By - Gurumantra Civil Class
At - 2024-01-18 22:51:05
संयुक्त राज्य अमेरिकी संविधान, विशेषता और चुनौतियाँ
संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान, संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वोच्च कानून है। 'नई दुनिया' की स्वतंत्रता की घोषणा के उपरांत जिस संविधान का निर्माण हुआ उसने न सिर्फ अमेरिकी जनता और राष्ट्र को एक सूत्र में बांधा बल्कि विश्व के समक्ष एक आदर्श भी स्थापित किया। अमेरिकी संविधान विश्व का पहला लिखित संविधान है जिसमें राज्य के स्वरूप, नागरिकों के अधिकार शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त तथा न्यायिक पुनरावलोकन (judicial review) जैसे पहलू शामिल है।
अमेरिका का संविधान एक लिखित संविधान है। सन् 1789 में लागू होने से लेकर आज तक यह बदलते परिवेश व आवश्यकताओं के अनुरूप निरन्तर परिवर्तित तथा विकसित होता रहा हैं।
संविधान को अपनाने के बाद में भी उसमें सत्ताइस (27) बार संशोधन किया गया है। पहले दस संशोधनों (बाकी दो के साथ जो कि उस समय मंजूर नहीं हुए) 25 सितंबर 1789 को कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित किए गए थे और 15 दिसंबर, 1791 पर अमेरिका की आवश्यक तीन चौथाई द्वारा पुष्टि की गई। ये पहले दस संशोधन 'बिल ऑफ राइट्स' के नाम से जाने जाते हैं।
चार्ल्स ए. बीयर्ड के मतानुसार " अमेरिका का संविधान एक मुद्रित दस्तावेज है जिसकी व्याख्या न्यायिक निर्णयों, पूर्व घटनाओं और व्यवहारों द्वारा की जाती है और जिसे समझ और आकांक्षाओं द्वारा आलोकित किया जाता है।
17 सितंबर 1787 में, संवैधानिक कन्वेंशन फिलाडेल्फिया (पेनसिलवेनिया) और ग्यारह राज्यों में सम्मेलनों की पुष्टि के द्वारा संविधान को अपनाया गया था। यह 4 मार्च 1789 को प्रभावी हुआ।
अमेरिका में जिस संविधान का निर्माण हुआ वह कई चरणों एवं वाद-विवाद से गुजरा। जैसे कि -
1. राष्ट्र निर्माण का जो कार्य स्वतंत्रता प्राप्ति से शुरू हुआ था उसे पूर्णता तक पहुंचाना अर्थात् विषमतावादी समाज को एकसूत्र में बनाए रखते हुए विकास को प्रोत्साहित करना।
2. राज्य का स्वरूप कैसा हो-प्रजातांत्रिक अथवा संघीय।
3. वाद-विवाद का एक विषय केन्द्र बनाम राज्यों की सर्वोच्च प्रभुसत्ता को लेकर तो था ही इसके अतिरिक्त कुद अन्य मुद्दे भी थे। जैसे सभी राज्यों को समानता का दर्जा दिया जाए या नहीं, संघ में राज्यों का प्रतिनिधित्व किस प्रकार हो।
4. प्रजातंत्र की परम्परा में विश्वास रखने वाले लोग यह मानते थे कि सरकार का कार्यक्षेत्र एवं शक्ति सीमित होनी चाहिए अर्थात् राज्यों की तुलना में केन्द्र कम शक्तिशाली हो क्योंकि केन्द्र यदि अत्यधिक शक्तिशाली होगा तो नागरिकों की स्वतंत्रता बाधित होगी और राज्यों की पहचान खत्म हो जाएगी। आर्थिक मुद्दे पर इस वर्ग का मानना था कि संपत्ति केवल कुछ ही व्यक्तियों के हाथ में संचित न रहे तथा आय के न्यायोचित वितरण के लिए बड़े-बड़े कृषि फार्मों के स्थान पर छोटे-छोटे कृषि फार्म हों। पश्चिमी क्षेत्र की भूमि का वितरण अलग-अलग ऐसे परिवारों में होना चाहिए जो इन क्षेत्रों में बस सके और स्वयं की खेती कर सके। इस वर्ग का नेतृत्व अमेरिका में थॉमस जैफरसन कर रहा था।
5. अमेरिका में भूपतियों, व्यापारियाें एवं महाजनों द्वारा कुलीनतंत्र में विश्वास रखने वाला दूसरा वर्ग था। इस वर्ग का प्रमुख प्रवक्ता हैमिल्टन था। इस वर्ग की मान्यता थी कि बहुमत पर आधारित प्रजातांत्रिक शासन से व्यक्तिगत अधिकारों का हनन होगा। इस वर्ग का विश्वास था कि वास्तविक शक्ति जनसाधारण में नहीं होनी चाहिए बल्कि उच्च एवं बौद्धिक वर्ग में निहित होनी चाहिए क्योंकि जनसाधारण अज्ञानी तथा अनुशासहीन होते है।
