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संयुक्त राष्ट्र संघ
• द्वितीय विश्व युद्ध सितम्बर 1939 में आरम्भ हो गया और 12 जून, 1941 को हिटलर के विरुद्ध युद्ध करने वाले राष्ट्रों ने एक ऐसे विश्व के निर्माण की घोषणा की जो आक्रमण के भय से मुक्त हो तथा जिसमें सबको आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा प्राप्त हो।
• स्थापना वर्ष – 24 अक्तूबर 1945
• मुख्यालय – न्यू यॉर्क सिटी, संयुक्त राज्य अमेरिका
• सदस्य देश – शुरुआत में इसमें 50 सदस्य देश थे , वर्तमान में 194 सदस्य देश हैं।
• महासचिव – एंटोनियो गुटेरेश (António Guterres)
• संयुक्त राष्ट्र संघ की आधकारिक भाषा – रूसी, स्पेनिश, फ्रेंच, अरबी, चीनी और इंग्लिश
राष्ट्रसंघ के निर्माण में सहायक घोषणाएं :-
अटलांटिक घोषणा-पत्र (Atlantic Charter) –
• 14 अगस्त, 1941 को ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री चर्चिल व अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने घोषणा की कि वे किसी अन्य देश की भूमि पर अधिकार नहीं करेंगे, सभी राष्ट्रों की जनता को अपनी राष्ट्र-प्रणाली स्वयं निर्धारित करने का अधिकार देंगे, भय से मुक्ति दिलायेंगे, सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति का प्रयास करेंगे तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता देंगे।
• भय तथा आवश्यकता से मुक्ति और विश्वास तथा धर्म की स्वतन्त्रता मान्य होगी (Freedom from Fear, Want and Freedom of Belief and Worship)
संयुक्त राष्ट्रसंघ की घोषणा, जनवरी 1942 (U.N.O. Declaration) –
• 1 जनवरी, 1942 को संयुक्त राष्ट्र की घोषणा वाशिंगटन में 26 राष्ट्रों ने की जिसमें अटलांटिक चार्टर का समर्थन किया गया और संयुक्त राष्ट्रसंघ के निर्माण की आशा की गई।
• 1945 में 47 राष्ट्रों ने इस पर हस्ताक्षर किये।
• मास्को सम्मेलन 1943 द्वारा एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के निर्माण का विचार किया गया जिसमें छोटे-बड़े सभी राष्ट्रों की सार्वभौमिक समानता (Sovereign equality) को मान्यता देने की बात की गई।
• यही संगठन बाद में संयुक्त राष्ट्रसंघ के रूप में विकसित हुआ।
• इसके बाद ब्रेटन वुड्स सम्मेलन, जुलाई 1944 व वाशिंगटन में डम्बर्टन-ओक्स सम्मेलन व याल्टा सम्मेलन फरवरी 1945 को हुआ। परन्तु, 25 अप्रैल से 26 जून, 1945 तक के सानफ्रांसिस्को सम्मेलन द्वारा संयुक्त राष्ट्रसंघ का निर्माण किया गया।
• इसमें विश्व के 51 राष्ट्रों के 850 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 24 अक्तूबर, 1945 संयुक्त राष्ट्रसंघ को संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना हुई तथा संयुक्त राष्ट्रसंघ का चार्टर लागू हुआ।
10 जनवरी, 1946 को लन्दन के वेस्टमिन्स्टर हाल में इसका प्रथम अधिवेशन हुआ और न्यूयार्क (अमेरिका) में इसका प्रधान कार्यालय स्थापित किया गया।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के उद्देश्य :-
• संयुक्त राष्ट्रसंघ का मुख्य ध्येय संसार में युद्ध की समाप्ति करना और विश्व में शांति तथा व्यवस्था की स्थापना करना है।
• अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाना और विश्व कल्याण भी इसका अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य है। इसके उद्देश्यों का उल्लेख चार्टर में किया गया है।
इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं :-
• सदस्य राष्ट्रों में होने वाले पारस्परिक विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से हल करके युद्ध की संभावनाओं को समाप्त करना और संसार में शांति तथा व्यवस्था बनाए रखना।
• शांति भंग करने वाले प्रत्येक कार्य को दबाना।
• संसार के समस्त राज्यों में सहयोग और भाईचारे की भावना को जागृत करना।
• इस प्रकार के कार्यों को प्रोत्साहन देना जिनसे कि राज्यों में मित्रतापूर्ण व्यवहार बना रहे और आपसी विवाद का निपटारा परस्पर वार्ताओं द्वारा शांतिपूर्वक हो जाये।
• विश्व शांति तथा व्यवस्था बनाये रखने के अतिरिक्त आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाना तथा पिछड़े राष्ट्रों के विकास में सहायता करना भी संयुक्त राष्ट्रसंघ का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
