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बिहार की मिट्टी (pt facts)

By - Admin

At - 2021-10-22 13:00:15

बिहार की मिट्टी

• 15 नवंबर 2000 को बिहार से झारखंड अलग हो जाने के बाद बिहार मुख्य रूप से कृषि प्रधान राज्य हो गया है। इसके साथ ही बिहार की कृषि  को कई चीजें (जैसे जलवायु तापमान आद्रता वर्षा आदि )के साथ-साथ मिट्टी भी प्रभावित करती है। 

 

 बिहार की मिट्टी की  विशेषताएं, जोकि  इस प्रकार है :-

 1. तराई मिट्टी:-

• यह मिट्टी नेपाल से सटा हुआ भाग पश्चिम चंपारण से किशनगंज तक नेपाल के तराई क्षेत्र में पाई जाने वाली मिट्टी है ।  इस अम्लीय मिट्टी का रंग हल्का भूरा या पीला है तथा यह गन्ना धान और पटसन की खेती के लिए अनुकूल है।

 

2. पर्वतपादीय मिट्टी :-

• पर्वतपादीय मिट्टी पश्चिम चंपारण उत्तर पश्चिमी भाग में पाई जाती है।
यहां आधारभूत चट्टानों के ऊपर अपरदित चट्टानों के छोटे बड़े टुकड़े मिलते हैं।भारी वर्षा और नमी की अधिकता के कारण कई कई दलदली मिट्टी का भी विकास हो गया है। वन क्षेत्र अधिक होने के कारण या भूरे रंग की अम्लीय मिट्टी है।

3. गंगा का उत्तरी मैदान :-

• यह सर्वविदित है कि गंगा नदी बिहार को दो भागों में बांटती है जिसमें उत्तरी बिहार को उतरी गंगा का मैदान कहते हैं, इसका अन्य नाम कई अत्यधिक हिमालय नदियां होने के कारण इसे बार का मैदान भी कहा जाता है क्योंकि प्रत्येक वर्ष उत्तरी बिहार में बाढ़ देखने को मिलता है।

• बिहार में जलोढ़  मिट्टी की प्रधानता है क्योंकि यहां का 90% क्षेत्र  जलोढ़ मिट्टी का बना है।
• इसके अलावे गंगा के उत्तरी मैदान में भाबर का भी क्षेत्र है या पश्चिमी चंपारण के उत्तर पश्चिमी भाग में पाई जाती है।

4. पुरानी जलोढ़ मिट्टी या बांगर मिट्टी :-

• इस मिट्टी का विस्तार पूर्णिया और सहरसा जिले के कोसी क्षेत्र में अधिक है तथा दरभंगा और मुजफ्फरपुर के बाद चंपारण के उत्तर पश्चिमी भाग में संकीर्ण होती हुई बांगर की पट्टी समाप्त होती है।
• इस मिट्टी में चूना और क्षारीय तत्व नहीं है। यह मिट्टी हल्के भूरे रंग की होती है कुछ क्षेत्रों में इसे करैल या कैवाल  मिट्टी भी कहा जाता है। सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होने पर इस मिट्टी में धान जूट और गेहूं की अच्छी फसलें होती है।
• करैल कैवाल मिट्टी का क्षेत्र गंगा के दक्षिणी मैदान भाग में शाहबाद से लेकर गया पटना मुंगेर होता हुआ भागलपुर तक भी विस्तृत है.।

 

5. बल सुंदरी मिट्टी :-

• बिहार के उत्तरी मैदान में भांगर क्षेत्र के बाद बल सुंदरी मिट्टी का क्षेत्र है या मिट्टी गहरे भूरे रंग की है तथा इसकी प्रकृति क्षारीय है.
• पूर्णिया के दक्षिणी भाग से प्रारंभ होकर सहरसा दरभंगा और मुजफ्फरपुर के दक्षिणी भाग को घेरता हुआ संपूर्ण सारण जिले तथा चंपारण के शेष दक्षिणी पश्चिमी भाग में विस्तृत इस मिट्टी को पुरानी जलोढ़ भी कहते हैं,जिसमें चूने के तत्वों की प्रधानता 30% से अधिक है। यह क्षेत्र आम लीची और केले के बागों के लिए प्रसिद्ध है।

6. खादर मिट्टी:-

• यह नवीन जलोढ़ मिट्टी है जिसका विकास बाढ़ के मैदान में हुआ है,बाढ़ द्वारा लाई गई मिट्टी के कारण इसमें उर्वरता बढ़ती जाती है।
• यह मिट्टी गंगा के घाटी गंडक और बूढ़ी गंडक की निचली घाटी कोसी और महानंदा की घाटी में पाई जाती है या गहरे भूरे रंग की होती है तथा इसमें कहीं बालू की मात्रा तो कहीं चीका की मात्रा अधिक मिलती है।

7. टाल की मिट्टी :-

• यह मिट्टी बिहार के दक्षिणी भाग में पाई जाती है. यह गंगा मैदान के दक्षिणी भाग आठ से 10 किलोमीटर की चोरी पट्टी में धुसर रंग की मिट्टी पाई जाती है।

धूसर रंग की मिट्टी को टाल मिट्टी कहते हैं,इस मिट्टी का निर्माण वर्षा ऋतु के बाद आई बाढ़ के द्वारा बारीक वह मोटे कणों वाली मिट्टी के निक्षेपन से होता है, यह अत्यधिक उर्वर मिट्टी है,तथा जल सूखने के बाद इस भूमि पर रबी  की अच्छी फसल होती है।

 

8. अभ्रक मिट्टी :-

 अभ्रक मिट्टी वास्तव में एक पहाड़ी मिट्टी है, इसमें अभ्रक की प्रधानता है बिहार के नवादा जिले में रजौली प्रखंड में यह मिट्टी पाई जाती है, यह अनूपजाऊ मिट्टी है, लेकिन समतल क्षेत्रों में मोटे अनाजों मक्के आधी खेती होती है।

9. बलथर मिट्टी :-

बिहार के मैदानी भाग में गंगा के मैदान की दक्षिणी सीमा पर जहां छोटा नागपुर का पहाड़ी प्रारंभ होता है बलथर मिट्टी का संकीर्ण क्षेत्र स्थित है।
इसमें रेत और कंकर की बहुलता रहती है इस मिट्टी का रंग पीला और लाल है …तथा इस मिट्टी में होने वाली प्रधान फसलें मक्का अरहर खुलती चना ज्वार बाजरा है या मिट्टी कैमूर पठार और गंगा सोन दोआब  संधि स्थल पर भी पाई जाती है।पश्चिम में कैमूर पठार से पूर्व में राजमहल की पहाड़ियों तक इस बलथर मिट्टी का संकीर्ण क्षेत्र स्थित है, इसमें लोहा का अंश अधिक होने के कारण इसका रंग लाल होता है तथा जल संग्रह करने की क्षमता कम होती है।

10. लाल बलुई मिट्टी :-

 यह पठारी मिट्टी है जो कैमूर एवं रोहतास के पठारी भाग में मिलती है। इसमें बालू की मात्रा अधिक होती है तथा इसकी उर्वरा शक्ति बहुत कम है इस मिट्टी में मोटे अनाज उगाए जाते हैं।

 द्वारा - संतोष सर ( गुरुमंत्रा सिविल क्लास फैकल्टी)

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