6. कुलीन वर्गीय लोग एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार चाहते थे क्योंकि उनका विश्वास था कि शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार ही औद्योगिक तथा व्यापारियों के हितों की रक्षा कर सकेगी।
7. आर्थिक मुद्दे पर कुलीन वर्ग का विचार था कि संपति के अधिकार की गारंटी होनी चाहिए तथा सरकार ऋण देने वालों को सुरक्षा प्रदान करें। सरकार व्यापारियों, महाजनों एवं अन्य पूंजी लगाने वालो की सहायता करे। पश्चिम क्षेत्र की भूमि संबंध में यह वर्ग भूमि का सट्टा करने वाले धनिक वर्ग के स्वार्थों की रक्षा करना चाहता था।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया
संविधान निर्माण को लेकर चले विवादों के उपरांत 1776 ई. में महाद्वीपीय कांग्रेस के प्रत्येक उपनिवेश से एक-एक सदस्य लेकर एक समिति का गठन हुआ। उसका प्रमुख कार्य एक ऐसे परिसंघ के संविधान पर विचार करना था जिसके अंतर्गत एकजुट होकर सभी उपनिवेश स्वाधीनता संग्राम या स्वतंत्रता संग्राम का अभियान जारी रख सके। 1781 ई. में सभी उपनिवेशों ने संविधान को स्वीकार कर लिया। इसे ही अमेरिका का प्रथम संविधान अथवा युद्धकालीन अल्पकालिक संविधान कहा जाता है।
युद्धकालीन संविधान की विशेषताएं
• पहली बार उपनिवेशों के संघ के लिए “संयुक्त राज्य अमेरिका” अर्थात The United States of America नाम दिया गया।
• सरकार का स्वरूप संघीय था अर्थात् केन्द्रीय सरकार की स्थापना की गई जिसके अधिकार निश्चित और सीमित थे। संघीय कार्यों के संचालन हेतु एक सदनीय “कांगे्रस” की स्थापना की गई।
• इस कांग्रेस में प्रत्येक राज्य प्रतिवर्ष 2-7 प्रतिनिधियों को भेजेगा किन्तु प्रत्येक राज्य का मत मूल्य एक ही होगा।
• किसी प्रस्ताव की स्वीकृति के लिए 13 राज्यों में से 9 का बहुमत आवश्यक होगा।
• कांग्रेस को अन्य राष्ट्रों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने, मुद्रा जारी करने, ऋण लेने, युद्ध घोषणा तथा संधि करने, मुद्रा एवं ऋण संंबंधी नीतियों के निर्माण का अधिकार दिया गया।
• राज्यों को केन्द्र की तुलना में अधिक शक्तिशाली बनाया गया और कहा गया कि जो शक्तियां स्पष्ट शब्दों में कांगे्रस को प्रत्योजित न की गई हो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में निहित रहेंगी। राज्यों को कर लगाने तथा बाह्य सरकार के मामले में अत्यधिक अधिकार मिले थे।
• कमजोर केन्द्र की स्थापना एवं शक्तिशाली राज्यों के स्वरूप से राज्य अपने को अलग स्वतंत्र इकाई के रूप में समझने लगे।
• कांगे्रस राज्यों के पारस्परिक व्यापार-वाणिज्य नियमित नहीं कर सकती थी।
• राज्यों की इच्छा पर निर्भर था कि वे कांगे्रस के निर्णय को अपने क्षेत्र में लागू करें या न करें।
इस प्रकार युद्ध के दौरान तो यह संविधान चलता रहा परन्तु युद्ध समाप्ति के बाद राज्यों के मतभेद उभरकर सामने आने लगे। संविधान की उपेक्षा होने लगी और संघीय व्यवस्था के सफल संचालन में बाधा आने लगी। अतः युद्धकालीन निर्मित संविधान में संशोधन की बात की जाने लगी। जेम्स मेडीसन, बेंजामिन फ्रैकलिन, जॉर्ज वाशिगंटन जैसे बुद्धिजीवियों और राजनीतिक नेताओं ने एक मजबूत संघीय व्यवस्था के तहत् एक शक्तिशाली सरकार की वकालत की। इसी संदर्भ में 1787 ई. में फिलाडेल्फिया में 12 राज्यों के 55 प्रतिनिधियों का सम्मेलन संपन्न हुआ (रोड आइलैण्ड नहीं शामिल हुआ)। इस सम्मेलन की अध्यक्षता जॉर्ज वाशिगंटन ने की। इस सम्मेलन में वर्जीनिया योजना, के माध्यम से संविधान की धाराओं में संशोधन कर नया संविधान की धाराओं में संशोधन कर नया संविधान बना जो आज तक लागू है।वर्जीनिया योजना में संघीय शासन को और अधिक शक्तिशाली बनाने का प्रावधान था तथा केन्द्र में द्विसदनात्मक व्यवस्था की बात की गई थी।
