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नई शिक्षा नीति 2020

By - Admin

At - 2021-09-20 09:56:44

 

शिक्षा और नई शिक्षा नीति 2020

 

                                                

• आज के समाज में शिक्षा का महत्व काफी बढ़ चुका है। शिक्षा के उपयोग तो अनेक हैं परंतु उसे नई दिशा देने की आवश्यकता है। 

• शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए कि एक व्यक्ति अपने परिवेश से परिचित हो सके। शिक्षा  उज्ज्वल भविष्य के लिए एक बहुत ही आवश्यक साधन है। कोई भी जीवन में शिक्षा के इस साधन का उपयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं। 

• शिक्षा का उच्च स्तर लोगों की सामाजिक और पारिवारिक सम्मान तथा एक अलग पहचान बनाने में मदद करता है। शिक्षा का समय सभी के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत रुप से बहुत महत्वपूर्ण समय होता है, यहीं कारण है कि हमें शिक्षा हमारे जीवन में इतना महत्व रखती है।

• शिक्षा स्त्री और पुरुषों दोनों के लिए समान रुप से आवश्यक है, क्योंकि स्वास्थ्य और शिक्षित समाज का निर्माण दोनो द्वारा मिलकर ही किया जाता हैं। 

• यह उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक यंत्र होने के साथ ही देश के विकास और प्रगति में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

• अच्छी शिक्षा जीवन में बहुत से उद्देश्यों को प्रदान करती है। जैसेः- व्यक्तिगत उन्नति को बढ़ावा, सामाजिक स्तर में बढ़ावा, सामाजिक स्वस्थ में सुधार, आर्थिक प्रगति, राष्ट्र की सफलता, जीवन में लक्ष्यों को निर्धारित करना, हमें सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूक करना और पर्यावरण समस्याओं को सुलझाने के लिए हल प्रदान करना और अन्य सामाजिक मुद्दे आदि। 

• दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के प्रयोग के कारण, आजकल शिक्षा प्रणाली बहुत साधारण और आसान हो गयी है। 

• आधुनिक शिक्षा प्रणाली, अशिक्षा और समानता के मुद्दे को विभिन्न जाति, धर्म व जनजाति के बीच से पूरी तरह से हटाने में सक्षम है।

• शिक्षा लोगों की सोच को सकारात्मक विचार लाकर बदलती है और नकारात्मक विचारों को हटाती है। 

• नई शिक्षा नीति 2020 भारत की शिक्षा नीति है जिसे भारत सरकार  द्वारा 29 जुलाई 2020 को घोषित किया गया। 

• सन 1986 में जारी हुई नई शिक्षा नीति के बाद भारत की शिक्षा नीति में यह पहला नया परिवर्तन है।यह नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986

• इस नीति का उद्देश्य असमानताओं को दूर करने विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर विशेष ज़ोर देना था।

• इस नीति ने प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये  "ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड" लॉन्च किया।

• इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली का विस्तार किया।

• ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिये महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित "ग्रामीण विश्वविद्यालय" मॉडल के निर्माण के लिये नीति का आह्वान किया गया।

• नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। इस नीति द्वारा देश में स्कूल एवं उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों की अपेक्षा की गई है।

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रमुख बिंदु

स्कूली शिक्षा संबंधी प्रावधान

• नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 डिज़ाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल करता है।

• पाँच वर्ष की फाउंडेशनल स्टेज (Foundational Stage) -  3 साल का प्री-प्राइमरी स्कूल और ग्रेड 1, 2

• तीन वर्ष का प्रीपेट्रेरी स्टेज (Prepatratory Stage)

• तीन वर्ष का मध्य (या उच्च प्राथमिक) चरण - ग्रेड 6, 7, 8 और

• 4 वर्ष का उच्च (या माध्यमिक) चरण - ग्रेड 9, 10, 11, 12

• NEP 2020 के तहत HHRO द्वारा ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Foundational Literacy and Numeracy) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है। 

• इसके द्वारा वर्ष 2025 तक कक्षा-3 स्तर तक के बच्चों के लिये आधारभूत कौशल सुनिश्चित किया जाएगा।

भाषायी विविधता का संरक्षण:-

• NEP-2020 में कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है। साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।

