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गांधीवाद दर्शन , गांधीवाद और मार्क्सवाद में अंतर

By - Admin

At - 2021-09-03 18:40:54

गांधीवाद दर्शन , गांधीवाद और मार्क्सवाद में अंतर

 

गांधीवाद

  • गांधीवाद महात्मा गांधी के आदर्शों, विश्वासों एवं दर्शन से उदभूत विचारों के संग्रह को कहा जाता है, जो स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेताओं में से थे।
  • यह ऐसे उन सभी विचारों का एक समेकित रूप है जो गांधीजी ने जीवन पर्यंत जिया था।

 

 गांधीवादी विचारधारा

  • गांधीवादी दर्शन न केवल राजनीतिक, नैतिक और धार्मिक है, बल्कि पारंपरिक और आधुनिक तथा सरल एवं जटिल भी है।
  • यह कई पश्चिमी प्रभावों का प्रतीक है, जिनको गांधीजी ने उजागर किया था, लेकिन यह प्राचीन भारतीय संस्कृति में निहित है तथा सार्वभौमिक नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करता है।
  • यह दर्शन कई स्तरों आध्यात्मिक या धार्मिक, नैतिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, व्यक्तिगत और सामूहिक आदि पर मौजूद है।
  • इसके अनुसार-

1. आध्यात्मिक या धार्मिक तत्व और ईश्वर इसके मूल में हैं,

2. मानव स्वभाव को मूल रूप से सद्गुणी है,

3. सभी व्यक्ति उच्च नैतिक विकास और सुधार करने के लिये सक्षम हैं।

  • गांधीवादी विचारधारा आदर्शवाद पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक आदर्शवाद पर ज़ोर देती है।
  • गांधीवादी दर्शन एक दोधारी तलवार है जिसका उद्देश्य सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के अनुसार व्यक्ति और समाज को एक साथ बदलना है।
  • गांधीजी ने इन विचारधाराओं को विभिन्न प्रेरणादायक स्रोतों जैसे- भगवद्गीता, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, बाइबिल, गोपाल कृष्ण गोखले, टॉलस्टॉय, जॉन रस्किन आदि से विकसित किया।
  • सामान्यतः गांधीवादी विचारधारा महात्मा गांधी द्वारा अपनाई और विकसित की गई उन धार्मिक-सामाजिक विचारों का समूह जो उन्होंने पहली बार वर्ष 1893 से 1914 तक दक्षिण अफ्रीका में तथा उसके बाद फिर भारत में अपनाई थी।
  • टॉलस्टॉय की पुस्तक 'द किंगडम ऑफ गॉड इज विदिन यू' का महात्मा गांधी पर गहरा प्रभाव था।
  • गांधीजी ने रस्किन की पुस्तक 'अंटू दिस लास्ट' से 'सर्वोदय' के सिद्धांत को ग्रहण किया और उसे जीवन में उतारा।
  • इन विचारों को बाद में "गांधीवादियों" द्वारा विकसित किया गया है, विशेष रूप से, भारत में विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण तथा भारत के बाहर मार्टिन लूथर किंग जूनियर और अन्य लोगों द्वारा।

 

गांधीवाद की विशेषताएं :-

आध्यात्मवाद की कसौटी पर:-

1. गांधीजी के मतानुसार - ‘‘परमात्मा ही सत्य है शुध्द अन्तरात्मा की वाणी ही सत्य है। लोक सेवा ईश्वर प्राप्ति के साधन का आवश्यक अंग है। गांधीजी मानव समूह को भगवान का विराट रूप मानते थे और उनकी सेवा को भगवान की सेवा।’’

2. एक व्यावहारिक दर्शन- गांधीवाद वास्तविकता पर आधारित है। गांधीजी कर्मयोगी थे। कर्म मे विश्वास करते थे। उनका दर्शन उनके निजी अनुभवो सत्य के प्रयोगो आरै अहिंसा पर आधारित है।