अमेरिका के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं -
(1) निर्मित संविधान-
अमेरिका का संविधान एक निश्चित योजना द्वारा एक निश्चित समय में निर्मित हुआ है। 1787 ई. के फिलाडेल्फिया सम्मेलन में इसका निर्माण किया गया और 1789 ई. से यह लागू हो गया।
(2) लिखित संविधान-
अमेरिका का संविधान विश्व का प्रथम लिखित संविधान है। संविधान का मूल ढाँचा एवं अधिकांश धाराएँ लिखित हैं। शासन के सिद्धान्त, शासकीय अंगों का कार्यक्षेत्र एवं उनके कार्य तथा नागरिकों के अधिकार आदि सभी बातें लिखित रूप में हैं। ब्राइस के अनुसार, "अमेरिका का संविधान विश्व के लिखित संविधानों में सर्वोच्च है।”
(3) विश्व का सर्वाधिक संक्षिप्त संविधान -
विश्व के लिखित संविधानों में अमेरिका का संविधान सबसे अधिक संक्षिप्त है। इसमें कुल 7 अनुच्छेद हैं, जबकि कनाडा के संविधान में 147 अनुच्छेद, ऑस्ट्रेलिया के संविधान में 128 अनुच्छेद तथा भारत के संविधान में 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ हैं। मुनरो ने लिखा है,“संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में केवल 4,000 शब्द हैं,जो 10 या 12 पृष्ठों में मुद्रित हैं और जिन्हें आधे घण्टे में पढ़ा जा सकता है।" अमेरिका के संविधान में केवल मूलभूत तथा महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख है, शेष बातें विवेक पर छोड़ दी गई हैं।
(4) कठोर संविधान-
अमेरिका का संविधान एक कठोर संविधान है, क्योंकि अन्य संविधानों के विपरीत अमेरिकी संविधान में साधारण कानूनों और संवैधानिक संशोधनों की प्रक्रिया भिन्न है। यह संविधान की कठोरताः का ही परिणाम है कि अब तक इसमें (अमेरिकी संविधान में) केवल 27 संशोधन ही हुए हैं।
(5) संविधान की सर्वोच्चता -
संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है। संघ तथा इसकी इकाइयाँ इसके विरुद्ध आचरण नहीं कर सकतीं। राष्ट्रपति,कांग्रेस तथा उच्चतम न्यायालय,सभी इसके अधीन हैं और इसका उल्लंघन नहीं कर सकते।
(6) लोकप्रिय सम्प्रभुता पर आधारित-
अमेरिका के संविधान का निर्माण जनप्रतिनिधियों ने मिलकर किया है। अतएव संविधान के द्वारा अन्तिम सत्ता जनता को ही प्रदान की गई है।
संविधान की प्रस्तावना में लिखा है-"हम संयुक्त राज्य अमेरिका के लोग अधिक शक्तिशाली संघ बनाने, न्याय की स्थापना, आन्तरिक शान्ति की प्राप्ति, सामान्य प्रतिरक्षा की व्यवस्था और सार्वजनिक कल्याण में बढ़ोत्तरी करने तथा अपने और अपनी सन्तान हेतु स्वतन्त्रता के वरदान को सुरक्षित रखने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के इस संविधान को अपनाते हैं।"
अमेरिका का संविधान पूर्णरूपेण जनतन्त्रीय है और राज्य की अन्तिम शक्ति जनता के हाथों में केन्द्रित है।
(7) गणतन्त्रात्मक शासन-
अमेरिकी संविधान द्वारा देश में गणतन्त्रात्मक शासन प्रणाली की स्थापना की गई है। इसका तात्पर्य यह है कि राज्याध्यक्ष एवं शासनाध्यक्ष राष्ट्रपति ब्रिटेन की भाँति वंशानुगत न होकर जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों द्वारा निर्वाचित होता है। राज्यों के गवर्नर भी जनता द्वारा चुने जाते हैं।
