों के दुकानों के सामने धरना प्रदर्शन को सफल बनाया। पटना के तत्कालीन कलेक्टर को इन महिलाओं से मुकाबला करने के लिए भारी संख्या में महिला पुलिस बल की बहाली करनी पड़ी।मूंगेर की श्रीमती शाह मोहम्मद जुबेर एक बड़े घराने की मुस्लिम महिला थी, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।

संथाल परगना जिले में श्रीमती साधना देवी के नेतृत्व संभाल कर रखा था। 23 मार्च 1931 को सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को दिए गए मृत्युदंड के के विरोध में आरा में एक विराट सभा का आयोजन हुआ, जिस की अध्यक्षा श्रीमती कुसुम कुमारी देवी ने की।

 4 जनवरी 1933 को गांधीजी एवं अन्य नेताओं को गिरफ्तार किया गया तब भी बिहार में हड़ताल और प्रदर्शनों का सिलसिला चलता रहा।

4 जनवरी, 1933 को बिहार में गांधीजी की गिरफ्तारी दिवस मनाया गया। 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने के आरोप में पटना में डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी श्रीमती राजवंशी देवी तथा डिक्टेटर चंद्रावती देवी सहित साथ महिलाओं को गिरफ्तार किया गया।

 श्रीमती राजू जी देवी तथा चंद्रावती देवी को डेढ वर्ष कारावास का दंड भी मिला।

1941 में महात्मा गांधी ने जब संप्रदाय के तत्वों के विरोध सत्याग्रह किया तो इसके समर्थन में बिहार की महिलाओं ने भी सत्याग्रह किया। बिहार के खादी आंदोलन में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। सरला देवी, सावित्री देवी, लीला सिंह, श्रीमती शफी, शारदा कुमारी, विंध्यवासिनी देवी, प्रियबंदा देवी, भगवती देवी जैसे महिलाओं ने इस आंदोलन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बिहार की महिलाओं, विशेषकर चरखा समिति की सदस्यों, ने अगस्त क्रांति की ज्वाला को धधकाने और उसे व्यापक बनाने की भरपूर कोशिश की। 9 अगस्त, 1942 को पटना में प्रसाद की बहन श्रीमती भगवती देवी के नेतृत्व में महिलाओं का एक विशाल जुलूस निकाला।

हजारीबाग में महिलाओं का नेतृत्व श्रीमती सरस्वती देवी कर रही थी, जिन्हें गिरफ्तार किया गया लेकिन जब श्रीमती सरस्वती देवी को हजारीबाग से भागलपुर जेल ले जाया जा रहा था तो विद्यार्थियों के एक जत्था ने धावा बोलकर उन्हें छुड़ा लिया, फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

भागलपुर जिले में आंदोलन का नेतृत्व श्रीमती माया देवी कर रही थी। गोविंदपुर गांव के श्री नरसिंह गोप की पत्नी जिरियावती ने 16 अंग्रेज सिपाहियों को गोली मार दी। छपरा में 19 अगस्त, 1942 को हुई एक विशाल जनसभा की अध्यक्षता शांति देवी ने की।

छपरा जिले के दिघवारा प्रखंड पर तिरंगा झंडा फहराने के आरोप में मलखाचक के स्वर्गीय राम विनोद सिंह की दो पुत्रियां शारदा एवं सरस्वती को 14 और 11 वर्ष की सजा दी गई। संथाल परगना के हरिहर मिर्धा की पत्नी बीरजी देवी की पुलिस ने हत्या कर दी।

गया जिले की प्यारी देवी को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया। वैशाली जिले के किशोरी प्रसन सिंह की पत्नी सुनीति देवी एवं बैकुंठ शुक्ल की पत्नी राधिका देवी ने पुरुष के वेश में साइकिल पर भ्रमण करके जन जागरण किया।

वैशाली की ही श्रीमती विंदा देवी, शहीद फुलेना प्रसाद की पत्नी तारा देवी, मुजफ्फरपुर की भवानी मेहरोत्रा, भागलपुर की रामस्वरूप देवी, कुमारी धतूत्री देवी, जिरिया देवी, मुंगेर की संपत्तिया देवी, शाहाबाद की फूई कुमारी, पटना की सुधा कुमारी शर्मा आदि महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय योगदान दिया।