• स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी।

शारीरिक शिक्षा

• विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट को स्थानीय उपलब्धता के अनुसार प्रदान करने की कोशिश की जाएगी ताकि बच्चे शारीरिक गतिविधियों एवं व्यायाम वगैरह में भाग ले सकें।

 

पाठ्यक्रम और मूल्यांकन संबंधी सुधार

• इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा।

• कक्षा-6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी की जाएगी।

• ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ (National Council of Educational Research and Training- NCERT) द्वारा ‘स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ (National Curricular Framework for School Education) तैयार की जाएगी।

• छात्रों के समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कक्षा-10 और कक्षा-12 की परीक्षाओं में बदलाव किया जाएगा। 

• इसमें भविष्य में समेस्टर या बहुविकल्पीय प्रश्न आदि जैसे सुधारों को शामिल किया जा सकता है।

• छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिये मानक-निर्धारक निकाय के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी।

• छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन तथा छात्रों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान करने के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence- AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग।

 

शिक्षण व्यवस्था से संबंधित सुधार

• शिक्षकों की नियुक्ति में प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन तथा समय-समय पर किये गए कार्य-प्रदर्शन आकलन के आधार पर पदोन्नति।

• राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक ‘शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक’ (National Professional Standards for Teachers- NPST) का विकास किया जाएगा।

• राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा NCERT के परामर्श के आधार पर ‘अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ [National Curriculum Framework for Teacher Education-NCFTE) का विकास किया जाएगा।

• वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा।

उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान

• NEP-2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात’ (Gross Enrolment Ratio) को 26.3% (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50% तक करने का लक्ष्य रखा गया है, इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा।

• NEP-2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टीपल एंट्री एंड एक्ज़िट व्यवस्था को अपनाया गया है, इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा (1 वर्ष के बाद प्रमाण-पत्र, 2 वर्षों के बाद एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक)।

• विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit) दिया जाएगा, ताकि अलग-अलग संस्थानो में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके।

• नई शिक्षा नीति के तहत एम.फिल. (M.Phil) कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया।

 

भारतीय उच्च शिक्षा आयोग

• नई शिक्षा नीति (NEP) में देश भर के उच्च शिक्षा संस्थानों के लिये एक एकल नियामक अर्थात् भारतीय उच्च शिक्षा परिषद (Higher Education Commision of India-HECI) की परिकल्पना की गई है जिसमें विभिन्न भूमिकाओं को पूरा करने हेतु कई कार्यक्षेत्र होंगे। 

• भारतीय उच्च शिक्षा आयोग चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक एकल निकाय (Single Umbrella Body) के रूप में कार्य करेगा।

 

HECI के कार्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु चार निकाय-

1. राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (National Higher Education Regulatroy Council-NHERC) :- यह शिक्षक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक नियामक का कार्य करेगा।

2. सामान्य शिक्षा परिषद (General Education Council - GEC) :- यह उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के लिये अपेक्षित सीखने के परिणामों का ढाँचा तैयार करेगा अर्थात् उनके मानक निर्धारण का कार्य करेगा।

3. राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (National Accreditation Council - NAC) :- यह संस्थानों के प्रत्यायन का कार्य करेगा जो मुख्य रूप से बुनियादी मानदंडों, सार्वजनिक स्व-प्रकटीकरण, सुशासन और परिणामों पर आधारित होगा।

4. उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (Higher Education Grants Council - HGFC) :- यह निकाय कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के लिये वित्तपोषण का कार्य करेगा।

• गौरतलब है कि वर्तमान में उच्च शिक्षा निकायों का विनियमन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) जैसे निकायों के माध्यम से किया जाता है।

• देश में आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) के समकक्ष वैश्विक मानकों के ‘बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय’ (Multidisciplinary Education and Reserach Universities - MERU) की स्थापना की जाएगी।

 

विकलांग बच्चों हेतु प्रावधान

• इस नई नीति में विकलांग बच्चों के लिये क्रास विकलांगता प्रशिक्षण, संसाधन केंद्र, आवास, सहायक उपकरण, उपर्युक्त प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण, शिक्षकों का पूर्ण समर्थन एवं प्रारंभिक से लेकर उच्च शिक्षा तक नियमित रूप से स्कूली शिक्षा प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित करना आदि प्रक्रियाओं को सक्षम बनाया जाएगा।