(8) संघात्मक शासन व्यवस्था -
अमेरिकी संविधान द्वारा देश में एक संघ की स्थापना की गई है। राष्ट्रीय महत्त्व के विषय संघ या केन्द्र के पास हैं और शेष | विषय राज्यों के अधीन हैं। संविधान की सर्वोच्चता, संविधान का लिखित एवं कठोर स्वरूप, संघ एवं राज्यों के मध्य शक्तियों का स्पष्ट संवैधानिक विभाजन, शक्तिशाली संघीय न्यायपालिका आदि संघीय व्यवस्था की समस्त विशेषताएँ अमेरिकी संविधान में मौजूद हैं।
(9) अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली -
संयुक्त राज्य अमेरिका में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाया गया है। वहाँ की कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान | राष्ट्रपति जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से 4 वर्ष के लिए निर्वाचित होता है । वह तथा उसके मन्त्रिमण्डल न तो कांग्रेस के सदस्य होते हैं और न ही वे अपने कार्यों के लिए कांग्रेस के प्रति उत्तरदायी होते हैं और न ही कांग्रेस का उन पर नियन्त्रण होता है। कांग्रेस भी राष्ट्रपति के नियन्त्रण से मुक्त है।
(10) शक्तियों का पृथक्करण-
मॉण्टेस्क्यू द्वारा प्रतिपादित शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त अमेरिकी संविधान का मूलभूत संवैधानिक सिद्धान्त है।। मॉण्टेस्क्यू के विचारानुसार नागरिकों की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए सरकार की | तीनों शक्तियाँ-विधायिनी, न्यायिक तथा कार्यपालिका-किसी एक व्यक्ति या संस्था के हाथों में केन्द्रित न होकर एक-दूसरे से पृथक् एवं स्वतन्त्र होनी चाहिए। इसीलिए अमेरिकी संविधान में व्यवस्थापन सम्बन्धी शक्तियाँ कांग्रेस में, कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ राष्ट्रपति में तथा न्यायिक शक्तियाँ सवोच्च न्यायालय में निहित की गई हैं।
(11) अवरोध एवं सन्तुलन का सिद्धान्त-
अमेरिकी संविधान निर्माता इस तथ्य से पूर्णतया परिचित थे कि व्यवहारतः शासन के तीनों अंग असम्बद्ध नहीं रह सकते। अतएव उन्होंने शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के साथ-साथ अवरोध एवं | सन्तुलन के सिद्धान्त की भी व्यवस्था की, ताकि सरकार का कोई भी अंग अनियन्त्रित एवं निरंकुश होकर लोकहित एवं नागरिक स्वतन्त्रताओं की उपेक्षा न कर सके । उदाहरण के लिए, कांग्रेस द्वारा निर्मित कानूनों पर राष्ट्रपति की स्वीकृति और राष्ट्रपति की 'वीटो' शक्ति नियन्त्रण रखती है।
प्रशासकीय उच्च अधिकारियों की नियुक्ति तथा युद्ध एवं सन्धि के मामलों में राष्ट्रपति को कांग्रेस की स्वीकति लेनी पड़ती है। यद्यपि न्यायपालिका को स्वतन्त्र बनाया गया है, परन्तु न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को प्रदान कर न्यायपालिका पर नियन्त्रण रखने का प्रयास किया गया है। इस व्यवस्था के सम्बन्ध में ऑग व रे ने लिखा है"अमेरिकी संविधान का कोई लक्षण इतना प्रमुख नहीं है जितना नियन्त्रण और सन्तुलन की धारणा के साथ अपनाया गया शक्ति विभाजन सिद्धान्त।"
(12) न्यायपालिका की सर्वोच्चता व न्यायिक पुनर्विलोकन की व्यवस्था -
संयुक्त राज्य अमेरिका में संघात्मक शासन प्रणाली अपनाए जाने के कारण वहाँ न्यायिक सर्वोच्चता के सिद्धान्त को अपनाया गया है। संविधान का अतिक्रमण करने वाले राष्ट्रपति के आदेशों, कांग्रेस द्वारा पारित अधिनियमों अथवा राज्य सरकारों के कार्यों का पुनर्निरीक्षण कर सर्वोच्च न्यायालय उन्हें अवैध घोषित कर सकता है। इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय को शासकीय आदेशों एवं विधियों की संवैधानिकता की जाँच करने व उनका न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार प्राप्त है। जेम्स बीक ने अमेरिकी न्यायपालिका की इस शक्ति को 'संविधान का सन्तुलन चक्र' कहा है।
