By - Gurumantra Civil Class
At - 2024-01-18 22:34:08
वर्तमान के भू-राजनीतिक विश्व में ‘हिंद प्रशांत’ क्षेत्र का तेजी से महत्व बढ़ता जा रहा है। भारत के आसियान मित्रों का इससे संबंध है, और इसने क्वाड साझेदारी को आगे बढ़ाने का रास्ता तय किया है। हमारे विदेश मंत्रालय ने इस क्षेत्र के महत्व को देखते हुए अलग से इंडो-पेसिफिक विभाग की स्थापना की है। ओशिनिया विभाग भी इसी भूक्षेत्र को आधारित कर बनाया गया है।
भारत के लिए हिंद प्रशांत वह विशाल समुद्री क्षेत्र है, जो उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट से लेकर अफ्रीका के पूर्वी तटों तक फैला हुआ है। भारत की इस परिभाषा को अधिकांश देशों ने स्वीकार भी किया है।
संसद टेलीविजन विशेष
हिंद (Indo) यानी हिंद महासागर (Indian Ocean) और प्रशांत (Pacific) यानी प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर जो समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) कहते हैं। विशाल हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सीधे जलग्रहण क्षेत्र में पड़ने वाले देशों को ‘इंडो-पैसिफिक देश’ कहा जा सकता है। पूर्वी अफ़्रीकी तट, हिंद महासागर तथा पश्चिमी एवं मध्य प्रशांत महासागर मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र बनाते हैं।
‘इंडो-पैसिफिक’ जिसने गत कुछ वर्षों में विश्व की कई अर्थव्यवस्थाओं की भू-रणनीति को आकर देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। आज दुनिया भर के तमाम देश अपने-अपने दस्तावेज़ों में आवश्यकतानुसार ‘इंडो-पैसिफिक’ की व्याख्या कर रहे हैं। भौगोलिक तौर पर हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर समुद्र का जो हिस्सा बनता है उसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) के नाम से जाना जाता है।
नया आयाम
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति विभिन्न देशों की नीति
वर्तमान में विश्व व्यापार के 75 प्रतिशत वस्तुओं का आयात-निर्यात इसी क्षेत्र से होता है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े हुए बंदरगाह विश्व के सर्वाधिक व्यस्त बंदरगाहों में शामिल हैं। विश्व GDP के 60 प्रतिशत का योगदान इसी क्षेत्र से होता है। यह क्षेत्र ऊर्जा व्यापार (पेट्रोलियम उत्पाद) को लेकर उपभोक्ता और उत्पादक दोनों राष्ट्रों के लिये संवेदनशील बना रहता है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ‘मुक्त एवं स्वतंत्र’ क्षेत्र बनाने के लिये ट्रंप प्रशासन भारत-जापान संबंधों के महत्त्व को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुका है। ट्रंप की हिंद-प्रशांत नीति उनके पूर्ववर्ती ओबामा की एशिया केंद्रित नीति का ही नया रूप है। एक अनुमान के अनुसार, चीन 2027 तक अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, यह स्थिति अमेरिका के लिये चिंता पैदा कर सकती है। इंडोनेशिया भी आर्थिक रूप से मज़बूत देश बनकर उभरा है तथा इस क्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका तलाश रहा है। साथ ही वह अमेरिका की FOIP (Free and Open Indo-pacific) तथा चीन की BRI (Belt and Road Initiative) का हिस्सा भी नहीं बनना चाहता। वहीं इंडोनेशिया इतनी बड़ी आर्थिक शक्ति नहीं है कि अपने बल पर इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सके। हालांकि इंडोनेशिया आसियान संगठन का प्रमुख सदस्य देश है। इसलिए इस संगठन की भूमिका को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये महत्त्वपूर्ण बनाकर वह अपने हित संवर्द्धन का प्रयास कर रहा है। चीन भी अपने ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल के माध्यम से विश्व की महाशक्ति के रूप में अपने को बदलने के लिये दुनिया के विभिन्न देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा कनेक्टिविटी पर भारी निवेश कर रहा