डिजिटल शिक्षा से संबंधित प्रावधान

• एक स्वायत्त निकाय के रूप में ‘‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’’ (National Educational Technol Foruem) का गठन किया जाएगा जिसके द्वारा शिक्षण, मूल्यांकन योजना एवं प्रशासन में अभिवृद्धि हेतु विचारों का आदान-प्रदान किया जा सकेगा।

• डिजिटल शिक्षा संसाधनों को विकसित करने के लिये अलग प्रौद्योगिकी इकाई का विकास किया जाएगा जो डिजिटल बुनियादी ढाँचे, सामग्री और क्षमता निर्माण हेतु समन्वयन का कार्य करेगी।

पारंपरिक ज्ञान-संबंधी प्रावधान

• भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ, जिनमें जनजातीय एवं स्वदेशी ज्ञान शामिल होंगे, को पाठ्यक्रम में सटीक एवं वैज्ञानिक तरीके से शामिल किया जाएगा।

• आकांक्षी जिले (Aspirational districts) जैसे क्षेत्र जहाँ बड़ी संख्या में आर्थिक, सामाजिक या जातिगत बाधाओं का सामना करने वाले छात्र पाए जाते हैं, उन्हें ‘विशेष शैक्षिक क्षेत्र’ (Special Educational Zones) के रूप में नामित किया जाएगा।

• देश में क्षमता निर्माण हेतु केंद्र सभी लड़कियों और ट्रांसजेंडर छात्रों को समान गुणवत्ता प्रदान करने की दिशा में एक ‘जेंडर इंक्लूजन फंड’ (Gender Inclusion Fund) की स्थापना करेगा।

• गौरतलब है कि 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा हेतु एक राष्ट्रीय पाठ‍्यचर्या और शैक्षणिक ढाँचे का निर्माण एनसीआरटीई द्वारा किया जाएगा।

वित्तीय सहायता

• एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों से संबंधित मेधावी छात्रों को प्रोत्साहन के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

 

नई शिक्षा नीति से संबंधित चुनौतियाँ

• शिक्षा एक समवर्ती विषय होने के कारण अधिकांश राज्यों के अपने स्कूल बोर्ड हैं इसलिये इस फैसले के वास्तविक कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकारों को सामने आना होगा। साथ ही शीर्ष नियंत्रण संगठन के तौर पर एक राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद को लाने संबंधी विचार का राज्यों द्वारा विरोध हो सकता है।

• दक्षिण भारतीय राज्यों का यह आरोप है कि ‘त्रि-भाषा’ सूत्र से सरकार शिक्षा का संस्कृतिकरण करने का प्रयास कर रही है।

• कुछ राज्यों में अभी भी शुल्क संबंधी विनियमन मौजूद है, लेकिन ये नियामक प्रक्रियाएँ असीमित दान के रूप में मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाने में असमर्थ हैं।

• वित्तपोषण का सुनिश्चित होना इस बात पर निर्भर करेगा कि शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय के रूप में जीडीपी के प्रस्तावित 6%खर्च करने की इच्छाशक्ति कितनी सशक्त है।

• वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कुशल शिक्षकों का अभाव है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत प्रारंभिक शिक्षा हेतु की गई व्यवस्था के क्रियान्वयन में व्यावहारिक समस्याएँ भी हैं।

 

परिवर्तन की आवश्यकता क्यों:-

• बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये मौजूदा शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता थी।

• शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने, नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी।

• भारतीय शिक्षण व्यवस्था की वैश्विक स्तर पर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा के वैश्विक मानकों को अपनाने के लिये शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता थी।

लाभ :-

• यदि इसका क्रियान्वयन सफल तरीके से होता है तो यह नई प्रणाली भारत को विश्व के अग्रणी देशों के समकक्ष ले आएगी। 

• नई शिक्षा नीति, 2020 के तहत 3 साल से 18 साल तक के बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के अंतर्गत रखा गया है। इससे उच्च शिक्षा का स्तर बढ़ेगा।