 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अनेक महिलाएं पुलिस की गोली से शहीद भी हुई, जिनमें प्रमुख है-

छोड़मारा गांव की श्रीमती विराजी मधीयाइन, शाहाबाद के गांव लासाढी के शिव गोपाल दूषाद की पत्नी अकेली देवी, मुंगेर के गांव रोहियार की कुंवारी धतूरी देवी आदि. बिहार की अन्य अज्ञात महिला नेत्री थी- शारदा देवी एवं श्रीमती पुष्पा रानी मुखर्जी।

स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की महिलाओं की हिस्सेदारी 1916-17 से काफी बढ़ी। यही वह वक्त था जब गांधीजी के हाथों में राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व आया। इससे पूर्व के आंदोलन में स्त्रियों की भागीदारी उतनी नहीं थी, जिसके कई कारण थे। गांधीजी ने जब आंदोलन को अहिंसात्मक रूप दिया तो महिलाओं ने इसमें अच्छी भागीदारी निभायी।

1921 के अक्तूबर में हजारीबाग में बिहार के विद्यार्थियों का सम्मेलन हुआ़ इसकी अध्यक्षता सरला देवी ने की, इसमें उन्होंने सबों से अपील करते हुए कहा कि आप स्कूल- कॉलेजों का परित्याग करें और प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन पर होने वाले समारोह का बहिष्कार करें। पटना में इस आंदोलन की अगुआई सावित्री देवी ने की थी। इन्हीं दिनों पटना में अंग्रेज शासन के खिलाफ कई जनसभाएं सावित्री देवी की अध्यक्षता में हुई। पटना में श्रीमती सीसी दास और उर्मिला देवी ने भी बढ़चढ़ कर आंदोलनों का नेतृत्व किया। कुछ दिनों बाद जब राष्ट्रीय आंदोलनों की गति धीमी हो गयी तो बिहार की क्रांतिकारी महिलाओं ने चरखा संभालने का काम किया वे जागरूकता फैलाने का काम करने लगीं। वे निर्भीकतापूर्वक हर प्रकार के सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेतीं, राष्ट्रीय नेताओं के आगमन पर सभा - सम्मेलनों में उनका साथ देतीं और उनके संकेतों पर लड़ाई के मैदान में कूद पड़ने के लिए हर समय तैयार रहती थीं। गया कांग्रेस के समय उर्मिला देवी ने इसे सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

सरस्वती व साधना राजनैतिक कार्यों के अपराध में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थीं।

6 अप्रैल 1930 महात्मा गांधी ने देशव्यापी नमक सत्याग्रह का आह्वान किया। इसमें बिहार की महिलाएं आगे बढ़ कर शामिल हुईं और नमक कानून को भंग किया. शाहाबाद जिले में राम बहादुर , बार-एट-लॉ की पत्नी ने सासाराम थाने के सामने नमक बनाकर कानून तोड़ दिया था।

जगह-जगह शराबंदी आंदोलन और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार होने लगा। इसी बीच हजारीबाग जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा सरस्वती देवी और हजारीबाग कॉलेज में फिजिक्स के प्राध्यापक की बेटी साधना देवी गिरफ्तार कर ली गयीं। यह राजनैतिक कार्यों के अपराध में गिरफ्तार होने वाली बिहार की पहली महिलाएं थीं।

सरस्वती देवी को छह माह के कारावास की सजा सुनायी गयी। जुलाई 1930 में गिरिडीह की एक महिला मीरा देवी सत्याग्रह आंदोलन के सिलसिले में गिरफ्तार हुईं। वह गिरफ्तार होने वाली तीसरी महिला थीं। पटना में इस दौरान स्त्रियों के आंदोलन का नेतृत्व श्रीमती हसन इमाम कर रही थीं।