है। सर्वविदित है कि उसकी इस पहल का उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करना भी है। उदाहरण के लिये चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का प्रमुख हितधारक है और हाल ही में श्रीलंका सरकार ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन के हाथों बेच दिया है। इसके अतिरिक्त जापान ने हिंद-प्रशांत खासकर भारत के पूर्वोत्तर तटीय क्षेत्र में काफी निवेश किया है। उल्लेखनीय है कि जापान के किंग और क्वीन पहली बार जब भारत दौरे पर आए थे तब उन्होंने तमिलनाडु का भी दौरा किया था, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि तमिलनाडु वह प्रमुख राज्य है जहाँ जापानी निवेश सर्वाधिक हुआ है।
महत्व -
पिछले कुछ वर्षों में समुद्री सुरक्षा और सहयोग का महत्त्व बढ़ा है, विभिन्न देशों के संयुक्त वक्तव्य एवं संगठनों के घोषणा-पत्रों में समुद्री समझौतों को लेकर उच्च प्राथमिकता देखी जा सकती है। इसी परिप्रेक्ष्य में चीन ने अपनी नीति में बदलाव किया है, चीन एक समान और समतापूर्ण विश्व व्यवस्था पर ज़ोर दे रहा है। अमेरिका की एक रिपोर्ट (US Indo-Pacific Strategy Report) जो हाल ही में प्रकाशित हुई है, में साझेदारी पर बल देकर इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने पर ज़ोर दिया गया है। इस रिपोर्ट में अमेरिका नें चीन की नीतियों की आलोचना करते हुए उसको प्रमुख प्रतिद्वंद्वी माना है, साथ ही इस रिपोर्ट में ‘नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय आर्डर’ (Rules-based International Order) तथा ‘फ्री और ओपन इंडो-पैसिफिक’ (Free and Open Indo-Pacific) क्षेत्र की वकालत की गई है।
भारत और हिंद-प्रशांत क्षेत्र
हिंद-प्रशांत क्षेत्र सदैव ही भारत के लिये काफी महत्त्वपूर्ण रहा है, जानकार इसका सबसे प्रमुख कारण इस क्षेत्र से होने वाले समुद्री व्यापार को मानते हैं।
इसके अलावा अपनी सैन्य शक्ति मज़बूत करने के लिये भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, आसियान, जापान, कोरिया और वियतनाम जैसे देशों के साथ कई नौसैनिक अभ्यासों में भी शामिल होता है।
ओएनजीसी विदेश लिमिटेड वियतनाम के विशेष आर्थिक क्षेत्र में तेल और गैस की संभावनाओं को तलाश रही है। ध्यातव्य है कि भारत अपने तेल का 82 प्रतिशत आयात करता है। भारत को जहाँ से भी तेल मिल सकता है वहाँ से तेल लेना चाहिये। इसलिये दक्षिण चीन सागर तेल की खोज के लिये काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), भारत और जापान स्थायी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु मिलकर कार्य कर रहे हैं जो इस क्षेत्र के विकास के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
G20 शिखर सम्मेलन 2019 के मौके पर आयोजित जापान-भारत-अमेरिका (JAI) त्रिपक्षीय बैठक के दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र चर्चा का प्रमुख विषय था।
इस क्षेत्र के विशेष महत्त्व को मद्देनज़र रखते हुए भारत ने अप्रैल 2019 में विदेश मंत्रालय में एक इंडो-पैसिफिक विंग की स्थापना भी की है।
भारत के कई विशेष साझेदार जैसे- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इंडोनेशिया आदि वास्तव में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ‘एशिया पैसिफिक प्लस इंडिया’ (Asia Pacific plus India) के रूप में देखते हैं।
इस प्रकार की नीति का मुख्य उद्देश्य दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन का मुकाबला करने के लिये भारत को एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करना है।
हालाँकि इस क्षेत्र के प्रति भारत की नीति अधिक-से-अधिक शांति पर बल देती है। भारत की नीति में इसे को मुक्त, खुले और समावेशी क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है।