• स्नातक शिक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, थ्री-डी मशीन, डेटा-विश्लेषण, जैवप्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों के समावेशन से अत्याधुनिक क्षेत्रों में भी कुशल पेशेवर तैयार होंगे और युवाओं की रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी।

• प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा भाषा में होने से बच्चों का शिक्षा के प्रति लगाव बढ़ेगा, बौद्धिक विकास होगा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक होंगे।

• बच्चों में पढ़ाई को लेकर अनावश्यक बोझ घटेगा।

• अतः हम खा सकते हैं एक नए हिंदुस्तान में जो वैश्वीकरण के साथ काफी जुड़ चुके हैं जहां एक बड़ी आबादी है और एक बड़ी उम्मीद है इन सब का वर्चस्व बनाए रखने के लिए नई शिक्षा नीति काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

 

भारतीय शिक्षा की विकास यात्रा

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968

 

1. स्वतंत्र भारत में शिक्षा पर यह पहली नीति कोठारी आयोग (1964-1966) की सिफारिशों पर आधारित थी।

2. शिक्षा को राष्ट्रीय महत्त्व का विषय घोषित किया गया।

3. 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिये अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य और शिक्षकों का बेहतर प्रशिक्षण और योग्यता पर फोकस।

4. नीति ने प्राचीन संस्कृत भाषा के शिक्षण को भी प्रोत्साहित किया, जिसे भारत की संस्कृति और विरासत का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता था।

5. शिक्षा पर केन्द्रीय बजट का 6 प्रतिशत व्यय करने का लक्ष्य रखा।

6. माध्यमिक स्तर पर ‘त्रिभाषा सूत्र’ लागू करने का आह्वान किया गया।

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986

• इस नीति का उद्देश्य असमानताओं को दूर करने विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर विशेष ज़ोर देना था।

• इस नीति ने प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये "ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड" लॉन्च किया।

• इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली का विस्तार किया।

• ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित "ग्रामीण विश्वविद्यालय" मॉडल के निर्माण के लिये नीति का आह्वान किया गया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संशोधन, 1992

• राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में संशोधन का उद्देश्य देश में व्यावसायिक और तकनीकी कार्यक्रमों में प्रवेश के लिये अखिल भारतीय आधार पर एक आम प्रवेश परीक्षा आयोजित करना था।

• इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर कार्यक्रमों में प्रवेश के लिये सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त प्रवेश परीक्षा (Joint Entrance Examination-JEE) और अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (All India Engineering Entrance Examination-AIEEE) तथा राज्य स्तर के संस्थानों के लिये राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (SLEEE) निर्धारित की।

• इसने प्रवेश परीक्षाओं की बहुलता के कारण छात्रों और उनके अभिभावकों पर शारीरिक, मानसिक और वित्तीय बोझ को कम करने की समस्याओं को हल किया।

 

नई शिक्षा नीति-2020: प्रमुख बातें एक नजर में:-

• नयी शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6% खर्च किया जायेगा जो कि अभी 4.43% है।

• अब पांचवी कक्षा तक की शिक्षा मातृ भाषा में होगी।

• मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। अतः रमेश पोखरियाल निशंक अब देश के शिक्षा मंत्री कहलाएंगे।

• लॉ और मेडिकल एजुकेशन को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एक एकल निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (HECI) का गठन किया जाएगा।अर्थात उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर रहेगा. उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी।

• छठी क्लास से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे। इसके लिए इच्छुक छात्रों को 6वीं कक्षा के बाद से ही इंटर्नशिप करायी जाएगी।

• म्यूज़िक और आर्ट्स को पाठयक्रम में शामिल कर बढ़ावा दिया जायेगा।

• ई-पाठ्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NETF) बनाया जा रहा है जिसके लिए वर्चुअल लैब विकसित की जा रहीं हैं।

• वर्ष 2030 तक उच्च शिक्षा में फ़ीसद सकल नामांकन अनुपात GER (Gross Enrolment Ratio) 50% पहुँचाने का लक्ष्य है जो कि वर्ष 2018 में 26.3% था।

