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बिहार के अर्थव्यवस्था में पश्चिमी तकनीकी शिक्षा का आलोचनात्मक पहलू

By - Gurumantra Civil Class

At - 2025-09-16 12:17:01

बिहार की अर्थव्यवस्था का इतिहास प्राचीन काल की समृद्धि से लेकर आधुनिक चुनौतियों और पुनरुत्थान तक की एक लंबी यात्रा है। यह राज्य, जो कभी मगध साम्राज्य का केंद्र था, कृषि, व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।

बिहार का शिक्षा इतिहास प्राचीन काल की नालंदा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी जैसी विश्वविद्यालयों की समृद्धि से जुड़ा है, लेकिन मध्यकाल में यह परंपरा लुप्त हो गई। ब्रिटिश काल में पश्चिमी शिक्षा का प्रवेश हुआ, जिसमें तकनीकी शिक्षा को विशेष महत्व दिया गया ताकि औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सके। यह शिक्षा अंग्रेजी माध्यम, आधुनिक विज्ञान और व्यावहारिक कौशल पर आधारित थी, जो भारतीय परंपरागत शिक्षा से भिन्न थी।  

1. बिहार में पश्चिमी शिक्षा का प्रवेश चार्टर एक्ट 1813 से हुआ और 1835 में मैकॉले की नीति के तहत आधुनिक स्कूलों की स्थापना हुई।

2. वुड्स डिस्पैच (1854) से उच्च शिक्षा को प्रोत्साहन मिला और पटना कॉलेज (1863) की स्थापना हुई।

3. तकनीकी शिक्षा के लिए सर्वे ट्रेनिंग स्कूल (1886), पूसा कृषि अनुसंधान केंद्र (1902) और बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (1932) महत्वपूर्ण रहे।

4. पटना विश्वविद्यालय (1917), पटना साइंस कॉलेज (1927) और पटना मेडिकल कॉलेज (1925) ने विज्ञान और चिकित्सा शिक्षा को बढ़ावा दिया।

5. ब्रिटिश कालीन आयोगों व योजनाओं (हंटर, सैडलर, हार्टोग, सर्जेंट प्लान) ने व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा के ढांचे को मजबूत किया।

 

सकारात्मक योगदान :

 

1. औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्र में सुधार – पश्चिमी तकनीकी शिक्षा के माध्यम से आधुनिक इंजीनियरिंग, मशीनीकरण और वैज्ञानिक कृषि पद्धतियों का ज्ञान बिहार में पहुँचा। इससे नहरों का निर्माण, रेलवे, पुल, खनन उद्योग और चीनी व जूट मिलों की स्थापना संभव हुई।

 

 

2. नए रोजगार अवसर – इंजीनियर, डॉक्टर, तकनीशियन और प्रबंधक जैसे पेशे विकसित हुए, जिससे बिहार की युवा पीढ़ी को रोजगार के नए अवसर मिले।

 

 

3. आर्थिक ढांचे में परिवर्तन – परंपरागत कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से धीरे-धीरे औद्योगिक और सेवा क्षेत्र की ओर गति मिली।

 

 

4. सामाजिक जागरूकता और मध्यवर्ग का विकास – तकनीकी शिक्षा ने एक ऐसे मध्यवर्ग को जन्म दिया जिसने बिहार में आर्थिक सुधार, उद्यमिता और प्रशासनिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई।

 

5. आधुनिक संस्थाओं की स्थापना: पश्चिमी शिक्षा के आगमन से बिहार में इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में आधुनिक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना हुई, जैसे कि बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (अब NIT-Patna)। 

 

नकारात्मक पहलू :

 

1. औपनिवेशिक उद्देश्य – पश्चिमी तकनीकी शिक्षा मुख्यतः ब्रिटिश साम्राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दी गई थी। इसका केंद्र भारतीयों को स्वतंत्र आर्थिक शक्ति बनाने के बजाय औपनिवेशिक उद्योगों व प्रशासन के सहायक कर्मियों का निर्माण था।

 

 

2. ग्रामीण अर्थव्यवस्था की उपेक्षा – तकनीकी शिक्षा शहरी और औद्योगिक केंद्रों तक सीमित रही, जिससे बिहार के विशाल ग्रामीण हिस्से पर इसका सकारात्मक प्रभाव नगण्य रहा।