भारत अफ्रीका के तट से लेकर अमेरिका के तट तक के क्षेत्र को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के रूप में मान्यता देता है।
चीन के विपरीत भारत सदैव ही एक एकीकृत आसियान (ASEAN) का हिमायती रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ने आसियान में ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का प्रयोग किया है।
पहले इस क्षेत्र को एक अमेरिकी झील (American Lake) के रूप में देखा जाता था, जहाँ अमेरिका का काफी वर्चस्व था परंतु हाल के कुछ वर्षों में हुए बदलावों के कारण यह डर बढ़ गया है कि कहीं यह क्षेत्र चीनी झील के रूप में न परिवर्तित हो जाए।
भारत इस क्षेत्र में किसी भी एक देश का आधिपत्य नहीं चाहता है, जिसके कारण वह भारत-ऑस्ट्रेलिया-फ्रांँस और भारत-ऑस्ट्रेलिया-इंडोनेशिया जैसे त्रिपक्षीय समूहों के माध्यम से यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है कि कि चीन इस क्षेत्र में हावी न हो।
विशेष तथ्य
भारत के लिए महत्वपूर्ण आवश्यक कदम
इस क्षेत्र में भारत को और अधिक सक्रिय रूप से समुद्री हितों को लेकर नीति को गति देने की आवश्यकता है, जिससे इस क्षेत्र में विकसित हो रहे नैरेटिव में वह प्रमुख भूमिका निभा सके। अतः भारत को सागर (SAGAR) पहल पर बल देना होगा और इसके लिये एक ऐसे ढाँचे का निर्माण करना होगा जिससे उचित रूप से क्रियान्वित किया जा सके। भारत द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय साझेदारियों के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत कर सकता है और इसके लिये भारत को सागरमला परियोजना पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। यह परियोजना अवसंरचना को तटीय भागों में सुदृढ़ करेगी जिससे विनिर्माण, व्यापार तथा पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा।
विश्व के लगभग सभी देश समुद्र में स्वतंत्र नौ-परिवहन को लेकर एक मत हैं लेकिन विभिन्न देशों में नौ-परिवहन की स्वतंत्रता की परिभाषा को लेकर गहरे मतभेद बने हुए हैं। इसका कारण कई देशों के कानूनों का अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून (International Maritime Law-IML) से भिन्न होना है। इस विषय पर भारत अन्य देशों के मध्य मतभेदों को समाप्त करने और एक निश्चित परिभाषा पर सहमत होने के लिये नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है। भारत का IML का के पालन करने का रिकॉर्ड और समुद्री शक्ति के रूप में इसकी विश्वसनीयता, इसे इस तरह के प्रयास का नेतृत्व करने के लिये एक आदर्श स्थिति प्रदान करते हैं।
भारत को चाहिये कि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी पहुँच में वृद्धि करे। परिचालन द्वारा भारत अपनी उपस्थिति को इस क्षेत्र में मज़बूती से दर्ज करा सकता है। यह इस क्षेत्र में भारत के दीर्घकालीन हितों की पूर्ति करेगा, साथ ही इस क्षेत्र की स्थिरता को भी मज़बूती प्रदान करेगा। इस क्षेत्र में भारत के जापान जैसे सहयोगी पहले से ही मौज़ूद हैं, जो भारत को आवश्यकता के समय लॉजिस्टिक सपोर्ट उपलब्ध करा सकते हैं।
सागरमाला परियोजना जैसी अन्य परियोजनाओं को भी आरंभ किया जा सकता है। इन परियोजनाओं के माध्यम से बंदरगाहों के विकास, बेहतर कनेक्टिविटी, बंदरगाह आधारित औद्योगीकरण, तटों के करीब रहने वाले लोगों का सामाजिक-आर्थिक विकास, निवेश तथा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नई नौकरियों के सृजन पर ध्यान दिया जा सकता है। इन परियोजनाओं को लागू करते समय इनके प्रभावों और अवधि का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये, ताकि निश्चित समय में परियोजनाओं को पूरा किया जा सके। इसके अतिरिक्त अन्य मित्र राष्ट्रों के साथ मिलकर क्षमता निर्माण एवं अन्य संभावनाओं पर भी विचार किया जा सकता है।