• इसको यह कार्य सौंपा गया है कि मनुष्य के भौतिक अधिकारों की मान्यता में सहायता दे और इस बात को देखे कि धर्म, जाति, भाषा, लिंग आदि के आधार पर मनुष्य-मनुष्य के बीच अनावश्यक भेदभाव न किया जाये।
• मनुष्य को मनुष्य होने के नाते समान अधिकार प्रदान करना संघ का महत्वपूर्ण कार्य है।
• विभिन्न राष्ट्रों को एक सामान्य केन्द्र प्रदान करना, जहाँ पर एकत्रित होकर वे आपसी भेदभावों को निपटा सके।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के मूल सिद्धान्त (The Principle of the United Nations):-
अपने निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति करते समय संयुक्त राष्ट्रसंघ निम्नलिखित मूल सिद्धांतों पर आचरण करेगा:-
1. छोटे-बड़े राष्ट्रों को समानाधिकार प्रदान करना तथा प्रत्येक राज्य के सम्प्रभुत्व का समान आदर करना।
2. सदस्य राष्ट्र के चार्टर के सिद्धान्तों का पालन करना।
3. ऐसी व्यवस्था करना कि सभी राष्ट्र अपने विवाद शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाएँ।
4. चार्टर के प्रतिकूल आचरण करने वाले राज्य की कोई सहायता न करना।
5. संयुक्त राष्ट्रसंघ के उद्देश्यों की अवहेलना न करना।
6. किसी राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
7. जो राज्य संघ के सदस्य नहीं हैं उनसे भी शांति तथा व्यवस्था बनाये रखने वाले सिद्धान्तों का पालन कराना।
संयुक्त राष्ट्र संघ की संरचना (Structure of the United Nations):-
• संयुक्त राष्ट्रसंघ अपना कार्य अनेक अंगों के माध्यम से करता है।
• इसके अंगों के नाम और संगठन की व्यवस्था चार्टर में ही कर दी गई है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के 6 प्रमुख अंग है :-
1. महासभा (General Assembly)
2. सुरक्षा परिषद (Security Council)
3. आर्थिक और सामाजिक परिषद (Economic & Social Council)
4. प्रन्यास परिषद (Trusteeship Council)
5. अन्तराष्ट्रीय न्यायालय (International Court)
6. सचिवालय (Secretariat)
1. महासभा (General Assembly)
• यह एक लोकतान्त्रिक संस्था है क्योंकि इसमें सभी राज्यों का समान प्रतिनिधित्व होता है।
• यह एक प्रकार से विश्व संसद की तरह है।
• यह संयुक्त राष्ट्र का मुख्य विचार-विमर्श निकाय है जो मुक्त एवं उदार बातचीत के जरिये समस्याओं के समाधान ढूँढने का प्रयास करता है। यह विश्व का स्थायी मंच एवं बैठक कक्ष है।
• इसका गठन कुछ इस मान्यता पर आधारित है – “शब्दों से लड़ा जाने वाला युद्ध तलवारों से लड़े जाने वाले युद्ध से श्रेयस्कर है।”
• महासभा की अध्यक्षता एक महासचिव द्वारा की जाती है, जो सदस्य देशों एवं 21 उप-अध्यक्षों के द्वारा चुने जाते हैं।
• इसमें सामान्य मुद्दों पर फैसला लेने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरुरत होती है।
• सभा को संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र की परिधि में आने वाले तमाम मुद्दों पर बहस एवं अनुशंसा करने का अधिकार प्राप्त है।
• हालाँकि इसके फैसले को मानना सदस्य राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं है, तथापि उन फैसलों में विश्व जनमत की अभिव्यक्ति होती है।
• महासभा राष्ट्रीय संसद की तरह कानून का निर्माण नहीं करती है फिर भी संयुक्त राष्ट्र में छोटे-बड़े धनी-निर्धन और विभिन्न राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्था वाले देशों के प्रतिनिधियों को अपनी बात करने और वोट देने का अधिकार प्राप्त होता है।
महासभा में कार्यों को करने हेतु कई प्रकार की समितियाँ हैं –
1. निःशस्त्रीकरण एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा समिति
2. आर्थिक एवं वित्तीय समिति
सामाजिक, मानवीय एवं सांस्कृतिक समिति
3. राजनीतिक एवं औपनिवेशक स्वतंत्रता समिति
4. प्रशासनिक एवं आय-व्यय सम्बन्धी समिति
5. विधि समिति
• महासभा की बैठक प्रतिवर्ष सितम्बर माह से होती है। इसी बैठक में विभिन्न अध्यक्ष और कई उपाध्यक्षों का निर्वाचन होता है।
• अनुच्छेद 18 के अनुसार महासभा में किसी भी देश के 5 से अधिक प्रतिनिधि नहीं होंगे।
2. सुरक्षा परिषद (Security Council)
• संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के अनुसार शांति एवं सुरक्षा बहाल करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद् की होती है।