 

 

3. प्रवास की प्रवृत्ति – बिहार में पर्याप्त औद्योगिक आधार न होने से तकनीकी रूप से शिक्षित युवाओं को रोजगार हेतु अन्य राज्यों और विदेशों की ओर जाना पड़ा। इससे राज्य की अर्थव्यवस्था में "ब्रेन ड्रेन" की स्थिति बनी।

 

 

4. असमानता में वृद्धि – उच्च वर्ग व संपन्न परिवार तकनीकी शिक्षा का लाभ उठा पाए, जबकि गरीब और ग्रामीण तबका इससे वंचित रह गया।

 

5. स्थानीय संदर्भ से अलगाव: यह शिक्षा प्रणाली अक्सर स्थानीय आवश्यकताओं और सांस्कृतिक संदर्भों के बजाय पश्चिमी मॉडल पर आधारित होती है, जिससे स्थानीय चुनौतियों का समाधान करने में कठिनाई होती है। 

 

 

बिहार की अर्थव्यवस्था में पश्चिमी तकनीकी शिक्षा का योगदान मिश्रित रहा है। इसने निश्चित रूप से आधुनिकीकरण, कौशल विकास और औद्योगिक प्रगति में योगदान दिया है। हालाँकि, इसके लाभों को व्यापक रूप से फैलाने, स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम विकसित करने और कौशल पलायन को रोकने के लिए रणनीतिक योजना और नीतियों की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करना और स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण है, ताकि तकनीकी शिक्षा बिहार की आर्थिक और सामाजिक प्रगति में एक सच्चा इंजन बन सके।

 

अन्य महत्वपूर्ण जानकारी - 

बिहार की अर्थव्यवस्था का इतिहास: एक परिचय

 

बिहार की अर्थव्यवस्था का इतिहास प्राचीन काल की समृद्धि से लेकर आधुनिक चुनौतियों और पुनरुत्थान तक की एक लंबी यात्रा है। यह राज्य, जो कभी मगध साम्राज्य का केंद्र था, कृषि, व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। नीचे प्रमुख चरणों का संक्षिप्त अवलोकन दिया गया है।

 

 प्राचीन काल (मौर्य युग, 600 ई.पू. से 5वीं शताब्दी ई.) - 

 

बिहार (तत्कालीन मगध) की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि-आधारित थी, जहां राज्य स्वयं बड़े खेतों का मालिक था। चावल, गेहूं, दालें, तिल, सरसों, सब्जियां, फल और गन्ना जैसी फसलें दासों और मजदूरों द्वारा उगाई जाती थीं। सिंचाई के लिए जलाशय और बांध बनाए जाते थे। राजस्व के स्रोतों में कृषि कर, भूमि कर, व्यापार कर और हस्तशिल्प शामिल थे। खनन, धातुकर्म, आभूषण, मिट्टी के बर्तन और वस्त्र उद्योग फले-फूले, जबकि राज्य कारीगरों की रक्षा करता था। गिल्ड (श्रेणियां) आर्थिक, राजनीतिक और न्यायिक शक्तियां रखती थीं, सिक्के जारी करती थीं। व्यापार में भारत से बाहर निर्यात (जैसे इंडिगो, कपास, रेशम) प्रमुख था, और राज्य व्यापार मार्गों की सुरक्षा करता था। यह काल बिहार को आर्थिक रूप से मजबूत बनाता था।

 

मध्यकाल (मुस्लिम शासन, 16वीं शताब्दी) -

शेर शाह सूरी (1540 के दशक) ने बिहार और उत्तरी भारत में आर्थिक सुधार किए, जिसमें धर्म या वर्ग की परवाह किए बिना किसानों के साथ निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित किया गया। साम्राज्य को 47 सरकारों (प्रांतों) और परगनों में विभाजित कर कुशल प्रशासन स्थापित किया गया, जो क्षेत्र की आर्थिक परिपक्वता को दर्शाता है।

 

औपनिवेशिक काल (18वीं-20वीं शताब्दी) -

ब्रिटिश शासन में बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, जो कृषि उत्पादों के छोटे-छोटे उद्योगों से जुड़ी थी, बाहरी व्यापारियों और सस्ते ब्रिटिश तैयार माल (जैसे कपड़े) से प्रभावित हुई। स्वावलंबी गांव (जैसे गया, पाटलिपुत्र, सीतामढ़ी, पूर्णिया, भागलपुर, छपरा, आरा) शहरों को आपूर्ति करते थे, लेकिन औपनिवेशिक नीतियों ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को कमजोर किया। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में भूमि स्वामित्व ऊपरी जातियों के हाथों में केंद्रित था, जो आर्थिक क्षेत्र को नियंत्रित करती थीं।

