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खालिस्तान आंदोलन और ऑपरेशन ब्लूस्टार

By - Gurumantra Civil Class

At - 2021-11-07 08:32:20

खालिस्तान आंदोलन और ऑपरेशन ब्लूस्टार

 

ऑपरेशन ब्लूस्टार की 36 वीं वर्षगाँठ पर अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि यदि सरकार खालिस्तान प्रदान करती है, सिख समुदाय इसे स्वीकार करेगा। ऐसा कई राजनीतिक विद्वताओं का मानना है कि  ऑपरेशन ब्लूस्टार की बरसीं पर खालिस्तान समर्थित नारेबाज़ी करना अब एक वार्षिक कार्यक्रम बन गया है।वहीं ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद यह पहली बार था जब सिख भक्तों को कार्यक्रम के दौरान स्वर्ण मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई थी।
 

खालिस्तान आंदोलन

खालिस्तान आंदोलन एक सिख अलगाववादी आंदोलन है, जो पंजाब क्षेत्र में ‘खालिस्तान’
('खालसा की भूमि') नामक एक संप्रभु राज्य की स्थापना करके सिखों के लिये एक मातृभूमि बनाने की मांग कर रहा है।

कई विशेषज्ञ खालिस्तान आंदोलन की जड़ों को भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में खोजते हैं, उल्लेखनीय है कि वर्ष 1947 में प्राप्त हुई भारतीय स्वतंत्रता पंजाब के सभी सिखों के लिये एक समान नहीं थी, बँटवारे/विभाजन ने पाकिस्तान में अपने पुरखों की ज़मीन छोड़ कर आ रहे सिखों के मन में एक असंतोष पैदा कर दिया था।

वास्तव में पंजाबी भाषी लोगों के लिये एक अलग राज्य की मांग पंजाबी सूबा आंदोलन (Punjabi Suba Movement) से मानी जाती है। इतिहासकार मानते हैं कि यह पहला अवसर था जब पंजाब को भाषा के आधार पर अलग करने की मांग राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर आई।

धीरे-धीरे इस आंदोलन के तहत पंजाब क्षेत्र को भाषीय आधार पर पंजाबी तथा गैर-पंजाबी क्षेत्रों में विभाजित करने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी। किंतु समय के साथ इस आंदोलन ने सांप्रदायिक रंग लेना शुरू कर दिया और पंजाब के सिखों ने पंजाबी को अपनी मातृभाषा और हिंदुओं ने हिंदी को अपनी मातृभाषा के रूप में घोषित कर दिया।

इसी बीच अकाली दल नाम से एक राजनीतिक समूह का गठन हुआ और इस समूह के नेतृत्त्व में पंजाब के सभी क्षेत्रों में एक अलग पंजाबी राज्य की मांग और भी तेज़ होने लगी।

वर्ष 1966 में इसी आंदोलन के परिणामस्वरूप भाषा के आधार पर पंजाब, हरियाणा और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ की स्थापना हुई।

कुछ जानकार पूर्ण ‘खालिस्तान’ आंदोलन की नींव को वर्ष 1966 में पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के गठन के बाद हुए विवादों में भी खोजते हैं। 

‘खालिस्तान’ के रूप में एक स्वायत्त राज्य की मांग 1980 के दशक में और भी ज़ोर पड़ने लगी और मांग तेज़ होने के साथ इसका नाम ‘खालिस्तान आंदोलन’ पड़ा।

पंजाब के विरुद्ध भारत सरकार के पक्षपात और रावी तथा ब्यास नदी के पानी के विभाजन को लेकर हुए विवाद को भी इस आंदोलन का एक कारण मानते हैं।

इसी बीच एक चरमपंथी सिख नेता के रूप में 'दमदमी टकसाल' के जरनैल सिंह भिंडरावाला की लोकप्रियता भी काफी बढ़ने लगी, माना जाता है कि जरनैल सिंह भिंडरावाले ने ही खालिस्तान को चरमपंथी आंदोलन का रूप दिया था।