(13) मौलिक अधिकारों की व्यवस्था-
नागरिक स्वतन्त्रताओं की रक्षा के लिए तथा जनता को शासन की निरंकुशता से बचाने के लिए अमेरिकी संविधान, में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। यद्यपि फिलाडेल्फिया सम्मेलन में संविधान का जो प्रारूप प्रस्तुत हुआ था, उसमें मौलिक अधिकारों की व्यवस्था नहीं की गई थी। लेकिन बाद में जब कई राज्यों ने संविधान के इस प्रारूप को स्वीकार नहीं किया, तो संविधान में 10 संशोधन किए गए और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का प्रावधान किया गया। इन अधिकारों में धार्मिक स्वतन्त्रता, भाषण तथा प्रेस की स्वतन्त्रता, अकारण बन्दीकरण से स्वतन्त्रता, व्यवसाय की स्वतन्त्रता, संघ या समुदाय बनाने की स्वतन्त्रता आदि प्रमुख हैं।
(14) दोहरी नागरिकता का प्रावधान-
संयुक्त राज्य अमेरिका में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था को अपनाया गया है। प्रत्येक नागरिक को संघ के |साथ-साथ तथा अपने निवास के राज्य की भी नागरिकता प्राप्त है। संविधान के 14वें संशोधन में कहा गया है कि "वे सभी व्यक्ति, जो संयुक्त राज्य में जन्मे हैं या उन्होंने बाद में नागरिकता के अधिकार प्राप्त किए हैं और संयुक्त राज्य के क्षेत्र में रहते हैं, उसके भी नागरिक हैं।"
(15) निहित शक्तियों का सिद्धान्त-
अमेरिका के संविधान की एक विशेषता यह भी है कि संविधान निर्माताओं ने संविधान में अनेक महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख नहीं किया है, परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर बारीकी से संविधान की व्याख्या की और संविधान में वर्णित बातों से अर्थ निकालकर विभिन्न शक्तियाँ केन्द्र व राज्य सरकारों को प्रदान की। इसी को 'निहित शक्तियों का सिद्धान्त' कहते हैं।
(16) लूट प्रथा-
लूट की प्रथा अमेरिकी संविधान की एक प्रमुख विशेषता है। इसका तात्पर्य यह है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति पहले के कर्मचारियों तथा उच्च पदाधिकारियों को हटाकर अपने दल के समर्थकों को तथा अपनी रुचि के व्यक्तियों को महत्त्वपूर्ण शासकीय पदों पर नियुक्त करता है।
अमेरिकी संविधान में संशोधन की पद्धति
अमेरिकी संविधान विश्व के अन्य संविधानों की तुलना में कठोर है। अब तक इसमें केवल 27 संशोधन ही हुए हैं। संविधान के अनुच्छेद 5 में संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख है।
संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) संशोधन प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाना, और
(2) प्रस्ताव का अनुसमर्थन।
(1) संशोधन का प्रस्ताव-
संविधान में संशोधन का प्रस्ताव निम्न दो विधियों में से किसी एक विधि से रखा जा सकता है
(i) कांग्रेस संशोधन का प्रस्ताव स्वयं रख सकती है। परन्तु यह प्रस्ताव उसी समय रखा माना जाएगा जबकि कांग्रेस के दोनों सदन पृथक्-पृथक् उस प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत से पेश करें।
(ii) राज्यों को भी संविधान में संशोधन का प्रस्ताव रखने का अधिकार है, बशर्ते दो-तिहाई राज्यों की विधानसभाएँ कांग्रेस से इस आशय की प्रार्थना करें।
(2) प्रस्ताव की स्वीकृति या अनुसमर्थन-
अनुसमर्थन की निम्नलिखित दो विधियों में से किसी एक को अपनाने का आदेश कांग्रेस दे सकेगी
