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बिहार की प्रशासनिक व्यवस्था

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-07-31 15:59:39

लोक प्रशासन


प्रशासन का वह भाग जो सामान्य जनता के लाभ के लिये होता है, लोकप्रशासन कहलाता है।   
 लोकप्रशासन का संबंध सामान्य नीतियों अथवा सार्वजनिक नीतियों से होता है।

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एक अनुशासन के रूप में इसका अर्थ वह जनसेवा है जिसे 'सरकार' कहे जाने वाले व्यक्तियों का एक संगठन करता है।
किसी भी देश में लोक प्रशासन के उद्देश्य वहां की संस्थाओं, प्रक्रियाओं, कार्मिक-राजनीतिक व्यवस्था की संरचनाओं तथा उस देश के संविधान में व्यक्त शासन के सिद्धातों पर निर्भर होते हैं। 
प्रतिनिधित्व, उत्तरदायित्व, औचित्य और समता की दृष्टि से शासन का स्वरूप महत्व रखता है, लेकिन सरकार एक अच्छे प्रशासन के माध्यम से इन्हें साकार करने का प्रयास करती है।

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बिहार की प्रशासनिक व्यवस्था


बिहार राज्य का सन 1912 में उदय होने के बाद राज्य में प्रशासन की स्वतंत्र व्यवस्था स्थापित की गई। 1936 में उड़ीसा तथा 2000 में झारखंड विभाजन के पश्चात् वर्तमान बिहार की प्रशासनिक रूपरेखा नए रूप में सामने आई है।

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राज्य का प्रशासन चलाने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था को पाँच स्तरों पर वर्गीकृत किया गया है, जो राज्य में सरकारी नीतियों, नियमों और कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करता है। पाँच स्तरों पर वर्गीकृत प्रशासनिक व्यवस्था में प्रमंडलीय प्रशासन, जिला प्रशासन, अनुमंडल प्रशासन, प्रखंड स्तरीय प्रशासन एवं ग्राम पंचायत स्तरीय प्रशासन सम्मिलित हैं।

 

1. प्रमंडलीय प्रशासन (Regional administration)

राज्य में नौ प्रमंडल हैं, जिनके प्रमुख प्रमंडलीय आयुक्त होते हैं।
 ये आयुक्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरीय और अनुभवी अधिकारी होते हैं। 
आयुक्त के कार्यों में जिलाधिकारियों के विधि-विकास कार्यों में पर्यवेक्षक की भूमिका और न्यायालयों के कार्य आदि होते हैं। 
 आयुक्त के सहायक अपर जिला दंडाधिकारी स्तर के सचिव के अलावा एक उप-निदेशक (खाद्य), उप-निदेशक (पंचायती राज) और अपर जिला दंडाधिकारी (फ्लाइंग स्क्वॉड) के रूप में होते हैं।

 

2. जिला प्रशासन (District Administration)


बिहार में वर्तमान (2019) में कुल 38 जिले हैं।
 जिले में प्रशासन का प्रमुख जिलाधिकारी होता है। 
इसे विभिन्न पदरूपों में अपना कार्यभार सँभालना होता है। 
 भू-राजस्व वसूली, कैनाल एवं अन्य शुल्कों की वसूली, विभिन्न राजकीय ऋणों की वसूली, राष्ट्रीय विपदाओं का मूल्यांकन और उनमें सहायता कार्य, स्टांप ऐक्ट का प्रभावी क्रियान्वयन, सामान्य एवं विशेष भूमि अर्जन का कार्य, जमींदारी बॉण्ड्स का भुगतान, भू-अभिलेखों का समुचित रखरखाव, भूमि पंजीकरण का कार्य, सांख्यिकी संबंधी रिकॉर्ड रखना कलेक्टर के रूप में जिलाधिकारी का प्रमुख कार्य है।

 

3. अनुमंडल प्रशासन(Subdivision Administration)