• इसकी बैठक कभी भी बुलाई जा सकती है।
• इसके फैसले का अनुपालन करना सभी राज्यों के लिए अनिवार्य है।
• इसमें 15 सदस्य देश शामिल होते हैं जिनमें से पाँच सदस्य देश – चीन, फ्रांस, सोवियत संघ, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका – स्थायी सदस्य हैं।
• शेष दस सदस्य देशों का चुनाव महासभा में स्थायी सदस्यों द्वारा किया जाता है। चयनित सदस्य देशों का कार्यकाल 2 वर्षों का होता है।
• ज्ञातव्य है कि कार्यप्रणाली से सम्बंधित प्रश्नों को छोड़कर प्रत्येक फैसले के लिए मतदान की आवश्यकता पड़ती है।
• अगर कोई भी स्थायी सदस्य अपना वोट देने से मना कर देता है तब इसे “वीटो” के नाम से जाना जाता है।
• परिषद् (Security Council) के समक्ष जब कभी किसी देश के अशांति और खतरे के मामले लाये जाते हैं तो अक्सर वह उस देश को पहले विविध पक्षों से शांतिपूर्ण हल ढूँढने हेतु प्रयास करने के लिए कहती है।
• परिषद् मध्यस्थता का मार्ग भी चुनती है। वह स्थिति की छानबीन कर उस पर रपट भेजने के लिए महासचिव से आग्रह भी कर सकती है।
• लड़ाई छिड़ जाने पर परिषद् युद्ध विराम की कोशिश करती है।
• वह अशांत क्षेत्र में तनाव कम करने एवं विरोधी सैनिक बलों को दूर रखने के लिए शांति सैनिकों की टुकड़ियाँ भी भेज सकती है। महासभा के विपरीत इसके फैसले बाध्यकारी होते हैं।
• आर्थिक प्रतिबंध लगाकर अथवा सामूहिक सैन्य कार्यवाही का आदेश देकर अपने फैसले को लागू करवाने का अधिकार भी इसे प्राप्त है।
• उदाहरणस्वरूप इसने ऐसा कोरियाई संकट (1950) तथा ईराक कुवैत संकट (1950-51) के दौरान किया था।
इनके कार्य:-
1. विश्व में शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना।
2. हथियारों की तस्करी को रोकना।
3. आक्रमणकर्ता राज्य के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही करना।
4. आक्रमण को रोकने या बंद करने के लिए राज्यों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना।
इनकी संरचना :-
सुरक्षा परिषद् (Security Council) के वर्तमान समय में 15 सदस्य देश हैं जिसमें 5 स्थायी और 10 अस्थायी हैं।
वर्ष 1963 में चार्टर संशोधन किया गया और अस्थायी सदस्यों की संख्या 6 से बढ़ाकर 10 कर दी गई।
अस्थायी सदस्य विश्व के विभिन्न भागों से लिए जाते हैं जिसके अनुपात निम्नलिखित हैं –
1. 5 सदस्य अफ्रीका, एशिया से
2. 2 सदस्य लैटिन अमेरिका से
3. 2 सदस्य पश्चिमी देशों से
4. 1 सदस्य पूर्वी यूरोप से
• चार्टर के अनुच्छेद 27 में मतदान का प्रावधान दिया गया है। सुरक्षा परिषद् में “दोहरे वीटो का प्रावधान” है।
• पहले वीटो का प्रयोग सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य किसी मुद्दे को साधारण मामलों से अलग करने के लिए करते हैं।
• दूसरी बार वीटो का प्रयोग उस मुद्दे को रोकने के लिए किया जाता है।
• परिषद् के अस्थायी सदस्य का निर्वाचन महासभा में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों द्वारा किया जाता है।
• विदित हो कि 1991 में राष्ट्रवादी चीन (ताईवान) को स्थायी सदस्यता से निकालकर जनवादी चीन को स्थायी सदस्य बना दिया गया था।
• इसकी बैठक वर्ष-भर चलती रहती है।
• सुरक्षा परिषद् में किसी भी कार्यवाही के लिए 9 सदस्यों की आवश्यकता होती है।
• किसी भी एक सदस्य की अनुपस्थिति में वीटो अधिकार का प्रयोग स्थायी सदस्यों द्वारा नहीं किया जा सकता।
3. आर्थिक और सामाजिक परिषद (Economic & Social Council)
• आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् (Economic and Social Council) के 54 सदस्य हैं जिसमें 18 सदस्य 3 वर्षों के लिए निर्वाचित होते हैं।
• सामान्यतः इसकी बैठक साल में दो बार होती हैं।
• यह संयुक्त राज्य और उसकी विशेषज्ञ एजेंसियों, जैसे – अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), खाद्य एवं श्रमिक संघटन (FAO), यूनेस्को (UNESCO), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के कार्यों का समन्वयन करती है।
इनके कार्य :-
1. विकासशील देशों में आर्थिक गतिविधियों में संवर्द्धन करना।
2. विकास और मानवीय आवश्यकताओं की सहायता-प्राप्त परियोजनाओं का प्रबंधन करना।
3. मानवाधिकार के अनुपालन को मजबूत करना।
4 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लाभों का विस्तार करना।
