78वां स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर तैयारी करने वाले UPSC, BPSC, JPSC, UPPSC ,BPSC TRE & SI के अभ्यर्थीयों को 15 अगस्त 2024 तक 75% का Scholarship एवं 25 अगस्त 2024 तक 70% का Scholarship. UPSC 2025 और BPSC 71st की New Batch 5 September & 20 September 2024 से शुरु होगी ।

भारत वन राज्य रिपोर्ट- 2021

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-01-13 18:39:39

भारत वन राज्य रिपोर्ट - 2021

(स्त्रोत - द इंडियन एक्सप्रेस, डाउन टू अर्थ, पी.आई.बी. रिपोर्ट)


भारत वन राज्य रिपोर्ट (ISFR) 2021 हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) द्वारा जारी किया गया था। (13 जनवरी‚ 2022 को केंद्रीय पर्यावरण‚ वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव के द्वारा)

हालांकि इससे पहले अक्तूबर, 2021 में भारत के वन शासन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाने के लिये MoEFCC द्वारा वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में एक संशोधन प्रस्तावित किया गया था।

आईएसएफआर-2021 निम्नलिखित से संबंधित सूचनाएं प्रदान करता है-

 

  • वन आवरण,
  • वृक्ष आवरण,
  • मैंग्रोव आवरण,
  • वननिधि (स्टॉक) में वृद्धि,
  • भारत के वनों में कार्बन संग्रह,
  • वनों की आग की निगरानी,
  • बाघ आरक्षित क्षेत्रों में वनावरण,
  • एसएआर डेटा का उपयोग करते हुए बायोमास के वास्तविक अनुमान एवं
  • भारतीय वनों में जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट्स


यह भारत के वनों एवं वृक्ष संसाधनों का द्विवार्षिक सर्वेक्षण होता है। प्रथम भारत वन स्थिति रिपोर्ट 1987 में प्रकाशित हुई थी। यह भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) द्वारा तैयार की जाती है, जिसे देश के वन एवं वृक्ष संसाधनों का आकलन करने हेतु अधिदेशित किया गया है।

भारत वन स्थिति रिपोर्ट (आईएसएफआर) 2021 भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) द्वारा प्रकाशित 17वां आईएसएफआर है।


इस का उपयोग व्यापक रूप से वनों से संबंधित नीतियां निर्मित करने, योजना बनाने एवं प्रबंधन के साथ-साथ देश के वानिकी क्षेत्र को प्रभावित करने वाले निवेशों के लिए किया जाता है।

आईएफएसआर प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में छात्रों एवं शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ दस्तावेज के रूप में भी कार्य करता है।

आईएफएसआर एक अर्थपूर्ण मात्रा में डेटा प्रदान करता है जो अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं विभिन्न अभिसमयों एवं प्रतिबद्धताओं के लिए भारत की रिपोर्टिंग आवश्यकताओं को पूरा करता है । जैसे-

1. खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ)
2. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी)
3. जैव विविधता पर अभिसमय (सीबीडी)

●●● वनों की तीन श्रेणियों का सर्वेक्षण किया गया है जिनमें शामिल हैं-

अत्यधिक सघन वन (70% से अधिक चंदवा घनत्व), मध्यम सघन वन (40-70%) और खुले वन (10-40%)।

●●● स्क्रबस (चंदवा घनत्व 10% से कम) का भी सर्वेक्षण किया गया लेकिन उन्हें वनों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया।

 

रिपोर्ट की महत्वपूर्ण बातें - 

1. कुल वन एवं वृक्ष आवरण में वृद्धि:-  2019 (आईएसएफआर-2019) के आकलन की तुलना में, देश के कुल वन एवं वृक्ष आवरण में 2,261 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। इसमें से वनावरण में 1,540 वर्ग किमी एवं वृक्षों के आवरण में 721 वर्ग किमी की वृद्धि देखी गई है।

( देश का कुल वन एवं वृक्ष आवरण 80. 9 मिलियन हेक्टेयर   है ,जो देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.62 % है।.देश में कुल वनावरण 7,13,789 वर्ग किमी. है‚ जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.71 प्रतिशत है।)

राष्ट्रीय वन नीति‚ 1988 के अनुसार‚ देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 33 प्रतिशत भू-भाग वृक्षावरण से आच्छादित होना चाहिए।

 


वनावरण में वृद्धि वाले शीर्ष राज्य (किलोमीटर के आधार पर) :-  खुले वन में वन आवरण में वृद्धि देखी गई है,  जिसके पश्चात अत्यंत सघन वन हैं।

●● आईएसएफआर-2021 के अनुसार, वनावरण में वृद्धि दर्शाने वाले शीर्ष पांच  राज्य हैं-


1. आंध्र प्रदेश (647 वर्ग किमी),
2. तेलंगाना (632 वर्ग किमी),
3. ओडिशा (537 वर्ग किमी)
4. कर्नाटक (155 वर्ग किमी.)
5. झारखंड (110 वर्ग किमी.)