बिहार में वर्तमान (2019) में 102 अनुमंडल हैं। 
जिला प्रशासन के बाद क्षेत्रीय प्रशासन में अनुमंडल प्रशासन आता है, जिसका प्रमुख अनुमंडल पदाधिकारी (S.D.M) होता है। 
यह पद भारतीय प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी अथवा राज्य प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी को सौंपा जाता है।
बिहार के अनुमंडल प्रशासन में दोनों प्रकार के पदाधिकारी हैं। 
ये पदाधिकारी भी अपने क्षेत्र में जिलाधिकारी की भाँति ही कई भूमिकाओं का निर्वाह करते हैं। 
 राजस्व, विधि और न्याय संबंधी कार्यों में इनकी प्रमुख भूमिका होती है।
 इसके साथ ही ये विकास संबंधी योजनाओं का पर्यवेक्षण और क्रियान्वयन करने का कार्य भी करते हैं।
ये पदाधिकारी कृषि और भूमि संबंधी राजस्व वसूलने और अंचलाधिकारियों के आदेशों के विरुद्ध अपील सुनने का कार्य करते हैं।
अपने अधीनस्थ प्रतिनियुक्तियों का कार्य करते हैं। 
क्षेत्र में कानून-व्यवस्था बनाए रखने हेतु पुलिस पर नियंत्रण और आदेश जारी करते हैं। 
क्षेत्र में शस्त्र आवेदनों पर अनुशंसा के साथ शस्त्रों का वार्षिक निरीक्षण भी करते हैं, साथ ही क्षेत्र में आनेवाले जिला/राज्य/केंद्र के विशेष व्यक्तियों की सुरक्षा का प्रबंध करते हैं।

4. प्रखंड प्रशासन (Block Administration)

बिहार में वर्तमान (2019) में 534 प्रखंड हैं। 
जिला प्रशासन की दूसरी सीढ़ी प्रखंड प्रशासन है, जिसमें अंचलाधिकारी, प्रखंड विकास अधिकारी, प्रखंड कृषि पदाधिकारी, पशुपालन पदाधिकारी, प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी, प्रखंड कल्याण पदाधिकारी आदि पदनामित पदाधिकारी सम्मिलित होते हैं। 
इनमें अंचलाधिकारी और प्रखंड विकास अधिकारी के पद और कार्य प्रमुख होते हैं।

अंचलाधिकारी एवं उसके कार्य

अंचलाधिकारी का पद राज्य प्रशासनिक सेवा अथवा अन्य सेवाओं से प्रोन्नत हुए पदाधिकारी को दिया जाता है।
भू-राजस्व, भू-अभिलेख, विधि व्यवस्था का संधारण करना, चुनाव, जनगणना, कृषि सांख्यिकी, आय प्रमाण-पत्र, जाति प्रमाण-पत्र, आवासीय प्रमाण-पत्र जारी करना, पर्व-त्योहारों में शांति-व्यवस्था, सौहार्द बनाने और विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा का प्रबंधन करना, राज्य में आदिवासियों के भूमि-संबंधी अधिकारों की सुरक्षा करना, समाज कल्याण के सभी कार्यों का संपादन करना, आपदा, दुर्घटना, दंगा-पीड़ित लोगों के मुआवजे का आकलन और मुआवजा देने का कार्य करना आदि अंचल के अंतर्गत आनेवाले ग्रामीण क्षेत्रों में इसके प्रमुख कार्य हैं।

प्रखंड विकास अधिकारी एवं उसके कार्य

यह राज्य प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी अथवा राज्य कृषि सेवा के अधिकारियों को सौंपा जानेवाला पद है।
 यह अधिकारी प्रखंड के सभी विभागों के अधिकारियों के बीच सहयोगी और समन्वयक की भूमिका निभाता है। 
केंद्र सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन करना, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार संबंधी आवेदनों की अनुशंसा करना एवं ग्रामीण क्षेत्रों में विकास योजनाओं को क्रियान्वित करना इसके प्रमुख कार्य हैं।

 


5. ग्राम पंचायत

बिहार पंचायत राजअधिनियम, 1993 बनाया गया।
इसमें 73 वें संविधान के सारे प्रावधान शामिल किये गये।
इन प्रावधानों के अलावे, इस अधिनियम में नगर कचहरी की अवधारणा को सम्मिलित किया गया।साथ ही आरक्षण में महिलाओं एंव अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ पिछड़े वर्गों की जातियों के लिए भी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया गया।

ग्राम सभा

ग्राम सभा पंचायत राज की मूल संस्था है।
पंचायत राज की अन्य संस्थायें ग्राम पंचायत (ग्राम कचहरी), पंचायत समिति एवं जिला परिषद जनता के प्रतिनिधियों वाली संस्थाएं हैं परन्तु ग्राम सभा स्वयं जनता के सभा है।

ग्राम सभा ग्राम स्तर की तीन मूल संस्थाओं में से एक है।

अन्य दो संस्थाएं है, ग्राम कोष एंव ग्राम शांति सेवा।इन दोनों के साथ मिलकर ग्राम सभा गाँव स्तर पर स्वयं जनता द्वारा संचालित जनतांत्रिक इकाई बन जाती है, परन्तु वर्तमान अधिनियम में इसका समावेश नहीं है।

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