(i) संशोधन का प्रस्ताव 3/4 राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा अनुसमर्थित होन आवश्यक है।
अथवा
(ii) संशोधन के प्रस्ताव को 3/4 राज्यों में उनके विधानमण्डलों द्वारा इस उद्देश्य से बुलाए गए विशेष सम्मेलनों का अनुसमर्थन प्राप्त होना चाहिए।
संशोधन की पुष्टि के लिए उपर्युक्त दो विधियों में से कौन-सी विधि अपनाई जाए, इसका निर्णय कांग्रेस करती है। व्यवहार में संशोधन का प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा रखा जाता है और उसकी स्वीकृति राज्य विधानमण्डलों से ली जाती है।
अमेरिकी संविधान के सम्बन्ध में मुनरो ने लिखा है कि “यह संविधान 1787 ई. का तिथि चिह्न रखते हुए भी अपने को शनै-शनैः परिवर्तित, विकसित, विस्तृत और नवीन परिस्थितियों के अनुकूल बनाता रहा है।"
अमेरिकी संविधान की रचना को प्रभावित करने वाले तत्व एवं कारक
1. देश को गणतंत्र का स्वरूप प्रदान करना :-
विश्व के अनेक देशों में उस काल में राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली थी और संसद की मौजूदगी के बावजूद भी राजा निरंकुश हो जाता था। फलतः नागरिक स्वतंत्रता बाधित होती थी। उसको दूर करने के लिए जरूरी था कि एक गणतंत्रात्मक सरकार का गठन हो इसलिए अमेरिका संविधान में गणतंत्र के स्थापना की बात की गई।
2. संघीय व्यवस्था को अपनाया जाना :-
क्रांति के दौरान सभी तेरह अमेरिकी उपनिवेशों ने निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिए एकजुट होकर कार्य किया था। अब मुद्दा यह था कि “अनेक ऐ एक” (One out of many)कैसे हुआ जाए। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए संघीय शासन प्रणाली की स्थापना की गई। राज्यों के समान हितों की रक्षा के लिए जो महासंघ अस्तित्व में आया उसे USA नाम दिया गया। महासंघ की स्थापना से तेरहों उपनिवेश एकता के सूत्र में बंध गए और हर राज्य के नागरिकों को वे ही अधिकार और कर आदि से छूटे मिली जो अन्य राज्य के नागरिकों को प्राप्त थी।
3. एक शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना :
एक शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना की गई ताकि राज्य अपने निहित स्वार्थों के कारण आगे चलकर स्वतंत्र होने का प्रयास न कर सके। दूसरी तरफ राज्यों की पहचान बनाए रखने का भी प्रावधान किया गया। यही वजह है कि अमेरिका संविधान में लिखा गया-““अविनाशी राज्यों का अविनाशी संघ””। राज्यों के आपसी विवादों तथा उनके बीच व्यापारिक संबंधों के नियमन हेतु भी एक मजबूत केन्द्र की स्थापना की गई संघीय शासन को चलाने हेतु एक राष्ट्रीय विधायिका का निर्माण किया गया जिसमें दो सदन थे-एक उच्च सदन (सीनेट) तथा दूसरा निम्न सदन (प्रतिनिधि सभा)। चूंकि स्वतंत्रता के दौरान उपनिवेशों ने प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नहीं का नारा दिया था इस बात को ध्यान में रखते हुए सीनेट में समानता के सिद्धान्त को बनाए रखा गया और प्रत्येक राज्य से दो/दो सदस्यों के चुने जाने का प्रावधान किया गया।
4. शक्ति का पृथक्करण सिद्धान्त :
सरकार की शक्ति किन्हीं एक हाथों में पड़कर निरंकुश न हो जाए तथा कार्यपालिका ही सर्वशक्तिमान न हो जाय और व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा नागरिक अधिकारों का हनन न हो इसलिए संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के विभाजन का सिद्धान्त अपनाया गया।
5. संविधान संशोधन में राज्यों की भूमिका :
