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बिहार में सेन वंश

By - Admin

At - 2021-10-23 07:32:01

बिहार में सेन वंश

 

  • पाल वंश के पतन के बाद सामंत सेन के नेतृत्व में सेन वंश की स्थापना हुई। 
  • सामंत सेन पालों के अधीन एक सामंत था। हेमंत सेन के समय सेन वंश पूरी तरह से स्वतंत्र हो गया। 
  •  विजय सेन, वल्लाल सेन, लक्ष्मण सेन आदि शासकों ने बिहार एवं बंगाल क्षेत्र पर शासन किया।
  • विजय सेन इस वंश का एक शक्तिशाली शासक था। विजय सेन की जानकारी देवपाड़ा (बंगाल) ताम्रपत्र लेख से भी मिलती है। 
  • विजय सेन ने कर्णाट वंश के शासक नान्यदेव को पराजित किया था। 
  • वह शैव धर्म का अनुयायी था। उसने ‘दानसागर’ और ‘अद्भुतसागर’ नामक दो पुस्तकों की रचना की थी। लक्ष्मण सेन इस वंश का अंतिम शासक था।
  • ‘गीतगोविंद’ के लेखक जयदेव लक्ष्मण सेन के दरबार में रहते थे। लक्ष्मण वैष्णव धर्म का अनुयायी था। सेन शासक ने अपनी राजधानी नादिया और लखनौती में स्थापित की थी। 
  • सेन शासकों ने गया तक के क्षेत्र को जीत लिया था, जिसमें गहड़वाल शासक गोविंदपाल से संघर्ष करना पड़ा था।
  •  जिस समय बिहार-बंगाल क्षेत्र में लक्ष्मण सेन का शासन था, उसी समय तुर्क मुहम्मद गोरी का सेनापति बख्तियार खिलजी का सैन्य अभियान पूर्वी भारत में बिहार-बंगाल तक चल रहा था। 
  • इसमें बख्यितार खिलजी ने लक्ष्मण सेन को पराजित कर इस क्षेत्र को तुर्कों के अधीन ला दिया था।

प्रमुख बिंदु:-

1. सेन वंश के संस्थापक – सामंत सेन
2. शक्तिशाली शासक – विजय सेन
3. अंतिम शासक – लक्ष्मण सेन 
4. राजधानी – नादिया और लखनौती
विजय सेन की जानकारी देवपाड़ा (बंगाल) ताम्रपत्र लेख से भी मिलती है।
5 . विजय सेन ने ‘दानसागर’ और ‘अद्भुतसागर’ नामक दो पुस्तकों की रचना की थी।
6. ‘गीतगोविंद’ के लेखक जयदेव लक्ष्मण सेन के दरबार में रहते थे।
7. लक्ष्मण वैष्णव धर्म का अनुयायी था और विजय सेन शैव धर्म का।
8. बख्यितार खिलजी ने लक्ष्मण सेन को पराजित कर तुर्कों के अधीन ला दिया था।

 


सेन वंश

  • इस वंश के राजा, जो अपने को कर्णाट क्षत्रिय, ब्रह्म क्षत्रिय और क्षत्रिय मानते हैं, अपनी उत्पत्ति पौराणिक नायकों से मानते हैं, जो दक्षिणापथ या दक्षिण के शासक माने जाते हैं। 
  • 9वीं, 10वीं और 11वीं शताब्दी में मैसूर राज्य के धारवाड़ जिले में कुछ जैन उपदेशक रहते थे, जो सेन वंश से संबंधित थे। 
  • यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि बंगाल के सेनों का इन जैन उपदेशकों के परिवार से कई संबंध था। 
  • फिर भी इस बात पर विश्वास करने के लिए समुचित प्रमाण है कि बंगाल के सेनों का मूल वासस्थान दक्षिण था। 
  • देवपाल के समय से पाल सम्राटों  ने विदेशी साहसी वीरों को अधिकारी पदों पर नियुक्त किया।
  • उनमें से कुछ कर्णाटक देश से संबंध रखते थे। 
  • कालांतर में ये अधिकारी, जो दक्षिण से आए थे, शासक बन गए और स्वयं को राजपुत्र कहने लगे।
  • सेन राजवंश भारत का एक राजवंश का नाम था, जिसने १२वीं शताब्दी के मध्य से बंगाल पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। 
  • सेन राजवंश ने बंगाल पर 160 वर्ष राज किया। अपने चरमोत्कर्ष के समय भारतीय महाद्वीप का पूर्वोत्तर क्षेत्र इस साम्राज्य के अन्तर्गत आता था। 
  • इस वंश का मूलस्थान कर्णाटक था। इस काल में कई मन्दिर बने। धारणा है कि बल्लाल सेन ने ढाकेश्वरी मन्दिर बनवाया। 
  • कवि जयदेव  (गीतगोविन्द का रचयिता) लक्ष्मण सेन के पञ्चरत्न थे।
  • राजपुत्रों के इस परिवार में बंगाल के सेन राजवंश का प्रथम शासक सामन्त सेन उत्पन्न हुआ था। 
  • सामन्तसेन ने दक्षिण के एक शासक, संभवतः द्रविड़ देश के राजेन्द्र चोल, को परास्त कर अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि की।
  •  सामन्तसेन का पौत्र विजयसेन ही अपने परिवार की प्रतिष्ठा को स्थापित करने वाला था। 
  • उसने वंग के वर्मन शासन का अन्त किया, विक्रमपुर में अपनी राजधानी स्थापित की, पालवंश के मदनपाल को अपदस्थ किया और गौड़ पर अधिकार कर लिया, नान्यदेव को हराकर मिथिला पर अधिकार किया, गहड़वालों के विरुद्ध गंगा के मार्ग से जलसेना द्वारा आक्रमण किया, आसाम पर आक्रमण किया, उड़ीसा पर धावा बोला और कलिंग के शासक अनंत वर्मन चोड़गंग के पुत्र राघव को परास्त किया। 
  • उसने वारेंद्री में एक प्रद्युम्नेश्वर शिव का मंदिर बनवाया। विजयसेन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी वल्लाल सेन विद्वान तथा समाज सुधारक था। 
  •  बल्लालसेन के बेटे और उत्तराधिकारी लक्ष्मण सेन ने काशी के गहड़वाल और आसाम पर सफल आक्रमण किए, किंतु सन् 1202 के लगभग इसे पश्चिम और उत्तर बंगाल मुहम्मद खलजी को समर्पित करने पड़े।
  •  कुछ वर्ष तक यह वंग में राज्य करता रहा। इसके उत्तराधिकारियों ने वहाँ 13वीं शताब्दी के मध्य तक राज्य किया, तत्पश्चात् देववंश ने देश पर सार्वभौम अधिकार कर लिया। सेन सम्राट विद्या के प्रतिपोषक थे।