◆◆◆ (प्रतिशत के आधार पर वनावरण में सबसे अधिक वृद्धि दर्शाने वाले राज्यों में तेलंगाना (3.07%), आंध्र प्रदेश (2.22%) और ओडिशा (1.04%) हैं।)


वनावरण में सबसे अधिक कमी पूर्वोत्तर के पाँच राज्य- 


अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड।

 

क्षेत्र-वार वन आवरण:

ISFR  2021 की रिपोर्ट है कि क्षेत्र-वार मध्य प्रदेश में देश का सर्वाधिक वृहद वन क्षेत्र है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं महाराष्ट्र हैं। 

1. मध्य प्रदेश (77,492.60 - 25.14  %) 
2. अरुणाचल प्रदेश (66,430.67 वर्ग किमी. - 79.33 % )
3. छत्तीसगढ़ (55, 716.60 वर्ग किमी.- 41.21 % )
4. ओडिशा (52,155.95 वर्ग.किमी. - 33.50 प्रतिशत)
5. महाराष्ट्र (50,797.76 वर्ग किमी.- 16.51 प्रतिशत)


प्रतिशत-वार वनावरण: -

कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वनावरण के मामले में शीर्ष पांच राज्य हैं-

1.  मिजोरम (84.53 प्रतिशत)
2. अरुणाचल प्रदेश (79.33 प्रतिशत)
3. मेघालय (76.00 प्रतिशत)
4. मणिपुर (74.34 प्रतिशत)
5. नागालैंड (73.90 प्रतिशत)


वन आवरण के अंतर्गत एक तिहाई से अधिक क्षेत्र वाले राज्य / केंद्र शासित प्रदेश: - 

आईएसएफआर 2021 के निष्कर्ष से स्पष्ट है कि  17 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में भौगोलिक क्षेत्र का 33 प्रतिशत से अधिक वनावरण के अंतर्गत है।

◆◆ 75% से अधिक वाले राज्य :- 

पांच राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों अर्थात लक्षद्वीप, मिजोरम, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश तथा मेघालय में 75 % से अधिक वन क्षेत्र हैं।

2. 33%-75% के मध्य वाले राज्य :- 

12 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों अर्थात् मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा, गोवा, केरल, सिक्किम, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, दादरा एवं नगर हवेलीतथा दमन एवं दीव, असम, ओडिशा में 33% से 75% के मध्य वन क्षेत्र है। 


●● मैंग्रोव

मैंग्रोव में 17 वर्ग किमी. की वृद्धि देखी गई है। भारत का कुल मैंग्रोव आवरण अब 4,992 वर्ग किमी. हो गया है।

मैंग्रोव आवरण में वृद्धि प्रदर्शित करने वाले शीर्ष तीन राज्य हैं-

1. ओडिशा (8 वर्ग किमी)
2. महाराष्ट्र (4 वर्ग किमी)
3. कर्नाटक (3 वर्ग किमी)


●●●  कार्बन स्टॉक:- 

भारत वन स्थिति रिपोर्ट (आईएसएफआर) 2021 देश के कार्बन स्टॉक में 2019 के अंतिम आकलन की तुलना में 79. 4 मिलियन टन की वृद्धि दर्शाता है।
कार्बन स्टॉक में वार्षिक वृद्धि 39. 7 मिलियन टन है।
देश के वनों में कुल कार्बन स्टॉक 7,204 मिलियन टन होने का अनुमान है।


(वन कार्बन स्टॉक का आशय कार्बन की ऐसी मात्रा से है जिसे वातावरण से अलग किया गया है और अब वन पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर संग्रहीत किया जाता है, मुख्य रूप से जीवित बायोमास और मिट्टी के भीतर और कुछ हद तक लकड़ी और अपशिष्ट में भी।) 


◆◆◆ बाँस के वन :-

वर्ष 2019 में वनों में मौजूद बाँस की संख्या 13,882 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2021 में 53,336 मिलियन हो गई है।


◆◆◆ भारतीय वनों में जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट :- 


आईएसएफआर 2021 के अनुसार, लगभग 45-64% भारतीय वन 2030 तक जलवायु परिवर्तन एवं बढ़ते तापमान के नकारात्मक प्रभाव का अनुभव करेंगे।
सभी भारतीय राज्यों (असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं नागालैंड के अतिरिक्त) में वन अत्यधिक संवेदनशील जलवायु वाले हॉट स्पॉट होंगे।
केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख (वन आवरण 1-0.2%) जलवायु परिवर्तन एवं बढ़ते तापमान के कारण सर्वाधिक प्रभावित होने की संभावना है।