3. सत्याग्रह- गांधीवाद का मूल आधार सत्याग्रह है। सत्याग्रह का अर्थ सत्य को आरूढ़ करना। सत्याग्रह मे छलकपट धोखा का परित्याग कर प्रेम एवं सत्य के नैतिक शास्त्र का प्रयोग करना पडता है। सत्याग्रह तो शक्तिशाली और वीर मनुष्य का शस्त्र है।

4. अहिंसा पर आधारित- गांधीजी का मत था कि अहिंसा के आधार पर ही एक सुव्यवस्थित स माज की स्थापना और मानव जीवन की भावी उन्नति हो सकती है। अहिंसा का अर्थ किसी भी रूप मे अन्य किसी व्यक्ति को कष्ट न पहुंचाना है। एवं अत्याचारी की इच्छा का आत्मिक बल के आधार पर प्रतिरोध करना भी है। अहिंसा आत्मिक बल का प्रतीक है।

5. आदर्श राज्य की स्थापना- गांधीजी अहिंसा पर आधारित ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे। जिसमे समस्त मानव सदगुणी एवं विवेकशील हो । उसमें स्वार्थमयी हितो का कोई स्थान न हो। सभी सुखी संपन्न एव निश्चित जीवन यापन करेंगे।

6. सर्वोदय- गांधीजी सभी लोगो की उन्नति उदय एवं कल्याण मे विश्वास करते थे। उनका विश्वास था कि उपेक्षित गरीबो के उत्थान से ही समाज एवं राष्ट्र की प्रगति संभव है।

7. छूआछूत विरोधी- छूआछूत समाज का एक गम्भीर दोष रहा है। गांधीजी समाज में व्याप्त छूआछूत को मिटाकर सामाजिक एकता स्थापित करना चाहते थे समाज में अछूतो के विकास एवं कल्याण के लिए उन्होने उनको ‘‘हरिजन’’ नाम दिया।

8. विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था तथा न्यासधारिता का सिध्दांत-  गांधीवाद मे आर्थिक विकेन्द्रीकरण के साथ साथ न्यासधारिता के सिध्दांत का भी उल्लेख किया गया है उनका विचार था कि पूंजीपतियो को हृदय परिवर्तन द्वारा सम्पत्ति की न्यासी (ट्रस्टी) बना दिया जाय और पूंजीपति उस सम्पत्ति का प्रयोग सम्पूर्ण समाज के हित के लिये करें।

9. साध्य तथा साधन- गांधीवाद पूर्णतया एक नैतिक दर्शन है। साध्य के साथ साथ साधन भी नैतिक हो इस बात पर गांधीवाद में विशेष जोर दिया गया है। उनका मत था कि यदि पवित्र साधन नही मिलते हो तो उस साध्य को ही छोड़ दो।

10. विश्व बन्धुत्व और अन्तर्राष्ट्रवाद का समर्थन- गांधीजी मानव कल्याण के समर्थक थे। वे समस्त मानव का हित चिंतन करते थे। उनहोने सामा्रजयवाद का विरोध किया तथा विश्व शांति तथा अन्तर्राष्ट्रवाद का समर्थन किया।

गांधीवाद की आलोचना:-

 

1. गांधीवाद कल्पनाशील  होना :-  आलोचको के द्वारा गांधीवादी दर्शन के विरूद्ध यह आक्षेप लगाया जाता है कि यह वास्तविकता से दूर कोरा काल्पनिक व भावनात्मक दर्शन है। वर्तमान में परिस्थितियों मे आदर्श राज्य व अहिंसात्मक राज्य की स्थापना करना वास्तविकता से परे है। क्योंकि पुलिस और सैन्य बल के अभाव में राज्य में न तो शांति व्यवस्था रह सकती है और न ही वह राष्ट्र स्थायी रह सकता है।

2. गांधीवाद में मौलिकता का अभाव- आलोचको ने गांधीवाद में मौलिकता का अभाव बता या हे। क्योंकि गांधीजी ने गीता बाइबिल आरै टालस्टाय आदि से विचार उधार लिए है गांधीजी ने कोई नवीन सिध्दांत का प्रतिपादन नही किया है।