राज्यों को पर्याप्त महत्व देने हुए कानून के निर्माण में उनकी सहभागिता को महत्व देना जरूरी था। अतः संविधान संशोधन प्रक्रिया में यह प्रावधान किया गया कि प्रत्येक सदन के दो/तिहाई मतों के आधार पर कांग्रेस संविधान में संशोधन का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकेगी या राज्यों की कुल संख्या में से दो तिहाई राज्यों की विधायिका में से आवेदन प्राप्त होने पर संशोधन प्रस्तावित करने के लिए सम्मेलन बुलाएगी।
6. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना :
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को वाणिज्यिक सौदागरों के चंगुल से मुक्त कर एक स्वतंत्र आर्थिक नीति का निर्माण करना जरूरी था। अतः सिक्के ढालने, सरकारी नोट जारी करने, विदेशों के साथ ऋण प्राप्त करने तथा ऋणों का भुगतान करने आदि से संबंधित अधिकार संघ को दिए गए।
स्वतंत्रता के पश्चात् राष्ट्र निर्माण को पूर्णता तक पहुंचाने के लिए, विषमरूपी तथा बहुलवादी विभिन्न रीति-रिवाज से युक्त समाज को एकसूत्र में बांधने हेतु संविधान की जरूरत थी। इतना ही नहीं जिन मुद्दों को लेकर उपनिवेशों ने क्रांति की थी उन्हें भी संविधान के माध्यम से दूर किया जाना था।
संविधान के गुण - अवगुण एक नजर में -
संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की उद्देशिका में कहा गया कि यह संविधान ““संयुक्त राज्य की जनता”” ने तैयार किया है।
“कांगे्रस नामक एक राष्ट्रीय विधायिका का गठन, जिसमें दो सदन होंगे, निचला सदन- House of Representative तथा उच्च सदन senate कहलाएगा।
समानता का सिद्धान्त सीनेंट में बनाए रखा जाएगा और तदनुसार प्रत्येक राज्य से उसमें दो-दो सदस्य (सीनेटर) लिए जाऐंगे। प्रत्येक सीनेटर की सदस्यता अवधि 6 साल की होगी। सीनेट को सभी प्रकार के महाभियोगों पर विचार करने का अधिकार मिला।
House of Representative में राज्यों का प्रतिनिधित्व उसकी जनसंख्या के आधार पर तय हुआ। इस सदन के सदस्यों का चुनाव दो वर्ष की अवधि के लिए होगा।
संविधान के तहत् दो सरकारों की स्थापना की गई-एक संघीय सरकार तथा दूसरी राज्य सरकार। संघ तथा राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया।
संघ को करों, ऋणों का भुगतान विदेशों के साथ तथा राज्यों के बीच परस्पर व्यापार वाणिज्य का विनियमन, सिक्कों की ढलाई, युद्ध की घोषणा आदि का अधिकार दिया गया।
संविधान संशोधन प्रत्येक सदन के दो तिहाई मतों के आधार पर कांगे्रस संविधान में संशोधन का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकेगी या राज्यों की कुल संख्या में से दो तिहाई राज्यों की विधायिकाओं से आवेदन प्राप्त होने पर संशोधन प्रस्तावित करने के लिए सम्मेलन बुलाएंगी।
कार्यपालिका का प्रमुख राष्ट्रपति होगा और राष्ट्रपति का चुनाव न तो कांगे्रस करेगी न ही वह सीधे जनता से चुनकर आएगा। उसके निर्वाचन के लिए एक अलग निर्वाचक-मंडल बनाया जाएगा जिसमें सम्मिलित निर्वाचकों का चुनाव राज्यों की विधायिकाओं द्वारा निर्धारित पद्धति के अनुसार होगा।
प्रत्येक राज्य के निर्वाचकों की संख्या उस राज्य के सीनेटरों (उच्च सदन के सदस्यों) तथा निचले सदन के प्रतिनिधियों की संख्या के कुछ योग के बराबर होगी।
राष्ट्रपति पर आसीन व्यक्ति की मृत्यु हो जाने या उसे पद से हटा दिए जाने की स्थिति में उसकी सारी शक्तियां उपराष्ट्रपति को स्थानान्तरित हो जाऐंगी।
एक सर्वोच्च न्यायालय होगा, जिसके न्यायाधीशों का चुनाव सीनेट की सहमति से राष्ट्रपति करेंगा।