• नयी शिक्षा नीति 2020 का सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट है मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम लागू होना। अभी यदि कोई छात्र तीन साल इंजीनियरिंग पढ़ने या छह सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारण से आगे की पढाई नहीं कर पाता है तो उसको कुछ भी हासिल नहीं होता है। लेकिन अब मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम में एक साल के बाद पढाई छोड़ने पर सर्टिफ़िकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद पढाई छोड़ने के बाद डिग्री मिल जाएगी। इससे देश में ड्राप आउट रेश्यो कम होगा।

• अगर कोई छात्र किसी कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में एडमिशन लेना चाहें तो वो पहले कोर्स से एक ख़ास निश्चित समय तक ब्रेक ले सकता है और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकता है और इसे पूरा करने के बाद फिर से पहले वाले कोर्स को जारी रख सकता है।

• अभी सेंट्रल यूनिवर्सिटीज, डीम्ड यूनविर्सिटी, और स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस के लिए अलग-अलग नियम हैं। नई एजुकेशन पॉलिसी 2020 में सभी के लिए समान नियम होंगे।

• देश में शोध और अनुसन्धान को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका के NSF (नेशनल साइंस फाउंडेशन) की तर्ज पर एक शीर्ष निकाय के रूप में नेशनल रिसर्च फ़ाउंडेशन (NRF) की स्थापना की जाएगी। NRF की स्थापना का मुख्य उद्देश्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध की संस्कृति को बढ़ावा देना है। यह स्वतंत्र रूप से सरकार द्वारा, एक बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स द्वारा शासित होगा और बड़े प्रोजेक्टों की फाइनेंसिंग करेगा।

• SSRA (State School Regulatory Authority) बनेगी जिसके चीफ शिक्षा विभाग से जुड़े होंगे।

• 4 ईयर इंटेग्रेटेड बीएड, 2 ईयर बीएड or 1 ईयर B Ed course चलेंगें।

• ECCE (Early Childhood Care and Education) के अंतर्गत प्री प्राइमरी शिक्षा आंगनबाड़ी ओर स्कूलों के माध्यम से।

• TET लागू होगा up to सेकंडरी लेवल।

• शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों से हटाया जाएगा, सिर्फ चुनाव ड्यूटी लगेगी, BLO ड्यूटी से शिक्षक हटेंगे, MDM se भी शिक्षक हटेंगे।

• स्कूलों में एसएमसी/एसडीएमसी के साथ SCMC यानी स्कूल कॉम्प्लेक्स मैनेजमेंट कमेटी बनाई जाएगी।

• शिक्षक नियुक्ति में डेमो/स्किल टेस्ट और इंटरव्यू भी शामिल होंगे।

• नई ट्रांसफर पॉलिसी आयेगी जिसमें ट्रांसफर लगभग बन्द हो जाएंगे, ट्रांसफर सिर्फ पदोन्नति पर ही होंगे।

• ग्रामीण इलाकों में स्टाफ क्वार्टर बनाए जाएंगे, केंद्रीय विद्यलयों की तर्ज पर।

• RTE को कक्षा 12 तक या 18 वर्ष की आयु तक लागू किया जाएगा।

• मिड डे मील के साथ हैल्थी ब्रेकफास्ट भी स्कूलों में दिया जाएगा।

• त्रि-भाषायी  आधारित स्कूली शिक्षा होगी।

• विदेशी भाषा आधारित शिक्षा भी स्कूलों में शुरू होंगे।

• विज्ञान ओर गणित को बढ़ावा दिया जाएगा, हर सीनियर सैकंडरी स्कूल में science or math विषय अनिवार्य होंगे।

• स्थानीय भाषा भी शिक्षा का माध्यम होगी।

• NCERT पूरे देश में नोडल एजेंसी होगी।

• स्कूलों में राजनीति व सरकार का हस्तक्षेप लगभग समाप्त हो जाएगा।

• क्रेडिट बेस्ड सिस्टम होगा जिससे कॉलेज बदलना आसान और सरल होगा बीच मे कोई भी कॉलिज बदला जा सकता है।

• नई शिक्षा नीति में सिर्फ बीएड इण्टर के बाद 4 वर्षीय बीएड, स्नातक के बाद 2 वर्ष बीएड, परास्नातक के बाद 1 वर्ष का बीएड कोर्स होगा।

                                                                          

                               

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