5.बेहतर आवास, परिवार नियोजन तथा अपराध-निस्तारण के क्षेत्र में विश्व सहयोग को बहाल करना।
6. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् के अधीन अनेक आयोगों की स्थापना की गई है जिसमें सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (Millennium Development Goals – MDGs) को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना प्रमुख है।
4. प्रन्यास परिषद (Trusteeship Council)
प्रन्यास पद्धति तीन प्रकार के क्षेत्रों में सम्बंधित हैं –
1. प्रथम विश्व युद्ध के उपरान्त राष्ट्र संघ द्वारा स्थापित समाज्ञा के अधीन देश,
2. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शत्रु राष्ट्रों से छीने गये प्रदेश
3. उपनिवेशवादी देशों द्वारा स्वेच्छा से इस व्यवस्था के अधीनस्थ क्षेत्र।
प्रन्यास परिषद् का गठन निम्न तीन प्रकार के सदस्यों से होता है :-
1. प्रन्यास क्षेत्रों का प्रशासन करने वाले सदस्य (ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, अमेरिका, ब्रिटेन)
2. सुरक्षा परिषद् के ऐसे स्थायी सदस्य, जो किसी प्रन्यास क्षेत्र का प्रशासन नहीं करते हैं (फ्रांस, चीन, रूस)।
3. महासभा द्वारा 3 वर्ष के लिए निर्वाचित ऐसे सदस्य,जिनकी संख्या प्रन्यास क्षेत्रों के प्रशासनकर्ता व गैर प्रशासनकर्ता सदस्यों के बीच समान विभाजन के लिए पर्याप्त हो। ऐसे सदस्यों की संख्या 5 है। इस प्रकार प्रन्यास परिषद् के कुल 12 सदस्य हैं।
5. अन्तराष्ट्रीय न्यायालय (International Court)
• अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) का मुख्यालय हॉलैंड शहर के द हेग में स्थित है।
• अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में वैधानिक विवादों के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना की गई है।
• अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय परामर्श माना जाता है एवं इसके द्वारा दिए गये निर्णय को बाध्यकारी रूप से लागू करने की शक्ति सुरक्षा परिषद् के पास है।
• अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के द्वारा राज्यों के बीच उप्तन्न विवादों को सुलझाया जाता है, जैसे – सीमा विवाद, जल विवाद आदि।
• इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न एजेंसियाँ अंतर्राष्ट्रीय विवाद के मुद्दों पर इससे परामर्श ले सकती हैं।
इनकी संरचना :-
1. न्यायालय की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है।
2. किसी एक राज्य के एक से अधिक नागरिक एक साथ न्यायाधीश नहीं हो सकते।
3. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं जिनका कार्यकाल 9 वर्षों का होता है।
6. सचिवालय (Secretariat)
• संयुक्त राष्ट्र सविचालय संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रशासनिक संस्था है जिसका कार्य संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों का प्रशासनिक प्रबंध करना है।
• संयुक्त राष्ट्र संघ का महासचिव, संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations – UN) का प्रशासनिक प्रधान होता है और महासचिव की नियुक्ति महासभा में उपस्थित और मतदान करने वाले दो तिहाई सदस्यों द्वारा होती है।
• चार्टर में महासचिव के कार्यकाल का कोई प्रावधान नहीं है परन्तु महासभा के द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर महासचिव की नियुक्ति 5 वर्षों के लिए होती है और वह दोबारा भी नियुक्त किया जा सकता है।
• संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की भूमिका सचिवालय के प्रधान तथा कूटनीतिज्ञ के रूप में देखी जाती है।
संयुक्त राष्ट्र और भारत (United Nations and India)
• भारत, संयुक्त राष्ट्र के उन प्रारंभिक सदस्यों में शामिल था जिन्होंने 01 जनवरी, 1942 को वाशिंग्टन में संयुक्त राष्ट्र घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे तथा 25 अप्रैल से 26 जून, 1945 तक सेन फ्रांसिस्को में ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन सम्मेलन में भी भाग लिया था।
• संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य के रूप में भारत, संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धांतों का पुरजोर समर्थन करता है और चार्टर के उद्देश्यों को लागू करने तथा संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट कार्यक्रमों और एजेंसियों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ से संबंधित अन्य संस्थाएँ (Other organizations related to the United Nations)
• संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization)
• संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (United Nations Food and Agriculture Organization)
• अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण (International Atomic Energy Agency)
• अन्तर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन (International Civil Aviation Organization)
• अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (International Agricultural Development Fund)
• अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (International Labor Union)
• अंतर्राष्ट्रीय सागरीय संगठन (International Ocean Organization)
• अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund)
• अन्तर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International telecommunications association)
• संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (United Nations Industrial Development Organisation)
• वैश्विक डाक संघ (Universal Postal Union – UPU)
• विश्व बैंक (World Bank)
• विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization)
• विश्व मौसम संगठन (World Meteorological Organization)
• विश्व पर्यटन संगठन (World Tourism Organization)
• संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संस्था (United Nations Industrial Development Organization)
• व्यापार तथा विकास हेतू संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन (United Nations Conference on Trade and Development)
• व्यापार तथा सीमा शुल्क पर सामान्य समझौता (General agreement on Trade and Customs)
• विश्व बौद्धिक संपत्ति संस्था (World Intellectual Property Firm)
• संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme)
• संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या गतिविधियों से सम्बद्ध कोष (United Nations Population Activities Affiliate Fund)।
संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ पर यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन
• संयुक्त राष्ट्र संघ की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर ‘संयुक्त राष्ट्र ‘यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन’ (UN Draft Declaration) के पूरा होने की उम्मीद है, परंतु इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार प्रक्रिया के धीमे होने की संभावना भी है।
• संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर करने की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर ‘यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन’ पर हस्ताक्षर किये जाने थे लेकिन घोषणा में देरी हुई क्योंकि सभी सदस्य देश अभी तक किसी एक समझौते तक नहीं पहुंच सके।
• संयुक्त राष्ट्र यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन, संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सिद्धांतों के पुनर्मूल्यांकन का एक शक्तिशाली उपकरण है।
• 75 वर्ष पूर्व द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में ‘नवीन विश्व व्यवस्था’ (New World Order) की दिशा में 24 अक्तूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी।
यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन:-
• यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन में 12 ऐसी प्रतिबद्धताओं को निर्धारित किया गया है;
• हम किसी को पीछे नहीं छोड़ेंगे;
• हम अपने ग्रह की रक्षा करेंगे;
• हम शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कार्य करेंगे;
• हम अंतर्राष्ट्रीय नियमों और मानदंडों का पालन करेंगे;
• हम महिलाओं और लड़कियों को केंद्र में रखेंगे;
• हम विश्वास पैदा करेंगे;
• हम सभी के लाभ के लिये नवीन प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देंगे;