◆◆ जंगल में आग लगने की आशंका :- 

 

35.46% वन क्षेत्र जंगल की आग से ग्रस्त है। इसमें से 2.81% अत्यंत अग्नि प्रवण है, 7.85% अति उच्च अग्नि प्रवण  है और 11.51% उच्च अग्नि प्रवण है।


ISFR 2021 की विशेषताएंँ: टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में वन आवरण -


इसने पहली बार टाइगर रिज़र्व, टाइगर कॉरिडोर और गिर के जंगल जिसमें एशियाई शेर रहते हैं में वन आवरण का आकलन किया है।
वर्ष 2011-2021 के मध्य बाघ गलियारों में वन क्षेत्र में 37.15 वर्ग किमी (0.32%) की वृद्धि हुई है, लेकिन बाघ अभयारण्यों में 22.6 वर्ग किमी (0.04%) की कमी आई है।
इन 10 वर्षों में 20 बाघ अभयारण्यों में वनावरण में वृद्धि हुई है, साथ ही 32 बाघ अभयारण्यों के वनावरण क्षेत्र में कमी आई।

(विगत दशक में 52 बाघ अभ्यारण्यों में वनावरण में कुल कमी 62 वर्ग किलोमीटर (वर्ग किमी) रही है।)


बक्सा (पश्चिम बंगाल), अनामलाई (तमिलनाडु) और इंद्रावती रिज़र्व (छत्तीसगढ़) के वन क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है जबकि कवल (तेलंगाना), भद्रा (कर्नाटक) और सुंदरबन रिज़र्व (पश्चिम बंगाल) में हुई है।
अरुणाचल प्रदेश के पक्के टाइगर रिज़र्व में सबसे अधिक लगभग 97% वन आवरण है।


32  टाइगर रिजर्व में गिरावट की प्रवृत्ति प्रदर्शित हुई है, जो असम के ओरंग में 06 वर्ग किमी से लेकर तेलंगाना के कवाल में 118.97 वर्ग किमी तक विस्तृत है।


वन क्षेत्र में वृद्धि प्रदर्शित करने वाले शीर्ष तीन टाइगर रिजर्व–


1. बक्सा (पश्चिम बंगाल)- 80 वर्ग किमी
2. अन्नामलाई (तमिलनाडु)- 78 वर्ग किमी
3. इंद्रावती (छत्तीसगढ़) – 48 वर्ग किमी

ISFR का उपयोग वन प्रबंधन के साथ-साथ वानिकी और कृषि वानिकी क्षेत्रों में नीतियों के नियोजन एवं निर्माण में किया जाता है।

वनों की तीन श्रेणियों का सर्वेक्षण किया गया है,  जिनमें शामिल हैं- 

1. अत्यधिक सघन वन (70% से अधिक चंदवा घनत्व)
2. मध्यम सघन वन (40-70%)
3.  खुले वन (10-40%)।

इनके अलावे,  स्क्रबस (चंदवा घनत्व 10% से कम) का भी सर्वेक्षण किया गया लेकिन उन्हें वनों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया।


◆◆ वन रिपोर्ट से संबंधित चिंताएं :- 


अरुणाचल प्रदेश में सबसे अधिक 257 वर्ग किलोमीटर जंगल में कमी आई है।रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर पूर्व के राज्य मणिपुर में 249 वर्ग किलोमीटर, मिजोरम में 186, नागालैंड में 235, त्रिपुरा में चार वर्ग किलोमीटर, असम में 15 और पश्चिम बंगाल में 70 वर्ग किलोमीटर फॉरेस्ट कवर कम हुआ है। देश की राजधानी दिल्ली में भी वनों में कमी आई है।

देश के बड़े राज्यों में शुमार मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे बड़े राज्यों में जंगलों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। मध्य प्रदेश में 11 वर्ग किलोमीटर, उत्तर प्रदेश में 12, गुजरात में 69, महाराष्ट्र में 20  वर्ग किलोमीटर जंगल में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

जंगलों के लिए सबसे समृद्ध राज्यों में से एक उत्तराखंड की स्थिति को बहुत अधिक संतोषजनक नहीं है। वर्ष 2019 की तुलना में पिछले दो साल के भीतर उत्तराखंड में सिर्फ दो वर्ग किलोमीटर जंगल क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई है। यह स्थिति तब है जब उत्तराखंड में प्रतिशत के लिहाज से 44.45 फीसदी भौगोलिक क्षेत्रफल वनों से आच्छादित है।  