 

स्वतंत्रता के बाद (1947-2005): पतन का दौर

स्वतंत्रता के तुरंत बाद बिहार कृषि शक्ति था—1950 के दशक में भारत का 25% चीनी उत्पादन और 50% बागवानी उत्पाद यहां से आते थे। औद्योगीकरण में बरौनी तेल रिफाइनरी, उर्वरक संयंत्र, थर्मल पावर स्टेशन, मोटर स्कूटर प्लांट और भारती वागन जैसे प्रोजेक्ट शामिल थे। 1980-1990 में जीएसडीपी में 72% वृद्धि हुई, लेकिन फ्रेट इक्वलाइजेशन योजना, कृषि-बुनियादी ढांचे में कम निवेश, राजनीतिक अस्थिरता और 2000 में झारखंड विभाजन (जिसने 60% उत्पादन छीन लिया) ने अर्थव्यवस्था को पीछे धकेल दिया। 1960-61 में भारत के जीडीपी का 7.8% योगदान करने वाला बिहार 2000-01 तक घटकर 4.3-4.4% रह गया। 1990 के दशक में प्रति व्यक्ति आय वृद्धि मात्र 0.12% रही, जबकि राष्ट्रीय औसत 4.08% था। जाति-आधारित राजनीति, अपराधीकरण और पलायन ने व्यवसायों को प्रभावित किया।

 

 वर्तमान पुनरुत्थान (2005 से अब तक)

नीतीश कुमार के नेतृत्व में 2005 से सुधारों ने बिहार को 'अनस्टॉपेबल' बनाया है। सेवा क्षेत्र प्रमुख है (कृषि 22%, उद्योग 5% योगदान), लेकिन राज्य भारत का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ है। 2025 तक अनुमानित जीडीपी ₹10.97 लाख करोड़ है। खनन और विनिर्माण में प्रगति हुई, लेकिन प्रति व्यक्ति आय अभी भी राष्ट्रीय औसत से नीचे है। सांस्कृतिक गौरव (नालंदा जैसे) को आर्थिक विकास से जोड़ने के प्रयास जारी हैं।

 

यह इतिहास बिहार की क्षमता और चुनौतियों को उजागर करता है, जहां कृषि से सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण प्रमुख है।

 

 बिहार में पश्चिमी तकनीकी शिक्षा का प्रवेश एवं विकास

 

बिहार का शिक्षा इतिहास प्राचीन काल की नालंदा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी जैसी विश्वविद्यालयों की समृद्धि से जुड़ा है, लेकिन मध्यकाल में यह परंपरा लुप्त हो गई। ब्रिटिश काल में पश्चिमी शिक्षा का प्रवेश हुआ, जिसमें तकनीकी शिक्षा को विशेष महत्व दिया गया ताकि औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सके। यह शिक्षा अंग्रेजी माध्यम, आधुनिक विज्ञान और व्यावहारिक कौशल पर आधारित थी, जो भारतीय परंपरागत शिक्षा से भिन्न थी। नीचे इसका प्रवेश और विकास का संक्षिप्त विवरण दिया गया है।

 

प्रवेश का प्रारंभ (19वीं शताब्दी का प्रारंभ)

चार्टर एक्ट 1813: ब्रिटिश संसद ने शिक्षा पर व्यय का प्रावधान किया, लेकिन वास्तविक कार्य 1823 से शुरू हुआ। प्रारंभिक प्रयास ओरिएंटलिस्ट नीतियों पर आधारित थे, जैसे कलकत्ता मदरसा (1781) और बनारस संस्कृत कॉलेज (1791)।

मैकॉले की मिनट (1835): लॉर्ड मैकॉले ने अंग्रेजी शिक्षा को प्राथमिकता दी, जिसे 'डाउनवर्ड फिल्ट्रेशन थ्योरी' कहा गया। इससे बिहार में पहला आधुनिक पश्चिमी स्कूल पटना (1835) में खुला, उसके बाद पूर्णिया (1835) और अन्य जिलों (बिहारशरीफ, भागलपुर, आरा, छपरा-1836) में जिला स्कूल स्थापित हुए। यह तकनीकी शिक्षा का आधार बना, क्योंकि इसमें विज्ञान और इंजीनियरिंग पर जोर दिया गया।