3. अहिंसा अव्यावहारिक- गांधीजी ने अहिंसा पर अत्यधिक बल देकर उसे आधुनिक समय में अव्यावहारिक बना दिया है। आलोचकों का मत है कि राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओ का समाधान सदैव अहिंसा से करना असंभव है।

4. न्यासधारिता का सिध्दांत- अव्यावहारिक गांधीजी का यह मत था कि धनिको के पास जो धन है वह समाज की धरोहर है धनिक उस धन को समाज कल्याण म ें खर्च करं।े लेि कन आलोचको का मत है कि जो व्यक्ति अथक परिश्रम करके धन कमाया हो उस पूंजी को त्यागने के लिए तैयार नही होगा।

5. सत्याग्रह का सिध्दांत अव्यावहारिक- गांधीजी हर जगह सत्याग्रह के सिध्दातं को लागू करना चाहते है परंतु हर जगह सत्याग्रह सफल नही हो सकता। गांधीजी का यही अहिंसात्मक साधन आज हिंसात्मक व तोड़फोड़ का रूप लेता जा रहा है। राजनीतिक दल अपने स्वार्थो की पूर्ति हेतु अनुचित साधना े को अपनाकर सत्यागह्र का दुरूपयोग कर रहे है।

6. विरोधाभासी दर्शन- गांधी दर्शन एक विरोधाभासी दशर्न है एक तरफ गांधीजी पूंजीवादी की बुराई करते है तो दूसरी ओर न्यासधारिता की आड़ लेकर उसे बनाये रखना चाहते है।

7. औद्योगीकीकरण का विरोध- गांधीजी आर्थिक क्षेत्र मे विकेन्द्रीयकरण का पक्ष लेते हुए कुटीर उद्योगो का समर्थन किया है। आलोचको का मत है कि कुटीर उद्योगों से भारत जैसे विस्तृत देश की जनसंख्याया की आवश्यकता की पूर्ति असंभव है।

 

गांधीवाद के प्रमुख विचार:-

 1. सत्य

2.  अहिंसा

3. सत्याग्रह

4.  स्वराज

5. सर्वोदय

6. ट्रस्टीशिप

7.  स्वदेशी

8. साम्राज्यवाद का विरोधी

9. राजनीतिक शक्तियो का विकेन्द्रीयकरण

10. आर्थिक शक्तियो का विकेन्द्रीयकरण

11. न्यायधारिता का सिध्दांत

 

गांधी जी का मानना था कि जहाँ सत्य है, वहाँ ईश्वर है तथा नैतिकता - (नैतिक कानून और कोड) इसका आधार है।

अहिंसा का अर्थ होता है प्रेम और उदारता की पराकाष्ठा। गांधी जी के अनुसार अहिंसक व्यक्ति किसी दूसरे को कभी भी मानसिक व शारीरिक पीड़ा नहीं पहुँचाता है।

सत्याग्रह का अर्थ है सभी प्रकार के अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ शुद्धतम आत्मबल का प्रयोग करना।

यह व्यक्तिगत पीड़ा सहन कर अधिकारों को सुरक्षित करने और दूसरों को चोट न पहुँचाने की एक विधि है।

सत्याग्रह की उत्पत्ति उपनिषद, बुद्ध-महावीर की शिक्षा, टॉलस्टॉय और रस्किन सहित कई अन्य महान दर्शनों में मिल सकती है।

 सर्वोदय शब्द का अर्थ है 'यूनिवर्सल उत्थान' या 'सभी की प्रगति'। यह शब्द पहली बार गांधी जी ने राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर जॉन रस्किन की पुस्तक "अंटू दिस लास्ट" पर पढ़ा था।

हालाँकि स्वराज शब्द का अर्थ स्व-शासन है, लेकिन गांधी जी ने इसे एक ऐसी अभिन्न क्रांति की संज्ञा दी जो कि जीवन के सभी क्षेत्रों को समाहित करती है।