1791 ई. में पहला संविधान संशोधन करके बिल ऑफ राइट्स ('Bill of Rights) को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया। इसके तहत् संयुक्त राज्य अमेरिका के नागरिकों को वाणी की, पे्रस की, धर्म की, याचिका की, सभा-सम्मेलन करने की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई। इस प्रकार 1789 ई. में संविधान को अनुमोदित कर दिया गया और जॉर्ज वाशिंगटन को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति से तथा जॉर्ज एडम्स को बहुमत से उपराष्ट्रपति चुना गया।
• स्त्रियों को मताधिकार नहीं दिया गया।
• स्वतंत्रता की घोषणा दासों पर लागू नहीं होती थी अर्थात् दास प्रथा को बनाए रखा गया। आगे चलकर इस दास-प्रथा के मुद्दे ने अमेरिका को गृहयुद्ध की ओर धकेल दिया।
• संविधान निर्माण में धनी वर्ग का प्रभाव।
• राष्ट्रपति के निर्वाचन की जटिल प्रक्रिया।
चार्ल्स बेयर्ड ने निबंध 'An Economic Interpretation of the Constitution of the United States' के माध्यम से संविधान निर्माताओं पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने इस संविधान के माध्यम से अपने आर्थिक वर्ग के निहित स्वार्थों को आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया है। उसने बताया कि सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों की सामाजिक संरचना कुछ इस तरह थी कि वे आर्थिक लाभों को अपने पक्ष में करना चाहते थे। इनमें 24 प्रतिनिधि साहूकार वर्ग के, 15 प्रतिनिधि उत्तरी क्षेत्र के और दासों के मालिक थे, 14 प्रतिनिधि भूमि का सौदा व सट्टेबाजी के व्यवसाय से संबंधित, 11 प्रतिनिधि व्यवसायी व जहाज निर्माता थे। सम्मेलन में कारीगरों, छोटे किसानों एवं गरीबों का कोई प्रतिनिधि नहीं था। इस तरह सम्मेलन में शामिल साहूकार, व्यापारी, व्यवसायी जैसे वर्गों ने शक्तिशाली संघ की स्थापना की बात की। यह शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार समय-समय पर विभिन्न करों को आरोपित कर सकेगी।
चार्ल्स बेयर्ड की इस स्थापना को कई इतिहासविदों ने चुनौती दी। फॉरेस्ट मैकडोनाल्ड ने अपनी पुस्तक "We the People : The Eco- nomic Origins of Constitutions (1958)" में बताया कि यह मान्यता किसी तरह से प्रमाणित नहीं होगी कि व्यक्तिगत संपत्ति के हितों की रक्षा ही वह मुख्य तत्व था जिसने संविधान निर्माण की दिशा बदल दी। जिन लोगों ने संविधान का प्रारूप (Draft) तैयार किया उसे अंगीकृत करने में प्रत्यक्ष सहायता दी उन प्रतिनिधियों की पृष्ठभूमि कैसी भी रही हो एक बार जब उन्होंने सम्मेलन में भागीदारी निभाना शुरू किया तो वे व्यक्तिगत वर्ग न रहकर एक एकीकृत आर्थिक समूह बन गए। जहां तक यह कहना कि किसानों ने संविधान का विरोध किया यह बात इसलिए भी ठीक नहीं लगती कि न्यूजर्सी, मेरीलैंड, जॉर्जिया जैसे मुख्यतः कृषि आधारित राज्यों में भी संविधान आसानी से स्वीकृत हुआ। इस दृष्टि से चार्ल्स बेयर्ड के द्वारा प्रतिपादित संविधान के स्वरूप की आर्थिक दस्तावेज के रूप में व्याख्या को पूर्णतः स्वीकार नहीं किया जा सकता। फिर भी उसके मत का विशिष्ट योगदान इस बात में निहित है कि उसने अमेरिका के संविधान के स्वरूप की ओर ध्यान दिया तथा अन्य इतिहासविदों को उसके बारें में सोचने के लिए पे्ररित किया। उसने जो बुनियाद मुद्दे उठाए वे समय की कसौटी पर इस रूप में खरे उतरे कि लोगों का ध्यान संविधान के स्वरूप और उसमें किस बात पर बल दिया जाता है या दिया जाना चाहिए, इस ओर उनका ध्यान आकृष्ट कर सकें।
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