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असुर जनजाति (Asura Tribe)

By - Admin

At - 2021-10-14 12:51:38

असुर जनजाति (Asura Tribe)

 

 असुर भारत में रहने वाली एक प्राचीन आदिवासी समुदाय है।

असुर जनसंख्या का घनत्व मुख्यतः झारखण्ड और आंशिक रूप से पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में है।

झारखंड में असुर मुख्य रूप से गुमला, लोहरदगा, पलामू और लातेहार जिलों में निवास करते हैं। 

असुर जनजाति के तीन उपवर्ग हैं-

बीर असुर, विरजिया असुर एवं अगरिया असुर। 

बीर उपजाति के विभिन्न नाम हैं, जैसे - सोल्का, युथरा, कोल,इत्यादि. विरजिया एक अलग आदिम जनजाति के रूप में अधिसूचित है।

असुर समाज 12 गोत्रों में बँटा हुआ है। असुर के गोत्र विभिन्न प्रकार के जानवर, पक्षी एवं अनाज के नाम पर है। 

गोत्र के बाद परिवार सबसे प्रमुख होता है। पिता परिवार का मुखिया होता है। असुर समाज असुर पंचायत से शासित होता है। असुर पंचायत के अधिकारी महतो, बैगा, पुजार होते हैं।

 

हाल ही में, झारखंड की असुर जनजाति असुरी भाषा को पुनर्जीवित करने के प्रयासों की वजह से चर्चा में रही।

आदिम जनजाति असुर की भाषा मुण्डारी वर्ग की है जो आग्नेय (आस्ट्रो एशियाटिक) भाषा परिवार से सम्बद्ध है, परन्तु असुर जनजाति ने अपनी भाषा की असुरी भाषा की संज्ञा दिया है।

वर्तमान में सिर्फ 7000-8000 असुर जाति के लोग ही इस भाषा को बोलते हैं।

असुरी भाषा को पुनर्जीवित करने के लिये ये लोग स्थानीय समाचारों को मोबाइल रेडियो के माध्यम से असुरी भाषा में ही प्रसारित कर रहे हैं।

ध्यातव्य है कि असुरी भाषा यूनेस्को की एटलस ऑफ द वर्ल्ड लैंग्वेजेज़ इन डेंजर (Atlas of the World Languages ​​in Danger) की सूची में शामिल है।

असुर जाति के लोग भारत के झारखंड राज्य में मुख्यतः गुमला, लोहरदगा, पलामू और लातेहार जिलों में निवास करते हैं, तथा आंशिक रूप से पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा में निवास करती है।

असुर जनजाति मुख्यतः प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड है, ये लोग असुरी भाषा बोलते हैं जो ऑस्टोएशियाटिक परिवार की भाषा है।

सरहुल, फगुआ तथा कर्मा आदि असुर जनजाति के प्रमुख त्यौहार हैं।

गृह मंत्रालय द्वारा असुर जनजाति (Asur Tribe) को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly vulnerable Tribal Groups – PVTGs) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। वस्तुतः PVTGs  निम्न विकास सूचकांक वाले जनजातीय समुदाय होते हैं।

जनजातीय समुदायों को PVTGs श्रेणी में सूचीबद्ध करने की सिफारिश  ढेबर आयोग (1973) द्वारा की गई थी।

PVTGs से सम्बंधित विकास कार्यक्रमों की देखरेख जनजातीय कार्य मंत्रालय करता है, इसके तहत सम्बंधित राज्यों को PVTGs के विकास हेतु 100% अनुदान सहायता प्राप्त होती है।

 

वर्तमान में, PVTGs श्रेणी के अंतर्गत असुर जनजाति (Asur Tribe), बिरहोर (मध्य प्रदेश एवं ओडिशा), बिरजिया (बिहार), राजी (उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश), मनकीडिया (ओडिशा) तथा जारवा (केरल, अंडमान एवं निकोबार) आदि जनजातीय समुदाय शामिल है।

यूनेस्को की एटलस ऑफ द वर्ल्ड लैंग्वेजेज़ इन डेंजर (Atlas of the World Languages ​​in Danger) विश्व भर में भाषाई विविधता को सुरक्षित रखने, लुप्तप्राय भाषाओं की निगरानी एवं उन्हें पुनर्जीवित करने के लिये एक वैश्विक प्रयास है।

असुर प्रकृति-पूजक होते हैं। ‘सिंगबोंगा’ उनके प्रमुख देवता है। ‘सड़सी कुटासी’ इनका प्रमुख पर्व है, जिसमें यह अपने औजारों और लोहे गलाने वाली भट्टियों की पूजा करते हैं। असुर महिषासुर को अपना पूर्वज मानते है। 

हालांकि हिन्दू धर्म में  महिषासुर को एक राक्षस (असुर) के रूप में दिखाया गया है, जिसकी हत्या देवी दुर्गा ने की थी। 

 पश्चिम बंगाल और झारखण्ड में दुर्गा पूजा के दौरान बहुत से असुर समुदाय के लोग शोक मनाते है।

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली में पिछले कुछ सालों से एक पिछड़े वर्ग के छात्र संगठन ने ‘महिषासुर शहीद दिवस’ मनाने की शुरुआत की है।

चुनौतियाँ:-

वर्तमान समय में झारखण्ड में रह रहे असुर समुदाय के लोग काफी परेशानियों का सामना कर रहे हैं। 

समुचित स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, परिवहन, पीने का पानी आदि जैसी मूलभूत सुविधाएँ भी इन्हें उपलब्ध नहीं है। 

लोहा गलाने और बनाने की परंपरागत आजीविका के खात्मे तथा खदानों के कारण तेजी से घटते कृषि आधारित अर्थव्यवस्था ने असुरों को गरीबी के कगार पर ला खड़ा किया है।

नतीजतन पलायन, विस्थापन एक बड़ी समस्या बन गई है।

 गरीबी के कारण नाबालिग असुर लड़कियों की तस्करी अत्यंत चिंताजनक है।

 ईंट भट्ठों और असंगठित क्षेत्र में मिलनेवाली दिहाड़ी मजदूरी भी उनके आर्थिक-शारीरिक और सांस्कृतिक शोषण का बड़ा कारण है। 

नेतरहाट में बॉक्साइट खनन की वजह से असुरों की जीविका छीन गयी है और खनन से उत्पन्न प्रदूषण से इनकी कृषि भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। 

पहले से ही कम जनसंख्या वाले असुर समुदाय की जनसंख्या में पिछले कुछ सालों में कमी आई है।

इन दिनों असुर समदाय से आने वाली एक युवा सुषमा असुर, जो नेतरहाट में रहती हैं, अपने समुदाय की कला-संस्कृति और अस्तित्व को बचाने के लिए प्रयासरत है।

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