गांधी जी के लिये स्वराज का मतलब व्यक्तियों के स्वराज (स्व-शासन) से था और इसलिये उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके लिये स्वराज का मतलब अपने देशवासियों हेतु स्वतंत्रता है और अपने संपूर्ण अर्थों में स्वराज स्वतंत्रता से कहीं अधिक है, यह स्व-शासन है, आत्म-संयम है और इसे मोक्ष के बराबर माना जा सकता है।

 ट्रस्टीशिप एक सामाजिक-आर्थिक दर्शन है जिसे गांधी जी द्वारा प्रतिपादित किया गया था।

यह अमीर लोगों को एक ऐसा माध्यम प्रदान करता है जिसके द्वारा वे गरीब और असहाय लोगों की मदद कर सकें।

यह सिद्धांत गांधी जी के आध्यात्मिक विकास को दर्शाता है, जो कि थियोसोफिकल लिटरेचर और भगवद्गीता के अध्ययन से उनमें विकसित हुआ था।

 स्वदेशी शब्द संस्कृत से लिया गया है और यह संस्कृत के 2 शब्दों का एक संयोजन है। 'स्व' का अर्थ है स्वयं और 'देश' का अर्थ है देश। इसलिये स्वदेश का अर्थ है अपना देश। स्वदेशी का अर्थ अपने देश से है, लेकिन ज्यादातर संदर्भों में इसका अर्थ आत्मनिर्भरता के रूप में लिया जा सकता है।

स्वदेशी राजनीतिक और आर्थिक दोनों तरह से अपने समुदाय के भीतर ध्यान केंद्रित करता है।

यह समुदाय और आत्मनिर्भरता की अन्योन्याश्रितता है।

गांधी जी का मानना ​​था कि इससे स्वतंत्रता (स्वराज) को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि भारत का ब्रिटिश नियंत्रण उनके स्वदेशी उद्योगों के नियंत्रण में निहित था।

स्वदेशी भारत की स्वतंत्रता की कुंजी थी और महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों में चरखे द्वारा इसका प्रतिनिधित्व किया गया था।

 

 

आज के संदर्भ में गांधीवादी विचारधारा की प्रासंगिकता:-

  • सत्य और अहिंसा के आदर्श गांधी के संपूर्ण दर्शन को रेखांकित करते हैं तथा यह आज भी मानव जाति के लिये अत्यंत प्रासंगिक है।
  • महात्मा गांधी की शिक्षाएं आज और अधिक प्रासंगिक हो गई हैं जब कि लोग अत्याधिक लालच, व्यापक स्तर पर हिंसा और भागदौड़ भरी जीवन शैली का समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग, दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला और म्याँमार में आंग सान सू की जैसे लोगों के नेतृत्व में कई उत्पीड़ित समाज के लोगों को न्याय दिलाने हेतु गांधीवादी विचारधारा को सफलतापूर्वक लागू किया गया है, जो इसकी प्रासंगिकता का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
  • दलाई लामा के कथनानुसार आज विश्व शांति और विश्वयुद्ध, अध्यात्म और भौतिकवाद, लोकतंत्र व अधिनायकवाद के बीच एक बड़ा युद्ध चल रहा है।अतः  इन बड़े युद्धों से लड़ने के लिये ये ठीक होगा कि समकालीन समय में गांधीवादी दर्शन को अपनाया जाए।
  • गांधीजी का मत है कि साध्य पवित्र है तो उसे प्राप्त करने का साधन भी पवित्र होना चाहिए इसलिए गांधीजी ने साध्य (स्वतंत्रता) प्राप्त करने के लिये पवित्र साधन (सत्य और अहिंसा) को अपनाया।
  • गांधीजी राजनीति और धर्म में गहरा सम्बन्ध मानते थे।गांधीजी कहते थे धर्म से पृथक कोई राजनीति नहीं हो सकती। राजनीति तो मृत्यु जाल है क्योंकि वह आत्मा का हनन करती है। वे कहते थे कि धर्म मानव जीवन के प्रत्येक कार्य को नैतिकता का आधार प्रदान करता है।