पिछले दो साल के भीतर किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि नईदिल्ली, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम समेत देश के 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फॉरेस्ट कवर में कमी आई है। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, बिहार, कर्नाटक, झारखंड, केरल जैसे राज्यों में फॉरेस्ट कवर में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जिन राज्यों में फॉरेस्ट कवर में कमी आई है उन राज्यों में कई ठोस कदम उठाने होंगे। 


●● प्राकृतिक वनों में गिरावट:

मध्यम घने जंगलों या ‘प्राकृतिक वन’ में 1,582 वर्ग किलोमीटर की गिरावट आई है।
यह गिरावट खुले वन क्षेत्रों में 2,621 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि के साथ-साथ देश में वनों के क्षरण को दर्शाती है।
साथ ही झाड़ी क्षेत्र में 5,320 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है, जो इस क्षेत्र में वनों के पूर्ण क्षरण को दर्शाता है।
बहुत घने जंगलों में 501 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है।

◆◆ पूर्वोत्तर क्षेत्र के वन आवरण में गिरावट :- 

पूर्वोत्तर क्षेत्र में वन आवरण में कुल मिलाकर 1,020 वर्ग किलोमीटर की गिरावट देखी गई है।

पूर्वोत्तर राज्यों के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.98% हिस्सा है लेकिन कुल वन क्षेत्र का 23.75% हिस्सा है।
पूर्वोत्तर राज्यों में गिरावट का कारण क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं, विशेष रूप से भूस्खलन और भारी बारिश के साथ-साथ मानवजनित गतिविधियों जैसे कि कृषि को स्थानांतरित करना, विकासात्मक गतिविधियों का दबाव और पेड़ों की कटाई को उत्तरदायी ठहराया गया है।


2030 तक भारत के 45% से अधिक वन 'जलवायु हॉटस्पॉट' बन जाएंगे

2030 तक, 315,667 वर्ग किलोमीटर (वर्ग किमी) या भारत का 45 प्रतिशत वन और वृक्ष आवरण 'जलवायु हॉटस्पॉट' के रूप में उभरने के लिए तैयार हैं। क्लाइमेट हॉटस्पॉट एक ऐसा क्षेत्र है जिसके जलवायु परिवर्तन से प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है ।


स्टेट ऑफ इंडियाज फॉरेस्ट रिपोर्ट, 2021 (एसओएफआर, 2021) शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक, 448,367 वर्ग किमी या भारत के 64 प्रतिशत वन और वृक्षों के कवर को जलवायु परिवर्तन की 'उच्च गंभीरता' का सामना करना पड़ सकता है ।
उच्च गंभीरता का मतलब है कि भारत के हरित आवरण में 1.5 और 2.1 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान में वृद्धि देखने की उम्मीद है। एसओएफआर, 2021 में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के हॉटस्पॉट में 20-26 प्रतिशत की वृद्धि या कमी के साथ वर्षा के पैटर्न में भी बदलाव देखने को मिलेगा। 
ये अनुमान एफएसआई और बिट्स, पिलानी (गोवा कैंपस) के बीच सहयोगी अध्ययन पर आधारित हैं, ताकि देश के वन क्षेत्रों में जलवायु हॉटस्पॉट का नक्शा तैयार किया जा सके।


अध्ययन ने तीन 'समय क्षितिज' - 2030, 2050 और 2085 में तापमान और वर्षा के कंप्यूटर मॉडल-आधारित अनुमानों का उपयोग किया।
भारत के उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वनों का 55 प्रतिशत से अधिक, सबसे प्रमुख प्रकार के वन, जलवायु परिवर्तन से गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।
313,617 वर्ग किमी में से 172,719 वर्ग किमी जलवायु परिवर्तन के लिए अत्यधिक संवेदनशील होगा। ये जंगल 100-150 सेंटीमीटर की बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं, जिसमें पांच से छह महीने शुष्क होते हैं।
इस प्रकार, छत्तीसगढ़ के 84 प्रतिशत वन क्षेत्र के जलवायु हॉटस्पॉट बनने की सबसे अधिक संभावना है। मध्य प्रदेश में, वनों के अंतर्गत आने वाला 65 प्रतिशत क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील होगा।
उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन और उष्णकटिबंधीय अर्ध-सदाबहार वन, दूसरे और तीसरे सबसे प्रमुख प्रकार के वन भी अत्यधिक असुरक्षित हैं। लगभग 47 प्रतिशत और 40 प्रतिशत उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन और उष्णकटिबंधीय अर्ध-सदाबहार वन क्रमशः जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होंगे।


कुल 520,280 वर्ग किमी को कवर करने वाले शीर्ष तीन प्रमुख वन प्रकारों के तहत पूरा क्षेत्र 2050 से जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट के अंतर्गत आएगा।
इसलिए, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के बड़े हिस्से, ओडिशा के उत्तरी भाग और झारखंड के पश्चिमी हिस्से में वन 2050 से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से प्रभावित होंगे, द्विवार्षिक वन रिपोर्ट में कहा गया है