सरकार को हिंद-प्रशांत क्षेत्र को समर्पित एक अध्ययन केंद्र के निर्माण की संभावना पर भी विचार करना चाहिये। यदि संभव हो तो ऐसे केंद्र की स्थापना अंडमान निकोबार द्वीप में हो सकती है जिसमें इस क्षेत्र से संबंधित विभिन्न पाठ्यक्रमों को शामिल किया जाना चाहिये। ऐसे केंद्र के निर्माण के लिये सार्वजनिक निजी भागीदारी मॉडल का उपयोग किया जा सकता है जो संसाधन के साथ-साथ विशेषज्ञता के संदर्भ में भी उपयोगी होगा।
चीन : खतरा
चीन हमेशा से एशियाई-प्रशांत देशों के लिये एक बड़ा खतरा रहा है, इसके अलावा वह हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय हितों के लिये भी खतरा पैदा कर रहा है।
चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को हथिया लिया है, जो कि भारत के तटों से कुछ सौ मील की दूरी पर है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से भारत के लिये काफी चिंताजनक है, हालाँकि श्रीलंका के नए राष्ट्रपति ने अपने हालिया एक बयान में कहा था कि चीन को हंबनटोटा बंदरगाह देना पूर्ववर्ती सरकार की सबसे बड़ी गलती थी।
चीन भारत के पड़ोसी देशों- म्याँमार, श्रीलंका, बांग्लादेश और थाईलैंड को सैन्य उपकरण जैसे- पनडुब्बी और युद्ध-पोत आदि मुहैया करा रहा है। जानकार इस स्थिति को सैन्य उपनिवेशवाद के रूप में परिभाषित कर रहे हैं।
आसियान के कुछ सदस्य देश चीन के प्रभाव में आसियान की एकजुटता के लिये बड़ा खतरा बने हुए हैं। विदित हो कि चीन आसियान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और आसियान देश किसी भी स्थिति में उसे दरकिनार नहीं कर सकते, संभव है कि आसियान और चीन का यह समीकरण भारत तथा आसियान के संबंधों को प्रभावित करे।
आसियान भारत के लिये विशेष रूप से एक्ट ईस्ट पॉलिसी के दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
चीन की सी जिनपिंग सरकार इस क्षेत्र अपनी नीतियों को वैश्विक आयाम देने का प्रयास कर रही है, वन बेल्ट वन रोड नीति (Belt & Road Initiative) चीन की की इसी व्यापक रणनीति का हिस्सा है। जहाँ एक ओर BRI नीति के एक प्रमुख घटक के रूप में चीन के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व है, तो वहीं दूसरी ओर अमेरिका (USA) ने भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर अपनी रणनीति में बदलाव किया है। अमेरिका इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है, ताकि वह चीन के प्रसार को कम कर सके और अमेरिकी हितों को साध सके। अमेरिका और चीन के साथ ही भारत, जापान, आसियान (ASEAN) तथा फ्राँस भी अपनी भूमिका इस क्षेत्र में बढ़ाने पर बल दे रहे हैं। विभिन्न राष्ट्रों की नीतियों ने इस क्षेत्र को विश्व राजनीति के पटल पर ला दिया है।
इस दिशा में मुख्य उपलब्धि
भारत ने स्पष्ट रूप से हिन्द-प्रशांत के विचार को आगे बढ़ाने पर बल दिया, जो अफ्रीका से शुरू होकर जापान-अमेरिका तक फैला है।
इसमें कुछ वैसे प्रमुख पहलुओं पर भी स्पष्ट रूप से जोर दिया गया था, जो हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत के नीतिगत परिप्रेक्ष्य को दर्शाते हैं, जिसमें ‘समावेशिता’, ‘खुलापन’, ‘आसियान केंद्रीयता’ शामिल हैं और यह अवधारणा किसी भी देश के खिलाफ निर्देशित नहीं थी।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारतीय भागीदारी को मोटे तौर पर तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता हैः क्वाड, आसियान और पश्चिमी हिंद महासागर।
‘टू प्लस टू (2+2)’ वार्ता
भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान के साथ एक द्विपक्षीय ‘2+2’ वार्ता की शुरुआत की है, जिसमें दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच वार्ता की जाती है, भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ इसी तरह की सचिव स्तर की ‘2+2’ वार्ता शुरू की है।
भारत और आसियान
भारत ने अपने हिन्द-प्रशांत नीति में आसियान की केंद्रीयता पर जोर दिया है। भारत की एक्ट ईस्ट नीति आसियान सदस्यों के साथ सहयोग बढ़ाने हेतु रणनीतिक प्रक्रिया को दिशा प्रदान करती है।