ऑपरेशन ब्लूस्टार

‘खालिस्तान’ आंदोलन के एक हिंसक रूप धारण करने के बाद पंजाब में आतंकी घटनाओं में काफी तेज़ी आने लगी। समय के साथ तेज़ होती इस प्रकार की घटनाएँ और जरनैल सिंह भिंडरावाले की बढ़ती लोकप्रियता तत्कालीन सरकार के लिये एक प्रमुख चुनौती बन गईं।

स्थिति के मद्देनज़र तत्कालीन सरकार ने ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ के कार्यान्वयन का निर्णय लिया और 1-3 जून 1984 के बीच पंजाब में सड़क परिवहन और हवाई सेवाओं को पूरी तरह से रोक दिया गया। साथ ही  स्वर्ण मंदिर में पानी और बिजली की सप्लाई को भी रोक दिया गया।

6 जून, 1984 को स्वर्ण मंदिर के भीतर भारतीय सेना द्वारा एक व्यापक अभियान चलाया गया और जरनैल सिंह भिंडरवाला तथा उसके समर्थकों की मृत्यु हो गई। 7 जून, 1984 को स्वर्ण मंदिर भारतीय सेना के नियंत्रण में था।

इस ऑपरेशन को लेकर भारत सरकार द्वारा जारी आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, ऑपरेशन ब्लूस्टार में भारतीय सेना के कुल 83 जवानों की मौत हुई और 249 जवान घायल हुए। वहीं इस बीच 493 से अधिक आतंकी और आम लोग की भी मौत हुई।

खालिस्तान आंदोलन का मौजूदा स्वरूप

वर्तमान में खालिस्तान आंदोलन भारत में एक निष्क्रिय आंदोलन है और पंजाब के शहरी तथा ग्रामीण आबादी में इसके प्रति कुछ खास आकर्षण दिखाई नहीं देता है।

हालाँकि भारत के बाहर रहने वाले सिखों में इस आंदोलन का कुछ प्रभाव देखने को मिलता है, और समय-समय पर इस आंदोलन के समर्थन में नारे सुनाई देते हैं।

कुछ विदेशी शक्तियों द्वारा इस आंदोलन को पुनर्जीवित करने का भी प्रयास किया जा रहा है, ताकि भारत में अशांति और असंतोष फैलाया जा सके।

ऑपरेशन ब्लूस्टार का परिणाम

‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ में कई आम नागरिकों की भी मृत्यु हुई जिसके परिणामस्वरूप सिख समुदाय के बड़े हिस्से में भारत विरोधी भावनाएं काफी प्रबल होने लगीं।

इस ऑपरेशन के कारण उत्पन्न हुई भारत विरोधी भावनाओं का परिणाम था कि इस ऑपरेशन के मात्र 4 महीने बाद ही 31 अक्तूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही 2 सिख सुरक्षाकर्मियों द्वारा हत्या कर दी गई।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे भारत में सिखों के विरुद्ध व्यापक दंगे हुए, जिसके कारण भारत समेत विश्व भर में बसे हुए सिखों के मन में भारत विरोधी भावनाएँ और अधिक प्रबल होने लगीं।

1980 के दशक से 1990 के दशक के प्रारंभ तक पंजाब व्यापक आतंकवाद के दौर से गुजरा। हालाँकि समय के साथ यह आंदोलन भी धीमा होता गया और पंजाब प्रशासन को पंजाब में हो रहीं आतंकी घटनाएँ रोकने में सफलता मिली।

हालाँकि ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ की समाप्ति के बाद भी कई अवसरों पर हिंसक घटनाओं के रूप में खालिस्तान की विचारधारा की आवाज़ सुनाई दी है।

स्रोत: द हिंदू., अन्य इंटरनेट साइट

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