 

गांधीजी के राजनीतिक विचारों को इन शीर्षकों के अन्तर्गत बांटा जा सकता है-

  • राजनीति का आध्यात्मीकरण (Spritiualization of Politics)
  • अहिंसा का सिद्धान्त (Theory of Non - Violence)
  • साध्य और साधनों का सिद्धान्त (Theory of Ends and Means)
  • सत्याग्रह (Satyagraha)
  • राज्य का सिद्धान्त (Theory of State)
  • सर्वोदय (Sarvodaya)

 

मार्क्सवाद

  • कार्लमार्क्स की साम्यवादी विचारधारा ही मार्क्सवादी विचारधारा कहलायी।
  • ये एक वैज्ञानिक समाजवादी विचारक थे।ये यथार्थ पर आधारित समाजवादी विचारक के रूप में जाने जाते हैं।
  • सामाजिक राजनीतिक दर्शन में मार्क्सवाद (Marxism) उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व द्वारा वर्गविहीन समाज की स्थापना के संकल्प की साम्यवादी विचारधारा है।
  • मूलतः मार्क्सवाद उन आर्थिक राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांतो का समुच्चय है जिन्हें उन्नीसवीं-बीसवीं सदी में कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स और व्लादिमीर लेनिन तथा साथी विचारकों ने समाजवाद के वैज्ञानिक आधार की पुष्टि के लिए प्रस्तुत किया।

 

गांधीवाद तथा मार्क्सवाद मे समानताएं :-

मानवतावादी विचारधारा-  गांधीवाद और माक्र्सवाद दोनो का ही उद्देश्य मानव का विकास और लोक कल्याण है।

वर्गविहीन समाज की स्थापना -  दोनो ही विचारधारा का अंतिम लक्ष्य वर्गविहीन समाज की स्थापना करना है।

श्रम की सर्वोपरिता - दोनो ही विचारधारा में श्रम को सभी के लिये अनिवार्य बताया गया है। सभी व्यक्ति परिश्रम करें और खायें कोई किसी का शोषण न करें।

विश्व शांति के समर्थक - दोनो ही विचारधारा इस बात का समर्थन करती है कि विश्व युध्दो से मुक्त कोई भी शक्तिशाली देश कमजोर देश का शोषण न करें।

 

गांधीवाद तथा मार्क्सवाद मे असमानताएं :-

1. साधन व साध्य के सम्बन्ध मे अंतर - गांधीवाद में श्रेष्ठ साध्य के साथ साथ साधनो की पवित्रता को भी आवश्यक माना गया है जबकि माक्र्सवाद में पवित्र साध्य प्राप्ति के लिये साधनो की पवित्रता मे विश्वास नही करता।

2. व्यक्तिगत संपत्ति संबंधी अधिकार - गांधीवाद व्यक्तिगत संपत्ति का विरोधी नही है जबकि माक्र्सवाद व्यक्तिगत संपत्ति का विरोधी है।

3. वर्ग संघर्ष के प्रश्न पर मतभेद- गांधीवाद में जहां वर्ग संघर्ष के लिये कोई स्थान नही है वहीं साम्यवाद (मार्क्सवाद) वर्ग संघर्ष को लक्ष्य प्राप्ति के लिये आवश्यक मानता हे।

4. लोकतंत्र के सम्बन्ध में विश्वास - गांधीजी का लोकतंत्र में अटूट विश्वास था। उन्होने व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिये लोकतंत्रीय पध्दति को आवश्यक बताया है। किन्तु साम्यवाद (मार्क्सवाद) लोकतंत्र को निकम्मो का शासन कहकर उसकी निंदा करते है।

गुरुमंत्रा विद्यासंस्थान, बिहार

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