रिपोर्ट में पहली बार प्रस्तुत किए गए जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट अध्ययन के परिणाम राज्य के वन विभागों के लिए उनके प्रबंधन के तहत वन क्षेत्रों के लिए शमन और अनुकूलन कार्यक्रम तैयार करने में प्रासंगिक हैं।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के वन महानिदेशक चंद्र प्रकाश गोयल ने अपने प्रस्ताव में कहा, "यह राज्य सरकारों के लिए अपनी भूमि और विकास नीतियों में जलवायु परिवर्तन को शामिल करने के लिए आधार रेखा के रूप में कार्य करता है।" 


भारतीय वन सर्वेक्षण 'वन कवर' को एक हेक्टेयर या उससे अधिक की सभी भूमि के रूप में परिभाषित करता है जिसमें पेड़ के पैच 10 प्रतिशत से अधिक के छत्र घनत्व के साथ होते हैं।
इसमें कानूनी स्वामित्व और भूमि उपयोग के बावजूद सभी भूमि शामिल हैं। 'अभिलेखित वन क्षेत्र' में केवल वे क्षेत्र शामिल हैं जो सरकारी अभिलेखों में वनों के रूप में दर्ज हैं और इसमें प्राचीन वन शामिल हैं।

वनों के प्रकार के अनुसार वन लाभ में एक गहरा गोता लगाने से यह तथ्य सामने आता है कि भारत घने जंगलों को नहीं जोड़ रहा है।बल्कि, यह मध्यम वृक्ष आवरण वाले प्राकृतिक वनों के महत्वपूर्ण क्षेत्रों को खो रहा है। भारत में 10 से 40 प्रतिशत की सीमा में वृक्षों के छत्र घनत्व के साथ अधिक वन आवरण है, जिसे 'खुले जंगल' के रूप में जाना जाता है।


भारत ने पिछले दो वर्षों में बहुत घने वन श्रेणी के तहत केवल 501 वर्ग किमी की वृद्धि दर्ज की है। मध्यम सघन वन श्रेणी में 1,582 वर्ग किमी की हानि होती है। खुले जंगलों में 2,612 वर्ग किमी की वृद्धि दर्ज की गई है।। 

पांच राज्यों - आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, कर्नाटक और झारखंड - ने लगभग पूरी तरह से 1,540 वर्ग किमी के वन क्षेत्र में शुद्ध वृद्धि में योगदान दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, यह वृद्धि वृक्षारोपण और कृषि वानिकी के कारण भी है। किन्तु ग्यारह राज्यों ने वन क्षेत्र में नुकसान की सूचना दी है, जबकि 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने मामूली घने वन क्षेत्र में नुकसान की सूचना दी है।


खुले वनों का वर्तमान में देश के वन क्षेत्र में सबसे बड़ा हिस्सा है, कुल वन आवरण का 9.34 प्रतिशत (307,120 वर्ग किमी)। बहुत घने जंगल (प्राचीन प्राकृतिक वन) कुल वन क्षेत्र का सिर्फ 3.04 प्रतिशत (99,779 वर्ग किमी) हैं।


13 जनवरी, 2022 को जारी भारत की वन स्थिति रिपोर्ट 2021 से पता चलता है कि भारत के बढ़ते स्टॉक में वृद्धि की प्रवृत्ति है, साथ ही वन और वृक्षों के कवर में 2,261 वर्ग किलोमीटर (वर्ग किमी) की वृद्धि हुई है। इस स्पाइक का अधिकांश हिस्सा ट्री आउटसाइड फॉरेस्ट (टीओएफ) के तहत क्षेत्र में वृद्धि के कारण हुआ है।
बढ़ता हुआ स्टॉक मौजूदा लकड़ी के संसाधनों के बारे में जानकारी प्रदान करता है और यह जंगल में निहित कार्बन की मात्रा का अनुमान लगाने का एक आधार भी है।  भारत में कुल बढ़ता हुआ स्टॉक मौजूदा आकलन में 6.92 प्रतिशत बढ़कर 6,167.50 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीयूएम) हो गया है, जो 2015 के आकलन में 5,768.387 एमक्यूएम था।
राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते स्टॉक का अनुमान 56.60 घन मीटर प्रति हेक्टेयर (सह प्रति हेक्टेयर) है। केरल में वन का उच्चतम प्रति हेक्टेयर बढ़ता स्टॉक 139.32 प्रति हेक्टेयर है। 105.53 प्रति हेक्टेयर के साथ उत्तराखंड और 101.26 प्रति हेक्टेयर बढ़ते स्टॉक के साथ गोवा देश में दूसरे और तीसरे स्थान पर है।

