By - Gurumantra Civil Class
At - 2024-08-18 15:29:43
बिहार में डचों कंपनियों का आगमन
बिहार में यूरोपीय व्यापारी कंपनियों का आगमन 17वीं सदी में प्रारंभ हुआ।
उस समय बिहार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था।
बिहार के क्षेत्र में सर्वप्रथम पुर्तगाली आए, जिन्होंने अपना व्यापारिक केंद्र हुगली में स्थापित किया था।
वे हुगली से ही नाव के माध्यम से पटना आया करते थे।
वे अपने साथ मसाले, चीनीमिट्टी के बरतन आदि लाते थे और वापसी में सूती वस्त्र एवं अन्य प्रकार के वस्त्र ले जाते थे।
17वीं शताब्दी के मध्य तक डचों ने बिहार के कई स्थानों पर शोरे का गोदाम स्थापित किया था।
सर्वप्रथम डचों ने पटना कॉलेज की उत्तरी इमारत में 1632 ई. में डच फैक्टरी (Dutch Factory) की स्थापना की।
इनकी अभिरुचि सूती वस्त्र, चीनी, शोरा, अफीम आदि से संबंधित व्यापार में थी।
1662 ई. में बंगाल में डच मामलों के प्रधान नथियास वैगडेंन बरूक ने मुगल सम्राट् औरंगजेब से व्यापार से संबंधित एक फरमान बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए प्राप्त किया था।
डच यात्री ट्रैवरनि 21 दिसंबर, 1665 को पटना पहुँचा। उसके बाद उसने छपरा से यात्रा की। छपरा में उस समय शोरे का शुद्धीकरण किया जाता था।
शोरे पर अधिकार के लिए फ्रांसीसी, ईस्ट इंडिया कंपनी एवं डच कंपनियों के बीच हमेशा तनाव उत्पन्न होते रहते थे।
1848 ई. में विद्रोही अफगान सरदार शमशेर खान ने पटना पर आक्रमण किया तथा फतुहा स्थित डच फैक्टरी को लूटा।
प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की सफलता ने डचों की स्थिति को और दयनीय बना दिया।
1758 ई. में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने बिहार में शोरे के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया।
नवंबर, 1759 में वेदरा के निर्णायक युद्ध में डच अंग्रेजों के हाथों पराजित हुए और उनका अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया।
वे किसी तरह से अपने चिनकूसा कासिम बाजार एवं पटना के माल गोदाम को सुरक्षित रखने में सफल हो पाए।
1780-81 ई. के बीच यूरोप में ब्रिटेन एवं हॉलैंड के बीच युद्ध छिड़ जाने के कारण बिहार में भी दोनों कंपनियों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए।
10 जुलाई, 1781 को पटना मिलिशिया के कमांडिंग ऑफिसर मेजर हार्डी ने पटना डच मालगोदाम को जब्त कर लिया।
छपरा एवं सिंधिया की डच फैक्टरियों को भी अपने कब्जे में ले लिया गया।
5 अगस्त, 1781 को पैट्रिक हिट्ले ने डच फैक्टरी की कमान मैक्सवेल से ग्रहण की।
8 अक्तूबर, 1784 को डच कंपनी को गोदाम फिर से वापस दे दिया गया।
पुनः 1795 ई. में फ्रैंको-डच युद्ध के कारण भारत में डच ठिकानों को अंग्रेजी सरकार के अधीन कर दिया गया, लेकिन 1817 ई. में डच माल गोदामों को पुनः वापस कर दिया गया।
अंततः 1824-25 ई. में डच व्यापारिक केंद्रों को अंतिम रूप से अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी में सम्मिलित कर लिया गया।
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