वुड्स डिस्पैच (1854): शिक्षा का 'मैग्ना कार्टा' कहलाया, जिसने प्राथमिक स्तर पर स्थानीय भाषा और उच्च स्तर पर अंग्रेजी शिक्षा की सिफारिश की। इससे पटना कॉलेज (1863) की स्थापना हुई, जो कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध था।

विकास का प्रमुख चरण (1857-1947: ब्रिटिश काल)

हंटर कमीशन (1882-83): प्राथमिक शिक्षा पर फोकस, लेकिन तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा मिला।

सर्वे ट्रेनिंग स्कूल (1886): बिहार में तकनीकी शिक्षा का प्रथम संस्थान, जो 1900 में बिहार स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग बना। 1932 में इसे बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग नाम दिया गया, जो बाद में एनआईटी पटना (2004) बना।

 

कृषि अनुसंधान केंद्र, पूसा (1902): कृषि तकनीकी शिक्षा का प्रारंभ, जो अब राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी है। यह भारत का पहला पूर्ण कार्यरत कृषि विश्वविद्यालय था।

 

पटना विश्वविद्यालय (1917): बिहार का पहला विश्वविद्यालय, जिसमें भौतिकी और रसायन विज्ञान विभाग 1919 में शुरू हुए। 1927 में पटना साइंस कॉलेज स्थापित हुआ।

इंडियन स्कूल ऑफ माइंस, धनबाद (1926): खनन तकनीकी शिक्षा के लिए, (अब झारखंड में)।

पटना मेडिकल कॉलेज (1925): चिकित्सा तकनीकी शिक्षा का केंद्र, जो प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज से विकसित हुआ।

सैडलर कमीशन (1917-19): व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा की सिफारिश की, जिससे इंजीनियरिंग और विज्ञान को बढ़ावा मिला।

हार्टोग कमिटी (1929): आठवीं कक्षा के बाद व्यावसायिक प्रशिक्षण पर जोर।

सर्जेंट प्लान (1944): 40 वर्षों में इंग्लैंड स्तर की शिक्षा का लक्ष्य।

इस काल में तकनीकी शिक्षा मुख्यतः इंजीनियरिंग, कृषि, खनन और चिकित्सा तक सीमित रही, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच कम थी। सामाजिक संगठनों जैसे आर्य समाज (DAV स्कूल) और ब्रह्म समाज ने भी योगदान दिया, जबकि मुस्लिम शिक्षा में अलीगढ़ आंदोलन ने बिहार साइंटिफिक सोसाइटी (1872-73) स्थापित की।

 स्वतंत्रता के बाद विकास (1947 से वर्तमान) -

प्रारंभिक विस्तार*: 1950-60 के दशक में इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या बढ़ी, लेकिन 2000 में झारखंड विभाजन से धनबाद जैसे केंद्र अलग हो गए।

आधुनिक संस्थान*: आईआईटी पटना (2008), आईआईएम बोधगया (2015), एआईआईएमएस पटना, एनआईएफटी पटना, आईआईआईटी भागलपुर और एनआईपीईआर हाजीपुर जैसे संस्थान स्थापित हुए। अर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी (2008) तकनीकी शिक्षा का प्रबंधन करती है।

वर्तमान स्थिति*: बिहार में 30 से अधिक विश्वविद्यालय हैं, जिसमें एनआईटी पटना को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान (2007) का दर्जा मिला। व्यावसायिक शिक्षा पर जोर से आईटी, इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य क्षेत्र में कुशल जनशक्ति तैयार हो रही है, लेकिन ग्रामीण पहुंच और गुणवत्ता की चुनौतियां बनी हुई हैं।

पश्चिमी तकनीकी शिक्षा ने बिहार की अर्थव्यवस्था को औद्योगिकरण और नवाचार से मजबूत किया, लेकिन प्रारंभिक असमानताओं के कारण पलायन की समस्या बनी रही। आज यह युवाओं को वैश्विक अवसर प्रदान कर रही है।

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