बढ़ते स्टॉक की कुल मात्रा के मामले में अरुणाचल प्रदेश 418.99 एमसीयूएम के साथ सर्वोच्च स्थान पर है, इसके बाद उत्तराखंड 401.01 एमक्यूएम के साथ, छत्तीसगढ़ में 389.64 एमसीयूएम है जबकि मध्य प्रदेश 374.44 एमसीयूएम के साथ देश में चौथे स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे अधिक प्रति हेक्टेयर जंगल का भंडार लद्दाख में है, इसके बाद जम्मू और कश्मीर और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह हैं।
टीओएफ के तहत 2015 से 13.09 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इन वर्षों में जंगलों के अंदर बढ़ते स्टॉक में केवल 4.60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
 महाराष्ट्र में टीओएफ का अधिकतम बढ़ता स्टॉक 187.69 एमसीयूएम है। कर्नाटक में 121.72 एमसीयूएम, मध्य प्रदेश में 118.05 एमसीयूम और छत्तीसगढ़ में 117.30 एमसीयूएम है।
साल ट्री ( शोरिया रोबस्टा ) 476.94 एमक्यूएम मात्रा के साथ बढ़ते स्टॉक में लगभग 10.87 प्रतिशत का योगदान देता है, इसके बाद 191.890 मीटर क्यूएम (4.37 प्रतिशत) के साथ टीक (टेक्टोना ग्रैंडिस ) का स्थान आता है।
चिर पाइन ( पिनस रॉक्सबर्गी ) और सिल्वरग्रे वुड ( टर्मिनलिया टोमेंटोसा ) बढ़ते स्टॉक का लगभग 4.12 और 3.88 प्रतिशत योगदान करते हैं।
टीओएफ में, आम के पेड़ (मैंगिफेरा इंडिका ) कुल मात्रा का 12.94 प्रतिशत योगदान करते हैं, इसके बाद नीम ( अजादिराछा इंडिका ) 6.78 प्रतिशत, महुआ ( मधुका लतीफोलिया ) 4.65 प्रतिशत और नारियल ( कोकोस न्यूसीफेरा ) 4.51 प्रतिशत के साथ आता है। प्रतिशत, रिपोर्ट में कहा गया है।
जंगलों के बाहर के पेड़ लकड़ी, जलाऊ लकड़ी और छोटी लकड़ी की आपूर्ति जैसे वन उत्पादों का एक प्रमुख स्रोत हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन भी देश में इमारती लकड़ी की बढ़ती मांग में योगदान दे सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि टीओएफ महत्वपूर्ण नवीकरणीय संसाधनों में से एक है जो जलवायु परिवर्तन को कम करने में योगदान देता है, क्योंकि दुनिया भर के जंगल का हर हिस्सा कार्बन को अवशोषित करता है।


2020 में जारी ग्लोबल फॉरेस्ट रिसोर्स असेसमेंट रिपोर्ट के अनुसार, 72.16 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र के साथ भारत दुनिया के जंगलों में लगभग दो प्रतिशत का योगदान देता है।


सरकार द्वारा पहल

◆◆ हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन:


यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है।
इसे फरवरी 2014 में देश के जैविक संसाधनों और संबंधित आजीविका को प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने तथा पारिस्थितिक स्थिरता, जैव विविधता संरक्षण और भोजन- पानी एवं आजीविका पर वानिकी के महत्त्वपूर्ण प्रभाव को पहचानने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। 

◆◆ राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP):


इसे निम्नीकृत वन भूमि के वनीकरण के लिये वर्ष 2000 से लागू किया गया है।
इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

◆◆ क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA Funds):


इसे 2016 में लॉन्च किया गया था , इसके फंड का 90% राज्यों को दिया जाना है, जबकि 10% केंद्र द्वारा बनाए रखा जाता है।
धन का उपयोग जलग्रहण क्षेत्रों के उपचार, प्राकृतिक उत्पादन, वन प्रबंधन, वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन, संरक्षित क्षेत्रों व गांवों के पुनर्वास, मानव-वन्यजीव संघर्षो को रोकने, प्रशिक्षण एवं जागरूकता पैदा करने, काष्ठ सुरक्षा वाले उपकरणों की आपूर्ति तथा संबद्ध गतिविधियों के लिये किया जा सकता है।

◆◆ नेशनल एक्शन प्रोग्राम टू कॉम्बैट डेज़र्टिफिकेशन- 


इसे 2001 में मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये तैयार किया गया था।
इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

◆◆ वन अग्नि निवारण और प्रबंधन योजना (एफएफपीएम):- 

यह केंद्र द्वारा वित्तपोषित एकमात्र कार्यक्रम है जो विशेष रूप से जंगल की आग से निपटने में राज्यों की सहायता के लिये समर्पित है।