पटना में हुए आंदोलन में विंध्यवासिनी देवी का भी महत्वपूर्ण योगदान था। इस आंदोलन ने इतना जोर पकड़ा कि पटना के जिलाधिकारी को उनका मुकाबला करने के लिए महिला पुलिस भर्ती करनी पड़ी। श्रीमती हसन इमाम के साथ उनकी बेटी शमी काफी सक्रिय थीं। वे कॉलेज के छात्रों के बीच जाकर उन्हें आजादी की लड़ाई में शरीक होने के लिए आमंत्रित करती थीं। श्रीमती हसन इमाम ने पटना की महिलाओं को साथ लेकर विदेशी वस्त्रों के खिलाफ विशाल जुलूस निकाला जिसमें तीन हजार से ज्यादा महिलाएं थीं।

छह अगस्त 1942 को जब छात्रों की हड़ताल शुरू हुई तो पटना मेडिकल कॉलेज के छात्रों के साथ यहां के अस्पताल की नर्सों ने भी हड़ताल कर दी। तब डॉ राजेंद्र प्रसाद के बीच - बचाव के बाद उनकी हड़ताल समाप्त हुई थी। पटना स्थित महिला चरखा समिति से जुड़ी महिलाओं ने अगस्त क्रांति को व्यापक बनाने में बड़ा योगदान दिया। छह अगस्त को ही महिलाओं का एक बड़ा जुलूस निकला। डाॅ राजेंद्र प्रसाद की बहन भगवती देवी की अध्यक्षता में महिलाओं की एक सभा हुई। जिसमें सुंदरी देवी, राम प्यारी देवी आदि ने भाषण दिये। 12 अगस्त को भी उन्होंने एक जुलूस निकाला।

इसमें धर्मशीला लाल, बार - एट - लॉ भी शामिल हुईं और गिरफ्तार की गयीं। पटना के बाहर विभिन्न जिलों में भी महिलाओं ने अगस्त क्रांति में आगे बढ़ कर हिस्सा लिया। 1942 की इस क्रांति में अंग्रेजों ने क्रूरता के साथ उनका दमन किया। बड़े पैमाने पर महिलाएं गिरफ्तार हुई। आंदोलन को दबाने के लिए बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ बलात्कार हुए। गोरे सिपाहियों द्वारा बलात्कार की कई घटनाएं राज्य भर में हुई । इन सब के बावजूद महिलाओं ने बड़ी ही बहादुरी से अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ आंदोलन जारी रखा।

महत्वपूर्ण तथ्य -

• 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन बंबई में आयोजित था।

• 1930 महात्मा गांधी ने देशव्यापी नमक सत्याग्रह का आह्वान किया।

• 1932 में बिहार और उड़ीसा की सरकार ने अपने अफसरों को आदेश दिया कि महिला सत्याग्रहियों के प्रति कड़ा से कड़ा रुख अपनाया जाये।

• 1933 में गांधी गिरफ्तारी दिवस मनाया गया। इसको लेकर जगह - जगह प्रदर्शन हुए और गिरफ्तारियां हुईं।

• 1942 में जब छात्रों की हड़ताल शुरू हुई तो पटना मेडिकल कॉलेज के छात्रों के साथ यहां के अस्पताल की नर्सों ने भी हड़ताल कर दी।

• 1942 की इस क्रांति में अंग्रेजों ने क्रूरता के साथ उनका दमन किया। बड़े पैमाने पर महिलाएं गिरफ्तार हुई।

स्वतंत्रता आंदोलन में जेल जानी वाली बिहार-झारखंड की महिलाएं-

1. विद्यावती देवी पटना एक वर्ष

2. जानकी देवी गया 11 महीने

3. सरस्वती देवी गया दो माह

4. सुरजया देवी गया दो माह

5. नारायणी देवी नवादा छह माह

6. तेतरी देवी गया एक वर्ष

7. राधाकुशन गया दो माह

8. रामस्वरूप देवी सारण एक वर्ष

9. सावित्री देवी शाहाबाद दो माह

10. शांति देवी सारण छह माह

11. शांति देवी गया छह माह

12. दुर्ग देवी गया दो माह

13. जनकदुलारी देवी छपरा तीन माह

14. शारदा देवी सारण चार वर्ष

15. सरस्वती देवी सारण तीन वर्ष

16. रामस्वरूप देवी सारण चार वर्ष

(गौरीदास को अंग्रेजों ने बताया था खतरनाक महिला, राजेंद्र बाबू की पत्नी और बहन भी थीं आंदोलन में)

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