 

 

सेन वंश के शासक:-

1. हेमन्त सेन (1070 AD)
2. विजय सेन (1096-1159 AD)
3. बल्लाल सेन (1159 - 1179 AD)
4. लक्ष्मण सेन (1179 - 1206 AD)
5. विश्वरूप सेन (1206 - 1225 AD)
6.केशव सेन (1225-1230 AD)

विजयसेन

  • हेमंतसेन के पुत्र विजयसेन ने 60 वर्ष के अपने लंबे शासनकाल में सेन परिवार को लोक प्रसिद्धी प्रदान की। अपने जीवन की शुरूआत एक साधारण सरदार के रूप में कर विजयसेन ने लगभग समस्त बंगाल को जीता तथा इस परिवार की महानता की नींव डाली।
  • विजयसेन ने परमेश्वर, परमभट्टारक, महाराजाधिराज जैसी कई अन्य शाही उपाधियां धारण की। 
  • उसकी दो राजधानियां थी – एक  पश्चिमी बंगाल में विजयपुरी तथा दूसरी, बांगलादेश में विक्रमपुरा। 
  • प्रसिद्ध कवि श्री हर्ष ने उसकी स्मृति में विजय प्रशस्ति की रचना की।

बल्लाल सेन

  • विजयसेन का उत्तराधिकारी उसका पुत्र बल्लालसेन था।
  • उसका शासनकाल सामान्य तथा शांतिपूर्ण रहा तथा उसने अपने पिता से प्राप्त राज्य क्षेत्र को ज्यों का त्यों बचाए रखा। 
  • बल्लालसेन महान विद्वान था। उसने चार पुस्तकें लिखी। जिनमें से दो ही अभी प्राप्त हैं। ये हैं- दानसागर तथा अद्भुत सागर ।
  • पहली पुस्तक शकुन-अपशकुन पर है, जबकि दूसरी पुस्तक का विषय खगोल विषय है।

लक्ष्मण सेन

  • लक्ष्मण सेन 60 वर्ष की उम्र में 1179 ई. में अपने पिता का उत्तराधिकारी बना। 
  • अपने शासन काल के अंत में उसे कई समस्याओं का सामना करना पङा। 
  • आंतरिक विद्रोहों से कमजोर हुई सेन शक्ति को बख्तियार खिलजी के आक्रमण ने ध्वस्त कर दिया। 
  • तबकात-इ-नासिटी में बख्तियार खिलजी के आक्रमण का विस्तृत विवरण मिलता है।
  • लक्ष्मण सेन का शासनकाल साहित्यिक गतिविधियों के संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण माना जाता है। वह धर्मपरायण वैष्णव था।
  • गीत गोविंद के लेखक तथा बंगाल के प्रसिद्ध वैष्णव कवि जयदेव  उसके दरबार में रहते थे। 
  • पवनदूत के लेखक धोयी तथा आर्यशप्त के लेखक गोवर्धन अन्य प्रसिद्ध कवि थे, जो उसके दरबार में थे। स्वयं लक्ष्मण सेन ने अपने पिता द्वारा शुरू किये गये अद्भुत सागर नामक पुस्तक को पूर्ण किया।
  •  तबकात-ई-नासिटी के अनुसार लक्ष्मण सेन के वंशज बंगाल के कुछ हिस्सों पर कुछ दिन तक शासन करते रहे।

 

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