◆◆◆ परीक्षा संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य 

17 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों का 33 प्रतिशत से अधिक भौगोलिक क्षेत्र वन आच्छादित है।

इन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में शीर्ष 5 राज्य/केंद्रशासित प्रदेश हैं-

लक्षद्वीप‚ मिजोरम‚ अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह‚ अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में 75 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र हैं।

जबकि 12 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों अर्थात मणिपुर‚ नगालैंड‚ त्रिपुरा‚ गोवा‚ केरल‚ सिक्किम‚ उत्तराखंड‚ छत्तीसगढ‚ दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव‚ असम तथा ओडिशा में वन क्षेत्र 33 प्रतिशत से 75 प्रतिशत के बीच है।

जनसंख्या की दृष्टि से भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कुल वनावरण 14,817.89 वर्ग किमी. (6.15 प्रतिशत) है।

देश में कुल मैंग्रोव कवर 4,992 वर्ग किमी. है‚ जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15 प्रतिशत है।

देश के सर्वाधिक मैंग्रोव आच्छादित 4 राज्य/संघीय क्षेत्र क्रमश: पश्चिम बंगाल (42.33 प्रतिशत)‚ गुजरात (23.54 प्रतिशत)‚ अंडमान निकोबार द्वीप समूह (12.34 प्रतिशत) तथा आंध्र प्रदेश (8.11 प्रतिशत) हैं।

मैंग्रोव क्षेत्र में वृद्धि दिखाने वाले शीर्ष तीन राज्य ओडिशा (8 वर्ग किमी.)‚ महाराष्ट्र (4 वर्ग किमी.) तथा कर्नाटक (3 वर्ग किमी.) हैं।

देश के वनों में कुल कॉर्बन स्टॉक 7,204 मिलियन टन होने का अनुमान है और 2019 के अंतिम आकलन की तुलना में देश के कॉर्बन स्टॉक में 79.4 मिलियन टन की वृद्धि हुई है।

कॉर्बन स्टॉक में वार्षिक वृद्धि 39.7 मिलियन टन है।

ISFR-2021 में भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) ने भारत के टाइगर रिजर्र्व‚ कॉरिडोर और शेर संरक्षण क्षेत्र में वन आवरण के आकलन से संबंधित एक नया अध्याय शामिल किया है।

इसमें एफएसआई की नई पहल के तहत एक नया अध्याय जोड़ा गया है‚ जिसमें ‘जमीन से ऊपर बायोमास’ का अनुमान लगाया गया है।

एफएसआई ने बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स) पिलानी के गोवा कैंपस के सहयोग से भारतीय वनों में जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट की मैपिंग पर आधारित एक अध्ययन किया।

यह सहयोगात्मक अध्ययन भविष्य की तीन समय अवधियों यानी वर्ष 2030, 2050 और 2085 के लिए तापमान और वर्षा डेटा पर कंप्यूटर-आधारित अनुमान का उपयोग करते हुए भारत में वनावरण पर जलवायु हॉटस्पॉट का मानचित्रण करने के उद्देश्य से सहयोगात्मक अध्ययन किया गया था।

रिपोर्ट में पहाड़ी‚ आदिवासी जिलों और उत्तर पूर्वी क्षेत्र में वनावरण पर विशेष विषयगत जानकारी भी अलग से दी गई है।
 देहरादून स्थित भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) द्वारा प्रत्येक 2 वर्ष पर सुदूर संवेदन (Remote Sensing) आधारित उपग्रह चित्रण के माध्यम से देश में वनों एवं वृक्षों की स्थिति पर ‘भारत वन स्थिति रिपोर्ट’ जारी की जाती है।

शब्द 'वन क्षेत्र' '(Forest Area) सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार भूमि की कानूनी स्थिति को दर्शाता है, जबकि 'वन आवरण' (Forest Cover) शब्द किसी भी भूमि पर पेड़ों की उपस्थिति को दर्शाता है।

 