भारत ने 2016 में वियतनाम और 2018 में इंडोनेशिया के साथ द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी के स्तर पर उन्नत किया।
भारत ने 2018 में आसियान प्लस देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास किया।
भारत और इंडोनेशिया हाल ही में मलक्का स्ट्रेट के पास स्थित सबंग पोर्ट को विकसित और उसका प्रबंधन करने की रणनीतिक कार्ययोजना पर सहमति व्यक्त की है।
भारत ने सिंगापुर के साथ एक लॉजिस्टिक सपोर्ट समझौता किया है, जो ओडिशा स्थित मिसाइल टेस्टिंग को सहायता प्रदान करेगा।
क्वाड की भूमिका
यह जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका के बीच का एक चतुष्कोणीय गठबंधन है, जो हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सहयोग और साझेदारी की स्थापना हेतु एक रणनीतिक वार्ता के रूप में शुरू की गयी थी।
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की पहल और चीन की वजह से उपजी भू-राजनैतिक और भू-रणनीतिक चुनौती को देखते हुए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा भारत के राष्ट्र प्रमुखों ने 2007 में रणनीतिक वार्ता के रूप में ‘क्वाड’ की शुरुआत की।
भारत की हिंद-प्रशांत नीति चीन को अलग-थलग करने की नहीं है, बल्कि हिंद-प्रशांत को लेकर भारत की एक सकारात्मक सोच रखता है। भारत की परिभाषा के तहत हिंद-प्रशांत एक स्वतंत्र, खुला, समावेशी क्षेत्र है, जो प्रगति और खुशहाली की दिशा में आगे बढ़ते हुए हर किसी को खुले दिल से स्वीकार करता है। इसमें वे सभी देश शामिल हैं, जो इस क्षेत्र के भीतर आते हैं और वैसे शक्तियों को भी मान्यता देता है, जो बाह्य होते हुए भी यहां साझेदार हैं।
भारत ने जानबूझकर ‘समावेशी’ शब्द जोड़कर हिंद-प्रशांत की परिभाषा को वैचारिक दृष्टि से एक नया आयाम देने की कोशिश की है_ जो सीधे तौर पर चार देशों के समूह के चीन विरोधी लक्ष्य को कमजोर करता है।
क्वाड देशों ने पहली बार सितंबर 2019 में मंत्रिस्तरीय स्तर पर मुलाकात की, जो भारत के चीन के प्रति आक्रामक रुख में बदलाव का संकेत है।
भारत 2020 में वार्षिक मालाबार अभ्यासों में भाग लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया को भी आमंत्रित कर सकता है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और भारत से जुड़े त्रिपक्षीय नौसेना अभ्यास हैं। यह भारत द्वारा एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम हो सकता है।
भारत और अमेरिका ने नवंबर 2019 में अपने पहले त्रि-सेवा सैन्य अभ्यास का आयोजन किया, जिससे दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ाने में मदद मिली, इसके अलावा भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक आपसी लॉजिस्टिक सहायता समझौते का भी संचालन किया, जो इस क्षेत्र में दोनों देशों को एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों तक पारस्परिक पहुँच प्रदान करता है।
पश्चिमी हिन्द महासागर
भारत ने पश्चिमी हिंद महासागर में अपने रणनीतिक साझेदारों पर भी ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है।
इस क्षेत्र में भारत और फ्रांस के मध्य विकसित रक्षा संबंध हैं और दोनों देशों ने हिंद महासागर में संयुक्त गश्त करने का फैसला किया है।
भारत ने फ्रांस के साथ एक आपसी सहायता लॉजिस्टिक समझौता किया है_ जो उसे जिबूती, यूएई और फ्रेंच रियूनियन में फ्रांसीसी सैन्य ठिकानों तक पहुंचने की सुविधा प्रदान करेगा।
भारत ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ व्यापक रणनीतिक साझेदारी के स्तर पर अपने संबंधों को भी उन्नत किया है, जिसके तहत दोनों देशों ने 2018 में पहला संयुक्त नौसेना अभ्यास किया। इसके अलावा, भारत ने मार्च 2019 में 17 अफ्रीकी देशों के साथ एक सैनिक अभ्यास सम्पन्न किया_ जो संयुक्त राष्ट्र के चेप्टर सात के तहत शांतिरक्षक गतिविधियों से सम्बंधित था।
