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बिहार के प्रमुख लोक नाट्य

By - Admin

At - 2021-09-07 06:49:24

बिहार के प्रमुख लोक नाट्य

 

  • भारत में नाट्य की परंपरा अत्यंत प्राचीन काल से चली आ रही है।
  • भरत मुनि ने (ई.पू. तृतीय शताब्दी) अपने नाट्यशास्त्र में इस विषय का विशद वर्णन किया है।
  • इसे अतिरिक्त धनंजयकृत 'दशरूपक' में तथा विश्वनाथ कविराजविरचित 'साहित्यदर्पण' में भी एतत्संबंधी बहुमूल्य सामग्री उपलब्ध है, परंतु नाट्यशास्त्र ही नाट्यविद्या का सबसे मौलिक तथा स्रोतग्रंथ माना जाता है।
  • मध्ययुगीन भारत के दौरान पारंपरिक नाटक या लोकनाट्य बहुत प्रसिद्ध था।
  • रंग-मंच के इस रूप में नृत्य की विशेष शैलियों द्वारा आम लोगो के जीवन शैली को दर्शाया जाता था।
  • पारंपरिक रूप से स्थानीय भाषा में सृजनात्‍मकता सूत्रबद्ध रूप में या शास्‍त्रीय तरीके से नहीं, बल्की बिखरे, छितराये, दैनिक जीवन की आवश्‍यकताओं के अनुरूप होती है । 
  • जीवन के सघन अनुभवों से जो सहज लय उत्‍पन्‍न होती है, वही अंतत: लोकनाटक बन जाती है। उसमें दु:ख, सुख, हताशा, घृणा, प्रेम आदि मानवीय प्रसंग का संयोग होता है।
  • बिहार के सांस्कृतिक तथा लोक जीवन में लोकनाट्यों का एक अपना ही एक अलग महत्त्व है।
  • ये लोकनाट्य मांगलिक अवसरों, विशेष पर्वों तथा कभी-कभी मात्र मनोरंजन की दृष्टि से ही आयोजित व प्रायोजित किए जाते हैं।
  • इन लोकनाट्यों में कथानक, संवाद, अभिनय, गीत, नृत्य तथा विशेष दृश्य आदि सभी कुछ होता है। यदि कुछ नहीं होता है तो वह है, सुसज्जित रंगमंच तथा पात्रों का मेकअप एवं वेशभूषा।

 

बिहार के लोक नाट्य (Folk Drama of Bihar)

1. जट-जाटिन – प्रत्येक वर्ष सावन से लगभग कार्तिक माह की पूर्णिमा तक केवल अविवाहितों द्वारा अभिनीत इस लोकनाट्य में जट-जाटिन के वैवाहिक जीवन को प्रदर्शित किया जाता है।

2. सामा-चकेवा – प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णमासी तक अभिनीत इस लोक नाट्य में पात्रों को मिट्टी द्वारा बनाया जाता है, लेकिन उनका अभिनय बालिकाओं द्वारा किया जाता है। इस अभिनय में सामा अर्थात श्यामा तथा चकेवा की भूमिका निभायी जाती है। इस लोक नाट्य में गाए जाने वाले गीतों में प्रश्नोत्तर के माध्यम से विषयवस्तु प्रस्तुत की जाती है।

3. बिदेसिया – इस लोक नाट्य में भोजपुर क्षेत्र के अत्यन्त लोकप्रिय ‘लौंडा नाच’ के साथ ही आल्हा, पचड़ा, बारहमासा, पूरबी, गोंड, नेटुआ, पंवड़िया आदि का प्रभाव होता है। नाटक का प्रारम्भ मंगलाचरण से होता है। नाटक में महिला पात्रों की भूमिका भी पुरुष कलाकारों द्वारा की जाती है।

4. भकुली बंका – प्रत्येक वर्ष सावन से कार्तिक माह तक आयोजित किए जाने वाले इस लोक नाट्य में जट-जाटिन द्वारा नृत्य किया जाता है।

5. डोकमच –  यह पारिवारिक उत्सवों से जुड़ा एक लोक नाट्य है। इस घरेलू लोकनाट्य को मुख्यतः घर-आंगन परिसर में देर रात्रि में महिलाओं द्वारा आयोजित किया जाता हैं। इसमें हास-परिहास के साथ ही अश्लील हाव-भाव का प्रदर्शन भी किया जाता है।

6. किरतनिया – यह एक भक्तिपूर्ण लोक नाट्य है, जिसमें भगवान श्रीकष्ण की लीलाओं का वर्णन भक्ति-गीतों (कीर्तन) के साथ भाव का प्रदर्शन करके किया जाता है।

 

 

बिहार की प्रमुख नाट्य संस्था एवं नाट्य संगठन:-

स्थान  :    नाट्य संस्था एवं संगठन

 

1. पटना :-    रुपाक्षर, कला-निकुंज, कला-त्रिवेणी, भंगिमा, प्रयास, अर्पण, अनामिका, प्रांगण, सृर्जना, माध्यम, बिहार आर्ट थियेटर, कला-संगम, भारतीय जन-नाट्य संघ आदि।

2. बेगूसराय     :-    नाट्य परिषद्, सरस्वती कला मंदिर, आदि।

3. भागलपुर :-   सर्जना, सागर नाट्य परिषद्, दिशा, प्रेम आर्ट, आदर्श नाट्य कला केंद्र, अभिनय कला मंदिर आदि।

4. खगोल :-    भूमिका, दर्पण कला केंद्र, सूत्रधार, थियेटरेशिया, मंथन कला परिषद् आदि।

5. आरा :-       कामायनी, यवनिका, भोजपुर मंच, युवानीति, नटी, नवोदय संघ आदि।

6. छपरा :-     मयूर कला केंद्र, शिवम सांस्कृतिक मंच, हिन्द कला केंद्र, इंद्रजाल, मनोरमा सांस्कृतिक दल आदि।

7. औरंगाबाद    :- नाट्य भारती, ऐक्टर्स ग्रुप आदि।

8. गया :-      कला-निधि, शबनम आस, ललित कला मंच, नाट्य स्तुति आदि।

9. दानापुर :-        बहुरुपिया, बहुरंग आदि।

10. सासाराम    :- जनचेतना

11. बक्सर :-   नवरंग कला मंचा

12. बिहिया :-   भारत नाट्य परिषद्

13. नवादा :-    शोभादी रंग संस्था

14. महनार :-   अनंत अभिनय कला परिषद

15. जमालपुर :- रॉबर्ट रिक्रिएशन क्लब, उत्सव

16. सुल्तानगंज :-        जनचेतना

17. मुजफ्फरपुर   :-    रंग

 

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