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कार्यप्रणाली


भारत सरकार के डिजिटल भारत के दृष्टिकोण और डिजिटल डेटा सेट के एकीकरण की आवश्यकता के अनुरूप, एफएसआई ने 2011 की जनगणना के अनुसार भौगोलिक क्षेत्रों के साथ व्यापक अनुकूलता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल ओपन सीरीज टॉपो शीट के साथ भारतीय सर्वेक्षण द्वारा प्रदान किए गए जिला स्तर तक विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों की हर स्तर की जानकारियों का उपयोग किया है।
मिड-रिज़ॉल्यूशन उपग्रह डेटा का उपयोग करते हुए देश के वन आवरण का द्विवार्षिक मूल्यांकन जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर वनावरण और वनावरण में बदलावों की निगरानी करने के लिए 23.5 मीटर के स्थानिक रिज़ॉल्यूशन 1:50,000 की व्याख्या के साथ भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह डेटा (रिसोर्ससैट-II) से प्राप्त एलआईएसएस-III डेटा की व्याख्या पर आधारित है।
यह जानकारी जीएचजी खोजों, जानवरों की संख्या में बढ़ोत्तरी, कार्बन स्टॉक, फॉरेस्ट रेफरेंस लेवल (एफआरएल) जैसी वैश्विक स्तर की विभिन्न खोजों, रिपोर्टों और यूएनएफसीसीसी लक्ष्यों को वनों के लिए योजना एवं उसके वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए सीबीडी वैश्विक वन संसाधन आकलन (जीएफआरए) के तहत अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टिंग के लिए तथ्य प्रदान करेगी।
पूरे देश के लिए उपग्रह डेटा अक्टूबर से दिसंबर 2019 की अवधि के लिए एनआरएससी से प्राप्त किया गया था। उपग्रह डेटा का पहले विश्लेषण किया जाता है और उसके बाद बड़ी कड़ाई से उसकी जमीनी सच्चाई का भी पता लगाया जाता है। विश्लेषित डेटा की सटीकता में सुधार के लिए अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी का भी उपयोग किया जाता है।
देश में वनों की स्थिति के वर्तमान मूल्यांकन में प्राप्त सटीकता का स्तर काफी अधिक है। वनावरण वर्गीकरण की सटीकता का आकलन 92.99% किया गया है। वन और गैर-वन वर्गों के बीच वर्गीकरण की सटीकता का मूल्यांकन 85% से अधिक के वर्गीकरण की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत सटीकता के मुकाबले 95.79% किया गया है। इसमें कठिन क्यूसी और क्यूए अभ्यास भी किया गया।
 


आईएसएफआर 2021 की अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं –


वर्तमान आईएसएफआर 2021 में, एफएसआई ने भारत के टाइगर रिजर्व, कॉरिडोर और शेर संरक्षण क्षेत्र में वन आवरण के आकलन से संबंधित एक नया अध्याय शामिल किया है। इस संदर्भ में, टाइगर रिजर्व, कॉरिडोर और शेर संरक्षण क्षेत्र में वन आवरण में बदलाव पर यह दशकीय मूल्यांकन वर्षों से लागू किए गए संरक्षण उपायों और प्रबंधन के प्रभाव का आकलन करने में मदद करेगा।
इस दशकीय मूल्यांकन के लिए, प्रत्येक टाइगर रिजर्व क्षेत्र में आईएसएफआर 2011 (डेटा अवधि 2008 से 2009) और वर्तमान चक्र (आईएसएफआर 2021, डेटा अवधि 2019-2020) के बीच की अवधि के दौरान वन आवरण में परिवर्तन का विश्लेषण किया गया है।
इसमें एफएसआई की नई पहल के तहत एक नया अध्याय जोड़ा गया है जिसमें ‘जमीन से ऊपर बायोमास' का अनुमान लगाया गया है। एफएसआई ने अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी), इसरो, अहमदाबाद के सहयोग से सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) डेटा के एल-बैंड का उपयोग करते हुए अखिल भारतीय स्तर पर जमीन से ऊपर बायोमास (एजीबी) के आकलन के लिए एक विशेष अध्ययन शुरू किया। असम और ओडिशा राज्यों (साथ ही एजीबी मानचित्र) के परिणाम पहले आईएसएफआर 2019 में प्रस्तुत किए गए थे। पूरे देश के लिए एजीबी अनुमानों (और एजीबी मानचित्रों) के अंतरिम परिणाम आईएसएफआर 2021 में एक नए अध्याय के रूप में प्रस्तुत किए जा रहे हैं। विस्तृत रिपोर्ट अध्ययन पूरा होने के बाद प्रकाशित की जाएगी।
एफएसआई ने बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स) पिलानी के गोवा कैंपस के सहयोग से 'भारतीय वनों में जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट की मैपिंग' पर आधारित एक अध्ययन किया है। यह सहयोगात्मक अध्ययन भविष्य की तीन समय अवधियों यानी वर्ष 2030, 2050 और 2085 के लिए तापमान और वर्षा डेटा पर कंप्यूटर मॉडल-आधारित अनुमान का उपयोग करते हुएभारत में वनावरण पर जलवायु हॉटस्पॉट का मानचित्रण करने के उद्देश्य से सहयोगात्मक अध्ययन किया गया था।

स्त्रोत - द इंडियन एक्सप्रेस, डाउन टू अर्थ, पी.आई.बी. रिपोर्ट

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