भारतीय नौसेना ने हाल ही में अपना सूचना संलयन केंद्र (IFC) प्रारंभ किया है, जो मित्र राष्ट्रों के बीच जहाजों के बारे में सूचना साझा करने में सहूलियत प्रदान करता है।
भारत अपने तटीय निगरानी नेटवर्क (Coastal Surveillance Network) का उन्नयन कर रहा है, जो रडार की एकशृंखला है। यह हिन्द महासागर क्षेत्र में जहाज के आवागमन की व्यापक निगरानी करेगा। यह रडार श्रीलंका, मालदीव, मॉरीशस और सेशेल्स के समान रडार प्रणालियों से भी जुड़ सकेगा।
भारत-प्रशांत नौसैनिक सहयोग
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में मुख्य फोकस समुद्री क्षेत्र है। यही वह कड़ी है, जो भारत को श्रीलंका, इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसे देशों से जोड़ता है। यह सभी राष्ट्र इस क्षेत्र में अपनी समुद्री स्थिति के कारण मुख्य स्थान प्राप्त किये हुए हैं।
इंडो-पैसिफिक मैरीटाइम डायलॉग और अभ्यास
इंडो-पैसिफिक रीजनल डायलॉग (IPRD)-2019 का दूसरा संस्करण मार्च 2019 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। यह डायलॉग हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत के अवसरों और चुनौतियों की वार्षिक समीक्षा के साथ वैश्विक रणनीतिक समुदाय को सम्बद्ध करने की प्रक्रिया का हिस्सा है।
वर्षों तक हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में कुछ न करने और नीति के बारे में अनिश्चित होने के बाद, अंततः भारत हिंद महासागर में वास्तविक रूप में सुरक्षा प्रदाता बनने में सफल हुआ है।
चुंकि वैश्वीकरण के कारण व्यापार निर्भरता बढ़ी है। वैश्वीकरण ने समुद्री क्षेत्र में निर्बाध संपर्क और समुद्री खतरे की प्रकृति को और अधिक अंतरराष्ट्रीय बना दिया है। इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने पर भी बल दिया जा रहा है, ताकि व्यापार और ऊर्जा की निर्बाध आपूर्ति हो सके। इस प्रकार हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में मुख्य रूप से सम्पर्क, समुद्री परिवहन सुरक्षा, आतंकवाद निरोध, अप्रसार और साइबर सुरक्षा मुद्दों पर बल प्रदान किया जा रहा है।
हाल के वर्षों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र आर्थिक गतिविधियों का केंद्रबिंदु बनकर उभरा है। आर्थिक महत्ता की वृद्धि ने इस क्षेत्र को भू-राजनीति के मंच पर ला दिया है। इसी आधार पर विभिन्न राष्ट्र अपने हितों को पूरा करने के लिये इस क्षेत्र पर प्रभाव स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। भारत के हितों की दृष्टि से आवश्यक है कि भारत भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करे। आर्थिक रूप से मज़बूत किंतु विनम्र (benign) राष्ट्र की छवि भारत के लिये सहयोगी बनाने में प्रायः सहायक ही है, इन सहयोगियों के साथ चलकर भारत इस क्षेत्र में मज़बूत स्थिति को प्राप्त कर सकता है तथा चीन की प्रसार की नीति के बावजूद अपने हितों को पूरा करने में सफल हो सकता है।
हालांकि आवश्यक है कि भारत को विभिन्न चुनौतियों के बावजूद चीन के साथ अपने संबंधों का प्रबंधन करने का प्रयास करना चाहिये, ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यथासंभव शांति सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा जापान और भारत के बीच सुगम रिश्ता भी स्थिर और शांत हिंद-प्रशांत क्षेत्र तथा भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी की आधारशिला हेतु प्रमुख घटक रहेंगे। भारत को इस समय आसियान केंद्रित विकास एजेंडे और क्वाड केंद्रित सुरक्षा एजेंडे के बीच विकल्प बनने से बचना चाहिए, आवश्यक है कि दोनों को सामानांतर ही देखा जाए।
स्त्रोत - द हिन्दू रिपोर्ट, द इंडियन एक्सप्रेस, संसद टेलीविजन, अन्य मैगजीन
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शंघाई सहयोगी संगठन में भारत की भूमिका और प्रभाव