• हम संयुक्त राष्ट्र को आवश्यक सुधार करेंगे;
• हम वित्तपोषण सुनिश्चित करेंगे;
• हम साझेदारी को बढ़ावा देंगे;
• हम युवाओं को सुनेंगे तथा उनके साथ कार्य करेंगे;
• हम भविष्य में अधिक तैयार रहेंगे।
संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार:-
संयुक्त राष्ट्र संघ मसौदे के माध्यम के संयुक्त राष्ट्र के तीन प्रमुख अंगों के सुधार की मांग की जा रही है:
1. सुरक्षा परिषद (Security Council)
2. महासभा (General Assembly)
3. आर्थिक और सामाजिक परिषद (Economic and Social Council)।
महासभा द्वारा सुधारों को पहल:-
वर्ष 1992 का प्रस्ताव:-
वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में एक प्रस्ताव को स्वीकृत किया गया।
प्रस्ताव में तीन मुख्य शिकायतें उल्लिखित है:-
1. सुरक्षा परिषद् अब राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधितत्त्व नहीं करती।
2. इसके निर्णयों पर पश्चिमी मूल्यों और हितों का प्रभाव होता है।
3. सुरक्षा परिषद् में समान प्रतिनिधित्त्व का अभाव है।
वर्ष 2005 का संकल्प:-
• सितंबर, 2005 में महासभा द्वारा एक संकल्प के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ की सैन्य शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के प्रति मज़बूत इच्छा व्यक्त की गई ।
• यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यह संकल्प इराक युद्ध (वर्ष 2003) के दौरान संयुक्त राष्ट्र द्वरा लिये गए एकतरफा निर्णयों की पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग के बाद अपनाया गया था।
वर्ष 2008 का प्रस्ताव:-
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सितंबर 2008 को होने वाली अपनी पूर्ण बैठक (Plenary Meeting) में विगत प्रस्तावों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्य संख्या में वृद्धि के सवाल पर अंतर-सरकारी वार्ता को आगे बढ़ाने का निर्णय किया गया।
सुधारों की आवश्यकता:-
अपर्याप्त प्रतिनिधितत्त्व:-
• संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख निकायों जैसे सुरक्षा परिषद आदि में विकासशील या उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व नहीं है। विकासशील देशों में केवल चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है।
सदस्यों की संख्या में वृद्धि:-
• संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की संख्या में इसकी स्थापना के बाद से लगातार विस्तार देखने को मिला है तथा यह वर्तमान में 193 तक बढ़ गई है, फिर भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार नहीं किया गया है।
एक तरफा सैन्य-अभियान:-
संयुक्त राष्ट्र संघ के सैन्य मिशनों में पश्चिमी देशों का प्रभुत्त्व देखने को मिलता है, अत: इस संबंध में अधिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाए जाने की आवश्यकता है।
भारत सरकार की नवीन पहल:-
• हाल ही में भारत वर्ष 2021-22 के लिये ‘सुरक्षा परिषद का गैर-स्थायी सदस्य’ चुना गया है। इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की दिशा में एक प्रमुख कदम के रूप में देखा जा रहा है।
• हाल ही में 'संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद' (United Nations Economic and Social Council- ECOSOC) की ‘उच्च-स्तरीय आभासी बैठक’ में भारतीय प्रधानमंत्री ने ‘पोस्ट COVID-19 पीरियड’ में बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।
• यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इस आभासी बैठक की थीम; ‘COVID-19 के बाद बहुपक्षवाद: 75वीं वर्षगांठ पर हमें किस तरह के संयुक्त राष्ट्र की ज़रूरत है’ ही अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में सुधारों पर केंद्रित थी।
अतः संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार पर बहस काफी समय से चल रही है किंतु अभी भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और स्थायी सदस्यों के बीच आम सहमति का न होना चिंता का विषय है।
कथनों को मूर्त रूप देने और संयुक्त राष्ट्र की बहुसंख्यक सदस्यता की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लेने का यह उपयुक्त समय है।
स्रोत: द हिंदू
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